पृथ्वी पर इंसानी सभ्यता का अभ्युदय लगभग 70 लाख साल पहले होने का अनुमान किया जाता है, जिनमें आज के आधुनिक इंसानों के पूर्वज भी शामिल थे। पृथ्वी पर जीवन लगभग 30 करोड़ साल पहले आया और माना जाता है कि, इसी समय के दौरान खुद पृथ्वी पर डायनासोर जैसे कई जीवों की सभ्यता बनी और खत्म हुई। वैसे अकसर पृथ्वी में होने वाले क्रमागत विकास इन सभ्यताओं के विनाश का मूल कारण बने रहे हैं। हमने ज़्यादातर अपनी स्कूली किताबों में पृथ्वी की संरचना और इसमें आने वाल् बदलाव को पढ़ा है, परंतु आज के इस लेख में हम लोग पृथ्वी के बनने का असली राज (geological history of earth In Hindi) तथा इसके प्राचीन भूगोलीय पहलुओं को समझने का प्रयास करेंगे।
मित्रों आप लोगों को और भी बता दूँ की, इस लेख में आपको प्राचीन पृथ्वी कैसी दिखती थी (लगभग अरबों साल पहले) और उस समय इसका भू भाग (geological history of earth) कैसा दिखता था उसके बारे में भी जानेंगे। वैसे आगे बढ्ने से पहले बता दूँ की, विज्ञानम पर पृथ्वी के विषय में एक स्वतंत्र लेख पहले से ही मौजूद है। जिसमें आप लोगों को पृथ्वी से जुड़ी कई सारी दिलचस्प बातों को जानने का मौका मिलेगा। तो उस लेख को भी आप अवश्य एक बार जरूर देखें।
तो, चलिये तैयार हो जाइए मेरे साथ पृथ्वी के इस प्राचीन और अंजान व रोचक यात्रा में, जिसमें हम लोग इसकी बनावट के कई सारे मूलभूत पहलुओं के ऊपर प्रकाश डालेंगे।
विषय - सूची
पृथ्वी के बनने का मनोहर भूवैज्ञानिक इतिहास ! – Geological History Of Earth In Hindi:-
लेख के प्रारंभिक भाग में बता दूँ की, लगभग 4.5 अरब साल पुरानी पृथ्वी के बनने का इतिहास बहुत ही लंबा हैं परंतु मैंने यहाँ पर सबसे मुख्य भूगोल (geological history of earth) के विंदुओं को आपके लिए चुन रखा है, इसलिए लेख को आरंभ से लेकर शेष तक अवश्य ही धैर्य के साथ पढ़ें। क्योंकि आगे आपको पृथ्वी की जलवायु से लेकर इसकी सतह के बनने के पीछे छुपी हुई मूल बातों का भी पता चलने वाला है।
हमारी पृथ्वी आखिर कैसे बनी ! – How Did Our Earth Form ?
वैसे तो ज़्यादातर लोगों को लगता है कि, हमारी पृथ्वी बिग-बैंग के कारण ही बनी है। परंतु असल बात तो यह है कि, हम लोग पृथ्वी की उत्पत्ति के असल रहस्य को आज तक ढूँढने में सक्षम नहीं हुए हैं। वैसे कुछ शोधकर्ता यह मानते हैं की, हमारे सौर-मंडल के बनने के करीब-करीब 10 करोड़ साल के अंदर हमारी पृथ्वी बनी। वैज्ञानिकों की मानें तो, पृथ्वी के उत्पत्ति का मूल कारण 10 सीरीज टक्करों को माना जाता हैं।
प्रत्येक धमाके से निकलने वाले पत्थर के टुकड़े धीरे-धीरे इक्कठा हो कर पृथ्वी को बनाते हैं। हालांकि इसको विरोध करते हुए कुछ वैज्ञानिक यह भी कहते हैं की, चांद पर मिलने वाले कुछ पत्थर के अवशेष आज से लगभग 4.5 अरब साल पुराने हैं (चांद पृथ्वी से ही बना हुआ है) और यह पृथ्वी के बनने के समय सीमा को पूर्ण रूप से समर्थन नहीं करते हैं।
मंगल के जैसे दिखने वाले इस खगोलीय पिंड ने बनाया आज के पृथ्वी और चांद को ! :-
वैसे भूविज्ञानियों के मध्य एक बहुत ही लोकप्रिय सिद्धांत प्रचलित है। इस सिद्धांत को “थेईया का सिद्धांत” भी कहते हैं। आज से कई अरबों साल पहले मंगल जैसा दिखने वाला “थेईया” (Theia) नाम का एक खगोलीय पिंड पृथ्वी के साथ टकराया था। यह पिंड लगभग मंगल के आकार जितना ही था। टक्कर के कारण पृथ्वी पर जो वातावरण मौजूद था वह पूरे तरीके से खत्म हो गया। टक्कर से निकलने वाले पत्थरों के टुकड़े आपस में जुड़कर चांद का निर्माण करते हैं।
वैसे आज आप जिस पृथ्वी को देख रहें हैं, उसको बनाने में थेईया का बहुत बड़ा हाथ हैं, क्योंकि टक्कर के बाद पृथ्वी की जलवायु में ऑक्सिजन का मात्रा बढ़ी और जीवन की उत्पत्ति हुई। आज भी कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि, टक्कर से पहले की पृथ्वी में जो जलवायु मौजूद थी वह अभी भी इसके केंद्र में (पृथ्वी) मौजूद है।
मित्रों! पृथ्वी के बनने की शुरुआत ऐसे ही हुई और बाद में हमारी पृथ्वी कई सारे अलग-अलग अवस्थाओं में आकर क्रमानुसार विकसित होने लगी, जिसके बारे में हम धीरे-धीरे आगे बात करेंगे।
लगभग 4.5 अरब साल पहले पृथ्वी में बहती थी आग की नदियां, चारों तरफ मौजूद थे सिर्फ लावा के समंदर ! :-
पृथ्वी की थेईया के साथ टक्कर लगभग 4.5 अरब साल पहले हुई थी और उस टक्कर का पृथ्वी पर काफी भयानक प्रभाव पड़ा था। टक्कर की वजह से पृथ्वी पूरे तरीके से एक आग का गोला बन गई थी। जलवायु पूरे तरह से खत्म ही हो गई थी और वातावरण काफी गरम हो गया था। हर तरफ लाल लावा और मेग्मा दिखाई पड़ता था। आग की नदियां बहती थी और पानी की जगह समंदर में लावा मौजूद था।
अगर आप उस समय की पृथ्वी की तुलना आज के शुक्र ग्रह (Venus) के साथ भी कर दें तो कोई गलत बात नहीं होगी। हालांकि उस समय जलवायु लगभग न के बराबर ही थी परंतु कुछ मात्रा में जल के कण अब भी मौजूद थे। बाद में जब पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी होने लगी तब जा कर पृथ्वी पर पानी के समंदर बने। वैसे समंदर के बनने की इस प्रक्रिया के लिए जल के कणों की सघनता का होना अनिवार्य था। उस समय पृथ्वी में भारी मात्रा में मौजूद मेग्मा भी ठंडा हुआ और पानी के साथ मिल कर पृथ्वी के ठोस सतह (पत्थर) का निर्माण किया।
पृथ्वी के अद्भुत भूविज्ञान (geological history of earth) के इतिहास में वैसे तो कई सारे प्राचीन खनिज मौजूद हैं, परंतु “Zircons” नाम का एक खनिज ऐसा भी हैं जो की पृथ्वी का सबसे प्राचीन खनिज भी है। वैज्ञानिकों का मानना है कि, यह खनिज पृथ्वी पर लगभग 4.5 अरब साल पहले से ही मौजूद है यानी पृथ्वी के बनने के समय से ही।
पृथ्वी के प्रारंभिक महाद्वीपों का बनना ! :-
जैसा की सब को पता है, वर्तमान के समय में पृथ्वी पर 7 महाद्वीप मौजूद हैं। परन्तु क्या आप पृथ्वी के प्राचीन महाद्वीपों के बारे में जानते हैं ? अगर नहीं तो लेख के इस भाग को जरूर ही पढ़िएगा। लगभग हर एक महाद्वीप के नीचे बड़े-बड़े टेक्टोनिक प्लेट आज मौजूद हैं, पर प्रारंभिक महाद्वीपों के नीचे मौजूद टेक्टोनिक प्लेट काफी छोटे थे।
वैसे विज्ञान की भाषा में इन प्रारंभिक महाद्वीपों को, “Metamorphic Rock Belt” भी कहा जाता था क्योंकि ज़्यादातर यह लावा से बनी हुई मेटामोर्फिक रॉक से ही अपने अस्तित्व में आए थे। पत्थरों की ये बेल्ट बहुत ही मूल्यवान धातु (सोना, चांदी, तांबा) और खनिजों से भरी हुई थी। लगभग 3 अरब साल के अंदर ही पृथ्वी की सतह काफी तेजी से बढ़ी और साथ ही साथ जीवन की उत्पत्ति के लिए आवश्यक इकाईयों का निर्माण होने लगा था।
पृथ्वी में जीवन का आना :-
शायद यह जो सवाल हैं (पृथ्वी पर जीवन कैसे और कब आया?), यह हर एक जीव विज्ञानी के मन में अकसर ही आता होगा। परंतु दोस्तों विडंबना की बात तो यह है कि, इसके बारे में आज तक हम कोई सटीक जानकारी जुटा नहीं पाये हैं। एक सिद्धांत के अनुसार लगभग 3.5 अरब साल पहले पृथ्वी पर जीवन की पहला निव रखी गया थी। उस समय पानी में मौजूद कुछ पत्थरों के बीच “Photosynthesis” की प्रक्रिया का प्रारंभ हुआ था। सामान्य तौर पर यह प्रक्रिया पौधों के अंदर होती है जो की उनको अपना खाना खुद से बनाने के लिए सक्षम करती है।
पृथ्वी के बनने के 2.4 अरब सालों तक जलवायु में ऑक्सिजन की मात्रा धीमे-धीमे बढ़ती रही, परंतु जीवन का कोई भी निशान मौजूद नहीं था। इस समय पृथ्वी पर मौजूद टेक्टोनिक प्लेट के अंदर भी कोई सक्रियता नजर नहीं आई, जिसकी वजह से शायद इतने लंबे समय तक जीवन की उत्पत्ति भी नहीं हो पाई। खैर उस वक़्त शायद जीवन को पनपने के लिए कोई बदलाव की जरूरत थी जो की टेक्टोनिक प्लेट के सक्रियता के साथ ही साथ भविष्य में होने वाला था।
एक विशाल महाद्वीप (Super-Continent) का अस्तित्व में आना, जिसने बनाया आज के महाद्विपों को ! :-
“Pangaea” जी हाँ ! यह वह विशाल महाद्वीप है जिसने आज के 7 महाद्वीपों को बनाया। यूं तो पृथ्वी के भूगोलीय इतिहास (geological history of earth) में Pangaea जैसे कई सारे विशाल महाद्वीप बने जो की आकार में आज के महाद्वीपों से कई गुना बड़े थे परंतु आखिर में जो महाद्वीप आज के महाद्वीपों को बनाने वाला था वह Pangaea था।
कुछ वैज्ञानिक यह भी मानते हैं की, कई महाद्वीपों में बटने के बाद भी आज के महाद्वीप आपस में कई बार इक्कठे भी हुए हैं। यह बात सोचने से भी काफी अटपटी लगती हैं, परंतु सत्य है। वैसे पृथ्वी में टेक्टोनिक प्लेट की सक्रियता के ऊपर महाद्वीपों की गति निर्भर करती हैं। इसलिए जिस समय टेक्टोनिक प्लेटों की संरचना जैसी रहेगी वैसे ही महाद्वीपों की संरचना भी रहेगी।
एक मजेदार बाद आपको बताता हूँ दोस्तों, हमारा देश पूरे तरीके से एक स्वतंत्र टेक्टोनिक प्लेट के ऊपर मौजूद है। इसलिए आज भी पूरा का पूरा देश एक तरह से गतिशील हैं। वेसे बता दूँ की, इसी गतिशीलता के कारण ही आज हम हिमालय को देख पा रहें हैं। दो टेक्टोनिक प्लेटों के अंदर टक्कर का नतीजा हिमालय का बनना है। आज भी भारतीय टेक्टोनिक प्लेट धीरे-धीरे यूरेसियान प्लेट के तरफ बढ़ रहा हैं। इसी वजह से एक साल में यह लगभग 6.1 सेंटीमीटर तक ऊंचाई में बढ़ जाता है। वाकई में पृथ्वी का भूगोलीय (geological history of earth in hindi) बहुत ही आश्चर्यजनक है।
1 अरब साल पहले पृथ्वी थी एक बर्फ का गोला, दिखाई पड़ती थी कुछ ऐसी ! :-
अरबों सालों तक आग में झुलसने के बाद में, अब बारी थी बर्फ में जमने की। जी हाँ! दोस्तों आज से लगभग 1 अरब साल पहले पृथ्वी पूरे तरीके से एक बर्फ का गोला बन चुकी थी। तापमान में काफी गिरावट आ चुकी थी। वैज्ञानिक मानते हैं की इसका कारण एक विशाल महाद्वीप का आपस में विभाजन था।
खैर उस समय में पूरी की पूरी पृथ्वी मोटे बर्फ के चादर के तले, दबी पड़ी थी। इसीलिए कई बार पृथ्वी के इस अवस्था को देख कर वैज्ञानिक इसे “Snowball Earth” भी कहते हैं। हड्डियाँ तक जमा देने वाली जलवायु के साथ ही साथ ग्लेसियर के जमाबड़े आपको पूरे पृथ्वी के ऊपर देखने को मिलती। ऐसे में जीवन का पृथ्वी पर होना बहुत ही मुश्किल था। पहले से ज्वालामुखीयों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड उस समय पृथ्वी के जलवायु में फस कर रह गई थी, जो की बाद में पृथ्वी के सतह को काफी ठंडा करने के लिए जिम्मेदार बनी।
उस समय भूमध्य रेखा के पास स्थित जगहों पर भी ग्लेसियर के बड़े-बड़े टुकड़ों की मौजूदगी आज भी वैज्ञानिकों को हैरान कर देती हैं। ऐसे में आप अंदाजा लगा सकते हैं की, पृथ्वी के ऊपर जीवन को पनपने के लिए कितनी भारी संघर्ष से गुजरना पड़ा होगा।
जीवन का पनपना ! :-
मैंने ऊपर आप लोगों को पृथ्वी पर जीवन के आने के बारे में कुछ बताया है, जो की जीवन के पनपने के लिए काफी जरूरी थे। परंतु लेख के इस हिस्से में हम लोग पृथ्वी पर जीवन के पनपने के बारे में बात करेंगे। आज से लगभग 65 करोड़ साल पहले पृथ्वी की भूगोल में (geological history of earth in hindi) काफी ज्यादा बदलाव देखे गए।
इस समय तापमान जीवन के पनपने लायक होने के साथ ही साथ जलवायु में ऑक्सिजन की मात्रा बढ़ने लगा। बर्फ के गोले से अब पृथ्वी धीरे-धीरे अपने असली अस्तित्व में आ रहीं थी। 30 से 54 करोड़ साल पहले पृथ्वी पर प्रथम जीवन की उत्पत्ति का अंदाजा लगाया जाता है। वैसे उस समय बनने वाले जीव एक कोशीय थे और बाद में उनके अंदर विकास के चलते बहू-कोशीय जीवों का अस्तित्व आया।
पानी में पृथ्वी के प्रथम जीव की संज्ञा मिला थी, परंतु इसके ऊपर भी अभी पुष्टीकरण आना बाकी हैं। वैसे इस समय महाद्वीपों की गतिशीलता एक गौर करने वाली चीज़ है, क्योंकि इसी वजह से ही भू-भाग पर मौजूद खनिज पानी (समंदर) के अंदर मिल पाये, जो की बाद में शायद जीवन के लिए एक पोषक तत्व बन कर सामने आया।
मित्रों! आपको क्या लगता है? जीवन पृथ्वी पर कैसे आया होगा ! क्या वाकई में जीवन का पहला सबूत पानी से ही मिला होगा ? आपकी इसके ऊपर क्या राय है अवश्य ही बताइएगा दोस्तों। वेसे मेरे हिसाब से जीवन की पहला संज्ञा पानी वाले इलाकों से आना संभव हैं क्योंकि कहा जाता हैं न “जल ही जीवन है”। हालांकि ! इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता हे कि, भू-भाग पर भी जीवन हो सकता है और वह भी पानी से पहले क्योंकि भू-भागों के अंदर भी मीठे जल की स्रोत मौजूद रहता है।
डायनासोर की उत्पत्ति तथा पृथ्वी पर जीवन का महाविनाश ! :-
“Permian Period” यह पृथ्वी के भूगोलीय इतिहास (geological history of earth) में एक ऐसा वक़्त था, जब जीवन को पहली बार भारी तबाही का सामना करना पड़ा था। सिर्फ 60,000 सालों के अंदर ही अंदर पृथ्वी पर उस समय मौजूद 90% जीवों की प्रजातियां नाश हो चुकी थी और जीवन की समूल नाश का खतरा मंडरा रहा था। आज से लगभग 25 करोड़ साल पहले यह भयानक काल पृथ्वी को अपने चपेट में ले लिया था। वैसे गौरतलब बात यह हे कि, इसी भयानक समय के दौरान ही डायनासोर का उत्पत्ति हुई थी।
हालांकि इसके बाद “Cretaceous Period” यानी आज से 6 करोड़ साल पहले भी दुबारा डायनासोर के विनाश के चलते उस समय पृथ्वी से लगभग 85% जीवों की प्रजातियां लुप्त हो गई थी। वैसे डायनासोर के लुप्त होने का कारण साइबेरिया में होने वाले एक विशाल ज्वालामुखी के धमाकों को माना जाता है। चौंकाने वाली बात यह भी हे कि, ज़्यादातर लोगों को आज भी यह लगता हे की डायनासोर के लुप्त का मुख्य कारण उल्का पिंड का टकराना है। जो की पूर्ण रूप से सत्य नहीं है।
हिम युग और इसका अजीब किस्सा ! :-
पृथ्वी में लगभग 5 हिम युगों की पुष्टि मिलती है। आज से 26 लाख साल पहले एक हिम युग का अंत हुआ हे और आगे भी ऐसे ही हिम युगों का चक्र लगा रहेगा। हिम युग के बारे में सबसे अजीब बात यह है कि, जब भी कोई हिम युग शुरू होता हे तो तब ध्रुवीय इलाकों से ग्लेसियर उत्तरी गोलार्ध तक पहुँचते है। ऐसे में उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध का ज़्यादातर हिस्सा बर्फ से ढक जाता है।
वैसे और एक विशेष बात यह भी हे कि, जब परिवेश गरम हो जाता है तो ग्लेसियर खुद व खुद ज्यादा ठंडी जगह पर चली जाते हैं। खैर हम लोग भी एक तरह से एक हिम युग में ही हैं, अगर में सटीक रूप से कहूँ तो हम युग के हम आखिरी अवस्था में हैं जहां पर सिर्फ ध्रुवीय इलाकों में भारी मात्रा में बर्फ को देखा जा सकता है।
आज की पृथ्वी और इंसानी सभ्यता का विकास ! :-
आज के समय में हम यानी इंसानों ने जिस तरीके से पृथ्वी पर अपना वर्चस्व कायम किया है, उसको देखते हुए वैज्ञानिक इस समय काल को “Plasticene” का नाम देते हैं। वैसे यह जो शब्द हैं यह थोड़ा व्यंगात्मक हैं, क्योंकि इस शब्द में आपको प्लास्टिक की मौजूदगी देखने को मिलेगी।
जी हाँ! दोस्तों आज हम जिस प्लास्टिक को इस्तेमाल कर रहें हैं, उसके विघटन का समय सीमा लगभग 450 से 1000 वर्षों तक का है। इसलिए वैज्ञानिकों का मानना हे कि, भविष्य में अगर पृथ्वी की भूगोल (geological history of earth) बदलती है तो उस समय प्लास्टिक का प्रभाव परिवेश पर काफी ज्यादा रहेगा। कुछ वैज्ञानिकों का यह तक कहना हे कि, प्लास्टिक से बने हुए पत्थर हमें भविष्य में देखने को मिलेंगे। ऐसे में यह युग तथा इससे प्रभावित होने वाले भविष्य के युगों को भी “Plasticene” का नाम देना कोई गलत बात नहीं हैं।
Source :- www.livescience.com.