यह तो हम सभी जानते हैं कि ब्रह्मास्त्र को हिन्दू धर्म शास्त्रो में सबसे विनाशकारी अस्त्र कहा जाता है। यह इतना शक्तिशाली होता है कि इसके चलने मात्र से ही पृथ्वी और तमाम ग्रहों पर भूकंप आ जाता है।
ब्रह्मास्त्र की बात करें तो इसका उपयोग हमें रामायण और महाभारत में मिलता है। इस शस्त्र को ब्रह्मा जी ने बनाया था, इसके बारे में कहा जाता है कि यह शस्त्र खुद ही अपनी ऊर्जा प्रकट करता था और उस ऊर्जा से ही विनाश करता था।
हिन्दू धर्म शास्त्रों की बात करें तो ब्रह्मास्त्र से भी ज्यादा घातक, विनाशकारी और शक्तिशाली तीन अस्त्र हैं जो केवल एक बार ही प्रयोग में आते थे। इन अस्त्रों को जो भी प्रयोग करता था वह केवल एक ही बार प्रयोग कर सकता था। रामायण और महाभारत में एक हजार से ज्यादा शस्त्र उपयोग किये गये थे, और यह सभी शस्त्र अपने आप में बेहद विनाशकारी और घातक थे। विज्ञान की बात करें तो ये शस्त्र आज के परमाणु शस्त्रों से भी लाखों गुना ताकतवर थे।
वैसे तो लोग ब्रह्मास्त्र को सबसे घातक शस्त्र मानते हैं और उसे आज के परमाणु तकनीक से बने हथियारों से तुलना करते हैं, पर ब्रह्मास्त्र से भी कई गुना भयानक और विनाशकारी तीन शस्त्र ऐसे थे जो पल में ब्रह्माण्ड को भी तबाह कर देते थे। आइये जानते हैं कि वह तीन अस्त्र कौन से थे और कैसे और क्यों इन्हें सबसे घातक माना जाता था।
ब्रह्मशीर्ष अस्त्र
सनातन ग्रंथो की मानें तो ब्रह्मास्त्र को ब्रह्मां जी के एक मुख को प्रदर्शित करता है। वहीं ब्रह्मशीर्ष अस्त्र भगवान ब्रह्मा जी के सभी सिरों और मुखों को प्रदर्शित करता है। चारों सिरों को प्रदर्शित करने वाला ये अस्त्र बहुत ही शक्तिशाली बन जाता है, ब्रह्मास्त्र से चार गुना ज्यादा शक्तिशाली ये अस्त्र ऐसे भी समाझा जा सकता है कि अगर ब्रह्मास्त्र परमाणु बम है तो ये अस्त्र आज के हाइड्रोजन बम के बराबर है। परमाणु बम और हाइड्रोडजन बम कितने घातक होते हैं इसके बारे में आप यहां जान सकते हैं – न्यूक्लियर हमले की असली ताकत आपके होश उड़ा देगी – Nuclear Attack In Hindi
ब्रह्मशीर्ष अस्त्र के बारे में माना जाता है कि जब भी ये चलाया जाता था तो वहा के आकाश से अग्निवर्षा होने लगती थी, जिस भूमि पर इसका प्रभाव पड़ता था वहां कई वर्षों तक कोई फसल नहीं उग सकती थी। इसलिए जब भी इस अस्त्र के प्रयोग की बात आती थी तो बहुत ही सोच-समझकर इसका प्रयोग किया जाता था, एक बार ये चल जाये तो ये अपना काम करके ही वापिस आता था। महाभारत में उल्लेख है कि पांडवो का संपूर्ण विनाश करने के उद्देश्य में विफल होने के बाद अश्वत्थामा ने इस अस्त्र का उपयोग उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशू परीक्षित के वध के लिए किया था, जिसके उत्तर में अर्जुन ने भी इसी अस्त्र का उपयोग करके अश्वत्थामा का ये प्रयास विफल कर दिया था।अर्जुन को ब्रह्मशीर्ष को जागृत करने से वापस लेने तक का सम्पूर्ण ज्ञान था। जबकि अश्वत्थामा को गुरु द्रोणाचार्य ने केवल ब्रह्मशीर्ष को जागृत करने का ज्ञान दिया।
ब्रह्मदण्ड अस्त्र
यह अस्त्र पौराणिक काल में बहुत कम उपयोग होता था क्योंकि इसके प्रभाव से जन-जीवन के नष्ट होने का भय रहता था। महाभारत के युद्ध में अर्जुन ने इस अस्त्र का प्रयोग कर्ण पर किया था जिसे उन्होंने निष्प्रभाव कर दिया था। इस अस्त्र को केवल मंत्रो द्वारा ही संधान किया जा सकता था, और इसकी शक्ति अपार थी, माना जाता है कि ये 14 आकाशगंगाओं को नष्ट करने में सक्षम था, इसे हम आज के एंटीमैटर बम्ब (Antimatter Bomb) के बराबर शक्तिशाली मान सकते हैं, जो मैटर यानि पदार्थ से चिपकते ही उसे हमेशा नष्ट करने के लिए पागल रहता है। एंटीमैटर के बारे में इस लेख में जरूर जानिए।
यह अस्त्र इतना शक्तिशाली था की ब्रह्मास्त्र एवं ब्रह्मशीर्ष जैसे अस्त्रों को भी प्रभावहीन कर सकता था। इसका उल्लेख रामायण में भी मिलता है।
नारायणास्त्र
नारायणास्त्र भगवान विष्णु का अस्त्र है जिसे वह असुरों के वध करने के लिए प्रयोग करते हैं। ये बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली और विनाशकारी है। इसकी शक्ति असीम है इसलिए इसे कोई भी साधारण व्यक्ति संभाल नहीं सकता है। कहा जाता है की यदि नारायणास्त्र का एक बार प्रयोग हो जाता था तो इसे कोई भी शक्ति रोक पाने में असमर्थ थी। नारायणास्त्र को यदि कोई एक बार चला देता था तो यह किसी भी प्रकार से शत्रु का वध करके ही वापस आता था।
महाभारत में द्रोणाचार्य के वध का समाचार अश्वत्थामा को मिलता है तो वह प्रतिशोध में इसी अस्त्र को पांडवो के उपर चला देता है, जिससे भय व्याप्त हो जाता है। इसे रोकना अंसभव है इसलिए तब भगवान कृष्ण इसे शांत करने के लिए सभी को अपने अस्त्र और शस्त्रो को रखने के लिए कहा और इस अस्त्र के प्रति समर्पण होने का निर्देश दिया। इस अस्त्र को केवल समर्पण भाव के द्वारा ही रोका जा सकता था, अगर इसे रोकने के लिए कोई गलती से दूसरा अस्त्र चला दे भयंकर विनाश निश्चित तो था ही साथ में ये अस्त्र उसका भी विनाश कर देता।
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