Universe

ब्रह्मांड के वो तारे जिन्होंने बदल दी पूरी साइंस – Cepheid stars In Hindi

इन तारों की मदद से नापी जाती है किसी आकाशगंगा की दूरी!

मार्च 11 2024, नासा के सबसे शक्तिशाली टेलीस्कोप जेम्स वेब ने पृथ्वी से 13 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर और 1 लाख 10 हजार प्रकाश वर्ष विशाल इस गैलेक्सी की इमेज कैप्चर की। अपने नियर इंफ्रारेड कैमरे (NIRCam) से धूल के बादलों को फाड़ते हुए इस आकाशगंगा में मौजूद तारों की विचित्र सी चमक (ब्राइटनेश) को नापा गया। इन तारों की बढ़ती और घटती लाइट, ब्रह्मांड के सबसे रहस्यमी सवाल कि क्या ब्रह्मांड सच में विस्तारित हो रहा है और अगर इसका विस्तार हो रहा है तो आखिर इसके विस्तार (Expansion) का रेट क्या है? इसी सवाल का जवाब इस आकाशगंगा में मौजूद तारे हमें देते हैं। यहां मौजूद परिवर्ती तारा (Variable Star) जिन्हें सेफिड वैरिएबल स्टार (Cepheid stars In Hindi) कहा जाता है, ब्रह्मांड में किसी आकाशगंगा की दूरी से लेकर के उसके फैलाव तक को बता देते हैं।

पर ये सब कैसे होता है और क्यों इन तारों से ही पूरा खगोल विज्ञान (एस्ट्रोनॉमी) टिका है और ये तारे हमारे सूर्य से कितने विशाल और ब्राइट होते हैं, आइये जल्दी से जान लेते हैं। 

NGC 5468 — Cepheid host galaxy - Credit:NASA, ESA, CSA, STScI, A. Riess (JHU/STScI)
NGC 5468  Credit: NASA, ESA, CSA, STScI, A. Riess (JHU/STScI)

क्या होते हैं सेफिड तारे? – What are cepheids stars in hindi?

अगर आप इस आकाशगंगा को देखें तो इसमें आपको कई सेफिड तारे (Cepheids Stars) दिखाई देगें। ये सूर्य जैसे तारों से बहुत ज्यादा चमकीले होते हैं। वैज्ञानिक इन्हें परिवर्ती तारा (Variable Star) की कैटेगरी में रखते हैं। ये तारे एक खास समय में अपनी ब्राइटनेश बदलते रहते हैं, जिस कारण से इन्हें जब भी पृथ्वी से देखा जाता है तो ये हमें कम्पायमान (Pulsating) करते हुए दिखाई देते हैं। ऐसा लगता है कि अंतरिक्ष में कोई विशाल बल्व है जो लगातार धीरे धीरे बंद और चालू होता रहता है।

इन्हें समझने के लिए हमें 100 साल पीछे साल 1912 में जाना होगा जब एक महान रिसर्चस हैनरियेटा लिय़ेवेट (Henrietta Swan Leavitt) ने इन तारों के ब्राइटनेश पैर्टन को पहली बार खोजा था। उन्होंने इन तारों की चमक और धूंधलेपन का जब लगातार निरीक्षण किया तो पाया कि ये तारे हर बार एक खास समय के लिए अपनी चमक खोते हैं और फिर वापस समय बीतने के बाद ये ब्राइट हो जाते हैं।

सेफिड तारे पोलारिस का समय व्यतीत होने पर इसकी चमक में परिवर्तन के चक्र का दृश्य स्वरूप दर्शाया गया है।

हालांकि अंतरिक्ष में तारे कई कारणों से इस तरह का व्यवहार करते हैं पर सेफिड तारे केवल हीलियम गैस के कारण ही ये बतार्व करते थे। जब तारे में मौजूद हीलियम बहुत ज्यादा गर्म होती जाती है तो तारे अपनी चमक को खोने लगते हैं और बेहद ज्यादा धूँधले दिखाई देते हैं। पर जैसे ही कुछ समय बाद हीलियम ठंडा होने लगता है तो तारा फिर से अपनी ब्राइटनेश को हासिल कर लेता है और हमें वही तारा पृथ्वी से चमकता हुआ दिखाई देता है।

ये सब बदलाव इन सेफिड तारों में हमेंशा एक खास समय (Time Interval) पर होते हैं। इन तारों की इसी चमक में लगातार होते इन बदलावों को ही हैनिरेयटा ने अपनी रिसर्च में पब्लिश किया था। जिसे आप इस लाइट कर्व ग्राफ में देख सकते हैं, यहां आप एक सिफिड तारों (Cepheid stars In Hindi) के अपनी साईकिल को पूरा करते हुए देख सकते हैं।

जितना समय इस तारे को इस चक्र (Cycle) को पूरा करने में लगता है उसे पीरड (Period) या फिर  प्लसेशन रेट (Pulsation Rate) भी कहा जाता है। आप इस ग्राफ में इसे देख सकते हैं। हर एक सिफिड तारे का पीरिड अलग होता है यानि उसे अपनी ब्राइटनिश साईकिल को पूरा करने में अलग समय लगता है। सीफीड स्टार्स के इन पीरिड्स को ही हैनिरियेटा ने अपनी रिसर्च में 112 साल पहले प्रकाशित किया था।  

सेफिड तारे और उनकी चमक – Brightness Of Cepheid Stars

उस समय इस खोज से पूरी खगोल विज्ञान की दिशा ही बदल गई थी। उनके द्वारा जितने भी सेफिड तारे खोजे गये वो सभी हमारी आकाशगंगा (मिल्की वे) की परिक्रमा कर रहे Small Magellanic Cloud में मौजूद थे, जब हैनरियेटा ने इन सिफिड तारों के Light Curve को और गहराई से देखा तो पाया कि इन तारों के पीरिड और उनकी ब्राइनटेस में एक सीधा संबंध है। जिन सिफिड्स तारों का पीरिड बहुत ज्यादा लंबा था वे पृथ्वी से ज्यादा चमकीले दिखाई देते हैं, और जिनका ब्राइटनेश पीरिड बेहद छोटा था वे तारे बहुत ज्यादा धूँधले दिखाई देते हैं।

एस्ट्रोनॉमी साइंस में ये खोज बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण थी। अब आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्यों तो दोस्तों इस खोज से पहली बार हम तारों की सही चमक यानि ट्रू ब्राइनटेस (True Brightness) को जान पाये। इस खोज से पहले जब भी कोई वैज्ञानिक पृथ्वी से किसी भी चमकीले तारे को देखता था तो उसकी सही ब्राइटनेश को नहीं जान पाता था। उसे ऐसा लगता था कि ये तारा बेहद ब्राइट है तो असल में पृथ्वी के काफी पास होगा और जो काफी कम चमक रहा है वह तारा शायद पृथ्वी से हजारों प्रकाश वर्ष दूर है।

सेफिड तारों की ब्राइटनेश की तुलना

इस समस्या को दूर करने में सेफिड स्टार (Cepheid stars In Hindi) हमारी मदद करते हैं, उनके ब्राइटनेश पीरिड की मदद से हम तारों की सही ब्राइटनेश जान पाते हैं। इसके आलाबा तारों की पृथ्वी से सटीक दूरी भी जानना आसान है। अब ये कैसे होता है जल्दी से मैं आपको बताता हूँ, जब सेफिड स्टार को देखा जाता है तो उसकी चमक का अवलोकन किया जाता है। फिर उस ब्राइटनेश को सीफिड की ट्रू ब्राइटनेशन के साथ कंपयेर किया जाता है।

सेफिड वैरिएबल स्टार (Cepheid stars In Hindi) कहा जाता है, ब्रह्मांड में किसी आकाशगंगा की दूरी से लेकर के उसके फैलाव तक को बता देते हैं।

सेफिड तारों से दूरी कैसे निकाली जाती है?

उदाहरण के लिए मान लीजिए एक सेफिड तारा है जिसका पल्सेटिंग रेट बहुत ज्यादा है और वह पृथ्वी से बहुत कम चमकीला दिखाई देता है, तो वैज्ञानिक उसकी ट्र ब्राइटनेश को फिर निरीक्षण ब्राइटनेश (Observed Brightness) से तुलना करके उसकी पृथ्वी से दूरी बता सकते हैं। वैज्ञानिक यहां पर पहले तारे की अधिकतम चमक (Maximum Brightness) का नाप लेंगे फिर उसके बाद पृथ्वी से जो ऑब्जर्व ब्राइटनेश दिखाई दे रही है उसकी भी रीडिंग लेंगे। इस रीडिंग को लेने के लिए वैज्ञानिक टेलीस्कोप पर पड़ रही तारे की लाइट की मात्रा नापेंगे कि कितना प्रकाश टेलीस्कोप रिसीब कर रहा है। दोनों ब्राइटनेस नापने के बाद बेहद सिंपल फोर्मुले से इसकी दूरी नापी जा सकती है। 

सेफिड तारों की दूरी नापने का फ़ॉर्मूला

जैसे ही आपने इस सेफिड तारे की दूरी का गणना की अब इसकी मदद से ही आप इसके आसपास के दूसरे तारों की दूरी भी निकाल सकते हैं। ये एक तरह के डिस्टेंस मार्कर की तरह व्यवहार करते हैं। इनकी मदद से आकाशगंगा और तारों की सटीक दूरी निकाली जा सकती है। Henrietta Leavitt की इसी खोज की मदद से साल 1924 में एडविन हबल ने भी एक बहुत महत्वपूर्ण खोज की। 

हबल की खोज और ब्रह्मांड का विस्तार – Hubble Law and Expansion Of Universe

आज से 100 साल पहले एंड्रोमेडा आकाशगंगा को एक नेब्युला (निहारिका) माना जाता था। वैज्ञानिक सिर्फ मिल्की वे आकाशगंगा को ही एक तरह से पूरा ब्रह्मांड मानते थे। पर सेफिड तारों की मदद से हबल ने एंड्रोमेडा में मौजूद कई तारों पर गहन शोध किया जब उन सेफिड तारों की दूरी निकाली गई तो पता चला कि ये लाखों प्रकाश वर्ष दूर हैं। जिसे वह एक निहारिका (Nebula) समझ रहे हैैं वास्तव में वह मिल्की वे आकाशगंगा की तरह ही एक विशाल आकाशगंगा है। इस तरह एंड्रोमेडा आकाशगंगा की खोज हुई इसके साथ साथ कई आकाशगंगाओं (Galaxies) को और खोजा गया।

रेडशिफ्ट और ब्लूशिफ्ट

हबल की इस खोज से पहली बार वैज्ञानिकों ने पाया कि मिल्की वे आकाशगंगा की तरह ही इस ब्रह्मांड में करोडों और आकाशगंगाए हैं। साल 1929 में इस तरह की सेफिड तारों (Cepheid stars In Hindi) की ब्राइटनेश पीरीड को निरीक्षण करने पर हबल ने पाया कि हमारा ब्रह्मांड लगातार फैलता (Expand) होता जा रहा है। हबल ने इन तारों (Cepheid stars In Hindi) की मदद से पहले आकशगंगाओं की पृथ्वी से दूरी नापी फिर उनके रेडशिफ्ट (Redshift) को पढ़ा, इस इफैक्ट में जैसे – जैसे गैलेक्सी हमेस दूर जाती रहती है उसमें से आ रही लाइट की वेवलेंथ (wavelength) लगातार बढ़ती रहती है।

इसके बढ़ने से वैज्ञानिक आसानी से बता पाते हैं कि आकाशगंगा लगातार हमसें दूर जा रही है। लाइट यहां पर स्पैरक्ट्रम के रेड ऐंड में पहुँच जाती है और रेड शिफ्ट में हमें रेड लाइट दिखाई देती है।

रेडशिफ्ट – आकाशगंगा हमसे लगातार दूर जा रही है।

वहीं अगर कोई आकाशगंगा हमारे करीब आ रही है तो वहां पर आकाशगंगा से रिसीब हो रही लाइट की वेवलेंथ लागातर घटती रहती है, और फ़्रीक्वेंसी या आवृत्ति (Frequency) और उर्जा (energy) बढ़ती रहती है। ऐसे में लाइट हमें स्पेक्ट्रम के ब्लू एंड में दिखाई देती है, इसे ब्लूशिफ्ट (Blueshift) कहा जाता है।

हबल का नियम

हबल ने कई दूर की आकाशगंगाओं के रेड शिफ्ट पैटर्न से हबल लॉ (Hubble Law) दिया जिसमें उन्होंने बताया कि जो भी आकाशगंगा पृथ्वी से बहुत ज्यादा दूर होती है वह उतनी ही तेज हमसे दूर होती चली जाती है।

सेफिड वैरिएबल स्टार (Cepheid stars In Hindi) कहा जाता है, ब्रह्मांड में किसी आकाशगंगा की दूरी से लेकर के उसके फैलाव तक को बता देते हैं।
ब्लूशिफ्ट – आकाशगंगा हमसे लगातार पास आ रही है।

सेफिड तारों की ब्राइटनेश और दूरी के आधार पर हबल ने ब्रह्मांड के एक्सपेंशन रेट (विस्तार) की Value (मूल्य) उस समय 500 किमी पर सेकेंड पर मेगापार्सेक (500 (km/s)/Mpc) दी। यानि की हर 32 लाख 60 हजार प्रकाश वर्ष की दूरी में आकाशगंगाएं हमसे हर सेकेंड 500 किमी दूर जा रही थीं। हालांकि हबल द्वारा निकाली गई ये वेल्यु बहुत ज्यादा थी।

हाल में हुई सेफिड तारों की केलकुलेशन से हबल कोंसटेंट करीब 73 (km/s)/Mpcकर आता है। यानि इस स्पीड से ब्रह्मांड का फैलाव हो रहा है और अरबों प्रकाश वर्ष की गैलेक्सीस हमसे लगातार दूर जाती जा रही हैं। आज हमारा युवनिर्ष इतना इंक्सपेंड हो गया है कि हम अब कभी भी 20 खरब से ज्यादा खोजी गई गैलेक्सीस में से 18.8 खरब यानि 94 परसेंट आकाशगंगाओं पर कभी भी नहीं जा सकते हैं। 

सेफिड तारों के प्रकार – Types Of Cepheids Stars In Hindi

सौ साल पहले सेफिड तारों की इस तकनीक को आज भी वैज्ञानिक प्रयोग में लाते हैं, और कई सेफिड तारों को वो डिस्टेंस मार्कर मानकर उनके आसापास के तारों और गैलेक्सीस की सटीक दूरी भी निकाल लेते हैं। ये तारें आम तौर पर दो प्रकार के होते हैं, सबसे पहले आते हैं क्लासिक सेफिड परिवर्ती तारा (Classic Cepheids Variable Star) जो कि सूर्य से 20 गुना तक भारी और 1 लाख गुना तक चमकीले होते हैं।

RS Puppis, मिल्की वे आकाशगंगा में सबसे चमकीले ज्ञात सेफिड वैरिएबल सितारों में से एक है

इनका प्लेसेशन पीरिड यानि धुंधले होने से ब्राइट होने तक का पीरिड कई दिनों से लेकर महीनों तक का होता है। ये पीरिड हमेशा नियमित ही होता है जिस कारण इनकी मदद से लोकल ग्रूप और उसके बाहर की गैलेक्सीस की दूरी पता की जाती है, इस दूरी से हम आसानी से हवल कास्टेंट यानि ब्रह्मांड के फैलाव की स्पीड निकाल सकते हैं।  

वहीं दूसरी कैटगरी में टाइप 2 सेफिड तारे आते हैं। इनका भार (Mass) सूर्य से आधा होता है और चमक भी क्लासिक सेफिड (Cepheid stars In Hindi) की तुलना में कम होती है, इस कारण से इनका पल्सेशन रेट काफी छोटा होता है। वैज्ञानिक इस कैटेगरी में 1 दिन से लेकर 50 दिन तक का ब्राइटनेश पीरिड नोट करते हैं, इन तारों की मदद से आकाशगंगा के केंद्र और ग्लोब्यूलर क्लस्टर (Globular Cluster) यानि तारों के महाविशाल ग्रूप की दूरी निकाली जाती है।

निष्कर्ष (Conclusion)

इस तरह से सेफिड तारों की मदद से वैज्ञानिक ब्रह्मांड में तारों, गैलेक्सीस और गैलेक्सी कलस्टर (कई आकाशगंगाओं के समुह) की दूरी निकालते हैं। इन्हें अच्छे से निरीक्षण करने पर हम ब्रह्मांड के फैलाव को भी नाप पाते हैं। जैसे -जैसे अब और ज्यादा एडवांस टेलीस्कोप आ रहे हैं वैसे -वैसे हम और ज्यादा सटीकता से इन तारों को ऑब्जर्व करके ब्रह्मांड के एक्सपेंशन रेट यानि हबल कासंटेट को और सटीकता से बता पायेंगे।  

आज से 112 साल पहले अगर हेनरियेटा लिय़ेवेट और एडविन हबल ने इन स्टार्स पर शोध ना कि होती तो हम शायद मिल्की वे गैलेक्सी को ही पूरा ब्रह्मांड समझ रहे होते, इन तारों और स्पेस टेलीस्कोप की मदद से आज हम ब्रह्मांड को पहले से बहुत ज्यादा जानते हैं। सेफिड तारों की मदद से हम इसके असीमित आकार की एक छलक देख सके हैं और उम्मीद है कि आगे भी हम बहुत कुछ नया खोज पायेंगे।     

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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