आमतौर पर आपको साफ और खुले आसमान में रात को चाँद,सितारे और ग्रह ही नजर आते हैं। हाँ! अगर आपकी थोड़ी किस्मत चमक जाती है तो आपको धूमकेतु और उल्कापिंड भी नजर आ सकते हैं, परंतु इसके अलावा आपको अपनी खुली आँखों से ज्यादा कुछ देखने को नहीं मिलेगा। वैसे यहाँ ये सवाल उठता हे की, क्या वाकई में अंतरिक्ष में हमें सिर्फ प्राकृतिक खगोलीय चीज़ें ही नजर आती है या कोई दूसरी कृत्रिम चीज़ भी? तो, बता दूँ की अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (international space station in hindi) जैसे कई कृत्रिम चीज़ें भी आपको रात को खुले आसमान में नजर आ सकती है।
फिर यहाँ एक और सवाल ये भी बनता हे की, ये अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station In Hindi) आखिर क्या चीज़ है? ज़्यादातर लोगों को इसके बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं होगा परंतु हाँ! उन लोगों ने इसका नाम पहले भी कई बार सुना ही होगा। तो, देखा जाए तो इसके बारे में एक लेख तो बनता ही है। इसलिए आज के इस लेख में आप इसी अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन के बारे में जानेंगे और इससे जुड़ी काफी छोटी-छोटी बातों से लेकर बड़े व रोचक बातों को भी जानेंगे।
आशा करता हूँ की, आप मेरे साथ इस अद्भुत लेख में आखिर तक बने रहेंगे; क्योंकि “ISS” (International Space Station) के बारे में इतने विस्तार से शायद ही आपको कोई दूसरा लेख को पढ़ने को मिलें। खैर बातें बहुत हो गई अब चलिये लेख को आरंभ करते है।
विषय - सूची
आखिर अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन किसे कहते हैं? – What Is International Space Station In Hindi? :-
किसी भी चीज़ के बारे में अगर हमें सटीक और सही जानकारी चाहिए तो, सबसे पहले हमें उसकी मूलभूत चीजों के बारे में जानना बहुत जरूरी है। इसलिए इस लेख के प्रारंभिक हिस्सों में हम “ISS” की मूलभूत चीजों के बारे में जानेंगे। इन मूलभूत चीजों में सबसे पहली चीज़ “ISS” की संज्ञा (Definition) आती है। तो, चलिये हम सबसे पहले उसे ही जान लेते है।
बहुत ही आसान तरीके से कहूँ तो, “अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन एक बहुत विशाल अंतरिक्ष यान (Space Craft) है जो की साल 1998 से पृथ्वी के लगातार चक्कर काट रहा है”। ये अपने आप में एक बहुत ही खास और अत्याधुनिक चीज़ है। वर्तमान समय में इससे ज्यादा विशेष यंत्र अंतरिक्ष में दूसरा कोई नहीं है। इसलिए ये हमारे लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण भी हो जाता है। पृथ्वी के बाहर इसे इंसानों का दूसरा घर भी माना जाता है। शायद भविष्य में आपको इसके अलावा भी कई तरह के स्टेशन देखने को मिल सकते हैं, परंतु “ISS” (international space station in hindi) के जरिये ही हम उन सब स्टेशनों की नींव रखने में कामयाब हो सकेंगे।
नासा (NASA) ने निकट भविष्य में “ISS” के जरिये ही चाँद पर अपना नया स्टेशन बनाने की योजना तैयार की है। तो, आप समझ ही सकते हैं की; ये स्टेशन खगोलीय विज्ञान के विकास के लिए कितना ज्यादा जरूरी है।
क्या “ISS” में भारत भी शामिल है? :-
अब जब हम लोगों ने “ISS” के बारे में बात कर ही रहें हैं तो इस सवाल के बारे में भी चर्चा अवश्य ही कर लेना चाहिए। “अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन” के नाम को सुन कर आपको क्या पता चल रहा हैं? यहीं न की, ये बहुत सारे देशों के सामूहिक सहयोग से बना हुआ है। परंतु एक खास बात ये हैं की, इसमें भारत शामिल नहीं है। भारत के जातीय अंतरिक्ष संस्थान “ISRO” का ये कहना हैं की, भारत खुद अपना अंतरिक्ष स्टेशन बहुत ही जल्द बनाएगा; इसलिए वो “ISS” में हिस्सा नहीं लेगा। वाकई में आप इससे समझ सकते हैं की, ISRO का लक्ष कितना ऊँचा है।
वर्तमान के समय में “ISS” (international space station in hindi) के “16” सदस्य देश हैं और इसे कई देशों के अंतरिक्ष संस्थाएं एक साथ मिल चला रहीं है। अगर हम मुख्य संस्थाओं की बात करें तो ,इसके अंदर “NASA, ROSCOSMOS, JAXA और ESA“ आदि शामिल है। इतने सारे देशों का एक साथ एक-जुट हो कर एक ही स्टेशन को संभालना एक बहुत ही बड़ी बात हैं और वो भी 22 सालों से! मित्रों! एक मजे की बात ये भी हैं की, “ISS” के अंदर जीतने भी उपकरण लगे हुए हैं वो सब अलग-अलग देशों में बने हुए हैं। वैसे आमतौर पर ज़्यादातर उपकरण रुषि और अमेरिकी मूल के होते है।
“ISS” की कुछ खूबियां और आखिर ये कितना पुराना है? :-
“ISS” के अंदर कई वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए स्वतंत्र रूप से प्रयोग शाला भी मौजूद है। इस स्टेशन को कई सालों में धीरे-धीरे जोड़ कर बनाया गया हैं, इसलिए जब भी आप “ISS” के फोटो को भी देखते हैं तो आपको उसमें इसके कई हिस्से भी दिखाई पड़ते है। वर्तमान के समय में “ISS” पृथ्वी के निचली कक्षा में रह कर इसकी परिक्रमा कर रहा है। आंकड़ों के मुताबिक “ISS” पृथ्वी के सतह से औसतन 402 km ऊँचाई पर रहता है।
साल 1998 में “ISS” (international space station in hindi) का सबसे पहला टुकड़ा रुष के जरिये अंतरिक्ष में भेजा गया था। 1998 के बाद अगले दो सालों तक इसमें और कई सारे टुकड़ों को जोड़ा गया और साल 2000 में ही इसे इंसानों के लिए रहने लायक बनाया जा सका।
स्टेशन को कैसे सबसे पहले अंतरिक्ष में छोड़ा गया था :-
2 नवम्बर 2000 ये वो दिन था जब “ISS” का सबसे पहला क्रू यहाँ पर रहने के लिए आया था और तब से लेकर आज तक यहाँ कई लोग आ कर रह चूकें है। गौर करने वाली बात ये भी हैं की, साल 2000 के बाद भी “ISS” में और कई सारे हिस्सों को जोड़े गए हैं। नासा और दूसरे अंतरिक्ष संस्थाओं ने इसे साल 2011 तक धीरे-धीरे बनाया है।
अब तक (जब मेँ ये लेख लिख रहा हूँ) “ISS” में लगभग 19 देशों के 240 लोग रह चुके हैं। आने वाले समय में इसके अंदर और भी लोगों का रहना हो सकता हैं, क्योंकि जिस हिसाब से इसे विकसित किया गया हैं उसको देख कर इसकी पूरी-पूरी संभावनाएं दिख रहीं है। “ISS” विश्व के सबसे महंगे अंतरिक्ष मिशनों में से भी एक हैं, कहा जाता हैं की इसको बनाने के लिए लगभग 11 लाख करोड़ रूपये लगें हैं और अभी तक यहाँ पर 2,800 से भी ज्यादा प्रयोग हो चूकें है।
“ISS” आखिर कितना बड़ा हैं ? :-
दूसरा सबसे बड़ा सवाल “ISS” के बारे में ये पूछा जाता है की, “आखिर ये कितना बड़ा है?” ये सवाल जितना दिखने में छोटा लग रहा हैं इसका उत्तर उतना ही बड़ा है। इसलिए मैंने इस सवाल को अलग ही तरीके से आप लोगों के लिए रखा हुआ है। तो, “ISS” जो है वो एक फूट बल के मैदान जितना बड़ा है। इसके अंदर कई देशों के अलग-अलग चैंबर मौजूद हैं। वर्तमान के समय में इसके अंदर मुख्य प्रयोगशाला को छोड़ कर अमेरिका, रुष, जापान और यूरोप के देशों के अपने-अपने प्रयोगशाला भी हैं।
इसके अलावा अगर मेँ यहाँ पर मौजूद अलग-अलग प्रकार के कक्ष की बात करूँ तो, “ISS” के अंदर 5 शयन कक्ष, दो स्नान कक्ष, एक व्यायाम कक्ष और एक बड़ी खिड़की (Bay Window) मौजूद है। तो, आप एक तरह से कह सकते हैं की ये एक बड़े घर की तरह है। वैसे “ISS” के अंदर एक साथ 6 लोग ही रह सकते है, परंतु भविष्य में शायद इससे भी ज्यादा लोग रहने में सक्षम हो। “ISS” (international space station in hindi) का कुल वजन लगभग 45,000 kg तक है, जिस कारण इसे बनाने में काफी ज्यादा अर्थ की जरूरत पड़ी।
“ISS” के गज़ब के उपकरणों के बारे में सुनकर आप हैरान ही हो जाएंगे! :-
जो अंतरिक्ष यान पिछले 22 सालों से लगातार पृथ्वी के ऊपर इंसानों के रहने लायक घर बना हुआ हैं, उसके बारे में आप अंदाजा लगा ही सकते हैं की आखिर ये कितना आधुनिक होगा। अगर नहीं तो चिंता मत करिए क्योंकि मेँ यहाँ पर “ISS” (international space station in hindi) के इन्हीं अत्याधुनिक उपकरणों के बारे में बताऊंगा।
“ISS” जो हैं वो कई सारे हिस्सों को जोड़ कर बनाया गया हैं, जिनको की “Modules” कहा जाता है। ये मॉड्यूल एक-दूसरे से “Node” के जरिये जुड़े हुए होते है। “ISS” का जो सबसे पहला मॉड्यूल हैं वो “ISS” के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इसी हिस्से में ही ज़्यादातर “Control Panels” मौजूद होते हैं जिससे “ISS” को नियंत्रण किया जाता है। इसके अलावा इसी हिस्से में ही अंतरिक्ष यात्री रहते हैं। प्रथम मॉड्यूल के बाद “ISS” के अंदर जो दूसरा मॉड्यूल आता है उसमें तरह-तरह के प्रयोगशालाएँ मौजूद हैं।
इसके कुछ खास उपकरण :-
“ISS” के दोनों तरफ बाहर की और कई सारे “Solar Arrays” लगे हुए हैं। ये ऐरेस ठीक सोलर प्लेट के तरह ही काम करते हैं, इनका मुख्य काम “सोलर एनर्जि” को संगृहीत करना होता है; जिससे “ISS” के अंदर कभी भी ऊर्जा की कमी नहीं होती है। बता दूँ की, इसी से ही स्टेशन के अंदर विद्युत पहुंचाया जाता है। अगर आप स्टेशन को और अच्छे से देखेंगे तो पता चलेगा की, इसके चारों तरफ कई “Robotic Arms” भी लगे हुए हैं। ये “Robotics Arms” स्टेशन (international space station in hindi) को और भी ज्यादा विकसित तथा बनाने में इस्तेमाल किए जाते हैं। इसके अलावा इनको स्टेशन के मरम्मत के कामों में भी उपयोग किया जाता हैं।
कई दफा “Robotics Arms” के जरिये स्टेशन (international space station in hindi) के बाहर प्रयोगों को भी अंजाम दिया जाता हैं। इसके साथ ही इनको अंतरिक्ष यात्रियों के “Space Walk” में भी मदद करने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
“ISS” आखिर कैसे काम करता है? :-
“ISS” के ऊपर आधारित इस लेख में (International Space Station In Hindi) हम अब इसके कार्य-प्रणाली के बारे में थोड़ा बात अवश्य ही करेंगे। इसमें मेँ आपको बताने का प्रयास करूंगा की, आखिर ये किस तरीके से काम करता हैं? वैसे ध्यान में रखने वाली बात ये हैं की, यहाँ पर मैंने सिर्फ मूलभूत कार्य प्रणालियों के बारे में जिक्र किया हैं तो ये आप सभी को आसानी से समझ में भी आ जाएगा।
तो, अगर हम “ISS” के मूलभूत कार्य प्रणाली के बारे में बात करें तो इसके अंदर हमें मूल रूप से दो चीजों को समझना होगा। पहला है “Docking Process” और दूसरा है “Undocking Process”। मित्रों! इन दोनों की प्रक्रियाओं के लिए “ISS” के अंदर “Air Locks” लगे हुए हैं, जो की एक तरह से दरवाजे का भी काम करते है। इसी से ही डोकिंग और अन-डोकिंग की प्रक्रिया की जाती हैं तथा इसके माध्यम से ही अंतरिक्ष यात्री स्टेशन के बाहर जा पाते है।
ऐसे होती हैं ये प्रक्रिया :- International space station in hindi
“Docking” की प्रक्रिया “Docking Section/Module” में किया जाता है। इस प्रक्रिया में बाहर से आए नए अंतरिक्ष यान को स्टेशन के साथ जोड़ा जाता। ये प्रक्रिया काफी महत्वपूर्ण होता हैं, क्योंकि इसी प्रक्रिया से ही नया क्रू स्टेशन के अंदर दाखिल होता हैं और साथ में जरूरत के समग्रियों को भी इसी के माध्यम से ही स्टेशन तक पहुंचाया जाता है। वैसे अभी तक रुषि मूल के “Soyuz” रॉकेट को इस प्रक्रिया के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है।
मित्रों! बता दूँ की “Un-docking” की प्रक्रिया “Docking” के प्रक्रिया से पूरा उलटा होता है। इस प्रक्रिया के जरिये स्टेशन (international space station in hindi) से अंतरिक्ष यात्रियों को घर भेजा जाता है। इसलिए ये प्रक्रिया भी काफी ज्यादा खास है। दोनों ही प्रक्रियाओं के लिए कुशल अंतरिक्ष यात्रियों का होना जरूरी है जो की बिना किसी खतरे के इसे निभा पाएँ।
क्या हम “ISS” को आसमान में देख सकते हैं? :-
“ISS” (international space station in hindi) को देखना संभव हैं। जी हाँ! मित्रों आप लोग “ISS” को अपने आँखों से देख सकते हैं। रात को खुले आसमान में स्टेशन को बहुत ही आसानी से देखा जा सकता हैं बशर्ते उस दिन “ISS” आपके देश के ऊपर से हो कर गुजर रहा हो। लगभग 27,542 km/h के रफ्तार से पृथ्वी के चक्कर काट रहा ये यान रात को खुले आसमान में चाँद के बाद दूसरी सबसे ज्यादा चमकीली चीज़ है।
वैसे इस बात का हमेशा ध्यान रखें की, हर दिन “ISS” (ISS in hindi) का कक्षा बदलता रहता हैं, इसलिए इसके सटीक कक्षा के बारे में भी ध्यान देना बहुत ही जरूरी है। “ISS” पृथ्वी से 51.6 डिग्री का कोण बना कर चलता हैं, जिसके तहत भारत से “ISS” को बड़े ही अच्छे तरीके से देखा जा सकता है। भारत के नई दिल्ली, चंडीगढ़, जयपुर, वडोदरा और राजकोट जैसे सहारों से इसे देखा जा सकता है।
और एक खास बात नासा ने स्वतंत्र रूप से “ISS” के बारे में वेबसाइट बना कर रखा हैं, जिसके अंदर आपको स्टेशन (international space station in hindi) के लाइव स्थिति और ये किन-किन जगहों से देखा जा सकता हैं आदि कई विशेष जानकारी देखने को मिलेंगी। तो, अगर आप उन जानकारियों को देखना चाहते हैं तो यहाँ क्लिक अवश्य ही करें।
“ISS” हमारे लिए आखिर क्यों जरूरी हैं? – Why Is The ISS Important? :-
हमने ऊपर “ISS” (international Space Station In Hindi) के बारे में काफी कुछ बात कर ली, परंतु अभी भी एक जरूरी बात करनी बाकी है। तो, वो बात आखिर क्या हैं? मित्रों! ये बात हैं, “आखिर क्यों हमारे लिए “ISS” जरूरी है?” क्या कभी अपने इसके बारे में सोचा हैं। हालांकि! इसके बारे में कुछ न कुछ आप लोगों को अवश्य ही पता होगा; परंतु में यहाँ पर आप लोगों को “ISS” के उपयोगिता और महत्व के बारे में थोड़ा विस्तार से बताऊंगा।
“ISS” के माध्यम से हमें ऐसे प्रयोगों को अंजाम देने का मौका मिल रहा हैं जो की कभी पृथ्वी पर संभव ही नहीं था। इससे हमें अंतरिक्ष का इंसानी शरीर पर पड़ रहें प्रभावों के बारे में भी जानने को मिलता है। नासा ने “ISS” के जरिये ये आखिर कार जान लिया हैं की, आखिर कैसे अंतरिक्ष में लंबे समय तक एक अंतरिक्ष यान को कार्यक्षम रखा जा सकता है। इसके बाद नासा के जो आने वाले मिशन हैं उनको भी इस स्टेशन से काफी ज्यादा मदद मिलने वाला हैं, क्योंकि उन मिशनों में इंसान अंतरिक्ष में काफी दूर तक जाने वाला है।
“ISS” को इन क्षेत्रों में विकास के लिए उपयोग में लिया जा रहा है! :-
मित्रों! हम यहाँ पर “ISS” (international space station in hindi) के उपयोगिता के बारे में जानेंगे, तो इसे थोड़ा ध्यान से पढ़िएगा।
- “ISS” के जरिये पृथ्वी के निचली कक्षा में कई कंपनियों को अपने-अपने प्रयोगों को अंजाम देने का मौका मिला है। इससे इस क्षेत्र में एक काफी बड़े बाजार का भी रास्ता खुल गया है, जिससे कई तरह के आर्थिक लाभ भी शामिल है।
- नासा ने “ISS” में इस्तेमाल होने वाले पानी के शुद्धिकरण प्रक्रिया को दुनिया के कई इलाकों में उपयोग में लिया हैं। जिससे कई सारे लोगों को पीने का पानी मिल पाया।
- “ISS” के अंदर जो “माइक्रोग्रेविटी” का वातावरण मिलता हैं, उसमें कई तरह के प्रोटीन की संरचनाओं को आसानी से समझा जा सकता है। इसलिए स्टेशन के अंदर प्रोटीन से जुड़ी भी कई प्रकार के प्रयोग होते है।
- “ISS” (international space station in hindi) के अंदर ही ऐसे तकनीक को विकसित किया गया हैं की, जिससे पहले ठीक न होने वाले “ट्यूमर” को भी आज ठीक किया जाने लग रहा है।
- नासा ने जब अपने अंतरिक्ष यात्रियों को “ISS” के अंदर एक खास तरह के व्यायाम और खाना खाने तरीके का सुझाव दिया तो, उनके हड्डियों में काफी ज्यादा मजबूती आने लगी। बाद में इसी तरीके को पृथ्वी के मरीजों को भी दिया गया और उत्साहजनक परिणाम भी देखने को मिला।
- ऊपर आसमान से “ISS” के जरिये हमें आने वाले प्राकृतिक आपदाओं के बारे में बेहतर जानकारी मिलने लगीं। इससे हर वर्ष कई सारे लोगों की जान भी बच पा रही है।
- “ISS” के अंदर वैज्ञानिकों को कई सारे खतरनाक बीमारियों की वैक्सीन बनाने में काफी ज्यादा मदद मिलता है।
“ISS” का भविष्य आखिर कैसा हो सकता है? – Future Of “ISS” :-
भविष्य कई सारे अनिश्चितताओं से भरा हुआ है, इसलिए “ISS” (international space station in hindi) के बारे में अभी से सटीक रूप से कह पाना मुश्किल है। परंतु फिर भी मेँ यहाँ पर, अपने अनुमान से आप लोगों को इसके भविष्य के बारे में बताने का अवश्य ही प्रयत्न कर सकता हूँ। तो, चलिये मित्रों! एक नजर “ISS” के भविष्य के ऊपर भी डाल लेते हैं।
साल 2025 तक “ISS” को एक बड़े ही पैमाने के आधार पर बनाने में नासा अभी से ही सज्ज दिख रहा है। उसने “ISS” में स्थित अपने मॉड्यूल में कई सारे दूसरे नए-नए “Prototype Module” को जोड़ना शुरू कर दिया है। इससे ये बात साफ हैं की, आने वाले समय में हमें “ISS” अंतरिक्ष में बने एक “Factory” के जैसा भी नजर आ सकता है। हर साल “ISS” को सिर्फ चलाने के लिए ही “2 लाख 95 हजार करोड़” रुपये लग जाते हैं। इसलिए नासा कुछ ऐसे तकनीकों को विकास कर रहा हैं जिससे की ये लागत कम आए।
मित्रों! आने वाले 10 सालों तक “ISS” पृथ्वी के निचली कक्षा में अपना महत्वपूर्ण योगदान देता रहेगा। परंतु इसके बाद नासा ने इसको कार्य भार से मुक्त करने का सोच रखा है। नासा के मुताबिक भविष्य में निजी कंपनियों के जरिये कई अत्याधुनिक स्पेस स्टेशन को बनाने का कार्यक्रम हैं। जिससे खगोलीय विज्ञान में भी एक क्रान्ति आएगी। इसी कारण से “ISS” को ज्यादा से ज्यादा 2028 से लेकर 2030 तक इस्तेमाल किया जाएगा। इसी बीच इसकी जगह अन्य कई स्पेस स्टेशन (iss in hindi) ले लेंगी, जो की आगे चल कर हमें अन्य कई सारे मिशनों में मदद करेंगी।
ऐसे हो सकता “ISS” का अंत! :-
हर एक चीज़ इस धरती पर क्षण स्थायी है। “ISS” (iss in hindi) अपने अंतिम दिनों में अपने कई सारे उपकरणों को खो देगा। बाद में वैज्ञानिक इसे अपने आखिरी परिक्रमा के लिए तैयार करेंगे और अंत में इसे “प्रशांत महासागर” के तलहटी में डुबो देंगे। बता दूँ की, जहां इसे डुबोया जाएगा उस जगह का नाम “Point Nemo” है। ये जगह पृथ्वी की सबसे सुदूर इलाका हैं, यहाँ पर इंसानों चिन्ह भी नहीं है।
बता दूँ की, इस जगह को “अंतरिक्ष यानों” को डुबोने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। साल 2001 में यहाँ पर सोवियत संघ के स्पेस स्टेशन “Mir” को डुबोया गया था और ठीक इसी तरीके से ही “ISS” को भी डुबोया जाएगा। खैर स्टेशन (ISS) ने अपने लंबे समय के सेवा में इंसानों के लिए काफी कुछ किया हैं, जिसको की कभी भी भुलाया नहीं जा सकता। परंतु! खुशी की बात ये होगी की 2030 में जब “ISS” अंतरिक्ष से विदा ले रहा होगा; तब अंतरिक्ष में हमें लगभग 5 नए स्टेशनों (international space station in hindi) को देखने को मिल सकता है जो की अगले पीढ़ी की होंगी।
आने वाले समय के लिए “ISS” ने जो छाप हमारे लिए छोड़ा है वो वाकई में किसी अनमोल खजाने से कम नहीं है।