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आखिर क्यों पुरुष महिलाओं की तुलना में अंतरिक्ष में ज्यादा देर तक रहते हैं?

आखिर क्यों अंतरिक्ष में महिलाओं के मुक़ाबले पुरुष ज़्यादातर देरी तक रह सकते हैं? क्यों नासा करता है भेदभाव?

आज हम साल 2022 में जी रहें हैं। यहाँ मानव सभ्यता इतनी विकसित हो चुकी हैं कि, सब लिंग-जाती और धर्म के लोग एक समान हो कर जीवन जी रहें हैं। भेद-भाव की चिंता काफी हद तक कम हो चुकी हैं और लोगों में भाईचारे की सोच बुनियादी ढांचा ले चुकी है। ऐसे में पुरुष और महिलाओं (male astronauts stay longer than female) के बीच जो पहले भेद-भाव किया जाता था, वो अब काफी हद तक मिट चुका है। शिक्षा से ले कर सुरक्षा तक, हर एक क्षेत्र में महिलाओं ने अपनी काबिलीयत के आधार पर कई सारे मुकामों को हासिल कर लिया है।

नासा में ये भेदबाव क्यों - Male Astronauts Stay Longer Than Females.
स्पेस में रेडिएशन के तरंग। | Credit: Esa.

परंतु अभी तक अन्तरिक्ष विज्ञान के कुछ क्षेत्रों में कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जहां पर पुरुष और महिलाओं को एक समान दृष्टिकोण से देखा जाना बाकी है। नियमित रूप से पृथ्वी के लोवर ओर्बिट में स्थित ISS पर अन्तरिक्ष-यात्रीओं को भेजा जाता है, परंतु एक खास बात ये है कि, वहाँ पर पुरुषों को ही ज्यादा लंबे समय तक रहने के लिए अनुमति मिलती है। महिलाओं को (male astronauts stay longer than female) पुरुषों के मुक़ाबले थोड़ा कम समय के लिए ही वहाँ रखा जाता है। परंतु सवाल उठता हैं कि, आखिर क्यों? कौन से कारणों के वजह से ऐसे फैसले लिए जाते हैं?

मित्रों! आज के लेख में हम इन्हीं सवालों के जवाबों के बारे में ही जानने वाले हैं। इसलिए आप सब लोगों से अनुरोध हैं कि, कृपया लेख को अंत तक पढ़िएगा। क्योंकि ये लेख काफी रोचक होने वाला है।

पुरुषों को ही ज्यादा लंबे समय तक क्यों छोड़ा जाता है अन्तरिक्ष में? – Why Male Astronauts Stay Longer Than Female? :-

पृथ्वी पर हर एक दिन “Ionizing Radiation” का खतरा मँडराता रहता है। इस रेडिएशन के चलते हमारे शरीर के परमाणु से इलेक्ट्रॉन के निकलने कि पूरी-पूरी संभावना रहती है। काफी लंबे समय तक इस रेडिएशन में रहने के कारण कैंसर जैसे घातक बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है। हालांकि! पृथ्वी के बारे में खास बात ये है कि, इसकी वायुमंडल इस खतरनाक रेडिएशन को सतह तक पहुँचने से पहले ही रोक देता है। खैर इन खतरनाक रेडिएशन तरंगों कि उत्पत्ति सूर्य और सुदूर अन्तरिक्ष में फट रहे सितारों से होती है।

नासा में ये भेदबाव क्यों - Male Astronauts Stay Longer Than Females.
अन्तरिक्ष में पुरुष और महिला अन्तरिक्ष यात्री। | Credit: Vice

खैर पृथ्वी कि सतह दोनों मैग्नेटो स्फियर और वायुमंडल से सुरक्षित रहती है, परंतु ऊपर अन्तरिक्ष में ISS के पास पृथ्वी के वायुमंडल का सुरक्षा कवच नहीं होता है। ऐसे में वहाँ रह रहें अन्तरिक्ष यात्रियों को रेडिएशन से होने वाली बीमारियों के होने कि पूरी-पूरी आशंका रहती हैं। खैर अन्तरिक्ष यात्रियों को अपने पूरे करियर में कैंसर जैसे बीमारियों के होने की खतरों के बारे में पहले से ही पता रहता है। इसलिए नासा ने अन्तरिक्ष यात्रियों के लिए रेडिएशन के एक्सपोजर का एक लिमिट सेट करा हुआ है।

इस लिमिट के मुताबिक एक अन्तरिक्ष यात्री अपने पूरी जिंदगी में साधारण एक्सपोजर लिमिट (male astronauts stay longer than female) साधारण लोगों के लिए तय किए गए लिमिट) से सिर्फ 3% ज्यादा एक्सपोजर के अंदर ही काम कर सकता है। बता दूँ कि, ये लिमिट अन्तरिक्ष यात्री के लिंग और आयु के आधार पर ही स्थिर किए जाते हैं। इसलिए यहाँ अलग-अलग लिंग व आयु के लोगों के लिए अलग-अलग लिमिट तय होते हैं।

इसलिए अन्तरिक्ष में पुरुष ज्यादा देर तक रह पाते हैं! :-

नासा के मुताबिक अन्तरिक्ष में एक अन्तरिक्ष यात्री कि सबसे कम एक्सपोजर लिमिट 180 मिलीसीवर्ट (mSv) से लेकर सबसे ज्यादा 700 मिलीसीवर्ट (mSv) तक हो सकता है। हालांकि! 180 mSv ज़्यादातर एक 30 वर्षीय महिला अन्तरिक्ष यात्री का एक्सपोजर लिमिट होता है, वहाँ 700 mSv एक 60 वर्षीय पुरुष (male astronauts stay longer than female) अन्तरिक्ष यात्री का एक्सपोजर लिमिट होता है। तो आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि, एक्सपोजर लिमिट में इतना अंतर अन्तरिक्ष में रहने के समय को कितना ज्यादा प्रभावित करता होगा।

नासा में ये भेदबाव क्यों - Male Astronauts Stay Longer Than Females.
काफी खतरनाक हो सकता हैं स्पेस में रेडिएशन। | Credit: ESA

इसके अलावा वैज्ञानिकों को अन्य कई सारे तथ्य भी मिले हैं, जिसके आधार पर अन्तरिक्ष में रहने के समय को लिंग के आधार पर अलग-अलग रखा जाना बहुत ही जरूरी है। एक शोध में ये पता चला है कि, अगर महिलाओं और पुरुषों को एक ही समय अवधि के लिए एक समान रेडिएशन के स्तर पर रखा जाए तो, महिलाओं में रेडिएशन के कारण कैंसर के होने कि संभावना पुरुषों के तुलना में दो-गुनी से भी ज्यादा है। खैर यहाँ हम फेफड़ों के कैंसर के बारे में बात कर रहें हैं।

तो इस बात को हम नहीं नकार सकते हैं कि, पुरुषों के मुक़ाबले महिलाओं को आयोनाइजेशन रेडिएशन के कारण हो रहें कैंसर कि होने कि संभावना काफी ज्यादा है। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने इसके ऊपर काफी ज्यादा शोध भी करा हुआ है। इसके अलावा नासा के द्वारा निर्धारित किए गए इस लिमिट को काफी ज्यादा संजीदगी से लिया जाता। क्योंकि हकीकत में भी ये लिमिट काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है।

ये लिमिट हर एक अन्तरिक्ष यात्री के लिए होती है काफी ज्यादा महत्वपूर्ण! :-

हलांकि! निर्धारित किए गए इस एक्सपोजर लिमिट को लेकर अभी काफी सारे सवाल खड़े हो रहें हैं। इसलिए नासा के द्वारा इस लिमिट को जल्द से जल्द बदलने की पूरी-पूरी संभावना है। सूत्रों से पता चला है कि, हर एक लिंग (male astronauts stay longer than female) और आयु के अन्तरिक्ष यात्रिओं के लिए ये लिमिट एक समान ही होने वाली है। ऐसे में इस बात को लेकर बहुत सी जगहों पर कई तरह की चर्चाएँ हो रही हैं। कई सारे वैज्ञानिक बदले जाने वाले लिमिट को लेकर अपना अलग-अलग मत रख रहें हैं।

Human mission to mars.
मंगल के ऊपर इंसान। | Credit: SETI.

सूत्रों से ये भी पता चला है कि, इस लिमिट को हर एक आयु व लिंग के अन्तरिक्ष यात्रीओं के लिए 600 mSv तक सीमित कर दिया जाएगा। ऐसे में जो महिला-पुरुष अन्तरिक्ष यात्रिओं में भेद-भाव था वो भी मिट जाएगा। नासा के द्वारा ये पुष्टीकरण कर दिया गया है कि, वो अपने अन्तरिक्ष यात्रिओं की सेहत को काफी संजीदगी से लेता है। इसलिए जितना संभव हो उतना सावधानी जरूर बरतेगा। बता दूँ कि, 600 mSv का जो एक्सपोजर लिमिट हैं, वो ISS पर 24 महीनों के अंदर ही पूरा हो जाता है और ये लिमिट कम आयु वाले महिला अन्तरिक्ष यात्रिओं के लिए काफी ज्यादा खतरनाक हो सकती है।

खैर एक खास बात ये है कि, पृथ्वी पर रह रहें एक आम इंसान को एक साल में मात्र 3.6 mSv के रेडिएशन को ही झेलना पड़ता है। परंतु ISS इस रेडिएशन का स्तर 300 mSv तक पहुँच जाता है। वैसे नए एक्सपोजर लिमिट के चलते अब ज्यादा बुजुर्ग पुरुष अन्तरिक्ष यात्रिओं को अन्तरिक्ष में रहने के लिए कम समय मिलेगा।

निष्कर्ष – Conclusion :-

ये बात तो तय है कि, अगर एक्सपोजर लिमिट सभी वर्गों के लिए 600 mSv तक हो जाता है, तब महिला अन्तरिक्ष यात्रिओं (male astronauts stay longer than female) के लिए ये एक बहुत ही खुशी की बात होगी। उनको एक लंबे करियर बनाने का अवसर प्राप्त होगा। हालांकि! अभी तक इसके बारे में नासा के द्वारा कोई औपचारिक पुष्टि करण नहीं मिला है। भले ही नया एक्सपोजर लिमिट महिलाओं को एक अच्छा अवसर देगा, परंतु इसके बारे में काफी चर्चाएँ होना बाकी हैं।

Space radiation can be carcinogenic.
स्पेस का रेडिएशन पैदा कर सकता हैं कैंसर। | Credit: Wikipedia.

आने वाले समय में पृथ्वी से मंगल तक कि यात्रा के दौरान अन्तरिक्ष यात्रीओं को 900 mSv तक के रेडिएशन को झेलना पड़ सकता हैं। ऐसे में इंसानी शरीर पर इसका क्या असर पड़ेगा, इसके बारे में भी हमारे लिए जानना काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। क्योंकि भविष्य में हम काफी लंबे-लंबे मिशनों पर जाने वाले हैं और ऐसे में हमारे सेहत का ध्यान रखा जाना बहुत ही जरूरी हैं।

वैसे एक हैरान कर देने वाली बात ये भी हैं कि, रूसी, यूरोपीयन और कैनेडियन स्पेस एजेंसिओं ने अपने अन्तरिक्ष यात्रीओं के लिए 1000 mSv का एक्सपोजर लिमिट स्थिर कर के रखा है। जो कि, नासा के मुताबिक काफी ज्यादा है। अगर नासा चाहता है कि, वो अपने अन्तरिक्ष यात्रीओं को लंबे अन्तरिक्ष मिशनों के लिए तैयार कर के रखे; तब उसे इस एक्सपोजर लिमिट को बदलने के बारे में सोचना ही पड़ेगा।

Source:- www.livescience.com

Bineet Patel

मैं एक उत्साही लेखक हूँ, जिसे विज्ञान के सभी विषय पसंद है, पर मुझे जो खास पसंद है वो है अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान, इसके अलावा मुझे तथ्य और रहस्य उजागर करना भी पसंद है।

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