अन्तरिक्ष में दो चीज़ें काफी ज्यादा प्रसिद्ध हैं, पहला तो ब्लैक होल और दूसरा है एलियन्स (Alien’s Are Making Phone Calls)। जब भी अन्तरिक्ष से जुड़ा कोई भी विषय इन दोनों चीजों से कनैक्ट करता है, तब वो बात काफी ज्यादा रोचक बन जाती है। वैसे मित्रों! एक बात तो कहना पड़ेगी की, काफी समय हो चुका हैं मैंने आप लोगों से परग्रहियों से जुड़ी कोई भी बात नहीं की है। इसलिए मैंने सोचा की क्यों न आज इसके बारे में ही कुछ बात कर ली जाए। आप लोगों को भी जान कर काफी अच्छा लगेगा और मुझे आप लोगों को बताने में।
परग्रहिओं (Alien’s Are Making Phone Calls) की जब भी बात उठती है, तब शायद सब के मन में ये बात जरूर ही आती होगी की, आखिर कब हम लोग इन जीवों से मिलने वाले हैं? कई फिल्में और प्ले में हमें ये दिखाया जाता है कि, एलियन्स से मिलना हमारे लिए काफी ज्यादा आसान है। परंतु मित्रों, मैं आप लोगों को बता देना चाहता हूँ कि, असल में हमें अभी तक परग्रहिओं के बारे में कुछ भी नहीं पता है। वर्तमान कि बात करें तो, आज हम सिर्फ इनके बारे में कल्पना ही कर सकते हैं।
इसलिए आज का लेख हम सभी के लिए काफी ज्यादा खास होने वाला है। क्योंकि इसके अंदर हम कुछ ऐसे पहलूओं को जानेंगे, जिसके बारे में आप लोगों ने शायद ही कभी सोचा होगा।
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क्या एलियन्स हमसे संपर्क साध रहें हैं? – Alien’s Are Making Phone Calls? :-
इस ब्रह्मांड में पृथ्वी के जैसे कई प्रकार के ग्रह हैं और साथ ही साथ हमारे सौर-मण्डल कि तरह कई अलग-अलग सौर-मण्डल। ऐसे में वैज्ञानिकों को एक अलग ही तरह का ख्याल आया है और वो ये है कि, जब भी कोई ग्रह (पृथ्वी के जैसा) अपने सूर्य के सामने आता है, तब शायद वहाँ बसने वाले परग्रही हम लोगों से संपर्क साधने का प्रयास करते हैं। क्योंकि उस वक़्त वो ग्रह अपने सूर्य और हमारे पृथ्वी के बीच में मौजूद रहता है।
इसलिए अब वैज्ञानिक उन ग्रहों से निकलने वाले सिगनल्स को खोजने में लगें हैं, जो कि अपने सूर्य और हमारे पृथ्वी के बीच मौजूद हैं। एक खास बात ये है कि, सुदूर इलाकों में बसने वाले एलियन्स एक प्रकार की खगोलीय घटना “Cosmic Noon” का इंतजार कर रहें हैं। जब ये घटना अन्तरिक्ष में घट रही होगी, तब जाकर परग्रही हमसे संपर्क साधने का प्रयास करेंगे। मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, जब अन्तरिक्ष में कॉस्मिक नून (Cosmic Noon) कि घटना घटित होती है, तब परग्रहिओं के लिए हमसे संपर्क करना आसान हो जाता है।
खैर इस पूरे घटना-क्रम को वैज्ञानिक “Exoplanetary Transits” का नाम देते हैं। इस घटना-क्रम की ये खास बात है कि, इसको न बल्कि सिर्फ हम देख सकते हैं, परंतु इसको सुदूर इलाकों में बसे उन्नत परग्रही सभ्यता भी देख सकते हैं। ऐसे में आप ये कह सकते हैं कि, एलियन्स भी हमसे संपर्क करने के लिए उतना आतुर होंगे; जितना कि हम उनसे करने के लिए। आप लोगों को क्या लगता हैं दोस्तों, क्या आप भी उनसे कभी मिलना चाहेंगे?
इन सिगनल्स को हम कैसे ढूंढ सकते हैं?
मित्रों! अब यहाँ ध्यान देने वाली बात ये हैं कि, वैज्ञानिक आखिर कैसे परग्रहिओं (Alien’s Are Making Phone Calls) के द्वारा भेजे जाने वाले इन संदेशों को डिटेक्ट कर पाएंगे! कुछ वैज्ञानिकों के हिसाब से अगर हम एक्सोप्लैनेटरी ट्रांसिट्स वाले ग्रहों के ऊपर अच्छे से नजर रखें, तब कहीं न कहीं, कभी न कभी हमें एलियन्स के बारे में कुछ न कुछ जानने को मिल जाएगा। ऐसे में हमें ये देखना होगा कि, हमारे पास इन ग्रहों को डिटेक्ट करने के लिए जरूरी तकनीक पहले से मौजूद रहना चाहिए।
हालांकि! वर्तमान में छपे कुछ रिपोर्ट्स में ये पाया गया हैं कि, परग्रहीओं को हमसे संपर्क साधने में कोई आग्रह ही नहीं हैं। कहने का मतलब ये हैं कि, किसी भी परग्रही सिगनल्स से जुड़ी कोई भी ठोस सबूत अभी भी मौजूद नहीं हैं। ऐसे में परग्रहीओं के अस्तित्व के बारे में आज भी कुछ कहा नहीं जा सकता हैं। वैसे अभी वैज्ञानिकों का ध्यान पूरे तरीके से ऐसे ग्रहों पर हैं, जो कि पृथ्वी के जैसा ही हो। ऐसे में एक बात ये तय हो जाता हैं कि, हमें भी परग्रहीओं कि तरह हमारे खुद के भविष्य के बारे में चिंता हैं।
पिछले कुछ सालों में इंसान ने काफी ज्यादा तरक्की कर लिया हैं। जब 19 वीं शताब्दी के अंतिम अवस्था में रेडियो का आविष्कार हुआ, तब इंसान ने सोचा कि क्यों न वो भी रेडियो के तरंगों को अन्तरिक्ष में छोड़े और मित्रों उसी समय से ही हम अन्तरिक्ष में लगातार रेडियो को तरंगों को छोड़ रहें हैं। इसी का एक बढ़िया मिसाल हैं “1974 में छोड़ा गया Arecibo Message“।
क्या अन्तरिक्ष में बैठ कर एलियन्स हमें सुन रहें हैं! :-
जब इंसान ने पहली बार अन्तरिक्ष में रेडियो के तरंगों को अन्तरिक्ष में छोड़ा, तब सिर्फ उसका एक ही लक्ष था कि; वो परग्रहीओं (Alien’s Are Making Phone Calls) से संपर्क साध सकें। 70 के दशक में परग्रहीओं से जुडने कि इच्छा वैज्ञानिकों का कुछ इस कदर बढ़ा कि, तभी से ही इंसान ने दूसरे ग्रहों में बसने वाले जीवों के बारे में जानने में उत्साह दिखाना शुरू किया। हालांकि! कुछ वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि, हमारे आकाशगंगा में भी कुछ ऐसे भी तरंगें मौजूद हैं, जो कि शायद पहले से किसी परग्रही सभ्यता के द्वारा छोड़ा गया हो। ऐसे में इन तरंगों को ढूँढना भी हमारे लिए एक जरूर चीज़ हो जाता है।
परग्रही तकनीक से बनने वाले तरंग शायद हमारे आज के उपकरण पकड़ नहीं पाते हो, क्योंकि कुछ वैज्ञानिक ये भी मानते हैं कि; ये ब्रह्मांड इतना बड़ा हैं कि, हमसे भी कई गुना ज्यादा अत्याधुनिक सभ्यता सुदूर ब्रह्मांड में छुपे हुए हो, जो कि हमें देख कर भी शायद अनदेखा कर रहें होंगे। वैसे सबसे बड़ा सवाल यहाँ ये उठता हैं कि, आखिर कहाँ हम इस ब्रह्मांड में परग्रहीओं को ढूंढ सकते हैं। क्योंकि इतने बड़े ब्रह्मांड में परग्रही सभ्यता को ढूँढना माने, भूसा के ढेर में सुई को ढूँढने के जैसा ही हैं।
वैसे मित्रों! आप लोगों को क्या लगता हैं, क्या सच में एलियन्स हम से संपर्क करने के लिए इतने आतुर होंगे; जितना कि हम उनसे करने के लिए आतुर हो रहें हैं। इसके अलावा इस बात को भी हमें नजरंदाज नहीं करना चाहिए कि, शायद परग्रहिओं के पास भी हमारे जितनी ही उन्नत तकनीक मौजूद हो।
निष्कर्ष – Conclusion :-
कुछ अमेरिकी वैज्ञानिकों ने परग्रहीओं (Alien’s Are Making Phone Calls) के द्वारा भेजे जाने वाले रेडियो तरंगों को ढूँढने के लिए वहाँ पर लगे कुछ खास तरह के दूरबीनों का इस्तेमाल किया। हालांकि! खोज के शुरुआती चरणों में वैज्ञानिकों का ध्यान मूलतः 12 ऐसे एक्सो-प्लैनेट्स के ऊपर हैं, जो की एक्सोप्लैनेटरी ट्रांसिट्स को अंजाम देने जा रहें हैं या दे रहें हैं। वैसे इन ग्रहों के बारे में एक खास बात ये भी हैं की, सारे के सारे ग्रह साल 2018 के मार्च के महीने में अपने एक्सोप्लैनेटरी ट्रांसिट्स को अंजाम दे रहें थे।
इसके अलावा एक रोचक बात ये भी हैं कि, 2018 के इसी मार्च के महीने में वैज्ञानिकों को लगभग 34,000 से ज्यादा सिगनल्स मिले थे और वो सारे के सारे सिगनल्स इन्हीं खोजे गए 12 एक्सो-प्लैनेट्स से ही थे। हालांकि! वैज्ञानिकों को लगता हैं कि; इन 34,000 सिगनल्स में से लगभग 99.99% सिगनल्स पृथ्वी के इंटरनल डिसटरबेन्स से पैदा हुए हैं।
ऐसे में ये एक सवाल उठता हैं कि, क्या हम जिन तरंगों को परग्रहीओं के द्वारा भेजे जाने वाला तरंग समझ रहें हैं; वो शायद हम लोगों के द्वारा ही बनाया गया हो। एक बात ध्यान देने वाली ये भी हैं कि, केप्लर-132बी और केप्लर-842बी से आने वाले तरंगों के ऊपर भी और ज्यादा रिसर्च होना जरूरी हैं, क्योंकि ये शायद हमें परग्रहिओं से हमें जोड़ सकते हैं।
Sources – www.livescience.com, www.nasa.gov