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Wolf–Rayet Star In Hindi – क्या होते हैं वुल्फ़-रेयेट तारे? क्यों हैं सबसे खतरनाक?

इन तारों की सबसे विशेष बात ये है कि हर कोई इनसे डरता है!

कल्पना कीजिए एक ऐसा तारा जो इतना चमकदार हो कि आसपास के तारों को फीका सा कर दे! इतना गर्म हो कि उसकी चमक लाखों सूरजों के बराबर हो! और इतना बड़ा हो कि अगर हमारी धरती को उसके अंदर रख दें तो भी जगह बच जाए! ये कोई काल्पनिक बात नहीं है, दोस्तों! ये हैं वुल्फ़-रेयेट तारे (Wolf–Rayet Star In Hindi) ! ये तारे ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमयी और खास तारों में से एक हैं। इनके जन्म के बारे में आज भी कोई थ्योरी वैज्ञानिकों के पास नहीं है, ये दूसरे सभी तारों से एकदम अलग हैं, तो आइये इनके बारे में विस्तार से जानते हैं।

कैसे हुई इनकी खोज

साल 1867 में, पेरिस ऑब्जर्वेटरी में लगे टेलीस्कोप की मदद से दो खगोलविद, चार्ल्स वूल्फ और जॉर्जेस रेयेट (Charles Wolf and Georges Rayet), लगातार आकाश में तारों को देख रहे थे। इस बार उन्होंने सिग्नस तारामंडल (Cygnus Constellation) पर ध्यान केंद्रित किया और यहां तीन अत्यंत विचित्र तारे (Wolf–Rayet Star In Hindi) उन्हें टेलीस्कोप में दिखाई दिए। जब उन्होंने इन तारों से आ रही रोशनी का स्पेक्ट्रम देखा, तो उन्हें एक अजीब बात पता चली।

दोस्तों, तारों की लाइट से ही हम यह बता सकते हैं कि आखिर वह तारा कितना बड़ा है, कितना भारी है और उसके अंदर कौन से तत्व मौजूद हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब लाइट टेलीस्कोप पर प्राप्त होती है, तो उसमें लगा स्पेक्ट्रोमीटर उस लाइट को कई रंगों में विभाजित कर देता है, ठीक एक इंद्रधनुष की तरह।

तारे का स्पैक्ट्रम - Spectrum Of A Star
तारे का स्पैक्ट्रम ( Spectrum of the Star Altair) स्पेक्ट्रम तारों की रोशनी के विभिन्न रंगों की चमक में ऐसे विवरण दिखाता है जो नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते हैं। Credit : NASA, ESA, Leah Hustak (STScI)

इस लाइट में कई काली रेखाएँ दिखाई देती हैं जो कि तत्वों के फिंगरप्रिंट का काम करती हैं। इसी की मदद से वैज्ञानिक तारों में किस तत्व की कितनी मात्रा है, इसका सटीक मान निकाल लेते हैं। हमारे सूर्य में 70 प्रतिशत हाइड्रोजन और 28 प्रतिशत हीलियम है, यह बात हमने तारों की लाइट से ही जानी है। अब इसी तरीके से ब्रह्मांड में किसी भी तारे के तत्वों को जान सकते हैं।

विचित्र स्पेक्ट्रम

जब पेरिस ऑब्जर्वेटरी से इन तीन विचित्र तारों को लगातार देखा गया, तो वैज्ञानिकों ने पाया कि ये तारे सूर्य से एकदम अलग तरह का स्पेक्ट्रम बना रहे हैं। जहां सूर्य के स्पेक्ट्रम में काली रेखाएँ देखी जा सकती हैं, वहीं इन तारों में ऐसी कोई काली रेखाएँ नहीं थीं, बल्कि काफी चमकीली रेखाएँ थीं जो कि एक गहरे पृष्ठभूमि (Background) में दिखाई दे रही थीं।

इन रेखाओं को उत्सर्जन रेखाएँ (Emission Lines) कहा जाता है, जबकि काली रेखाओं को अवशोषण रेखाएँ (Absorption Lines)। ब्रह्मांड में ज्यादातर तारे अपने स्पेक्ट्रम में अवशोषण रेखाएँ ही दिखाते हैं, परंतु वूल्फ और रेयेट द्वारा खोजे गए इन तारों (Wolf–Rayet Stars In Hindi) में बेहद चमकीली उत्सर्जन रेखाएँ थीं जो केवल उन्हीं तारों में बनती हैं जो कि बेहद गर्म और चमकीले होते हैं, ये सूर्य से भी विशाल होते हैं और इनका तापमान लाखों डिग्री सेल्सियस में होता है। इन दोनों खगोलविदों के नाम पर ही इन तारों को वुल्फ़-रेयेट तारा (Wolf–Rayet Star In Hindi) कहा जाता है।

आइए अब पहली बार इनके बेहद पास जाकर इनके विशाल आकार और अत्यधिक गर्मी को देखते हैं…”

WR 2 सबसे छोटा वुल्फ़-रेयेट तारा (Wolf–Rayet Star In Hindi)

पृथ्वी से 8 हजार प्रकाश-वर्ष दूर कैसिओपिया नक्षत्रमंडल (Cassiopeia Constellation) में एक ऐसा तारा मौजूद है जो अपनी चमक से लाखों सूर्यों को भी फीका कर देता है। वैज्ञानिक इसे WR 2 के नाम से जानते हैं, जहाँ WR का अर्थ है वुल्फ़-रेयेट तारा। यह तारा आकार में सूर्य से 10 प्रतिशत छोटा है पर सूर्य से 16 गुना भारी है। बात करें इसकी सतह के तापमान की तो यह सूर्य से 26 गुना अधिक है, जहाँ सूर्य का सतह का तापमान 5500 °C है, वहीं यह तारा 1,40,000 °C के तापमान पर दहकता है।

इसकी दहक के कारण ही यह सूर्य से लगभग 2,82,000 गुना चमकीला (Luminous) है। इस तारे से भयानक विकिरण (Radiation) निकलती हैं, जो किसी भी चीज़ को आर-पार जा सकती हैं। आप अपने साधारण अंतरिक्ष यान में बैठकर इससे नहीं बच पाओगे, इसके लिए आपको विशेष ढाल की आवश्यकता होगी जो इसकी खतरनाक एक्स-रे और गामा किरणों से आपको बचा सके।

पर यह वुल्फ़-रेयेट तारों (Wolf–Rayet Star In Hindi) की श्रेणी का सबसे छोटा तारा है जो कि आकार में सूर्य से छोटा होने के बाद भी उससे कई गुना भारी है। सोचिए जब इतना छोटा तारा भी सूर्य को भी टक्कर देता है और उससे भयानक विकिरण निकलता है तो इस श्रेणी का सबसे बड़ा तारा कैसा होगा, उसमें कितना द्रव्यमान (Mass) होगा और वह सूर्य से कितना अधिक चमकीला होगा और अगर वह सौरमंडल में गलती से आ जाए तो क्या होगा, क्या हम उससे बच पाएंगे?

जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की वूल्फ-रेयेट तारा WR 124 और उसके आसपास के नेबुला M1-67 की तस्वीर।
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की वूल्फ-रेयेट तारा WR 124 और उसके आसपास के नेबुला M1-67 की तस्वीर। NIRCam और MIRI दोनों इमेज का समावेश से तैयार की गई इमेज। ब्रह्मांड में ये तारे ऐसे ही दिखाई देते हैं। Credit – NASA, ESA, CSA, STScI, Webb ERO Production Team

ब्रह्मांड का सबसे भारी और ब्राइट वुल्फ़-रेयेट तारा R136a1

पृथ्वी से 1,63,000 प्रकाश-वर्ष दूर लार्ज मैगेलैनिक क्लाउड है जो कि हमारी मिल्की वे आकाशगंगा की एक उपग्रह आकाशगंगा है, यानी इसके चक्कर लगाती है। इस बौनी आकाशगंगा में ब्रह्मांड का सबसे बड़ा नेबुला (Tarantula Nebula) है जिसका आकार 1800 प्रकाश-वर्ष में फैला हुआ है।

इसी नेबुला के केंद्र में है ब्रह्मांड का सबसे भारी और चमकीला तारा जो अपने आकार और द्रव्यमान (Mass) में ब्लैक होल्स तक को पीछे छोड़ देता है। R136a1 नाम का यह वूल्फ-रेयेट तारा (Wolf–Rayet Star In Hindi) सूर्य से 200 गुना भारी है, और इसका व्यास 43 गुना अधिक है। अगर इसकी आयतन की बात करें तो यह अपने अंदर सूर्य जैसे करीब 80 हजार तारों को समा सकता है।

R136a1 की सबसे शार्प इमेज More details Sharpest image ever of R136a1
R136a1 की सबसे शार्प छबि – Sharpest Image Of R136a1 (ये तारा लार्ज मैगनेकिल क्लाउड में टेरूंटला नेब्युला के केंद्र में है) Credit – International Gemini Observatory/NOIRLab/NSF/AURA

करीब 6 करोड़ किमी में फैला यह तारा अगर अपने सौरमंडल में रख दिया जाए तो यह सूर्य से लेकर बुध ग्रह यानी मर्करी तक को अपने में समा लेगा और हर चार सेकंड में इतनी ऊर्जा विकिरित करेगा जितनी हमारा सूर्य एक साल में भी नहीं कर पाता है।

सौरमंडल में रहते हुए हमें यह काफी बड़ा दिखाई देगा। अपने विशाल आकार के कारण यह तारा हमसे केवल 9 करोड़ किमी दूर ही रह जाएगा और यहां पर सूर्य से भी 1 लाख 64 हजार गुना चमकीला दिखाई देगा, इसे देखते ही हमारी आँखें शायद ही बचें। इस तरह के विशाल वुल्फ़-रेयेट तारे (Wolf–Rayet Star In Hindi) बेहद गर्म तारों की श्रेणी में आते हैं, जबकि हमारा सूर्य एक मध्यम पीला बौना तारा है जो कि G-टाइप तारे की श्रेणी में आता है।

सूर्य से लाखों गुना चमकीला

R136a1 की सूर्य से कोई तुलना नहीं है, यह सूर्य से 47 लाख गुना चमकीला तारा है। अगर यह तारा हमारे पड़ोसी तारे प्रॉक्सिमा सेंटौरी के निकट आ जाए तो यह हमें 4 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर इतना बड़ा दिखाई देगा, जितना हमें अपना चांद दिखाई देता है, यानी ऐसा लगेगा कि हमारे आसमान में दो चांद निकल आए हों।

पर इस पर चंद्रमा की तरह घटने और बढ़ने का कोई फर्क नहीं होगा, लगातार यह हमें लाखों साल तक चंद्रमा जितना विशाल दिखाई देता रहेगा। इसकी (Wolf–Rayet Stars In Hindi) चमक के कारण हम पृथ्वी से कई तारों को नहीं देख पाएंगे।

बेहद जल्दी खत्म हो रहा है ये तारा – Wolf–Rayet Stars In Hindi

पर वुल्फ़-रेयेट तारे (Wolf–Rayet Stars In Hindi) जितने अधिक विशाल और चमकीले होते हैं उतना ही उनका जीवन कम होता है। लगातार अपना द्रव्यमान अंतरिक्ष में छोड़ने के कारण ये तारे धीरे-धीरे खत्म होने की कगार पर आ जाते हैं। तारे का भयानक सतह का तापमान और उससे निकलते विकिरण के कारण यहां पर तारकीय हवाएँ बहुत तेज बहती हैं।

इस हवा में ज्यादातर प्रोटॉन और इलेक्ट्रॉन होते हैं जो कि तारे के वायुमंडल से बाहर भेज दिए जाते हैं। वूल्फ-रेयेट (Wolf–Rayet Star In Hindi) तारा यानी R136a1 में यह सौर हवाएँ (Stellar Winds) 2600 किमी प्रति सेकंड की गति से बहती हैं। इतनी तेज बहने के कारण इसमें अत्यधिक द्रव्यमान का नुकसान होता है।

इस वजह से यह तारा हर साल 3 अरब अरब किलो वजन खो देता है। इतना द्रव्यमान को खोने में सूर्य को कई करोड़ों साल लग जाएँगे, जितना द्रव्यमान यह तारा केवल 1 साल में ही अंतरिक्ष में छोड़ देता है।

सूपरनोवा धमाके के साथ अंत

इनका अंत बेहद ही हैरान करने वाला होता है। जब ये तारे अपनी अंतिम अवस्था में पहुंचते हैं तो इनमें सभी तत्व फ्युज (Fusion) के बाद अंततः लोहा (Iron) बचता है जो फिर संलयन (Fusion) नहीं करता और तारे का केंद्र गुरुत्वाकर्षण के कारण संकुचित (Compress) होकर एक महाशक्तिशाली सुपरनोवा विस्फोट के साथ ब्लैक होल या न्यूट्रॉन तारे में बदल जाता है।

कुछ लाखों साल बाद जब R136a1 अपनी अंतिम अवस्था पर आएगा तो उस समय इसकी चमक सूर्य से भी अरबों गुना बढ़ जाएगी। आसमान में यह सबसे चमकीले पिंडों में से एक बन जाएगा। उसके बाद विस्फोट होते ही यह उतनी ऊर्जा 1 सेकंड में ही अंतरिक्ष में छोड़ देगा जो कि हमारा सूर्य अपनी पूरे 10 अरब साल के जीवनकाल में नहीं कर पाएगा। यह ऊर्जा न्यूट्रिनो और गामा किरणों के रूप में निकलेगी जो परमाणु तक को भेदकर अपने सामने आ रही हर चीज़ को प्रभावित करेगी।

तारे का स्पैक्ट्रम - Spectrum Of A Star
सूपरनोवा धमाका

100 लाइट ईयर तक महाविनाश!

आप कल्पना नहीं कर सकते कि इसके 100 प्रकाश-वर्ष तक की दूरी में अगर कोई ग्रह या एलियन सभ्यता होगी तो वह बिल्कुल नहीं बच पाएगी। खतरनाक गामा किरणों के कारण ग्रहों का वायुमंडल तक खत्म हो जाएगा, जितने एलियन उसमें होंगे सभी के डीएनए बदल जाएंगे जिससे शायद पूरे ग्रह पर जीवन ही समाप्त हो जाए। यह सुपरनोवा यहां तक भी नहीं रुकेगा, इसका बचा हुआ पदार्थ यानी सुपरनोवा अवशेष अंतरिक्ष में भटककर कई तारों के जन्म और ग्रहों को बनने नहीं देगा।

पर हमें इससे (Wolf–Rayet Stars In Hindi) कोई खतरा नहीं है। यह हमारी आकाशगंगा में नहीं है और हमसे लाखों प्रकाश-वर्ष दूर है, इसलिए जब यह फटेगा तो हमारी भविष्य की पीढ़ी इसके शानदार सुपरनोवा विस्फोट को कई हजारों सालों तक देख पाएगी।

पर अगर आप यह सोच रहे हैं कि इतने विशाल वूल्फ-रेयेट तारे (Wolf–Rayet Star In Hindi) हमारी आकाशगंगा में नहीं हैं और हमें इनसे कोई खतरा नहीं है तो अभी आप जल्दी में हैं।

पृथ्वी के सबसे पास है ये वुल्फ़-रेयेट तारा (Wolf–Rayet Star)

पृथ्वी से 8,400 प्रकाश-वर्ष दूर WR 104 ट्रिपल स्टार सिस्टम जिसमें तीन तारे हैं। इसमें मौजूद प्राथमिक यानी मुख्य तारा एक वुल्फ़-रेयेट तारा है और दूसरा तारा एक O-टाइप तारा है जो कि वुल्फ़-रेयेट तारे (Wolf–Rayet Star In Hindi) की तरह ही लगातार अपना द्रव्यमान अंतरिक्ष में छोड़ रहा है। तीसरे तारे के बारे में वैज्ञानिकों को बेहद कम जानकारी है।

वैज्ञानिक मानते हैं कि WR 104 जल्द ही खत्म होने की कगार पर है और इसमें मौजूद दोनों तारे सुपरनोवा विस्फोट करके खत्म होंगे। अगर ऐसा हुआ तो पृथ्वी पर जीवन के खत्म होने की पूरी संभावना है। पर यह कैसे होगा और कब होगा, आइए जानते हैं।

WR 104

WR 104 और इसका साथी तारा मिलकर 30 सूर्यों जितने भारी हैं। अगर ये एक साथ फटे तो एक भयानक सुपरनोवा विस्फोट होगा। बेहद पास होने के कारण यह सुपरनोवा हमें पृथ्वी से एकदम स्पष्ट दिखाई देगा और हमारे आसमान में चंद्रमा की तरह उस समय दूसरा चांद निकल आएगा। पर इससे असली खतरा गामा किरणों और इसमें से निकलने वाले जेट से है।

अगर सौरमंडल की ओर ये (Wolf–Rayet Star In Hindi) प्रकाश की गति से आए तो फटने के 8 हजार साल बाद ही पृथ्वी और दूसरे ग्रहों को खतरनाक विकिरण का सामना करना पड़ेगा। अगर विकिरण यानी गामा किरणें सीधे हमसे टकराई तो वायुमंडल और ओजोन परत के तबाह होने की संभावना है जिससे पूरी पृथ्वी पर जीवन खत्म हो सकता है।

हालांकि वैज्ञानिक मानते हैं कि इस तारे की जो दूरी है, उस वजह से हमें काफी कम विकिरण ही झेलना होगा जिससे हम बच भी सकते हैं। अगर विकिरण सीधे पृथ्वी पर नहीं हुआ और WR 104 (Wolf–Rayet Star In Hindi) में से कोई एक तारा पहले फटा तो हमें इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा।

निष्कर्ष

इस लेख में हमने वुल्फ़-रेयेट तारों (Wolf–Rayet Star In Hindi) के बारे में विस्तार से चर्चा की है। हमने समझा है कि कैसे ये तारे हाइड्रोजन की बेहद कम मात्रा होने के कारण अपने ईंधन को बहुत तेजी से खत्म करते हैं और जल्दी ही नष्ट हो जाते हैं। इनका जीवनकाल सामान्य तारों जैसे हमारे सूर्य की तुलना में बहुत कम होता है। ये तारे बेहद चमकीले और विशाल होते हैं और भविष्य में इनके विस्फोट से भारी तबाही मच सकती है।

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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