हमारा सौर मंडल 4.6 अरब साल पुराना है। इसमें हमारा सूर्य हमारी पृथ्वी और ऐसे ही सात और ग्रह और ना जाने कितने सारे एस्टेरॉइड (उल्कापिंड) और कॉमेट आते हैं। यह सभी चीजें एक कॉमन चीज का चक्कर लगा रही है और यह है हमारा सूर्य जो हमारे सौर मंडल का 99.8% द्रव्यमान अपने अंदर समेटे हुए है। पर इस सौर-मंडल की भी अंतिम सीमा (Heliosphere In Hindi) है जहां पर सूर्य का प्रभाव पूरी तरह खत्म हो जाता है, ये सीमा पार करके हमारा यान इंटरस्टैलर स्पेस में चला जाता है, जो कि दो तारों के बीच का स्पेस होता है।
सौर मंडल का निर्माण करीब 4.6 अरब साल पहले एक बहुत बड़े धूल और गैस के बादल की वजह से हुआ था। वैज्ञानिक ऐसा मानते हैं कि इस बहुत बड़े गैस और धूल से बने हुए बादल के पास एक सुपरनोवा एक्सप्लोजन हुआ था जिसकी वजह से इस तक बहुत सारी वेव्स (Waves) ट्रैवल करके आई थी और उन शॉकवेव्स (Shockwaves) की वजह से इसके केंद्र में गुरुत्वाकर्षण की वजह से फ्यूजन चालू हो गया जिससे सूर्य का निर्माण हुआ और फिर इसी सूर्य का चक्कर काफी सारे धूल के कण लगाने लगे जो आगे चलकर गुरुत्वाकर्षण की वजह से जुड़ते गए और ग्रहों का निर्माण करते हैं और जो पत्थर बच गए वह हमारे सूर्य मंडल में एस्ट्रॉयड के रूप में बचे हुए हैं।
काफी सारे उल्कापिंड (Asteroid) शनि और बृहस्पति जैसे ग्रहों में टकरा कर एस्टेरॉइड बेल्ट (Asteroid Belt) में इकट्ठा हो जाते हैं। खैर हमने आपको यह तो बताया ही नहीं कि जिस बादल से हमारे सौर मंडल का निर्माण चालू हुआ था उसका नाम था Solar Nebula. कुछ इसी तरह से ब्रह्मांड में हर सौर मंडल का निर्माण होता है। खैर आज का हमारा टॉपिक सौरमंडल नहीं बल्कि सौर मंडल की बाउंड्री (Heliosphere In Hindi) है यानी हमारा सौर मंडल आखिर खत्म कहां पर होता है और क्या सच में ऐसा है कि हमारा सौर मंडल एक गुब्बारे के अंदर बंद है जिससे निकलना हम इंसानों के लिए काफी कठिन है ?
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Planet 9 का रहस्य?
खैर सौर मंडल की बाउंड्री पर जाने से पहले आइए जानते हैं कि सौर मंडल के बाहरी छोर पर क्या-क्या मौजूद है जहां तक हम इंसान आसानी से देख सकते हैं और यह पता लगा सकते हैं कि वहां पर क्या चीजें मौजूद है। ऐसा माना जाता है कि नेपच्यून ग्रह के बाद एक और ग्रह मौजूद हो सकता है जिसे कहा जाता है प्लेनेट नाइन। इसके ऊपर भी कई सारी थ्योरी वैज्ञानिकों ने दी है। हमारे पास अभी इतने अच्छे प्रोब्स नहीं है कि हम इतनी दूर तक भेज कर बहुत जल्दी से डाटा कलेक्ट कर पाए ।
वहां तक हमारे यानो को जाने मैं ही कई सालों का समय लग जाता है। दरअसल सिर्फ प्लेनेट नाइन का ही नहीं बल्कि एक और चीज का आइडिया यहां पर दिया जाता है और वह हो सकता है एक खरबूजे के बराबर का ब्लैक होल। यह सुनने में भले ही बड़ा अजीब लग सकता है लेकिन ऐसा मुमकिन है कि हमारे सूर्य मंडल के बाहरी छोर पर एक छोटा सा ब्लैक होल भी मौजूद हो। दरअसल वैज्ञानिकों को बस यह पता है कि वहां पर कोई तो ऐसी चीज मौजूद है जिसका गुरुत्वाकर्षण कुछ ना कुछ इनफ्लुएंस डाल रहा है अब वह क्या चीज है यह वैज्ञानिकों को अभी क्लियर नहीं है और आने वाले समय में जब वहां पर भी अलग-अलग स्पेस मिशंस किए जाएंगे तब इसका भी राज हमारे सामने खुलकर आ जाएगा।
Kuiper Belt कहाँ तक फैली है ये बेल्ट?
खैर इस प्लैनेट 9 के बाद एक और चीज हमारे सूर्य मंडल में मौजूद है जिसे कहा जाता है Kuiper Belt. जिस तरह से मंगल ग्रह और बृहस्पति ग्रह के बीच में एक एस्टेरॉइड बेल्ट मौजूद है कुछ इसी तरह से Kuiper Belt भी नेपच्यून से 30 से 50 एस्टॉनोमिकल यूनिट दूरी पर मौजूद है। अगर आपको नहीं पता तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि एक एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट करीब 15 करोड़ किलोमीटर के बराबर होती है और यह डिस्टेंस दरअसल पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी को कहते हैं। Kuiper Belt भी बिल्कुल मंगल और बृहस्पति के बीच मौजूद एस्टेरॉइड बेल्ट की ही तरह है बस अंतर यह है कि यह उससे काफी ज्यादा बड़ी है, करीब 20 से 200 गुना बड़ी। इसमें ज्यादातर पत्थर के टुकड़े मौजूद है।
Oort cloud
इसके बाद भी हमारे सूर्य मंडल में एक और रहस्यमई चीज मौजूद है जिसे कहा जाता है Oort cloud. दरअसल यह एक बहुत ही बड़ा बादल है जिसमें ना जाने कितने लाखों-करोड़ों पत्थर और बर्फ के टुकड़े और कॉमेंट मौजूद है। वैज्ञानिक अभी इसके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते हैं क्योंकि आज तक कोई भी चीज यहां तक नहीं पहुंच पाई है क्योंकि यह हमारे रीच से बहुत ज्यादा बाहर है। ऊर्ट क्लाउड की सूर्य से दूरी करीब 2000 से 100000 एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट्स है। (Heliosphere In Hindi)
31 मई 2021 के मुताबिक वोयाजर वन हमारी पृथ्वी से भेजा गया अभी तक का सबसे दूर का ऑब्जेक्ट है जो बृहस्पति शनि और उसके अलग-अलग चांद से गुजर चुका है और आगे ही बढ़ता चला जा रहा है। यह हम से करीब 22.8 अरब किलोमीटर दूर है जिसे अगर एस्ट्रोनॉमिकल यूनिट में निकाला जाए तो यह होगा करीब 152.2 एस्टॉनोमिकल यूनिट(AU)।
अगर आज के हिसाब से गिनना चालू किया जाए तो Voyager 1 को Oort cloud तक जाने में करीब 300 सालों का समय लगेगा और इसको पार करने में इसे करीब 30,000 सालों का समय लगेगा। खैर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि Voyager 1 की गति 17 किलोमीटर प्रति सेकंड है।
वायेजर 1 और सौर मंडल का बबल ( हीलियोसपियर)
1977 में जब Voyager 1 Kuiper Belt से पार हुआ तो उसने कुछ अजीब तरह की फोटोस भेजनी चालू की जो वैज्ञानिकों को कई सालों तक दुविधा में डाले रही लेकिन बाद में वैज्ञानिकों ने यह खोज करके निकाला कि यह एक बबल है जिसमें हमारा सूर्य मंडल बंद है। दरअसल यह बबल हमें अंतरिक्ष से आने वाली कॉस्मिक रेज (Cosmic Rays) से कई हद तक बचाता है जिससे हम इंसानों की मौत भी हो सकती है।
इस बबल को वैज्ञानिकों ने हीलियोसपियर(Heliosphere) का नाम दिया। यह बबल (Heliosphere In Hindi) सूर्य से निकलने वाली सोलर हवाओं की वजह से बनता है जो दरअसल चार्जड पार्टिकल्स की एक आंधी होती है। यह चार्जड पार्टिकल्स जब सूर्य की सतह को छोड़ते हैं तब तो इनकी गति काफी ज्यादा होती है लेकिन जैसे-जैसे यह हमारे सूर्य से दूर जाने लगते हैं वैसे वैसे इनकी गति धीमी होने लगती है और करीब 5 अरब किलोमीटर दूर इन की गति काफी ज्यादा कम हो जाती है और यह एक बबल का शेप लेने लगते हैं और इस हेलियोस्फीयर बबल को बना देते हैं जो हमारे सूर्य मंडल को एक तरह से कैद में रखे हुए हैं।
जब Voyager 1 ने इस हेलियोस्फीयर (Heliosphere In Hindi) को पार किया तब वैज्ञानिकों को पता चला कि हम अपने सूर्यमंडल को जितना छोटा समझते हैं वह इतना छोटा है नहीं। पहले तो यह खबरें उड़ाई जाने लगी की यह probe इंटरस्टेलर स्पेस में एंटर हो चुका है लेकिन बाद में यह खबरें सामने आई कि अभी तो इसने हमारे सूर्य मंडल को भी पार नहीं किया है और ऐसा करने में इसे करीब 35000 सालों का और समय लगेगा और यह भी हमारी आज की रिसर्च के मुताबिक है । हमें यह क्लियर नहीं है कि हमारा सूर्य मंडल इससे भी बड़ा हो सकता है या नहीं।
Heliopause
दरअसल इस हेलियोस्फीयर (heliosphere in hindi) का भी एक अंत है और उसे कहा जाता है heliopause. इसके आगे शुरू होता है Oort cloud जिसके बारे में वैज्ञानिकों को ज्यादा जानकारी नहीं है लेकिन मैथ की मदद से यह पता लगाया जा सकता है कि सूर्य मंडल में एक ऐसा एरिया है जहां से कई सारे कौमेट हमारे सूर्य के पास आते हैं और जब उन कॉमेंट की Trajectory यानी आने का रास्ता निकाला जाता है तो वह एक ही जगह को दिखाता है और उसी जगह को वैज्ञानिकों ने नाम दिया है Oort cloud।
वैज्ञानिकों को अभी कुछ भी नहीं पता है कि इसके आगे क्या मौजूद हो सकता है क्योंकि ना वहां तक हमारे आधुनिक टेलिस्कोप देख सकते हैं और ना ही हमारे द्वारा भेजे गए प्रोब वहां पर इतनी जल्दी जा सकते हैं । हालांकि आने वाला जेम्स वेब टेलीस्कोप शायद इसके बारे में थोड़ी सी और जानकारी जुटा पाए लेकिन उस टेलीस्कोप को दूसरे मकसद से डिजाइन किया गया है इसलिए वह भी शायद इस रहस्य को बहुत अच्छे से नहीं सुलझा पाएगा।
तो आज के इस आर्टिकल के लिए बस इतना ही। धन्यवाद।