श्रीकृष्ण की जन्मभूमि यानि मथुरा अपने आप में ही एक दिव्य और ऐतिहासिक स्थान है जो हिन्दुओं और आध्यात्मिक विषयों से जुड़े हुए लोगों के लिए एक वास्तव में पूजनीय जगह है | हम सभी इस बात से परिचित हैं कि मथुरा भगवान कृष्ण के जन्म के कारण ही जानी जाती है और यहाँ पर भगवान् द्वारा कंस का भी वध हुआ था |
बृजयात्रा में प्रमुख ये स्थान सबसे पहले ही दर्शन करने योग्य माना जाता रहा है क्योंकि यहाँ भगवान् कृष्ण का जन्मभूमि मंदिर स्थित है और सभी लीलाएं भगवान् की इसी स्थान से शरू होती हैं |
पर इससे जुड़े कुछ विषय और बातें ऐसी भी हैं जो कई लोगों को पता ही नहीं हैं और इसका इतिहास भी खुद जानने योग्य है | कृष्णजन्मभूमि के कुछ रहस्य ऐसे हैं जिनपर विश्वास करना थोड़ा मुश्किल तो है पर कई ऐसे प्रमाण मिले हैं जो इसके अस्तित्व के प्रारम्भ की बातें बताते हैं |
कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है जहाँ हिन्दू धर्म के अनुयायी कृष्ण भगवान का जन्म स्थान मानते हैं। यह विवादों में भी घिरा हुआ है क्योंकि इससे लगी हुई जामा मस्जिद मुसलमानों के लिये धार्मिक स्थल है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का ना केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर जनपद मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। आज वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षण मन्दिर के रूप में स्थापित है।
पर्यटन की दृष्टि से विदेशों से भी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहाँ लोग बड़ी तादाद में आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक आराध्य के रूप में मानते हुए दर्शनार्थ आते हैं।
श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी। दोनों को ही कंस ने कारागार में डाल दिया था। उस काल में मथुरा का राजा कंस था, जो श्रीकृष्ण का मामा था। कंस को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि उसकी मृत्यु उसकी ही बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी। इसी डर के चलते कंस ने अपनी बहन और जीजा को आजीवन कारागार में डाल दिया था। मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है।
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कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने बनवाया था पहला मंदिर :
– जनमान्यता के अनुसार, कारागार के पास सबसे पहले भगवान कृष्ण के प्रपौत्र बज्रनाभ ने अपने कुलदेवता की स्मृति में एक मंदिर बनवाया था।
– आम लोगों का मानना है कि यहां से मिले शिलालेखों पर ब्राहम्मी-लिपि में लिखा हुआ है। इससे यह पता चलता है कि यहां शोडास के राज्य काल में वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक मंदिर, उसके तोरण-द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था।
विक्रमादित्य ने बनवाया था दूसरा बड़ा मंदिर :
इतिहासकारों का मानना है कि सम्राट विक्रमादित्य के शासन काल में दूसरा मंदिर 400 ईसवी में बनवाया गया था। यह भव्य मंदिर था।
– उस समय मथुरा संस्कृति और कला के बड़े केंद्र के रूप में स्थापित हुआ था। इस दौरान यहां हिन्दू धर्म के साथ-साथ बौद्ध और जैन धर्म का भी विकास हुआ था।
विजयपाल देव के शासनकाल में बना तीसरा बड़ा मंदिर, सिकंदर लोदी ने तुड़वाया :
– खुदाई में मिले संस्कृत के एक शिलालेख से पता चलता है कि 1150 ईस्वी में राजा विजयपाल देव के शासनकाल के दौरान जज्ज नाम के एक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर एक नया मंदिर बनवाया था।
– उसने विशाल और भव्य मंदिर का निर्माण करवाया था। इस मंदिर को 16वीं शताब्दी के शुरुआत में सिकंदर लोदी के शासन काल में नष्ट कर डाला गया था।
जहांगीर के शासनकाल में चौथी बार बना मंदिर, औरंगजेब ने तुड़वाया :
– इसके लगभग 125 वर्षों बाद जहांगीर के शासनकाल के दौरान ओरछा के राजा वीर सिंह देव बुंदेला ने इसी स्थान पर चौथी बार मंदिर बनवाया।
– कहा जाता है कि इस मंदिर की भव्यता से चिढ़कर औरंगजेब ने सन 1669 में इसे तुड़वा दिया और इसके एक भाग पर ईदगाह का निर्माण करा दिया।
– यहां प्राप्त अवशेषों से पता चलता है कि इस मंदिर के चारों ओर एक ऊंची दीवार का परकोटा मौजूद था। मंदिर के दक्षिण पश्चिम कोने में एक कुआं भी बनवाया गया था।
– इस कुएं से पानी 60 फीट की ऊंचाई तक ले जाकर मंदिर के प्रांगण में बने फव्वारे को चलाया जाता था। इस स्थान पर उस कुएं और बुर्ज के अवशेष अभी तक मौजूद है।
बिड़ला ने की श्रीकृष्ण जन्मभूमिट्रस्ट की स्थापना
– ब्रिटिश शासनकाल में वर्ष 1815 में नीलामी के दौरान बनारस के राजा पटनीमल ने इस जगह को खरीद लिया।
– वर्ष 1940 में जब यहां पंडित मदन मोहन मालवीय आए, तो श्रीकृष्ण जन्मस्थान की दुर्दशा देखकर वे काफी निराश हुए।
– इसके तीन वर्ष बाद 1943 में उद्योगपति जुगलकिशोर बिड़ला मथुरा आए और वे भी श्रीकृष्ण जन्मभूमि की दुर्दशा देखकर बड़े दुखी हुए। इसी दौरान मालवीय जी ने बिड़ला को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के पुनर्रुद्धार को लेकर एक पत्र लिखा।
– बिड़ला ने भी उन्हें जवाब में इस स्थान को लेकर हुए दर्द को लिख भेजा। मालवीय की इच्छा का सम्मान करते हुए बिड़ला ने सात फरवरी 1944 को कटरा केशव देव को राजा पटनीमल के तत्कालीन उत्तराधिकारियों से खरीद लिया।
– इससे पहले कि वे कुछ कर पाते मालवीय का देहांत हो गया। उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार, बिड़ला ने 21 फरवरी 1951 को श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की।
1982 में पूरा हुआ वर्तमान मंदिर का निर्माण कार्य :
– ट्रस्ट की स्थापना से पहले ही यहां रहने वाले कुछ मुसलमानों ने 1945 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक रिट दाखिल कर दी। इसका फैसला 1953 में आया।
– इसके बाद ही यहां कुछ निर्माण कार्य शुरू हो सका। यहां गर्भ गृह और भव्य भागवत भवन के पुनर्रुद्धार और निर्माण कार्य आरंभ हुआ, जो फरवरी 1982 में पूरा हुआ।
मथुरा के बारह जंगल : वराह पुराण एवं नारदीय पुराण ने मथुरा के पास के 12 वनों की चर्चा की है- 1. मधुवन, 2. तालवन, 3. कुमुदवन, 3. काम्यवन, 5. बहुलावन, 6. भद्रवन, 7. खदिरवन, 8. महावन (गोकुल), 9. लौहजंघवन, 10. बिल्व, 11. भांडीरवन एवं 12. वृन्दावन। इसके अलावा 24 अन्य उपवन भी थे। आज यह सारे स्थान छोटे-छोटे गांव और कस्बों में बदल गए हैं।
मथुरा के अन्य मंदिर : मथुरा में जन्मभूमि के बाद देखने के लिए और भी दर्शनीय स्थल है :- जैसे विश्राम घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर, विश्राम घाट, पागल बाबा का मंदिर, इस्कॉन मंदिर, यमुना नदी के अन्य घाट, कंस का किला, योग माया का स्थान, बलदाऊजी का मंदिर, भक्त ध्रुव की तपोस्थली, रमण रेती आदि।
SOURCE – radhekrishnaworld