कल्पना कीजिए उस उर्जा की जो भारत एक परमाणु से प्राप्त कर सके और उससे इतनी अधिक मात्रा में बिजली बना सके कि भारत का हर गांव रोशन हो जाये। हाल – फिलहाल तो ये एक सपना लगता है पर 2050 तक भारत थोरियम तत्व से उर्जा बनाने वाला विश्व का पहला देश बन जायेगा जो अपनी उर्जा की सभी जरूरतों को पूरा कर लेगा। तो आइये जानते हैं भारत के थोरियम उर्जा (Thorium Energy In Hindi) के भविष्य को पर उससे पहले हम आज इस्तेमाल होने वाली उर्जा के बारे में जान लेते हैं।
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संसाधन खत्म तो उर्जा खत्म
इस समय जिस उर्जा से आप अपने फोन और कंप्यूटर और हर गैजेट को चला रहे हैं वो उर्जा कोयले और दूसरे Non-Renewable Resources यानि वो संसाधन जिन्हें हम इंसान खत्म कर देंगे उनसे ही चल रहे हैं। ऐसे में हमें ऐनेर्जी उन संसाधनों से बनानी होगी जो या तो कभी खत्म ना हों या इतनी अधिक मात्रा में हो कि उन्हें खत्म होने में अरबों साल लगें। इस तरह के संसाधनों और रिसोर्सिस को renewable resources कहा जाता है।
सूर्य की उर्जा से बिजली बनाने वाले सोलर सैल (Solar Cells), हवा की मदद से उर्जा बनाने वाले Wind Mills इसके अच्छे उदाहरण हैं, पर ये दोनों तरीके बहुत ही ज्यादा मुश्किल हैं और उतनी अधिक मात्रा में उर्जा नहीं दे सकते जितने की हमें जरूरत है।दूसरा जब इन्हें बनाया किया जाता है तो तब बहुत ही ज्यादा प्रदूषण होता है और कम धूप और हवा में ये दोनों चीज़ें ज्यादा काम की भी नहीं आती हैं।
न्यूक्लियर ऐनेर्जी – Nuclear Energy
ऐसे में हमें जरूरत है उर्जा के ऐसे स्रोत की जो इन सभी समस्याओं से दूर हो और उससे पयार्वरण को भी ज्यादा नुकसान ना हो, तो वैज्ञानिकों ने पास इसका भी तरीका मौजूद है पर वो है न्यूक्लियर ऐनेर्जी (Nuclear Energy) यानि एटम (Atom) से ऐनेर्जी को बनाना, इसमें आपको एकदम साफ उर्जा मिलेगी जिससे पयार्वरण पर ग्रीनहाउस गैसों का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा और पृथ्वी का तापमान भी नियंत्रंण में रहेगा।
पर न्यूक्लियर ऐनेर्जी को अच्छे से समझने के लिए आपको थोड़ा भौतिक विज्ञान की ओर चलना पड़ेगा। इस समय न्यूक्लियर ऐनेर्जी को न्यूक्लियर फिशन (Nuclear Fission) द्वारा पैदा किया जाता है, इस तरीके से आप 1 किलो यूरेनियम (Uranium) से 4 अरब किलो कोयले के जलने के बराबर की उर्जा को निकाल सकते हो।
पर ये कैसे होता है और किस तरह न्यूक्लियर पावर प्लांट से हम फिशन करके ऐनेर्जी बनाते हैं आइये देखते हैं। Nuclear Power Plant में यूरेनियम के आइसोटोप (Isotope) Uranium- 235 के एटम पर जब एक न्युट्रोन (Neutron) टकराता है तो वो उसके नाभिक (Nucleus) को दो या दो से ज्यादा छोटे और हल्के Nuclei में विभाजित कर देता है।
इस टक्कर से Uranium- 235 टूट कर दो छोटे नाभिकों के साथ -साथ बहुत अधिक मात्रा में उर्जा और तीन फ्री न्युट्रोन्स (Free Neutrons) को भी रिलीज करता है, ये न्युट्रोन्स बहुत ही तेज स्पीड से आसपास घूमते हैं जिन्हें धीमा करने के लिए Neutron moderator का इस्तेमाल किया जाता है।
ये Neutron moderator ज्यादातर लाइट या हैवी वाटर (Heavy Water) होता है जो 10 हजार किलोमीटर प्रति सेकेंड की स्पीड से भाग रहे न्युट्रोन्स को धीमा करके उन्हें 1 किलोमीटर प्रति सेकेंड की स्पीड पर ला देता है। अब ये धीमे न्युट्रोन Uranium- 235 के दूसरे एटम से टकराकर इसी तरह 3 फ्री न्युट्रोन रिलीज करते हैं और देखते देखते ही एक चैन रियेक्शन (Chain Reaction) शुरू हो जाता है जिसमें बहुत अधिक मात्रा में उर्जा के साथ साथ बहुत से कण निकलते हैं। इन पार्टिकल्स और कणों की गति करने के कारण इनसे जो गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy) निकलती है उसे उष्ण ऊर्जा (Heat Energy) में बदलकर पानी को गर्म किया जाता है जो भारी मात्रा में भाप (Steam) पैदा करता है जिसके विशालकाय टरबाइन (Turbine) चलती हैं और उससे हमें बिजली (Electricity) मिलती है।
दुनियाभर के सभी विखंडन रिएक्टर (Fission Reactor) इसी तरह काम करते हैं। पर उर्जा का सबसे अच्छा विकल्प होने के बाद भी इसमें एक बहुत बड़ी समस्या सामने आती है।
दरअसल जिस Uranium- 235 का इस्तेमाल न्युक्लियर फिशन में किया जाता है वो प्राकृतिक यूरेनियम का केवल 0.7 प्रतिशत है बांकि 99.3 प्रतिशत यूरेनियम हमें यूरेनियम-238 (Uranium- 238) के रूप में मिलता है जो बिलकुल भी फिशन करने लाइक नहीं है। Uranium- 235 की इतनी कम मात्रा के कारण ये जल्दी खत्म होने की कगार पर है और भारत जैसे देशों में जहां यूरेनियम पहले से ही बहुत कम है वहां इससे ज्यादा उर्जा बनाना बहुत मुश्किल है, इसलिए इसे ध्यान में रखते हुए भारत ने यूरेनियम की जगह थोरियम (Thorium) पर काम करना शुरू किया है।
भारत का थोरियम कार्यक्रम -India’s three-stage nuclear power programme
थोरियम (Thorium) भारत में अच्छी मात्रा में मौजूद है पूरे विश्व का ⅓ थोरियम हमारे देश में मोनाज़ाइट (Monazite) के रूप में केरल के तटीय इलाकों की मिट्टी में मिलता है। हालांकि थोरियम की भारी मात्रा होने के बाद ही हमें इसे सीधा न्यूक्लियर ऐनेर्जी (Nuclear Energy) के लिए यूज नहीं कर सकते हैं। थोरियम यूरेनियम की तरह फिसाइल यानि फिशन नहीं कर सकता है, इसलिए इसे न्यूक्लियर रियेक्टर में Uranium- 233 में बदला जाता है जो कि फिशन करके बहुत अधिक मात्रा में हमें उर्जा दे सकता है।
थोरियम से Uranium- 233 जिन रियेक्टर्स में बनाया जाता है उन्हें Breeder reactors कहा जाता है, इस तरह के रियेक्टर अपनी खर्च करने की क्षमता से भी अधिक मात्रा में फिसाइल मैटेरियल बनाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए भारत के महान वैज्ञानिक होमी जहांगीर भाभा (Homi J. Bhabha) ने तीन चरणीय Indian Nuclear Power Programme की नींव रखी थी जिसमें उन्होंने थोरियम से ऐनेर्जी प्राप्त करने के लिए तीन चरण निर्धारित किये थे।
इसमें पहली स्टेज में Pressurized Heavy Water Reactor (PHWR) का इस्तेमाल शामिल है जिनमें फ़्यूल के तौर पर प्राकृतिक यूरेनियम को डाला जायेगा जो कि Plutonium-239 के साथ साथ भारी मात्रा में हीट पैदा करेगा जिससे बिजली बनेगी। इस तरह के रियेक्टर में हमें Uranium- 235 की जरूरत नहीं पड़ती है, इससे हम Uranium- 238 से फिशन मैटेरियल Plutonium-239 को बनाते हैं जो साथ में भारी मात्रा में ऐनेर्जी पैदा करता है।
अब यहीं से स्टेज 2 चालू होती है जिसमें हम फास्ट ब्रीडर रियेक्टर का इस्तेमाल करते हैं, ये रियेक्टर Plutonium-239 को फिशन प्रक्रिया में ले जाकर ऐनेर्जी तो पैदा करता ही है बल्कि साथ में बचे हुए Uranium- 238 को भी दोबारा Plutonium-239 में बदलकर फिर से फिशन करना चालू कर देता है। उसके बाद इस रियेक्टर में थोरियम को एक चद्दर के रूप (Blanket Material) की तरह डाला जाता है जो फिर Uranium- 233 में बदलकर तीसरे स्टेज के लिए तैयार हो जाता है, तीसरे स्टेज में थोरियम रियेक्टर का प्रयोग होता है जिसे Breeder reactor कहते हैं। इसमें Thorium- 232 Isotope Uranium- 233 आइसोटोप में बदलकर फिशन के लिए तैयार हो जाता है, जो भारी मात्रा में हमें उर्जा प्रदान कर सकता है, इस तरह के रियेक्टर से आप तबतक उर्जा प्राप्त कर सकते हैं जबतक आप इसमें थोरियम 232 को डालते रहते हैं।
नई पीढ़ी के रियेक्टर करेंगे काम आसान – Molten Salt Reactor
थोरियम रियेक्टर के फिलहाल कई डिज़ाइन बन चुके हैं और बहुत पर काम भी हो रहा है पर जो इनमें से सबसे ज्यादा चर्चा का विषय है वो है मोल्टन साल्ट रियेक्टर (Molten Salt Reactor), जहां आम रियेक्टर में पानी 200 से 300 डिग्री सेल्सियस पर काम करता है और आप जानते हैं कि पानी 100 डिग्री पर ही उवलने लगता है तो इसे रोकने के लिए और पानी को Liquid स्टेट में रखने के लिए हाई प्रेशर वाले Pumps को प्रयोग में लिया जाता है, अगर ये पंप्स फेल हो जायें तो पानी तरल की जगह गैस में बदल जायेगा और इतनी मात्रा में भाप पैदा करेगा जिससे रियेक्टर में ही धमाका हो जायेगा, इसस बचने के लिए वैज्ञानिक Molten Salt Reactors को बना रहे हैं जिसमें 1 हजार डिग्री सेल्सियम के भीषण तापमान पर भी नमक तरल अवस्था में रहकर रियेक्टर को फटने से बचा लेगा, इससे हाइ प्रेसर पंप्स का इस्तेमाल तो रूकेगा ही साथ साथ पानी की जगह साल्ट यानि नमक के प्रयोग से पानी भी बच सकेगा।
Molten Salt Reactors पर भारत ने 2015 से ही काम शूरू कर दिया है, और अपना एक डिज़ाइन भी तैयार किया है, भारत इससे थोरियम के द्वारा उर्जा पैदा करने वाला है। पर इसमें अभी बहुत समय लगने वाला है, इन रियेक्टर्स में नमक की वजह से ट्युब्स में जंग लगने का खतरा रहता है, इसे सही करने के लिए पूरे रियेक्टर को बंद करना पड़ता है जो पूरी ऐनेर्जी सप्लाई को बहुत स्लो कर देगा।
भारत अभी इस तरह की समस्याओं को कम करने के लिए लगातार रिसर्च कर रहा है। भारत सरकार के मुताबिक थर्ड स्टेज तक पहुँचने में हमें अभी 30 सालों का और इंतजार करना पड़ेगा तभी जाकर के हम थोरियम से भारत में गांव-गांव तक बिजली पहुँचा सकेंगे। खैर थोरियम से उर्जा बनाना अभी भी लंबे समय की बात है पर ये हमें साफ उर्जा के साथ-साथ न्यूक्लियर बम के खतरे से भी बचा सकता है, थोरियम से हम न्यूक्लियर बम नहीं बना सकते क्योंकि ये चैन रियेक्शन (Chain Reaction) नहीं करता है। हालांकि ये न्यूक्लियर कचरा यूरेनियम के मुताबिक ज्यादा ही पैदा करता है पर भारत के पास इससे भी बचने के बहुत तरीके मौजूद हैं। आने वाले सालों में हम न्युक्लियर कचरे (Nuclear Waste) को संभालने के और अच्छे तरीके देख सकते हैं। दूसरा अब जो रियेक्टरस बन रहे हैं वो एक खास कंटेनमेंट बिल्डिंग के साथ बनाये जा रहे हैं तो चर्नोविल जैसा हादसे होने का सवाल नहीं है विकिरण (Radiation) को बहुत छोटे से दायरे में ही कंट्रोल किया जा सकता है।
निष्कर्ष
थोरियम द्वारा न्यूक्लियर ऐनेर्जी बनाने वाला भारत दुनिया का पहला देश है, भारत साल 2050 तक बिजली की 30 प्रतिशत सप्लाई थोरियम बेस्ड रियेक्टर से ही करेगा और वैज्ञानिकों का अनुमान है कि भारत में जितना भी थोरियम रिजर्व मौजूद है उससे बिजली बनाई जाये तो 400 सालों तक हम हर साल 500 गीगाबाट इलेक्ट्रिक ऐनेर्जी जनरेट कर सकते हैं। ये ऐनेर्जी आज की पूरी बिजली की खपत से 1.5 गुना ज्यादा है।
सोचिए 1.5 गुना ज्यादा बिजली 2050 में वो भी केवल न्यूक्लियर प्लांट से वास्तव में भारत का ऊर्जा भविष्य थोरियम रियेक्टर वेस्ट रियेक्टर से बहुत आगे जा सकता है। इससे हम पुराने तरीकों से उर्जा की जरूरत को बदल कर एक बेहतर साफ उर्जा बना कर ग्लोबल वार्मिंग और वातावरण के बदलाव को कम करके पृथ्वी को फिर से नया बना सकते हैं। हालांकि उर्जा का केवल यही साफ विकल्प मौजूद नहीं है,भविष्य में आप और मैं उर्जा के और बी तरीके देखने वाले हैं जैसे-जैसे ये तरीके सामने आते रहेंगे मैं आप लोगों को इनके बारे में बताता रहूँगा।..