Religion

क्या महाभारत में ऐसा कोई भी योद्धा था जिसमें अर्जुन को हराने का सामर्थ्य हो?

क्या कोई ऐसे वीर का वर्णन है जो कि अकेले ही भगवान के मित्र अर्जुन को परास्त करदे?

जब हम बात महाभारत की कर ही रहें तो हम ये जान लेते हैं कि महाभारत में सबसे वीर और भगवान के निकटतम योद्धा की बात आती है तो सबसे पहले नाम अर्जुन की ही आता है। अर्जुन की शक्ति का कई बार वर्णन हमें महाभारत में मिलता है जिन्होंने एक बार विराट के युद्ध में लगभग सभी कौरवों (भीष्म,कर्ण और द्रोणाचार्य भी) को अकेले ही हरा दिया था। महाभारत के अंतिम निर्णायक युद्ध में भी अर्जुन ने उन योद्धाओं को वध किया जो कि उस समय समस्त संसार में शक्तिशाली थे।

अब सवाल उठता है कि किया महाभारत में कोई ऐसा योद्धा था जिसमें अर्जुन को हराने का सामर्थ्य था, क्या कोई ऐसे वीर का वर्णन है जो कि अकेले ही भगवान के मित्र अर्जुन को परास्त करदे। आईये जानते हैं –

सबसे शक्तिशाली धनुर्धर

अर्जुन अपने समय के सबसे शक्तिशाली धनुर्धर व योद्धा थे। वे सव्यसाची थे, अर्थात दोनो हाथों से समान बाण चला सकते थे, दो मील दूर तक वार कर सकते थे, शब्दभेदी बाण चला सकते थे, अंधेरे में युद्ध कर सकते थे, निद्रा पर विजय प्राप्त कर देर तक युद्ध कर सकते थे, अपनी एकाग्रता व अचूक निशाने के लिए प्रसिद्ध थे। उनके बाजु इतने शक्तिशाली थे की सामान्य धनुष आसानी से टूट जाते थे। उनका दिव्य धनुष गांडीव इतना भारी था कि उसको उठाना या उसपर प्रत्यंचा चढ़ाना सामान्य बात नहीं थी, और उसपर प्रत्यंचा अर्जुन के अलावा केवल श्रीकृष्ण व भीम ही चढ़ा सकते थे।

दिव्यास्त्रों का संपूर्ण ज्ञान

उस धनुष को, अपने दो अक्षय तुणीरो को व अपनी तलवार को उठाए अर्जुन वनवास में घूमते रहे, तो सोचिए वो कितने बलशाली होंगे! जरासंध वध के लिए कृष्ण अर्जुन व भीम, दोनो को साथ लेकर गए थे, और जरासंध से कहा था की वो उन तीनो में से किसी को भी अपने प्रतिद्वंदी के रूप में चुन सकता है। इससे पता चलता है की अर्जुन केवल धनुर्धर ही नहीं, अत्यंत बलवान भी थे। इसके अलावा उन्हें समस्त दिव्यास्त्रों का संपूर्ण ज्ञान था। वो एक साथ कई महारथियों से युद्ध कर सकते थे। उनका निशाना इतना सटीक था की जब युद्ध में द्रोण ने दुर्योधन को अभेद्य कवच पहना दिया, और उसको भेदने का अर्जुन का बाण अश्वत्थामा ने काट दिया, तो अर्जुन ने दुर्योधन की उँगलियों के पोरों को निशाना बना उसपर वार किया, क्योंकि एक वही भाग कवच के बाहर था।

बाणों की वर्षा

उनके बाणों की वर्षा के विषय में कहा गया है की आकाश में अँधेरा छा जाता था, उनकी निरंतर तीरों की बारिश से, और कोई भी तीर ख़ाली नहीं जाता था। युद्ध के १४वें दिन जब उन्हें अपने प्रण के अनुसार सूर्यास्त से पहले जयद्रथ का वध करना था, तो कुरु सेना में वो अपने रथ पर श्रीकृष्ण के साथ अकेले घुस गए थे, व रास्ते में आने वाले हर महारथी को परास्त करते हुए या उसका वध करते हुए उन्होंने कई मीलों का सफ़र किया, क्योंकि द्रोण ने जयद्रथ को अपनी व्यूह रचना से सुरक्षित छिपा रखा था। निरंतर इतना चलने पर दिन के मध्य तक उनके अश्व प्यास और थकान से निढाल से हो गए थे।

अकेले ही  7अक्षौहिणी सेना का वध

तब अर्जुन ने वहीं, अकेले, कौरवों की सेना से चारोंओर से घिरे हुए, युद्धभूमि में, अपने तीर से भूमि को भेद एक तालाब बनाया, अपने तीरों से उसके चारों ओर एक दीवार बनायी, जिसके अंदर कृष्ण ने अश्वों को खोला, उन्हें पानी पिलाया व उनके तीर निकाल उन्हें सुस्ताने का अवसर दिया। उस समय अर्जुन ने तीरों की दीवार के बाहर, बिना रथ के भूमि पर खड़े होकर एक साथ कई महारथियों व सेना की टुकड़ियों से युद्ध किया व अपने अश्वों, रथ व सारथी की रक्षा की। उस दिन अर्जुन ने अकेले ही कौरवों की ७ अक्षौहिणी सेना का वध किया, जितना अन्य किसी योद्धा ने ४-५ दिन मिलाकर भी नहीं किया! उस दिन दुर्योधन को भी अनुमान हो गया की द्रोण, अश्वत्थामा व कर्ण जैसे योद्धाओं के रहते भी जब वह अर्जुन से जयद्रथ की रक्षा नहीं कर सका तो उसका जीतना मुश्किल है। अपने सम्पूर्ण जीवन में अर्जुन कोई युद्ध नहीं हारे। ऐसे योद्धा को परास्त करने का सामर्थ्य किसमे होता?

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भीष्म और दोर्णाचार्य से भी आगे थे अर्जुन

भीष्म अपने समय में अत्यंत पराक्रमी थे, किन्तु महाभारत के युद्ध तक आते आते वे वृद्ध हो चले थे। उनका और अर्जुन का जब भी सामना हुआ, जीत अर्जुन की ही हुई। भीष्म के तुणीर में जो भी अस्त्र थे, उनका उत्तर अर्जुन के पास था, किन्तु अर्जुन के हर अस्त्र का जवाब भीष्म के पास नहीं था। अम्बा की यह चाह थी की भीष्म की मृत्य उनके कारण हो, और इसी कारण से शिखंडी उनके अंतिम युद्ध में उनके सामने थे, किन्तु जिन बाणो ने उन्हें शर शैय्या पर लिटाया वो अर्जुन के थे।

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द्रोण क्षत्रिय नहीं थे, किन्तु अस्त्र विद्या में पारंगत थे और उनके सम्मुख ठहरना आसान बात नहीं थी। उनका अर्जुन से जब भी सामना हुआ, विजय अर्जुन की हुई। कुरुक्षेत्र में शत्रु को जान से मारना था, और इसी कारण अर्जुन द्रोण से युद्ध करने से कतराते रहे क्योंकि वो अपने गुरु की हत्या नहीं करना चाहते थे। किन्तु इस बात में कोई संशय नहीं था, द्रोण को भी नहीं, की अर्जुन युद्ध कला में उनसे कोसों आगे हैं।

अर्जुन और कर्ण

कर्ण अत्यंत पराक्रमी योद्धा व शक्तिशाली धनुर्धर था। किन्तु अर्जुन, जिसको परास्त करने के स्वप्न में उसने अपना पूरा जीवन झोंक दिया, उनसे बहुत आगे था। कर्ण अपनी कुंठाओ व ईर्ष्या के कारण कभी महान नहीं बन सका।

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जब भी उसका अर्जुन से सामना हुआ, विजय अर्जुन की हुई। अपने अंतिम युद्ध में भी वो अर्जुन के सामने मात्र आधे दिन तक टिक पाया। जब उसके रथ का पहिया धँसा, उस समय उसके सारे अस्त्र समाप्त हो चुके थे, वो अत्यंत घायल था और थक चुका था, और उसकी सेना या तो मारी जा चुकी थी या अर्जुन के भय से दूर से नज़ारा देख रही थी। कोई उसके पास आने को तैयार नहीं था अर्जुन के भय से, दुर्योधन भी नहीं।

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अतः वो मृत्यु के बहुत निकट था। समस्या यह थी की अपने कौनतेय होने की बात कर्ण जानता था, अर्जुन नहीं, और श्रीकृष्ण नहीं चाहते थे की कर्ण की मृत्यु से पहले अर्जुन को पता चले। इसलिए उन्होंने अर्जुन को कर्ण को मारने के लिए उकसाया जिससे अपने प्राण बचाने के लिए कर्ण यह रहस्य ना खोल दे, या कोई और आकर ये रहस्य अर्जुन को ना बता दे। इसी बात से लोग समझ लेते हैं की अर्जुन ने निहत्थे कर्ण को मारा क्योंकि वह उसे परास्त नहीं कर सकता था। सत्य तो यह है की कर्ण अर्जुन से हर बार परास्त हुआ और उसकी मृत्यु के समय भी वो पराजित अवस्था में ही था।

3 हजार साल पुरानी अष्टाध्यायी में भी है महाभारत का उल्लेख

हाल ही में एक दिलचस्प बात उजागर हुई। पाणिनि का नाम आपने सुना होगा। ये ४-५ BCE के उत्कृष्ट व्याकरणकार थे, जिन्होंने अष्टाध्यायी लिखी व संस्कृत भाषा को एक नया आयाम दिया। अष्टाध्यायी में महाभारत के विषय में भी उल्लेख हैं, और ये महाभारत के अब तक के प्राचीनतम उल्लेख हैं। उसमें पाणिनि ने लिखा है की अर्जुन के भक्त व कृष्ण के भक्त अपने भगवान को श्रेष्ठ बताने पर लड़ रहें हैं, और यह हास्यास्पद है क्योंकि उनके भगवान एक ही रथ पे एक ही पक्ष में लड़े थे। इसका अर्थ यह है की आज से क़रीब २००० वर्ष पूर्व अर्जुन की भी पूजा की जाती थी एक भगवान की तरह! यानी उस समय जो महाभारत की कथा थी, जिसके हमें मात्र अवशेष मिले हैं और जो कई बार कई तरह से बदली जा चुकी है, उस प्राचीन कथा के अनुसार अर्जुन भी भगवान थे, या एक अवतार थे।

आज भी महाभारत का हर पर्व नर व नारायण के अभिनंदन से ही आरम्भ होता है, व कई ग्रंथो के अनुसार नर व नारायण दोनो की उत्पत्ति विष्णु से ही हुई थी। महाभारत से भी पहले के समय में नर व नारायण दो भाई थे जो अत्यंत तेजस्वी ऋषि थे। उन्होंने कठिन तप व युद्ध कर दानव डंबोद्भव पर विजय प्राप्त की थी। अर्जुन व कृष्ण उन्ही नर नारायण का दूसरा जन्म थे। जो भी हो, इससे यह पता चलता है की प्राचीन समय में अर्जुन की भी पूजा होती थी। इससे यह भी सिद्ध होता है की उनके समान योद्धा अन्य कोई नहीं होगा उस युग में, इसीलिए उन्हें भगवान की श्रेणी में रखा गया होगा।

अब ऐसे योद्धा को परास्त करने का सामर्थ्य किसमे होता!

साभार – रूपल गर्ग (क्योरा)

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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