पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति को लेकर कई सारे सिद्धांत अलग-अलग वैज्ञानिकों के द्वारा दिए जाते रहे हैं, जो की आज भी एक विवादों से घिरा हुआ विषय है। फिर ऐसी स्थिति में परग्रहीओं (mysterious Proxima Centauri signal) के बारे में और भी सटीक जानकारी जुटाना काफी ज्यादा कठिन हो जाता है। इसलिए आज भी वैज्ञानिकों के पास परग्रही जीवन सत्ता के बारे में जानकारी काफी धुंधला-धुंधला सा है। परंतु नियमित रूप से किए जाने वाले प्रयासों के कारण हमें परग्रही जीवन के बारे में काफी सारे सबूतों के बारे में पता चलता रहता है और मैं आप लोगों को इन्हीं सबूतों के बारे में बताता रहता हूँ।
परंतु ब्रह्मांड में एक चीज़ तो तय है कि, आप किसी भी चीज़ या घटना के बारे में पूरी तरीके से सटीक रूप से कुछ भी बोल नहीं सकते हैं। ये अनंत ब्रह्मांड अपने-आप में ही एक बहुत ही बड़ी पहेली है, और परग्रहीओं (mysterious Proxima Centauri signal) के विषय में तो ये और भी ज्यादा पेचीदा हो जाता है। जो सबूत हमें परग्रहीओं के मौजूदगी का रास्ता दिखा रहें होते हैं वो अचानक से बदल कर हमें कई सारे उलझनों में ड़ाल देते हैं। आज हम इसी प्रकार के ही एक विषय के बारे में चर्चा करेंगे जिसने हमें परग्रहीओं के अस्तित्व को लेकर फिर से एक बार उलझन में ड़ाल दिया है।
तो, चलिए अब लेख को आगे बढ़ाते हैं और मुख्य विषय को आरंभ करते हैं।
विषय - सूची
“Proxima Centauri” का ये सिग्नल क्यों था बहुत ही खास! – Mysterious Proxima Centauri Signal! :-
पिछले साल “Search for Extraterrestrial Intelligence (SETI)” के द्वारा दिसंबर के महीने में एक बहुत ही बड़े खोज को अंजाम देने के बारे में काफी सारे चर्चाएँ चली थी। सेटी के द्वारा कहा गया था की, उन्होंने एक ऐसे सिग्नल को ढूंढ लिया है जो की काफी ज्यादा रहस्यमयी (mysterious Proxima Centauri signal) और खुफ़िया है। उस वक़्त इस सिग्नल की उत्पत्ति के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं चल पाया था, परंतु इतना कहा जा रहा था की ये “Proxima Centauri” के पास के इलाके से ही आया होगा। हालांकि! कुछ वैज्ञानिक इस सिग्नल को परग्रहीओं के अस्तित्व से भी जोड़ कर देख रहे थे।
वैसे कुछ वैज्ञानिक इस खोज से काफी ज्यादा संशय में आ गए। उन्हें इस बात से काफी ज्यादा हैरानी हो रहीं थी कि, आखिर कैसे कोई इतनी उन्नत परग्रही सभ्यता हमारी पृथ्वी के इतने पास बस सकती है! उन्हें इस बात पर बिलकुल ही यकीन नहीं था और ऐसा होना स्वाभाविक भी है, क्योंकि Proxima Centauri जैसे सितारे हमारे सौर-मंडल से काफी जादा पास में मौजूद हैं और इन पर अगर कोई उन्नत परग्रही सभ्यता मौजूद होती तो, हमें काफी समय पहले ही पता चल गया होता।
इस रेडियो सिग्नल को पहली बार साल 2019 के अप्रैल के महीने में खोजा गया था, परंतु इसके ऊपर व्यापक रूप से काम साल 2020 अक्तूबर के महीने में शुरू हुआ। उस वक़्त वैज्ञानिक इस सिग्नल को लेकर काम कर ही रहे थे कि, अचानक इस विषय में पूरी दुनिया को पता चल गया। खैर 982 MHz वाले इस रेडियो सिग्नल का नाम BLC1 दिया गया और इस तरीके से ये सिग्नल बहुत ही खास बन गया था।
आखिर इस सिग्नल कि हकीकत क्या है? :-
खोज के प्रारंभिक अवस्था में ये रहस्यमयी सिग्नल (mysterious Proxima Centauri signal) काफी ज्यादा खास था, परंतु जैसे-जैसे समय बीतता गया इस सिग्नल की असल सच्चाई के बारे में हमें पता चलने लगा। हाल ही में छपी एक रिपोर्ट में ये दर्शाया गया है की, इस सिग्नल का परग्रही सभ्यता से कोई भी नाता नहीं हैं। बहरहाल ये सिग्नल मूल रूप से किसी अलग या अंतरिक्ष के सुदूर इलाके से भी नहीं आया है। वैज्ञानिकों को पता चला है कि, ये सिग्नल कोई खगोलीय चीज़ से भी नहीं बना हैं, जो कि एक अलग ही पहलू कि और इशारा करता है।
जब वैज्ञानिक इस सिग्नल कि पड़ताल कर रहें थे, तब Proxima Centauri से लगभग 40 लाख से भी ज्यादा अलग-अलग रेडियो सिग्नल्स के बारे में पता चला। हालांकि! बाद में इनमें से ज़्यादातर सिग्नल्स को मात्र एक इंटेर्फ़ेरेंस के रूप में क़रार कर दिया गया। क्योंकि ज़्यादातर सिग्नल्स दोनों ही दिशा में गति कर रहें थे, जो कि बहुत ही अजीब है और ये केवल रेडियो फील्ड में आने वाले किसी गड़बड़ी के कारण ही पैदा होते हैं। हालांकि! 5,160 सिग्नल्स ऐसे भी थे जो कि प्रोक्सिमा सेंटौरी कि और इशारा कर रहें थे, परंतु बाद में उन्हें भी फिल्टरिंग टेस्ट के जरिये नकार दिया गया।
वैज्ञानिकों का क्या हैं कहना? :-
1977 में सबसे पहले हमारे वैज्ञानिकों ने परग्रही सिग्नल (mysterious Proxima Centauri signal) को पकड़ा था। उस समय “Wow” नाम से परिचित ये सिग्नल पूरी दुनिया में एक खासा चर्चा का विषय बना हुआ था। परंतु जो खास बात इस सिग्नल के बारे में थी वो ये हैं की, ये सिग्नल एक बहुत ही अनजान लोकेशन से आया था और आज भी ये एक रहस्य ही बना हुआ है। हालांकि! BLC1 सिग्नल की फ्रिक्वेंसि (Frequency) को पुराने सिग्नल्स की फ्रिक्वेंसि के साथ मैच कर के कई बार परखा जा रहा है।
यही कारण है कि, अब तक BLC1 जैसे हूबहू फ्रिक्वेंसि बाले सिगनल्स हमें Proxima Centauri के और से देखने को मिले हैं। वैज्ञानिक इन सिग्नल्स की फ्रिक्वेंसि को कई सारे उपकरणों और ओसीलेटर के माध्यम से भी जांच रहें हैं, जिससे हमें इन सिगनल्स की वास्तविकता के बारे में और भी जानकारी मिल सकती है। कई वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि, BLC1 अन्य खोजे गए सिग्नल्स से थोड़ा अलग तो है। क्योंकि अगर ये सिग्नल साधारण होता तो बाकी सिग्नल्स कि तरह ही बर्ताव करता, परंतु इसके बर्ताव करने का ढंग अन्य सिग्नल्स से काफी ज्यादा अलग है।
इस सिग्नल के रिफेरेंस पॉइंट को जब वैज्ञानिक विश्लेषित कर रहें थे, तब इस सिग्नल में अजीबो-गरीब बदलावों को देखा गया। सिग्नल का एक ही जगह पर कोंस्टंट न रह कर बार-बार गायब हो जाने वाली बातें वैज्ञानिकों को हैरानी में डालने के लिए काफी हैं। इसलिए कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार अंतरिक्ष के रेडियो फील्ड में आने वाले बदलाव और छेड़-छाड़ के कारण ही, इस सिग्नल कि उत्पत्ति हुई होगी ऐसा उनका मानना है।
निष्कर्ष – Conclusion :-
इस सिग्नल (mysterious Proxima Centauri signal) के ऊपर काम कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि, इसकी उत्पत्ति एक अनजान जगह से ही संभव हो सकती है। इसलिए आज के समय में इस सिग्नल से जुड़ी बातें इतनी रोचक बन गई हैं। परंतु एक खास बात ये है कि, प्रोक्सिमा सेंटौरी में मौजूद किसी ट्रांसमिटर से इस रेडियो सिग्नल कि आने कि संभावना लगभग न के बराबर ही है।
वैसे इस सिग्नल से संबंधित एक अलग रिपोर्ट में ये भी दर्शाया गया है कि, ये रहस्यमयी सिग्नल एक बहुत ही खास और असाधारण रेडियो फ्रिक्वेंसि के ऊपर आया था। ये सिग्नल हमारे किसी “local radiofrequency interference (RFI)” के अधीन भी नहीं आ रहा है। फिर कहा गया कि सिग्नल के बर्ताव को देखते हुए ये कहना गलता नहीं होगा कि, ये सिग्नल किसी अन्य सौर-मंडल या तारा-मंडल से आया है। क्योंकि इस सिग्नल का ट्रांसमीटर शायद उन्हीं सुदूर तारा-मंडलों या सौर-मंडलों में मौजूद हो। वैसे इस बारे में आपका क्या राय है, जरूर ही बताइएगा।
खैर हमारे लिए इस सिग्नल के बारे में सटीक जानकारी जुटाना इसलिए भी महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि प्रोक्सिमा सेंटौरी में कम से कम एक ग्रह ऐसा भी होगा जहां पर हम बस सकते हैं। जी हाँ! मित्रों आप लोगों ने बिलकुल सही सुना, प्रोक्सिमा सेंटौरी के पास एक ग्रह ऐसा भी होगा जहां पानी भी होगा और रहने लायक जलवायु भी।
हालांकि! प्रोक्सिमा सेंटौरी के पास जिंदा रहना इतना भी आसान नहीं हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इसके आसपास के वातावरण में कुछ ऐसी भी चीज़ें मौजूद हैं, जो कि जीवन जीने के लिए बिलकुल भी अनुकूल नहीं हैं।
Source :- www.iflscience.com