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अंतरिक्ष में पृथ्वी का चक्कर लगाते सैटलाइट क्या होते हैं? What is Satellite In Hindi

भविष्य में पृथ्वी के चक्कर लगा रहे होंगे 1 लाख सैटलाइट

क्या आपने कभी सोचा है कि आप किसी एक देश में बैठकर दूसरे देश में फोन कैसे लगा लेते हैं और आपकी बात कैसे हो जाती है? क्या आपने कभी यह सोचा है कि आप जो टीवी देखते हैं उसमें आपके फेवरेट सीरियल कैसे आते हैं? क्या आपके दिमाग में कभी यह सवाल आया है कि कैसे आप इंटरनेट का मजा घर बैठे उठा पाते हैं और कैसे वैज्ञानिक कई दिन पहले ही कई हफ्तों आगे तक के मौसम का ऐलान कर देते हैं? खैर यह हो आपको पता है कि इंसानों द्वारा बनाई गई कुछ सबसे आधुनिक और जरूरी चीजों में से एक ऐसी जीज है  सेटेलाइट (Satellite In Hindi) जिसे कहा जाता है। इनका हमारी जिंदगी में इतना बड़ा योगदान है लेकिन फिर भी उनके बारे में काफी कम ही लोग गहराई में जानते हैं।

आपने इस आर्टिकल को पढ़ना शुरू किया है इसका मतलब यह है कि आप इनके बारे में जानने में इंटरेस्टेड है और आज के इस आर्टिकल में हम आपको सेटेलाइट से जुड़ी हर जरूरी जानकारी बताने की पूरी कोशिश करेंगे। आइए सबसे पहले यह जानने से पहले शुरुआत करते हैं कि आखिर सेटेलाइट किसको कहते (Satellite In Hindi)  है।  तो अगर कोई भी छोटी चीज किसी बहुत बड़ी चीज का चक्कर लगाती है तो उसे सेटेलाइट कहा जाता है। जैसे चांद हमारी पृथ्वी का चक्कर लगाता है इसलिए वह एक सेटेलाइट है और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) भी हमारी पृथ्वी का चक्कर लगाता है इसलिए वह भी एक सेटेलाइट है ।

दो प्रकार के होते हैं सैटेलाइट | Types Of Satellites In Hindi

सेटेलाइट के भी दो प्रकार होते हैं पहली होती है आर्टिफिशियल सैटेलाइट (Artificial Satellite) और दूसरी होती है नेचुरल सैटेलाइट (Natural Satellite) । आर्टिफिशियल सैटेलाइट ऐसी सेटेलाइट को बोलते हैं जो इंसानों द्वारा बनाई जाती है और अंतरिक्ष में भेजी जाती है फॉर एग्जांपल इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन।

Types Of Satellite

दूसरी होती है नेचुरल सैटेलाइट जो इंसानों द्वारा नहीं बनाई जाती है और अंतरिक्ष में होने वाले अलग-अलग प्रोसेसेस की वजह से बन जाती है जैसे हमारा अपना चांद। हमारे सौर मंडल में बहुत ज्यादा मात्रा में सेटेलाइट है और लगभग हर ग्रह के पास अपना एक चांद तो है ही। सौर मंडल में सबसे ज्यादा नेचुरल सैटेलाइट शनि ग्रह (Saturn) की है और इसके पास करीब 82 चांद है। इसके अलावा भी 20 चांद ऐसे हैं जो अभी वैज्ञानिकों द्वारा कंफर्म नहीं किए गए हैं लेकिन भविष्य में अगर यह कंफर्म होते हैं तो शनि ग्रह के पास करीब 102 चांद होंगे।

Sputnik 1 मानवों द्वारा अंतरिक्ष में भेजी गई पहली सैटलाइट

हमारी पृथ्वी से अंतरिक्ष में सबसे पहली सेटेलाइट रूस के द्वारा भेजी गई थी जिसका नाम था Sputnik 1। दरअसल जब सैटेलाइट को अंतरिक्ष में लांच किया गया था तो इससे पहले अमेरिका भी एक बार सेटेलाइट (Satellite In Hindi) को लांच करने का ट्राई कर चुका था लेकिन वह फेल हो गया था। वेस्टर्न दुनिया के लोग सोचते थे कि रूस कभी भी अंतरिक्ष में कोई भी चीज नहीं भेज पाएगा लेकिन उसने इस पहली सेटेलाइट को अंतरिक्ष में भेज कर इतिहास रच दिया। यह सेटेलाइट 4 अक्टूबर 1957 को लांच की गई थी और इसका साइज एक फुटबॉल के बराबर था। इसके बाद नवंबर 3 1957 में रूस ने एक और सेटेलाइट लांच की जिसमें लाइका नाम की एक फीमेल डॉग भी मौजूद थी।

इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन – सबसे बड़ी मानव निर्मित सैटलाइट

अगर बात करें पृथ्वी के ऑर्बिट में मौजूद सबसे बड़ी आर्टिफिशियल सेटेलाइट के बारे में तो वह है हमारा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन जिसको बनाने में ही करीब 10 सालों का समय लगा था और इसमें कई सारे अलग-अलग देशों ने अपनी रिसर्च और फंडिंग दी थी ताकि इसके द्वारा की गई रिसर्च उन्हें भी मिल पाए। इसे 1998 से 2011 के बीच में बनाया गया था और ऐसा कहा जाता है कि 2024 तक यह काम करने लायक नहीं बचेगा और इसीलिए चाइना जैसे देश खुद का ही स्पेस स्टेशन बनाने में लगे हुए हैं।

जाने ISS से जुड़ी रोचक जानकारियाँ - International Space Station Facts In Hindi

हमारी पृथ्वी के ऑर्बिट में करीब 500000 आर्टिफिशियल सेटेलाइट्स है और इतनी ज्यादा मात्रा में होने की वजह से इनके आपस में टकराने का खतरा भी बढ़ जाता है। दरअसल जब भी किसी सेटेलाइट को लांच किया जाता है तो इन सभी सेटेलाइट्स के ऑर्बिट को देखते हुए लांच किया जाता है और उसे इस तरह से कंट्रोल किया जाता है कि वह कहीं किसी और सेटेलाइट में जाकर ना टकरा जाए।

सैटलाइट और इनका खतरा

लेकिन फिर भी इतना ध्यान रखने के बाद कुछ ना कुछ ऐसी गलतियां हो ही जाती है जिससे सेटेलाइट आपस में टकराती है और उससे दिक्कतें और भी ज्यादा बढ़ जाती है क्योंकि उनके द्वारा किए गए छोटे-छोटे पार्टिकल्स बाकी सेटेलाइट को नुकसान पहुंचाते हैं और उन्हें भी क्रैश होने पर मजबूर कर सकते हैं। सबसे ज्यादा सेटेलाइट (Satellite In Hindi)  के टकराव का कारण 2007 में चाइना के द्वारा किया गया एक एंटी सैटलाइट मिशन था जिसने अर्थ के औरबिट में काफी ज्यादा मात्रा में कूड़ा फैला दिया और उससे 2013 में रसिया की भी एक सेटेलाइट टूट गई। इसी साल 2 और सेटेलाइट्स Iridium 33 और कॉसमॉस 2251 भी आपस में टकरा गई जिससे अर्थ के ऑर्बिट में एक बड़ा सा debris(मालवा) का बादल बन गया।

Future threats to space missions- Space Debris.
अंतरिक्ष का मलबा | Credit: spacenews.com

सैटलाइट क्या काम करता है?

पृथ्वी पर सैटेलाइट का सबसे बड़ा इस्तेमाल कम्युनिकेशन और नेविगेशन में होता है। आपके घर में जो भी टीवी सीरियल या मूवी आपको दिखाई जाती है वह सब सेटेलाइट के द्वारा ही पॉसिबल हो पाता है। ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) सेटेलाइट के एक बहुत बड़े नेटवर्क की वजह से काम कर पाता है जो अलग-अलग लोकेशन के डाटा को एक जगह इकट्ठा करके एक रियल टाइम मैप बनाती है। दरअसल जो भी चीज पृथ्वी के बाहर होती है उसका टाइम हमारी पृथ्वी के अंदर के टाइम से अलग चलता है इसलिए जीपीएस वाली इन सेटेलाइट को जल्दी-जल्दी रिपेयर भी किया जाता है ताकि समय और लोकेशन में ज्यादा बड़ा डिफरेंस ना दिखाई दे।

यह तो सेटेलाइट के काफी छोटे स्तर पर योग्य है लेकिन सबसे ज्यादा सेटेलाइट (Satellite In Hindi) का इस्तेमाल बाकी ग्रहों पर नजर रखने के लिए और उन पर खोजबीन करने के लिए किया जाता है। हम ऑलमोस्ट हर ग्रह पर सेटेलाइट भेज चुके हैं और इन्हीं से मिले हुए डाटा से हम अपनी बाकी की रिसर्च को कंटिन्यू कर पाते हैं। हम आपको यह तो बताना भूल ही गए कि हमारी भारत की पहली सेटेलाइट का नाम आर्यभट्ट था जो बहुत ही फेमस मैथमेटिशियन आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था जिन्होंने जीरो को इन्वेंट किया था।

सेटेलाइट्स का यूज़ वेदर रिपोर्ट बनाने में भी किया जाता है। यह सेटेलाइट्स पृथ्वी पर मौजूद हर तरह की हवा का डाटा वैज्ञानिकों को भेजती रहती है और जब पूरी पृथ्वी के डाटा को आपस में मिलाया जाता है तो यह पता चल जाता है कि किस एरिया में कैसा मौसम आने वाला है। सेटेलाइट की मदद से यह भी पता लगाया जाता है कि किस एरिया में सुनामी जैसी कोई बड़ी आपदा आने वाली है और वहां पर रहने वाले लोगों को इसी जानकारी के बूते पर बचा लिया जाता है।

भविष्य का सैटलाइट सिस्टम

अब तो एलॉन मुस्क और जैफ बेजॉस जैसे दुनिया के सबसे अमीर इंसान भी सेटेलाइट सिस्टम को बना रहे हैं। एलोन मस्क की कंपनी स्टार लिंक एक ऐसे नेटवर्क को पृथ्वी के ऑर्बिट में भेजना चाहती है जिससे कहीं भी इंटरनेट को एक्सेस किया जा सके। इसके लिए एलन मस्क सबसे पहले 12000 सेटेलाइट्स को अर्थ के ऑर्बिट में भेजेंगे जिससे यह सर्विस चालू हो पाएगी और जैसे-जैसे यह टेक्नोलॉजी और ज्यादा आगे बढ़ेगी वैसे वैसे करीब 42000 सेटेलाइट को पृथ्वी के ऑर्बिट में भेजा जाएगा।

Satellites in lower earth orbit.
लोवर अर्थ ओर्बिट में मौजूद सैटेलाइट्स के फोटो | Credit: Universe Today.

एलोन मस्क का ऐसा इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि हमारी पृथ्वी पर कई ऐसी जगह है जहां पर इंटरनेट नहीं एक्सेस किया जा सकता जैसे रेगिस्तान के बीच में लेकिन अगर यह सेटेलाइट (Satellite In Hindi) का नेटवर्क होगा तो हम किसी भी जंगल और किसी भी रेगिस्तान में इंटरनेट को बहुत आसानी से यूज़ कर पाएंगे। यह शुरुआती दिनों में आम इंटरनेट से काफी ज्यादा महंगा होगा लेकिन इसकी स्पीड भी उतनी ही ज्यादा होगी। ऐसा कहा जाता है कि इतनी सारी सेटेलाइट लांच करने के बाद पृथ्वी का औरबिट बहुत ही ज्यादा भर जाएगा और इसके लिए हमें एक ऐसी टेक्नोलॉजी को भी डेवलप करना पड़ेगा जो अंतरिक्ष में मौजूद बेकार सेटेलाइट्स को कलेक्ट करके वापस से पृथ्वी पर ले आए या फिर उन्हें इस तरह से नष्ट करें कि वह दोबारा पृथ्वी के ऑर्बिट में ना आ सके। ‌

खैर यह था हमारा सेटेलाइट से जुड़ा हुआ आर्टिकल। आपको यह कैसा लगा हमें जरूर बताएं।

धन्यवाद।

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