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कैसे देखा जाता है हिंदू पंचांग और क्या है इसका महत्व

Hindu Panchang and Hindu Calendar Hindi

Hindu Panchang Hindi and Hindu Calendar –  जिस तरह हम कालचक्र को देखने के लिए अंग्रेजी केलिन्डर का उपयोग करते हैं ठीक उसी तरह से या कहें उससे भी कई गुना बेहतर तरीके से कालचक्र और समय की गणना हिंदू पंचांग (Hindu Panchang)  में मिलती है।

हिंदू पंचांग कई हजार वर्षों पुराना है और भारत के प्राचीन ऋषि-मुनियों द्वारा गहन अध्ययन के बाद इसे बनाया गया था। हिन्दू धर्म के सभी त्यौहार पंचांग के अनुसार ही बनाये जाते हैं, हर तिथि का अपना एक अलग महत्व होता है।

पर, आजकल की आधुनिकता के चलते हम अपनी संस्कृति को लगातार भूलते जा रहे हैं। बहुत से हिंदू अपने पंचांग के बारे में जानते ही नहीं है- ऐसे में बहुत से लोग इसे देखना भी नहीं जानते हैं और ना ही तिथियों और पक्षों के बारे में जानते हैं। आज की इस पोस्ट में हम इसी पर चर्चा करेंगे और आपको पंचांग देखने के आधुनिक तरीके बतायेंगे।

हिन्दू पंचांग ( Panchang) –

आज हम पंचांग देखना सीखेंगे। इसके लिए आपको ज्योतिषी होना आवश्यक नहीं है। घर में पंचांग में सब लिखा रहता है। आप आसानी से सीख जाएंगे। आजकल पंचांग के मोबाइल ऐप्स भी है जैसे की द्रिक (DRIK) पंचांग या हिन्दू कैलेंडर। तो आप मोबाइल में ही पंचांग app डाउनलोड कर लीजिए। और सरलता से देखिए पंचांग !! आइए लगे हाथ आज आपको हिन्दू पंचाग के बारे में बेसिक जानकारी बताते हैं—->

हिन्दू पंचांग मूलतः पाँच अंगों से मिलकर बना है, इसीलिए इसे पंचांग कहा जाता है और वो पाँच अंग है, तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण।

इसकी गणना के आधार पर हिंदू पंचांग की तीन धाराएँ हैं- पहली चंद्र आधारित, दूसरी नक्षत्र आधारित और तीसरी सूर्य आधारित कैलेंडर पद्धति। आज केवल चंद्र आधारित कैलेंडर की ही बात करेंगे।

कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष

एक वर्ष में 12 महीने होते है, और प्रत्येक महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष। कृष्ण पक्ष में चंद्रमा की कलाएं घटती है और शुक्ल पक्ष में चंद्रमा की कलाएं बढ़ती है। दो पक्षो का एक माह और छ माह का एक अयन होता है। और दो अयनों क्रमशः उत्तरायण और दक्षिणायन को मिलाकर एक वर्ष होता है। मकर संक्रांति को सूर्य उत्तरायण हो जाएगा मतलब गर्मियों में पूरे से उत्तर की ओर खिसका रहता है और सर्दियों में थोड़ा दक्षिण की तरफ खिसका रहता है।

#नक्षत्र:-

नक्षत्रों की संख्या 27 है, जो इन दो अयनों की राशियों में भ्रमण करते रहते है। माना जाता है कि ये 27 नक्षत्र असल में दक्ष प्रजापति की पुत्रियां ही है, जो चन्द्रमा से ब्याही गई थी। 27 नक्षत्रों के नाम इस प्रकार है- चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़, उत्तराषाढ़, श्रवण, घनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, रेवती, अश्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, पुष्य, अश्लेषा, मघा, पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी और हस्त। ज्योतिषियों द्वारा एक अन्य ‘अभिजीत’ नक्षत्र भी माना जाता है।

चंद्रवर्ष के अनुसार, जिस भी महीने की पूर्णमासी को चन्द्रमा जिस नक्षत्र में रहता है, उसी नक्षत्र के नाम पर उस महीने का नाम रखा गया है जो इस प्रकार है:- चित्रा नक्षत्र के नाम पर चैत्र मास, विशाखा नक्षत्र के नाम पर वैशाख, ज्येष्ठा के नाम पर ज्येष्ठ, आषाढ़ा के नाम पर आषाढ़, श्रवण के नाम पर श्रावण, भाद्रपद के नाम पर भाद्रपद, अश्विनी के नाम पर अश्विन, कृतिका के नाम पर कार्तिक, पुष्य के नाम पर पौष, मघा के नाम पर माघ और फाल्गुनी के नाम पर फाल्गुन मास।

#वार:-

वार संख्या में 7 होते है। सात वारों के नाम इस प्रकार है:- सोमवार, मंगलवार से रविवार तक। वारों के नामकरण में होरा की भूमिका है, पोस्ट पहले ही लंबी हो चुकी है इसीलिए उसके बारे में किसी अलग पोस्ट में बताऊंगा।

#तिथि:-

तिथियों की संख्या 16 है जो इस प्रकार है:- प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतुर्थी, पंचमी, षष्टी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी, पूर्णिमा और अमावस्या। जैसे की पहले ही ऊपर बताया गया है, एक मास में 15-15 दिनों के दो पक्ष होते हैं। प्रतिपदा से लेकर चतुर्दशी तक की तिथियां दोनों पक्षों में आती हैं। प्रतिपदा से लेकर से लेकर अमावस्या तक कृष्ण पक्ष रहता है, और प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक शुक्ल पक्ष रहता है। प्रत्येक तिथि की अवधि 19 घण्टे से लेकर 24 घण्टे तक की होती है।

#योग:-

सूर्य- चंद्र कि विशेष दूरियों की स्तिथियों को योग कहते हैं। जो संख्या में 27 हैं। इनके नाम इस प्रकार है- विष्कुम्भ, प्रीति, आयुष्यमान, सौभाग्य, शोभन, अतिगण्ड, सुकर्मा, धृति, शूल, गण्ड, वृद्धि, ध्रुव, व्याघात, हर्षण, वज्र, सिद्धि, व्यतिपात, वरीयान, परिघ, शिव, सिद्ध, साध्य, शुभ, शुक्ल, ब्रह्म, इंद्र और वैधृति। 27 योगों में से, विष्कुम्भ, अतिगण्ड, शूल, गण्ड, व्याघात, वज्र, व्यतिपात, परिघ और वैधृति कुल 9 योगों को अशुभ माना गया है तथा सभी प्रकार के शुभ कामो में इनसे बचने की सलाह दी जाती है।

#करण:-

एक तिथि में दो करण होते हैं। एक पूर्वार्ध में और एक उत्तरार्ध में। कुल 11 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज, विष्टि, शकुनि, चतुष्पाद, नाग और किस्तुघ्न। विष्टि करण को ही भद्रा कहा गया है। भद्रा में शुभ कार्य वर्जित माने जाते है।

दोस्तों, आज आपको हिंदू पंचांग के बारे में केवल बेसिक जानकारी देने की कोशिश की है, विस्तृत जानकारी के लिए आपको स्वयं थोड़ा मेहनत करना होगा। पोस्ट बड़े ध्यान से लिखी गई है तदापि भूलवश कोई त्रुटि रह गई हो या कहीँ टाइपिंग मिस्टेक हो तो सुधीजनों से आग्रह है कि इस ओर ध्यानाकर्षण करवाएंगे।

|| जय श्री हरि ||

– साभार  भारत शर्मा भाई जी

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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