भारत की अगर हम अन्तरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में बात करें तो, आप कह सकते हैं कि, ये क्षेत्र भारत के लिए एक महत्वकांक्षों से भरा हुआ क्षेत्र है। स्वदेशी तकनीक और भारत के अटूट दृढ़ संकल्प के कारण से ही, हमनें बहुत से मिशनों को अन्तरिक्ष में सफल कर के दिखाया है। बहुत ही कम खर्च और प्रयासों से हमने दुनिया को हमारी योग्यता की झलक मंगलयान-1 (ISRO’S Next Mission To Mars) मिशन के जरिये दिखा दिया हैं। ये ही वजह हैं कि, आज भारत के अन्तरिक्ष-विज्ञानी दुनिया भर में अपने कार्यों के लिए काफी ज्यादा चर्चे में रह रहें हैं।
वैसे फिलहाल भारत के लिए मंगल (ISRO’S Next Mission To Mars) से जुड़े मिशन और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गए हैं, क्योंकि मंगलयान-1 की सफलता से बाद अब भारत को फिर एक बार कुछ अलग और खास कर के दिखाना होगा। कुछ ऐसा कि जिसे देख कर पूरी दुनिया दंग रह जाए। इसलिए अब भारत भी अपने दूसरे मंगल मिशन के लिए तत्पर हो रहा है और आने वाले समय में शायद इसे अंजाम भी जल्द दे देगा।
तो, मित्रों! आज हम इसी आने वाले मिशन के ऊपर ही चर्चा करने जा रहें हैं। इसलिए आप लोगों से अनुरोध है कि, लेख को अंत तक जरूर ही पढ़िएगा।
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मंगलयान-1 से टूट गया है कनैक्शन, भारत जल्द ही शुरू करने वाला है मंगलयान-2 मिशन! – ISRO’S Next Mission To Mars! :-
कुछ दिनों पहले ही इस्रो से खबर आई कि, हमारे मार्स (ISRO’S Next Mission To Mars) ओर्बिटर क्राफ्ट से हमारा संपर्क टूट गया है और इसे ठीक भी नहीं किया जा सकता है। तो कुल मिला कर ये कहा जा सकता है कि, हमारे मंगलयान-1 मिशन का अंत आ गया है और इसे अब सेवा-निवृत करने का समय हो गया है। परंतु आपको एक खास बात बताऊँ, वैज्ञानिकों के हिसाब से जिस मार्स ओर्बिटर को मंगल के ओर्बिट में ज्यादा से ज्यादा 6 महीनों तक काम करना था, वो बिना रुके लगातार 8 सालों तक कम करता रहा।
तो आप यहाँ खुद भी अंदाजा लगा सकते हैं कि, आखिर हमारे स्वदेशी तकनीक और हमारे वैज्ञानिकों की कार्य-कुशलता कितनी उन्नत धरण की है। एक वो समय था जब दुनिया भर के देशों ने हमें रॉकेट इंजन बनाने के तकनीक को देने से मना कर दिया था और आज ये एक समय है जब हमारे कार्यों कि चर्चाएँ पूरी दुनिया में हो रहीं हैं। वैसे लोगों के मन में अब ये सवाल आ रहा होगा कि, आखिर कैसे मंगलयान-1 मिशन समाप्त हुआ?
तो, मित्रों! मेँ आप लोगों को बता दूँ कि, हमारे मार्स ओर्बिटर में ईंधन कि कमी हो गई थी।लगातार 8 सालों तक मंगल के चारों तरफ चक्कर काटते रहने से ओर्बिटर को सही ऊँचाई पर रखने के लिए इस्तेमाल होने वाला ईंधन खत्म हो गया था। इसके बाद हाल ही में कई लंबे-लंबे सूर्य ग्रहण भी हुए हैं, जिससे ओर्बिटर के उपकरणों को सही मात्रा में सूर्य किरण से ऊर्जा भी नहीं मिल पाई थी। मेरे दोस्तों ये ही वजह है कि, अब हमारा ओर्बिटर काम करना ही बंद कर दिया।
हमारे मार्स ओर्बिटर के बारे में कुछ जानकारी! :-
मित्रों! मंगल (ISRO’S Next Mission To Mars) के चारों तरफ लगातार कई सालों तक काम करने के बाद अब हमारे मार्स ओर्बिटर का जीवन काल आखिर कार खत्म हो चुका है। तो चलिये लेख के इस भाग में हम थोड़ा शॉर्ट में इसी मार्स ओर्बिटर के बारे में जान लेते हैं! लगभग 450 करोड़ रूपय की लागत से बने हमारे मार्स ओर्बिटर को 2013 में PSLV-C25 के जरिये अन्तरिक्ष में छोड़ा गया था। बता दूँ की, ये ओर्बिटर बाद में यानी 2014 के सितंबर महीने में सफलता के साथ मंगल के ओर्बिट में दाखिल हो गया था और अपना काम करना शुरू कर दिया था।
इसके अलावा आपको जान कर हैरानी होगी कि, मंगलयान-1 भारत का पहला “इंटर-प्लैनेटरी” मिशन था, माने सौर-मण्डल के ग्रहों के बीच होने वाला पहला मिशन। मित्रों! आप लोगों को जानकर और भी गर्व होगा कि; पूरी दुनिया में रूस, अमेरिका और यूरोप के बाद भारत चौथा देश थ, जिसने मंगल तक अपना अन्तरिक्ष यान छोड़ कर इतिहास रच डाला था। हालांकि! पूरी एशिया में भारत का ये मिशन काफी ज्यादा प्रशंसनीय था, क्योंकि पूरे एशिया में सिर्फ भारत ही इस मुकाम पर सबसे पहले पहुंच पाया था। सच में ये एक बहुत ही सफल मिशन था।
ये ही वजह है कि, खुद चीन ने भी भारत के इस मिशन को “एशिया के गर्व” के रूप में स्वीकारा था। लाँच के बाद से ही इस स्पेसक्राफ्ट के पास लगभग 850 kg तक ईंधन और मंगल के बारे में रिसर्च करने के लिए 5 से ज्यादा उपकरण मौजूद थे। वैसे इन उपकरणों में से एक उपकरण ऐसा भी था जिसने भारत को मंगल के बारे में कई महत्वपूर्ण जानकारियाँ भी दि। इस उपकरण का नाम “Mars Color Camera (MCC)” था।
भारत के लिए क्यों जरूरी था मिशन! :-
मंगल (ISRO’S Next Mission To Mars) से जुड़े इस मिशन को ले कर भारत पहले से ही काफी ज्यादा उत्साहित था। उत्साहित इसलिए था कि, इस यान के जरिये भारत को पहली बार मंगल के जलवायु के बारे में जानने के लिए किसी दूसरे देश के ऊपर निर्भर नहीं होना था। इसके अलावा मंगलयान के जरिये भारत को मंगल ग्रह की खूबियाँ, वहाँ मौजूद खनिज पदार्थों के बारे में जानकारी, उसके बनावट और जलवायु से संबंधित कई अहम जानकारियाँ मिल रहे थे।
इसके अलावा मंगलयान मिशन से जुड़ी सबसे बड़ी बात ये है कि, आने वाले भविष्य में दो ग्रहों के बीच होने वाले मिशनों में लगने वाले तकनीक, अलग-अलग चरण और स्पेसक्राफ्ट के डिज़ाइन के बारे में हमें एक आइडिया मिल रहा था। मित्रों! किसी भी स्पेस मिशन को अंजाम देने के लिए हमें काफी मेहनत करनी पड़ती है और इसी के साथ ही साथ हमें इसकी सही तरीके प्लानिंग भी करनी चाहिए। आप ये कह सकते हैं कि, मंगलयान-1 मिशन में ये सभी चीज़ें एक साथ हो रहीं थी।
खैर अब आने वाले समय में हम एक नए मिशन को मंगल पर अंजाम देने जा रहें हैं। “मंगलयान-2″ मिशन ही अब मंगल के ऊपर हमारा दूसरा मिशन होने वाला है। रोचक बात ये है3
कि, ये एक ओर्बिटर मिशन होने वाला हैं। जिसे कि जल्द से जल्द इस्रो भी लौंच करना चाहता हैं।
मंगलयान-2 – Mars Orbiter Mission-2 और भविष्य में मंगल पर होने वाले दूसरे मिशन :-
2019 में पहली बार मंगलयान-2 (ISRO’S Next Mission To Mars) मिशन के बारे में चर्चा की गई थी। पहले तो सब को ये लगा कि, ये एक लैंडर मिशन होने वाला हैं। परंतु बाद में पता चला कि, ये एक ओर्बिटर मिशन होने वाला है। सूत्रों कि मानें तो, इस मिशन को साल 2025 में ISRO के द्वारा लाँच किया जाने वाला है। कहा जा रहा है कि, इस मिशन में कई अत्याधुनिक कैमरों को इस्तेमाल किया जाने वाला है, जिससे हमें मंगल के “क्रस्ट” के बारे में और भी गहन जानकारी मिलेगी। हालांकि! मंगल पर इस मिशन के बाद और एक मिशन भी इस्रो करने वाला है।
वैज्ञानिक कह रहें हैं कि, मंगल पर ओर्बिटर मिशन के बाद, वो लोग मंगल के ऊपर 2030 तक एक सॉफ्ट-लैंडिंग का मिशन भी करने वाले हैं। मित्रों! बता दूँ कि, मंगल का सॉफ्ट-लैंडिंग वाला ये मिशन मार्स-ओर्बिटर मिशन का एक्सटैन्शन ही होगा। तो आप कह सकते हैं कि, इस्रो ने मंगल के बारे में काफी कुछ सोच कर रखा है।
एक रोचक बात ये भी है कि, “Indian Institute of Space Science and Technology” के द्वारा मंगल के अगले मिशन के लिए जरूर पै-लोड को तैयार किया जा रहा है। अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, इस पै-लोड का वजन लगभग 100 kg तक रहने वाला हैं, जिसमें कई जरूरी उपकरण रहने वाले हैं।
Sources- www.iisst.gov.in