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जन्माष्टमी (Janmashtami) क्या है, क्यों मनाई जाती है और इसका क्या महत्व है??

जन्माष्टमी (Krishna Janmashtami Hindi ) हिन्दुओं का प्रमुख त्यौहार है जिसे वह बड़े उत्साह के साथ मनाते हैं, इस दिन वे भगवान के जन्म के उत्सव में व्रत रखते हैं और मध्यरात्रि तक भगवान के प्राकट्य  होने पर नाचते हैं।

जन्माष्टमी (Janmashtami)  मुख्यत भगवान कृष्ण के जन्मदिन से जुड़ी है, ये वह दिन होता है जिस दिन माना जाता है कि भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था। शास्त्रों के मुताबिक 5 हज़ार 243 साल पहले भगवान कृष्ण का जन्म मथुरा की भूमि पर हुआ था। श्री कृष्ण भगवान विष्णु के आठ वें अवतार है जिन्होंने धरती पर बढ़ रहे अधर्म और अन्याय को खत्म करने के लिए अवतार लिया था।

श्री कृष्ण की याद में और उनके बाल रूप को पूजने के लिए यह पावन पर्व जन्माष्टमी मनाया जाता है, भगवान कृष्ण के देश- विदेश में लाखों भक्त हैं इसलिए इस पर्व को बड़े ही उल्लास और उत्साह के साथ लोग मनाते हैं। इस दिन स्त्री-पुरुष रात्रि बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांंकियांं सजाई जाती हैं और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है।

जितना बड़ा ये त्यौहार है उतने ही बड़ी कहानी भी इसके पीछे जुड़ी है, ये भगवान के जन्म से संबंधित पर्व है तो आपको ये जानना जरूरी है कि आखिर उस समय भगवान ने जन्म क्यों लिया और क्यों लोग जन्माष्टमी को इतने बड़े त्यौहार के रुप में मानते हैं..

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कृष्ण जन्माष्टमी क्यों मनाया जाता है? (Why is Krishna Janmashtami Celebrated?)

जन्माष्टमी के पीछे भगवान कृष्ण का जन्म सबसे बड़ा कारण है। द्वापर युग के अंत में जब पृथ्वी पर बुरे लोगों का सम्राज्य बड़ गया और सब और वे लूटपाट, हाहाकार और लोगों को मारने लगे तब भगवान विष्णु ने मनुष्य के रूप में अवतार लेने का प्रण किया। भगवान गीता में कहते हैं कि जब भी पृथ्वी पर धर्म की हानि होने लगती है तब-तब वे मानव रुप में अवतार लेकर धरती को असुरी शक्तियों से मुक्त करते हैं।

एकबार की बात है मथुरा में राजा कंस राज किया करता था जिसने अपने पिता को बंदी बनाकर उनका राजपाठ छीन लिया था। अपने शक्तिशाली दोस्तों और अपनी ताकत के मद में वह चूर था। उसकी देवकी नाम की एक बहुत सुंदर बहन थी जिसका विवाह वह किसी योग्य वर से करना चाहता था।

आकाशवाणी

इसी खोज में उसने देवकी का विवाह वासुदेव के साथ करने का सोचा, वासुदेव सदैव सच बोलते थे और धर्म परायण महात्मा थे। राजकुमारी द्रोपदी और राजकुमार वासुदेव अब विवाह कर चुके थे। लेकिन जब उनके विदा करने की बारी आई तभी कंस के वध संबंधी आकाशवाणी हुई कि जिसमें स्पष्ट था कि देवकी और वासुदेव का आठंवा पुत्र ही कंस का वध करेगा।

Source – kalimandir.org

जब देवकी और वासुदेव के 8 वें बच्चे का जन्म हुआ तो भगवान विष्णु ने वासुदेव से उन्हें गोकुल ले जाने के लिए कहा जहाँ नंद और यशोदा रहते थे। वासुदेव ने बच्चे को गोकुल पहुँचाने के लिए यमुना नदी पार की।

गोकुल पहुंचकर वासुदेव ने अपने बेटे को यशोदा की बेटी से बदल लिया और वापस जेल लौट आया। कंस ने सोचा की वह देवकी और वासुदेव का 8 वां बच्चा हैं इसलिए उसने उसे पत्थर पर फेंक दिया।

योगमाया

पर वह बच्ची माँ योगमाया में प्ररिवर्तित हो गई और कंस को उनकी मृत्यु के बारे में चेतावनी दी। देवकी और वासुदेव का आठवा बच्चा भगवान कृष्ण गोकुल में बड़ा हुआ। उन्होंने वहां कई राक्षसों को मार डाला और कंस को मारने के लिए मथुरा लौट आया। तब से, जन्माष्टमी या कृष्णाष्टमी भगवान् कृष्ण या गोविंदा के जन्मदिन के रूप मनाया जाता हैं।

जन्माष्टमी  (Janmashtami) का वैभवशाली उत्सव

भगवान कृष्ण की याद में मनाई जाने वाली जन्माष्टमी लोगों में उत्साह का संचार कर देती है, इतना जोश भर देती है कि लोग इसे बड़े ही धूम-धाम से मनाते हैं। मंदिरों में झांकिया दिखाई जाती हैं, लोगों को तरह तरह के कपड़े पहनाये जाते हैं। हर जगह बच्चे छोटे श्री कृष्ण का रूप धारण करके उनकी लीला को दोहराते हैं। बच्चों से लकर बड़ो तक में बहुत उत्साह देखने को मिलता है।

जन्माष्टमी केवल हिन्दू समाज ही नहीं बल्कि विश्व में हर जगह मनाई जाती है, भगवान के करोड़ो भक्त इस पृथ्वी पर है और हर भक्त अपने-अपने उत्साह और मन के साथ जन्माष्टमी मनाता है।

मध्यरात्रि 12 बजे, दूध से मूर्ति को नहलाते है और सुंदर कपड़े, गहने पहनाते है फिर पूजा के लिए पालना में रखा जाता हैं। देवताओं को मिठाई भेंट की जाती है और फिर भक्तों के बीच बांटी जाती हैं।

भगवान् कृष्ण के भक्त कृष्ण भजनों के साथ नृत्य करते हैं साथ ही वे कृष्ण झांकी का एक अति उत्कृष्ट प्रदर्शन आयोजित करते है जो रस लीला को एक विशाल तरीके से दर्शाता हैं। जन्माष्टमी की सबसे लोकप्रिय गतिविधि दही हांड़ी का रिवाज हैं। इस परंपरा को बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।

मथुरा, वृंदावन और गोकुल में कृष्ण जन्माष्टमी (Janmashtami) 

मथुरा भगवान कृष्ण का जन्मस्थान भी है इसलिए जन्माष्टमी का असली रंग इधर ही देखने को मिलता है इस दिन मथुरा की सड़को को फूलों से सजा दिया जाता है। जगह- जगह युवा रासलीला का अभिनय करते हैं। बालक भगवान कृष्ण के बालक रूप की झांकी को प्रदर्शित करते हैं।

वृंदावन में भगवान कृष्णा के मंदिर भी हैं जैसे मदन मोहन मंदिर, गोविंद देव मंदिर, राधारमण मंदिर, राधा दामोदर मंदिर, राधा वल्लभ मंदिर और जुगल किशोर मंदिर कई अन्य। गोकुल वह जगह जहाँ भगवान कृष्ण ने अपने बचपन के दिन बिताये थे।

यह वह जगह है जहाँ नंदा और यशोदा रहते थे, जहाँ कान्हा को उनके पिता वासुदेव ने जन्म के बाद एक सुरक्षित हिरासत में छोड़ दिया था। गोकुल में भी भगवान कृष्ण के कुछ प्रसिद्ध मंदिर है।

Source – Gyan Jyoti Awasiya Vidyalaya, Ara

जन्माष्टमी के त्यौहार के दौरान मथुरा, वृन्दावन और गोकुल का पूरा वातावरण उनके नाम से गूंजता हैं। ऐसा लगता है जैसे भगवान कृष्ण खुद उत्सव का हिस्सा बनने के लिए वहां आते हैं। इस उत्सव में समस्त भारत शामिल होता है।

कई बार दो दिन भी मनाई जाती है जन्माष्टमी (Janmashtami) 

हिन्दू पंचाग और अंग्रेजी कलैंडर में बहुत अंतर होता है एक चंद्रमा की कला से बना है तो दूसरा सूर्य की गणना के आधार पर ऐसे में जन्माष्टमी की तिथी अंग्रेजी गणना में दो दिन तक हो जाती है। पर इस कारण के अलाबा एक और कारण है जो ज्यादा सार्थक और सही है।

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दरअसल, जन्‍माष्‍टमी (Janmashtami)  2 दिन मनाए जाने के पीछे दो तरह की परंपरा और मान्‍यताएं हैं. प्राय: पहले दिन जन्‍माष्‍टमी  स्‍मार्त मनाते हैं और इसके बाद वाले दिन  वैष्‍णव.

स्‍मार्त कौन, वैष्‍णव कौन?

स्‍मृति आदि धर्मग्रंथों को मानने वाले और इसके आधार पर व्रत के नियमों का पालन करने वाले स्‍मार्त कहलाते हैं. दूसरी ओर, विष्‍णु के उपासक या विष्‍णु के अवतारों को मानने वाले वैष्‍णव कहलाते हैं।

स्‍मार्त, अक्‍सर वैष्‍णव से एक दिन पहले जन्‍माष्‍टमी मनाते हैं, इसके पीछे का कारण समझना ज्‍यादा मुश्किल नहीं है. स्‍मार्त कृष्‍ण का जन्‍मोत्‍सव मनाने के लिए कुछ खास योग देखते हैं और उसी के आधार पर व्रत का दिन तय करते हैं. ये योग इस तरह हैं:

  • भाद्रपद मास के कृष्‍णपक्ष की अष्‍टमी तिथि हो
  • चंद्रोदय व्‍यापिनी अष्‍टमी हो
  • रात में रोहिणी नक्षत्र का संयोग बन रहा हो

इस मान्‍यता पर चलने वालों का उदया तिथि पर जोर नहीं होता, इसलिए स्‍मार्त अष्‍टमी या इन संयोगों के आधार पर सप्‍तमी को जन्‍माष्‍टमी मनाते हैं।

जन्माष्टमी (Janmashtami) पूजन मुहूर्त :

इस बार जन्माष्टमी निशीथ काल पूजन का समय: 2 सितंबर मध्यरात्रि 11:57 से 12:48 तक शुभ मुहूर्त है और 3 सितंबर, 2018 को रात्रि 8:04 बजे तक निशीथ काल पूजन हैं।

स्मार्त लोग 2 सितंबर रविवार को कृष्ण जन्माष्टमी व्रत करेंगे। जन्माष्टमी के दिन, श्री कृष्ण पूजा निशीथ समय पर की जाती है। वैदिक समय गणना के अनुसार निशीथ मध्यरात्रि का समय होता है। निशीथ समय पर भक्त लोग श्री बालकृष्ण की पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हैं।

जन्माष्टमी के लिए पूजन और व्रत कैसे करें –

1. उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें।
2. उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएंं।
3. पश्चात सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें।
4. इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें-
5. अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकीजी के लिए ‘सूतिकागृह’ नियत करें।
6. तत्पश्चात भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
7. मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो।
8. इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें।
पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः लेना चाहिए।

कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व  Importance of Krishna Janmashtami

जिस तरह हिन्दू धर्म में हर त्यौहार और हर व्रत का महत्व होता है जन्माष्टमी का विशेष महत्व है। भगवान कृष्ण ने अपनी महान वाणी गीता में कहा है कि जब जब पृथ्वी पर धर्म की हानि होगी और जब-जब असुर और गलत आदतों वाले लोग बढ़ जायेंगे जो अपने आप को भगवान मानने लगेंगे, तब मैं उनके नाश के लिए और धर्म की पुन : स्थापना के लिए इस संसार में अवतार लेता रहूँगा।

सनातन धर्म में चार युग हैं और हर युग में भगवान अवतार लेते ही रहते हैं, कलियुग में भी भगवान कल्कि अवतार धारण करके इस संसार को दुबारा धर्म और कर्तव्य के पथ पर आगे बढ़ायेंगे।

इस त्यौहार का मुख्य महत्व नेक नियत को प्रोत्साहित करने और बुरी इच्छा को हतोत्साहित करने में निहित हैं। एकता के लिए भी कृष्ण जन्माष्टमी मनाया जाता हैं। यह पवित्र त्यौहार लोगों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देता है इसलिए जन्माष्टमी को एकता का प्रतीक माना जाता हैं।

मोहरात्रि

श्रीकृष्ण-जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्तिहटती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इसके सविधि पालन से आज आप अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्यराशिप्राप्त कर लेंगे।

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Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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