The Mystery of Lord Vishnu’s Names – भगवान विष्णु को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें हरि और नारायण उनके प्रमुख नामों में से एक हैं। वैसे तो भगवान विष्णु के अनंत नाम हैं पर इन नामों का रहस्य सचमुच बहुत रोचक है। आईये जानते हैं –
क्या है भगवान के “हरि” नाम का दिलचस्प अर्थ
आपने भगवान विष्णु का ‘हरि’ नाम भी कई बार जाने-अनजाने बोला और सुना होगा। किंतु यहां बताए जा रहे इसी नाम के कुछ रोचक अर्थों से संभवतः अब तक आप भी अनजान होंगे। ये मतलब जानकर आप यह नाम बार-बार बोलने का कोई मौका चूकना नहीं चाहेंगे –
शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु के ‘हरि’ नाम का शाब्दिक मतलब हरण करने या चुरा लेने वाला होता है। कहा गया है कि ‘हरि: हरति पापानि’ जिससे यह साफ है कि हरि पाप या दु:ख हरने वाले देवता है। सरल शब्दों में ‘हरि’ अज्ञान और उससे पैदा होने वाले कलह को हरते या दूर कर देते हैं।
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‘हरि’ नाम को लेकर एक रोचक बात भी बताई गई है, जिसके मुताबिक हरि को ऐश्वर्य और भोग हरने वाला भी माना है। चूंकि भौतिक सुख, वैभव और वासनाएं व्यक्ति को भगवान और भक्ति से दूर करती है। ऐसे में हरि नाम स्मरण से भक्त इन सुखों से दूर हो प्रेम, भक्ति और अंत में भगवान से जुड़ जाता है।
यही वजह है कि ‘हरि’ नाम को धार्मिक और व्यावहारिक रूप से सुख और शांति का महामंत्र माना गया है।
क्यों भगवान विष्णु का नाम है ‘नारायण’?
भगवान विष्णु को “नारायण” भी पुकारा जाता है। सांसारिक जीवन के लिए तो नारायण नाम की महिमा इतनी ज्यादा बताई गई है कि इस नाम का केवल स्मरण भी सारे दुःख व कलह दूर करने वाला बताया गया है।
पौराणिक प्रसंगों में भगवान विष्णु के परम भक्त देवर्षि नारद क नारायण-नारायण भजना भी इस नाम की महिमा उजागर करता है। इसी तरह भगवान विष्णु के कई नाम स्वरूप व शक्तियों के साथ नारायण शब्द जोड़कर ही बोले जाते हैं। जैसे – सत्यनारायण, अनंतनारायण, लक्ष्मीनारायण, शेषनारायण, ध्रुवनारायण आदि।
इस तरह नारायण शब्द की महिंमा तो सभी सुनते और मानते हैं, किंतु कई लोग भगवान विष्णु को नारायण क्यों पुकारा जाता है, नहीं जानते। यहां बताए जा रहे हैं भगवान विष्णु के नारायण नाम होने से जुड़े खास वजहें –
असल में, पौराणिक मान्यता है कि जल, भगवान विष्णु के चरणों से ही पैदा हुआ। गंगा नदी का नाम “विष्णुपादोदकी’ यानी भगवान विष्णु के चरणों से निकली भी इस बात को उजागर करता है।
वहीं पानी को नीर या नार कहा जाता है तो वहीं जगतपालक के रहने की जगह यानी अयन क्षीरसागर यानी जल में ही है। इस तरह नार और अयन शब्द मिलकर नारायण नाम बनता है। यानी जल में रहने वाले या जल के देवता। जल को देवता मानने के पीछे यह भी एक वजह है।
पौराणिक प्रसंगों पर गौर भी करें तो भगवान विष्णु के दशावतारों में पहले तीन अवतारों (मत्स्य, कच्छप व वराह) का संबंध भी किसी न किसी रूप में जल से ही रहा।