इंसान हो या जानवर दोनों ही अपनों से बात करते हैं, यानी पृथ्वी पर मौजूद हर एक जीवित प्राणी एक-दूसरे से बातें करके उनके मध्य संपर्क रखते ही हैं, क्योंकि ये पूरा का पूरा जीव मंडल इसमें मौजूद हर एक प्राणी के ऊपर निर्भर करता है। जीव मंडल में किसी भी जीव की संख्या में कमी यानी पूरे की पूरे जीव मंडल में होने वाले असंतुलन को दर्शाता है। मित्रों! ब्रह्मांड में हमेशा से ही प्राकृतिक तौर पर संतुलन रखा जा रहा है और शायद यही वजह है कि, कई बार सुदूर अंतरिक्ष से परग्रही(Aliens) या कुछ ऐसी घटनाएँ हमें अपनी और आकर्षित करती हैं जिसके लिए वायेजर-1 (voyager-1 records mysterious hum) एक अहम माध्यम का काम करता है।
वायेजर-1 (voyager-1 records mysterious hum) इंसानों के द्वारा अंतरिक्ष में किए गए महत्वाकांक्षी मिशनों में से एक है। केवल परग्रही ही नहीं, परंतु इंसान भी इस अनंत ब्रह्मांड में पृथ्वी के अलावा मौजूद दूसरे जीवन की सत्ताओं को तलाश रहा हैं। इसी कारण आए-दिन वो काफी ज्यादा प्रयास भी कर रहा हैं और इसी प्रयास के चलते हमें कई बार काफी ज्यादा रोचक नतीजों को भी देखने को मिल रहें हैं। दोस्तों! आज के लेख में हम वायेजर-1 से जुड़ी ऐसे ही एक अजब व गज़ब किस्से की बात करेंगे, जो की शायद आपको काफी रोमांचित भी कर सकता है।
तो, चलिये अब लेख को आगे बढ़ाते हुए इस अजब व गज़ब किस्से के बारे में बातें करते हैं।
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वायेजर-1 ने सुदूर अंतरिक्ष में ढूंढा रहस्यमयी “हम्म” आवाज को! – Voyager-1 Records Mysterious Hum! :-
अपने लौंच के 40 साल बाद वायेजर-1 (voyager-1 records mysterious hum) ने पहली बार इस अज्ञात “हम्म” आवाज को ढूंढा हैं। मित्रों! बता दूँ की, इस आवाज को ले कर कई सारे वैज्ञानिकों के अलग-अलग राय हैं, जिनके बारे में हम आगे विस्तार से बात करेंगे। वैसे एक खास बात ये हैं की, वायेजर-1 के द्वारा इस तरह की खोज पहले कभी संभव नहीं हो पाया था। 1977 में लौंच किए गए वायेजर-1 ने साल 2012 में ही “हेलियोस्फियर” (Heliosphere) को पार कर लिया था और तभी से ही ये अंतरिक्ष प्रोब काफी ज्यादा चर्चा में रहा हैं। अंतरिक्ष में इंसानों के द्वारा छोड़े गए इस प्रोब ने अभी तक 22.8 अरब किलोमीटर की दूरी तय कर ली हैं।
इसलिए इस प्रोब को मानव निर्मित अंतरिक्ष में सबसे दूर मौजूद (पृथ्वी से) चीज़ भी कहा जाता हैं। खैर बता दूँ की, जबसे वायेजर-1 ने हेलियोस्फियर को पार किया हैं; तब से ये पृथ्वी को और सिग्नल ट्रंजमिशन के जरिये हेलियोस्फियर में मौजूद खगोलीय माध्यमों के बारे में कई सारे जानकरियां प्रदान कर रहा हैं। मित्रों! संक्षिप्त में बताऊँ तो, हेलियोस्फियर “सोलर विंड” (Solar Wind) से काफी ज्यादा प्रभावित होने वाला अंतरिक्ष में स्थित एक “बबल” (Bubble) हैं। इस बबल के अंदर आप लोगों को सोलर विंड के जरिये आए कई चार्जड पार्टिकल्स देखने को मिल जाएंगे।
मित्रों! इसके अलावा आप लोगों को और एक विषय के बारे में जानना काफी ज्यादा जरूरी हैं और वो विषय हैं सूर्य की संरचना और उसके अंदर वाले प्रतिक्रियाओं के बारे में। इसलिए आपको अगर सूर्य के बारे में विस्तार से जानना हैं तो, आप “सूर्य” के ऊपर आधारित लेख को भी हमारी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं।
आखिर ये “हम्म” आवाज़ा के पीछे का राज क्या है? :-
अब जब वायेजर-1 (voyager-1 records mysterious hum) ने “हम्म” आवाज को ढूंढ ही लिया था तो, अब वैज्ञानिकों का काम था की; वो अब इस आवाज के पीछे मौजूद राज को ढूंढ कर निकालें। वैसे कई वैज्ञानिक इसे सुदूर अंतरिक्ष में मौजूद परग्रहियों के द्वारा प्रेषित सिग्नल की तरह देख रहें थे तो, कई वैज्ञानिकों का मानना था की; ये आवाज हमारे सौर-मंडल से ही आया हैं। अब यहाँ पर कई सारे लोग जरूर हैरान हो जाएंगे और सोचेंगे की; आखिर कैसे ये आवाज हमारे सौर-मंडल से आ सकता हैं? मित्रों! बता दूँ की, ये सवाल मेरे मन में भी आया था और मुझे भी इस सवाल के जवाब को जानना था!
तो, सौर-मंडल में ऐसी कौन सी चीज़ हैं जिसने ये “हम्म” की आवाज निकाली होगी! मित्रों, इन सारे सवालों का जवाब काफी ज्यादा आसान व एक ही हैं और वो हैं “हेलियोस्फियर”। जी हाँ! दोस्तों, ये “हम्म” की आवाज हमारे सौर-मंडल में मौजूद “हेलियोस्फियर” के जरिये ही बना हैं। अब आप लोगों में से काफी लोग ये बोलेंगे की, आखिर कैसे “हेलियोस्फियर” के जरिये ये आवाज आ सकती हैं और क्या ये आवाज परग्राहियों ने नहीं भेजा हैं? मित्रों! यहीं तो अंतरिक्ष से जुड़ी सबसे रोचक बात हैं की, हम जो सोच रहें होते हैं असल में हकीकत उससे काफी ज्यादा अलग होता हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार नियमित रूप से कई बार हमारे सूर्य से “Coronal Mass Ejection” यानी चार्जड पार्टिकल्स का उत्सर्जन होता रहता हैं। दोस्तों, जब भारी मात्रा में ये चार्जड पार्टिकल्स सौर-मंडल के हेलियोस्फियर में आ टकराते हैं तब उसके अंदर मौजूद “प्लाजमा” काँपने लगता हैं। प्लाज्मा के इस कंपन से ही “हम्म” जैसे आवाज गुंजते हैं।
ऐसे “हम्म” आवाज हमें क्या बतलाता है? :-
मित्रों! अंतरिक्ष में मौजूद प्लाज्मा के कंपन से होने वाले “हम्म” आवाज से हमें काफी सारे बातों का पता चलता हैं, परंतु एक खास बात ये भी हैं की; कई बार वायेजर-1 (voyager-1 records mysterious hum) जैसे प्रोब भी इन आवाजों को पकड़ नहीं पाते हैं। क्योंकि ज़्यादातर इन कंपनों को तीव्रता काफी ज्यादा कम होती हैं। खैर इन कंपनों के जरिये वैज्ञानिक, अंतरिक्ष में मौजूद प्लाज्मा के घनत्व व इसमें स्थित गैस के कणों की दूरी के बारे में पता लगा सकते हैं।
जिस कंपन या “हम्म” आवाज को वायेजर-1 ने पकड़ा हैं, तीव्रता में काफी ज्यादा कम हैं परंतु दूसरे कंपनों से ये काफी लंबा हैं। कहने का तात्पर्य ये हैं की, प्लाज्मा में होने वाले ज़्यादातर कंपन काफी कम समय के लिए ठहरते हैं; परंतु ये कंपन काफी लंबे समय तक अंतरिक्ष में गुंजता रहा। अधिक जानकारी के लिए बता दूँ की, ये आवाज अंतरिक्ष में लगातार “3 सालों” तक गुंजता रहा। तो, आप सोच ही सकते हैं की; ये गूंज वैज्ञानिकों को कितनी सारी बातें बतलाई होगी। खैर वैज्ञानिकों के पास अभी तक इसके अलावा अंतरिक्ष के प्लाज्मा के घनत्व को मापने की कोई तरकीब नहीं हैं।
वर्तमान की समय की बात करें तो, आज वायेजर-1 पृथ्वी के मुक़ाबले सूर्य से 153 गुना ज्यादा दूर मौजूद हैं। परंतु तब भी, ये इन कंपनों को डीडैक्ट कर दे रहा हैं। तो, जरा सोचिए मित्रों; अगर ये प्रोब सूर्य के निकट होता तो ये कितने सारे कंपनों को डीडैक्ट कर लेता। खैर, आप लोगों को अंतरिक्ष में होने वाले इन कंपनों के बारे में क्या लगता हैं? कमेंट कर के जरूर ही बताइएगा।
निष्कर्ष – Conclusion :-
वायेजर-1 (voyager-1 records mysterious hum) के साथ-साथ वायेजर-2 भी पृथ्वी तक कई महत्वपूर्ण सिग्नल ट्रांसमीट कर रहा हैं। वैसे इन महत्वपूर्ण सिगनल्स के अंदर अंतरिक्ष के प्लाज्मा का घनत्व भी शामिल हैं। वैसे वैज्ञानिकों ने देखा की, अंतरिक्ष के प्लाज्मा में ये जो कंपन हो रहीं हैं ये; काफी लो फ्रिक्वेंसि के अंदर हो रहा हैं। परंतु वैज्ञानिकों को अभी तक ये पता ही नहीं हैं की, आखिर क्यों ये कंपन इतने कम फ्रिक्वेसीस में होती हैं।
कई वैज्ञानिक मानते हैं की, प्लाज्मा के अंदर मौजूद इलेक्ट्रॉन इन लो फ्रिक्वेसीस में होने वाले कंपनों के लिए जिम्मेदार हैं। इन इलेक्ट्रोन्स के थर्मल प्रॉपर्टी में बदलाव ही, कंपन को काफी कम फ्रिक्वेंसि में होने के लिए मदद करता हैं। वैसे इन्हीं कंपन के द्वारा आज वैज्ञानिक सोलर सिस्टम के बाहर आयोनाइज्ड गैस के गुणों को समझ पा रहीं हैं। मित्रों! ये चीज़ वायेजर-1 के बिना कभी संभव ही नहीं हो पाता और वायेजर-1 का इसमें (कंपन के बारे में जानना) काफी बड़ा हाथ हैं।
आशा हैं की, कंपन के जरिये मिलने वाली जानकारियों से हम हेलियोस्फियर की संरचना और इसके आकारों के बारे में भी जान पाएंगे।Source:- www.livescience.com.