
हमारा सूर्य प्लाज्मा (Plasma) की एक विशाल होट गेंद है जहां भयानक हीट के कारण परमाणु इलेक्ट्रोन और न्युक्लियाई में टूटकर बिखर जाते हैं और सूर्य के प्लाज्मा में बहते रहते हैं। ये प्लाज्मा सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) के कारण अपनी शेप लेता है और उसी के द्वारा नियंत्रित भी किया जाता है। सूर्य जो कि ऐलेक्ट्रिकली चार्ज इलेक्ट्रोन(Electron) और प्रोटोन(Proton) के द्वारा बनाये गये प्लाज्मा पदार्थ का एक विशाल पिंड है, इन्हीं पार्टिकल्स की गतिशीलता (Movement) के कारण ही सूर्य चुंबकीय क्षेत्र पैदा करता है। पर सूर्य का यही चुंबकीय क्षेत्र पृथ्वी को भी तबाह करने का दम रखता है, ये कैसे हमें प्रभावित करता है और कैसे ये अरबों कणों (Solar Storm in Hindi) के जरिए तूफान पैदा करता है, आइये जानते हैं।
विषय - सूची
सौर-हवा (Solar Wind)
यही चुंबकीय क्षेत्र (Magnetic Field) फिर कणों (Particles) के बहाब को भी एक आकार देता है। ये सूर्य के अंदर एक लूप(Loop) की तरह ही बहते रहते हैं जिससे सूर्य का मैग्नेटिक फील्ड हमेशा बना रहता है। इस मैग्नेटिक फील्ड में अपार मात्रा में उर्जा होती है जो लगातार सौर- मंडल में प्रभाहित (Leak) होती रहती है।

सूर्य का पलाज्मा लगातार उसके ऐटमोस्फेयर में चार्ज कणों के रूप में इस तरह बहता है जैसे अंतरिक्ष में वर्षा (Rain) हो रही हो, इस बारिश को सौर पवन (Solar Wind) के नाम से जाना जाता है, असल में ये सूर्य के बाहरी एटमोस्फेय़र से मैग्नेटिक फील्ड के कारण प्रबाहित होने वाले कण होते हैं जो अंतरिक्ष (Space) में एक तरह का मौसम बनाते हैं। ज्यादातर सौर हवा (Solar Storm in Hindi) शांत ही रहती है। इसमें मौजूद कण हमें ज्यादा नुकसान नहीं पहुँचाते हैं।
पर बार-बार सूर्य के पलाज्मा के मुड़ने और तेज बहने के कारण मैग्नेटिक फील्ड बेहद अजीब तरीके से बदलता रहता है। इस कारण सूर्य में विशाल मैगनेटिक नोट और कहें तो गाँठे बन जाती हैं जिनमें अपार मात्रा में ऐनेर्जी होती है, जैसे ही ये मैगनेटिक गाँठ टूटती है तो सूर्य के पल्जामा के साथ-साथ कई तरह के रेडियेशन को भी स्पेस में छोड़ती है। सूर्ये के इसी प्रोसेस को (Solar Storm) यानि की सौर तूफान भी कहा जाता है।

जब सूर्य हाई ऐनेर्जी रेडियेशन की एक तरंग (Wave) छोड़ता है जो कि लगातार बढ़ती रहती है तो उसे सौर प्रज्वाल (Solar Flare) कहा जाता है, लगभग प्रकाश की गति से आगे बढ़ती ये वेव अपने रास्ते में आने वाले सभी प्रोटोन पार्टिकल को साथ लेकर एक ऐसी आँधी और कहें तो तूफान बनाती है जो कि किसी भी सैटलाइट और स्पेस मिशन को खतरे में डालने के लिए काफी है।
सूर्य का सबसे ताकतवर तूफान – Coronal Mass Ejection
पर केवल Solar Flare (सौर प्रज्वाल) ही हमारी मानव सभ्यता के लिए खतरा हो ऐसा नहीं है, सूर्य के अजीब मैग्नेटिक फील्ड के कारण कई बार सूर्य अरबों-खरबों टन प्लाज्मा मैटर को सीधा सौर-मंडल में प्रबाहित कर देता है, जिसे कोरोना द्रव्य उत्क्षेपण (Coronal Mass Ejection) कहा जाता है। प्लाज्मा की एक विशाल वेव करीब 90 लाख किमी प्रति घंटे की रफ्तार से सीधा पृथ्वी की ओर आती है और उससे टकराती है पर पृथ्वी पर इसका कोई खास असर नहीं पड़ता है।

जहां छोटे मौटे सौर तूफान यानि सोलर फ्लेयर्स (Solar Storm in Hindi) सैटलाइट, रेडियो कम्युनिकेशन और स्पेस मिशन्स और स्पेस स्टेशन में बैठे अंतरिक्ष यात्रियों को प्रभावित करते हैं। वहीं पृथ्वी की सतह पर ज्यादातर सोलर फ्येयर और CME’s यानि कोरोनल मास इजेक्शन का प्रभाव नहीं पड़ता है।
पृथ्वी पर रह रहे सभी जीव और मनुष्य वातावरण के कारण इसके रेडियेशन से बच जाते हैं, वहीं CME’s यानि कोरोनल मास इजेक्शन से आया सूर्य का पलाज्मा पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड के कारण डिफलेक्ट हो जाता है जिससे पृथ्वी की सतह से लेकर के स्पेस स्टेशन पर बैठे अंतरिक्ष यात्री भी सुरक्षित रहते हैं। प्लाज्मा में मौजूद चार्ज पार्टिकल पृथ्वी के साउथ और नोर्थ पोल पर एटमोस्फेयर (वातावरण) से टकराते हैं जिससे एक खास चमक दिखाई देने लगती है, चार्ज पार्टिकल की आंधी से बनी इस चमक को औरोरा (Aurora) भी कहते हैं जिसे आप इस इमेज में देख सकते हैं। ऐटमोस्फेयर में मौजूद अलग-अलग गैसों के कारण अरोरा वोरालयेस भी आपको कई रंग में देखने को मिलता है।

सूर्य और 11 साल की साईकिल
हालांकि पृथ्वी पर छोटे-मोटे सोलर फ्लेयर और कोरोनल मास इजेक्शन आते ही रहते हैं पर हर 11 सालों में सूर्य की ऐक्टिविटी बदलती रहती है जिस कारण एक समय ऐसा भी आता है जब सोलर बिंड, सोलर फ्लेयर्स और सीएमई अपने चरम पर होते हैं। सूर्य Solar maximum (सौर अधिकतम) के दौरान बहुत विशाल चार्ज पार्टिक्लस का तूफान रिलीज करता है जिसे आप सोलर सूपरस्टोर्म (सौर महातूफान) भी कह सकते हैं।
साल 1775 से जब से हमने सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड और उसकी सोलर एक्टिविटी को रिकॉर्ड करना शूरू किया है, तबसे हमने जाना है कि हर 100 सालो में सूर्य के विशालकाय तूफान (Solar Storm in Hindi) पृथ्वी पर कमसेकम 2 बार आक्रमण करते ही हैं। इस समय सोलर साईकिल 25 चल रही है और सूर्य अपनी चरम सीमा (Peak Point) की ओर जा रहा है।
2024 के अंतिम महीनों से लेकर के 2025 तक कभी भी सूर्य से आने वाला कोरोनल मास इजेक्शन पृथ्वी से सीधा टकरा सकता है, इस बार ये बहुत ही ज्यादा मात्रा में प्लाज्मा रिलीज करेगा जो अगर सीधा पृथ्वी की ओर आया तो बहुत तबाही मचा सकता है। सबसे पहले हफ्ते में हमें ताकतवर सोलर फ्लेयर रिसीब होगें जो कि पृथ्वी की ओरबिट में परिक्रमा कर रहे सैटलाइट को खत्म कर देंगे। स्पेस मिशन और प्रोब्स जो कि मार्स और दूसरे ग्रहों की ओर जा रहे हैं वो अगर सीधा इसकी चपेट में आये तो हम उन मिशन्स को भी खो देंगे।
क्या होगा जब प्लाज्मा की आँधी पृथ्वी से सीधा टकरायेगी?
सूर्य के इस विनाशकारी फेज में सोलर फ्लेयर के बाद अब हमारा सामना सूर्य के महाविशालकाय विस्फोट यानि कोरोनाल मास इजेक्शन से होने वाला है। सूर्य अरबों-खरबों टन पल्जामा जिसका आकार पृथ्वी से भी हजारों गुना विशाल होता है, सीधा सौर-मंडल में रिलीज करता है। 9 लाख किमी प्रति घंटे की रफ्तार से 15 करोड़ किमी दूर पृथ्वी पर जब ये सीधा टकराता है तो सबसे पहले उसके मैग्नेटिक पील्ड को कंप्रेस कर देता है।
जैसे ही CME’s का मैगनेटिक फील्ड पृथ्वी के मैगनेटिक फील्ड से संपर्क में आता है तो दोनों एक दूसरे में समा जाते हैं जिससे पृथ्वी का मैगनेटिक फील्ड एक लंबी पूँछ के साथ और बड़़ा हो जाता है। इस फील्ड में जमा ऐनेर्जी जब नियंत्रित नहीं हो पाती तो ये सीधा पृथ्वी की ओर ऐक्सपलोड करती है, जिससे एक जियोमैग्नेटिक स्टॉर्म (भूचुम्बकीय झंझा) पैदा होता है, जो असली तबाही मचाता है।
बिजली के ग्रिड खत्म हो सकते हैं!
जैसा की आप जानते हैं कि मैग्नेटिक फील्ड इलेक्ट्रिसिटी को बनाता है और ऐलेक्ट्रिसिटी मैगनेटिक फील्ड को तो इस समय जहां पूरी पृथ्वी लाखों किमी के तारें और इलेक्ट्रिक ग्रिड (Electric Grid) से ढकी हुई है सबसे पहले सोलर स्टोर्म इन्हीं ग्रिड को तबाह कर सकता है। जिससे हर जगह बिजली ठप्प हो सकती है और इलेक्ट्रिक स्टेशन और ट्रांसफार्मर में आग भी लग सकती है। सीएममी द्वारा ग्रिड में कंरेट बढ़ने से पृथ्वी पर कई बार ब्लैकईउट हो चुके हैं। साल 1989 में क्युबेक ब्लैकआउट और साल 2012 में भारत में ब्लैक आउट के लिए सूर्य के कोरोनल मास इजेक्शन को जिम्मेदार माना जाता है।
1859 में भी मच चुकी है तबाही
रेडियो कम्युनिकेशन और सैटलाइट के खत्म होने के बाद, हर वो चीज़ जो कि किसी भी तरह के इलेक्ट्रिक करंट से चलती है वो सूर्य की इस आंधी से तुरंत खराब हो जायेगी। इस तरह का सबसे खतरनाक सोलर स्टोर्म (Solar Storm in Hindi) साल 1859 में ही पृथ्वी पर आया था, हालांकि उस समय हमारे पास इलेक्ट्रोनिक गैजेट काफी कम थे और केवल टेलिग्राफ ही थे जो कि हर जगह खराब हो चुके थे। लोगों को इसे ओपरेट करने में ही करेंट लगता था। पर आज तकनीक के इस युग में हमारे पास हर गैजेट और चिप इलेक्ट्रिसिटी से ही चलती है, तो ऐसे में ये जियोमैग्नेटिक स्टोर्म अरबों गैजेट्स को तबाह करके हमें कई साल पीछे कर सकता है।
साल 2012 में भी एक बहुत ताकतवर कोरोनल मास इजेक्शन सूर्य ने किया था, ये 170 साल पहले कैरिंगटन इवेंट से भी ज्यादा खतरनाक था। उस समय पृथ्वी इसकी चपेट में आने से बच गई थी, पर अगर ये हमसे सीधा टकराता तो पल्जामा की इस आंधी से पूरी दुनिया को कई खरबों डालर का नुकसान होता, इलेक्ट्रिक ग्रिड खराब होते, इलेक्ट्रिसिटी के जाने से कई सर्बिस रूक जाती।
साल 2012 में भारत में नोर्थन ग्रिड के खराब होने से ही 60 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे, 300 से ज्यादा ट्रेन रूक गई, अस्पताल और इमरजेंसी सर्बिस बैकअप जनरेटर से काम चलाने लगे, बिना इलेक्ट्रिसिटी के वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के रूक जाने से कई शहरों में पानी की किल्लत भी हुई। सरकार को इस ग्रिड की खराबी से अरबों रूपयों का नुकसान एक ही दिन में हुआ।
निष्कर्ष
इसी से आप समझ सकते हैं कि एक इलेक्ट्रिक ग्रिड के खराब होने से कितनी परेशानी हो सकती है, तो पूरी पृत्वी पर अगर सोलर स्टोर्म सभी इलेक्टिक सिस्टम को बंद करदे तो पूरे संसार में ही ब्लैकआइट फैल जायेगा। पूरे संसार में प्रोडेक्शन रूकने से खाने की स्पलाई, दवाईंय़ा और जरूरत की चीजों की कमी से हम कई साल पीछे हो जायेगा, इन सबसे उबरने में ही हमें 10 साल से ज्यादा का समय लग जायेगा, इसलिए सोलर स्टोर्म (Solar Storm in Hindi) को हल्के में लेना बहुत महंगा साबित हो सकता है।