100 साल पहले तक हमें ऐसा ही लगता था कि हमारे सोलर सिस्टम में 8 प्लैनेट्स है, पर सन 1900 के शुरुआती समय में, महान वैज्ञानिक Percival Lowell. ने कुछ ओब्ज़र्वेशंस की, उन्होने देखा, कि जब यूरेनस और नेप्च्युन अपने ओर्बिट पे सन के चक्कर काट रहे थे तब इसी दौरान वो जब एक स्पेसिफिक पोइंट पे आते है, तो उस लोकेशन पर आते ही वो अपने रेगुलर ओर्बिटल पाथ से थोडा सा भटक जाते है, और कुछ देर बाद, चीज़े वापिस से नोर्मल हो जाती हैं। आखिर ऐसा क्यों होता था और प्लैनेट 9 (Planet 9 In Hindi) का क्या रहस्य था इस पोस्ट में आगे जानिए
आप मे से कई लोगो ने लोवेल का नाम नही सुना होगा पर आप यकीन नही करेंगे, कि दुनिया मे सबसे पहले मंगल ग्रह पर जीवन होने की बात इन्होने ही प्रूफ करी थी और उसी के साथ साथ, मार्स पर जीवन अभी माइक्रोब स्टेज (सूक्ष्म स्तर) पर है, ये थ्योरी भी इन्होने ही प्रोपोज़ की थी, हालांकि इनकी अधिकतर थ्योरीज़ की तरह ये भी इनके ज़िंदा रहते प्रूफ नही हो पाई थी, इसीलिए इनके बारे में लोग उतना ज़्यादा नही जानते हैं।
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सौरमंडल के नौंवे ग्रह की खोज
अब लोवेल के पास पैसो की कोई कमी नही थी और वो एक अमीर इंसान थे, इसीलिए अपनी इस ओब्ज़र्वेशन के बाद उन्होने, कुछ ही वक़्त मे एरिज़ोना के एक ऊंचे पहाड के ऊपर एक ओब्ज़र्वेट्री बनवा ली और वहाँ एक बहुत ही बडा टेलिस्कोप लगवाया और इसके बाद से अपनी उसी एक थ्योरी पर रीसर्च करने लगे। इसी बीच सन 1906 मे उन्होने फाइनली दुनिया के सामने रखी अपनी प्लैनेट एक्स (Planet X) थ्योरी। उनके अनुसार सोलर सिस्टम के बहुत ही बाहरी हिस्से मे एक ऐसा प्लैनेट (Planet 9 In Hindi) मौजूद था, जिसका मास पृथ्वी से लगभग 5 गुना ज्यादा था और उसकी ग्रैविटेश्नल फोर्स भी बहुत ज़्यादा थी।
उन्होंने अपने जीवन में लगभग सब कुछ छोड दिया और सिर्फ इस प्लैनेट एक्स के पीछे पड़े रहे। लगातार आब्जर्वेशन करने के बाद भी वे इस ग्रह को अपने पूरे जीवनकाल में नहीं ढूँढ पाये, पर इस ग्रह की खोज लगातार जारी रही और इसी समय एक बडा ब्रेक थ्रू मिला जब सन 1930 मे उन्ही की ओब्ज़र्वेट्री के टेलिस्कोप से, Clyde Tombaugh नाम के एक साइंटिस्ट ने नवे प्लैनेट को खोज निकाला और उसका नाम रखा गया, प्लूटो। अगर आप इस नाम का ब्रेकडाउन करे तो इसके शुरुआत मे पी और एल आता है, जो कि बेसिकली एक ट्रिब्यूट है Percival Lowell को उनकी रिसर्च के लिए।
प्लूटो का एक ग्रह से उपग्रह बनना
पर धीरे-धीरे दशक बीतते गए और जब वैज्ञानिकों ने प्लूटो के मून शेरोन (Charon) को खोजा, तब उन्हे पता चला की प्लूटो का Mass (द्रव्यमान) तो पृथ्वी के मून का भी 1/6 है। तो ऐसे मे अगर हम उसकी तुलना किसी भी और ग्रह से करेंगे, तो प्लूटो का तो मानो कोई अस्तित्व ही नही है।
क्योंकि न तो प्लूटो का Mass ज़्यादा है, न उसकी रेडियस ज़्यादा है और न ही उसकी Revolving Speed (एक ही धूरी पर घूमना), अब इन सभी चीज़ो की खोज के बाद ये तो समझ मे आ गया थ कि प्लूटो वो प्लैनेट एक्स (Planet X) नही है जिसके बारे मे लोवेल ने बात कही थी और इसके बाद साल 2006 मे प्लूटो को कम्प्लीटली एक प्लैनेट के रूप से हटा दिया गया।
सौरमंडल के बाहरी ग्रहों का अजीब परिक्रमा पथ
अगर आप सोलर सिस्टम को ध्यान से देखें तो आप पायेंगे कि यूरेनस और नेप्यूचन एक अलग ही परिक्रमा पथ यानि औरिबट पर सूर्य के चक्कर लगाते हैं, ये दोनों एक दूसरे की ओरबिट को अपने ग्रेविटेशनल फोर्स से प्रभावित करते हैं, जब ये दोनों एकदम पास होते हैं तो नेप्युचन यूबरेनेस को अपनी और खीचतां है और यूरेनिय सूर्य की परिक्रमा लगाते हुए भी उससे थोड़ा दूर हो जाता है।
वहीं जैसे ही नेप्युटन यूरेनस से दूर जाता है तो फिर से यूरेनस की ओरबिट में बदलाव आता है और वह फिर से सूर्य के पास चला जाता है,इसी इरेगुलेरिटी के कारण ही वैज्ञानिक हैरान रहते थे, पहले वैज्ञानिक इनकी इस ओर्बिटल इर्रेगुलरिटी के लिए प्लूटो को जिम्मेदार मानते थे पर जब उसके असली मास और चंद्रमा के बारे में हमें डेटा मिला तो पता टला कि प्लूटो के पास उतनी ग्रेविटेशनल फोर्स नहीं है कि वो सौर मंडल के इन विशाल ग्रहों की ओरबिट को इस तरह प्रभावित करता हो, तो फिर आखिर इन दोनों ग्रहों की इस अजीब औरबिट का कारण क्या है, क्या ये प्लैनेट एक्स तो नहीं है, जो सौर मंडल के बाहर अपनी ताकतवर ग्रेविटी से ये सब कर रहा हो।
प्लैनेट एक्स (Planet X) की थ्योरी का अंत
साल 1989 में जब वॉयेजर 2 नेपच्यून के पास पहुँचा, तब वैज्ञानिकों को पता चला कि उन्होंने हमेशा से यूरेनस और नेपच्यून का Mass ही गलत कैलकुलेट किया था। इसकी वजह से शायद इतनी सारी दिक्कते इन ग्रहों को लेकर आ रही थी, इसके बाद जब Mass (द्रव्यमान) की सही वैल्यू को मैथमेटिकल इक्वेशन मे रखा गया, तो वैज्ञानिकों ने पाया की यूरेनस और नेपच्यून दोनो का ऑर्बिट बिल्कुल सही है और वो उसी तरह से चल रहे है जैसे उन्हे चलना चाहिए और इसी के साथ 83 साल की प्लैनेट एक्स वाली बात खत्म हुई और ऑफिशियल प्लैनेट एक्स को एक गलत थ्योरी करार दिया गया।
पर कहानी यहाँ खत्म नही हूई, बल्कि असली वीडियो तो अब शुरू हुआ है, साल 2016 मे दो अस्ट्रोनोमर्स जिनका नाम Konstantine Batygin Aur Michael Brown है, उन्होने काफी सारे डेटा को एनेलाइज़ किया और जो रिज़ल्ट दुनिया के सामने रखा, वो हिला देने वाला था, अपने कान खुले रखिए क्योंकि अब हम लोग थोडे डीप कोंसेप्ट्स मे छलांग लगाने वाले है।
Planet 9 और उसकी खोज
तो इन दोनो ने extreme trans-Neptunian objects मे अजीब ओर्बिटल पैटर्न रिकोर्ड की, ये लोवेल की ओब्ज़र्वेशन से बहुत कुछ अलग नही थी लेकिन इन दोनो चीज़ो मे फर्क़ सिर्फ इतना था, कि लोवेल ने ये ओर्बिटल डिफ्फ्रेंस ऑउटर मोस्ट प्लैनेट्स मे देखी थी और इन दोनो ने extreme trans-Neptunian objects यानि कि ETNOs में।
अब ये extreme trans-Neptunian objects है क्या, जैसे हमारे सोलर सिस्टम मे 8 प्लैनेट्स, लगभग 200 मूंस और भी अनगिनत एस्ट्रोइड्स और मीटिओराइड्स आते है, वैसे ही नेप्च्यून के बहुत पीछे एक बहुत बडा हिस्सा है, जहाँ काफी सारे स्टार्स और एक्सोप्लैनेट्स है, उस एरिया मे जो ओब्जेक्ट्स आते है, उन्हे कहा जाता है ETNOs. हम जिन एट्नोस की बात कर रहे है वो भी एक बडे रीजन का हिस्सा है और उस रीजन का नाम है – Kuiper Belt.
जब इन ओब्जेक्ट्स पर इन दोनो अस्ट्रोनोमर्स ने एक अजीब फोर्स नोटिस की, इससे बाते दोबारा शुरू हो गई कि क्या कोई Planet 9 (Planet 9 In Hindi) सच मे एग्ज़िस्ट करता है या नहीं।
यही नहीं, इन दोनो की माने तो ऐसे कई सारे प्लैनेट्स थे जिनके ओर्बिट्स आपस में टकरा रहे थे वैज्ञानिकों की मानें तो ऐसा बिना किसी आउटर फोर्स (Planet 9 In Hindi) की वजह से नही सम्भव है, और सवाल फिर से वहीं पर आ जाता है कि आखिर ऐसा क्या है जो काइपर बेल्ट में मौजूद औबजेक्ट की ऑर्बिट को प्रभावित करता है।
Planet 9 के कारण Kuiper Belt Objects की अजीब औरबिट
आप अगर गौर से देखें तो इस बेल्ट में मिलने वाले सभी ड्वार्फ प्लैनेट और ऐस्ट्रोरेयड एक ऐसे पैटर्न में सूर्य की परिक्रमा करते हैं जो अपने आप में विचित्र है, हाइली इलिप्टिकल ऑर्बिट होने के कारण इनका पेरफेलियन प्वाइंट यानि सूर्य के सबसे नजदीक की दूरी भी नेप्युन की तुलना में बहुत ज्यादा होती है, ऐसे में इन्हें ओबज्रब करना बहुत मुश्किल है।
हाल में ही खोजा गया सौरमंडल का सबसे दूर का ग्रह सेडना (Sedna) इसी का एक उदाहरण है, अगर आप इसकी ऑर्बिट को देखें तो आप पायेंगे कि हाइली एलिप्टिकल ऑर्बिट में सूर्य की परिक्रमा कर रहा है और हर 11 हजार साल में एक ओरबिट को पूरा कर लेता है।
सेडना की इस विचित्र औरबिच के पीछे का क्या कारण है क्या ये प्लैनेट 9 (Planet 9 In Hindi) की वजह से तो नहीं है, खैर सेडना के अलाबा भी इसी काइपर वेल्ट में कुछ ऐसे ऐस्टोरोयड भी खोजे गये हैं जो सूर्य की एकदम परपेंडकुलर (90 Degree) औरबिट में परिक्रमा करते हैं।
कंप्यूटर सिमियूलेशन और प्लैनेट 9 (Planet 9 In Hindi) का प्रूव
इस समिलुयेशन को देखकर आप इसे आसानी से समझ सकते हैं, तो क्या ये सभी विचित्र औरबिट प्लैनेट नाइन की ओर करती हैं, कई वैज्ञानिक ऐसा ही समझते हैं और इसकी बात को वे कई मैथमेटकिल माँडल और कंप्यूटर सिमियूलेशन से प्रूव भी कर चुके हैं, पर अब सवाल ये आता है, कि आखिर हम लोग इतने श्योर कैसे है कि ये सारी घटना किसी प्लैनेट की वजह से ही हो रही है।
पहले कई लोगो ने इस पर विवाद किया कि हो सकता है उस रीजन के पास एक बहुत ही छोटे साइज़ का ब्लैक होल हो, मान लीजिए एक सेब या संत्रे के साइज़ का, अब आप लोगो के दिमाग मे खयाल आ सकता है, कि इतने छोटे आकार का ब्लैक होल भला क्या कर लेगा, देखा जाये तो ये इतना खतरनाक नही होगा लेकिन फिर भी ये बहुत ज़्यादा मास का होगा और इसका मास कम से कम पृथवी से 5 से 10 गुना ज्यादा हो सकता है। पर इतना सब औजर्बर करने के बाद ही इस प्लैनेट को एक हाइपोथीसिस ही माना जाता है यानि कि अभी तक कुछ भी प्रूफ नही हुआ है।
आजतक Planet 9 को कोई नहीं खोज सका
हालांकि कई लोग इस प्लैनेट के होने की बात को सीधा नकार देते हैं, उनका मानना है कि जिस ग्रह को हम लोगो ने आज तक देखा नही तो ये शायद सौर मंडल में मौजूद ही ना हो, लेकिन ऐस्ट्रोनोमी में ऐसा ज़रूरी नही है, कि जिस चीज़ को खोजा न गया हो, वो एग्ज़िस्ट ही न करती हो।
सौर मंडल में काइपर वेल्ट के बाहर किसी ग्रह को खोजना बहहुत ही मुश्किल काम है, सूर्य की लाइट यहां काफी कम पहुँचती है और यहां मौजूद औबजेक्ट काफी ज्यादा ठंडे होते हैं, और ना के बराबर ही लाइट को रिफ्लेक्ट करते हैं, ऐसे में इन्हें डारेक्ट टेलिस्कोप से ऑब्जर्व करना मुश्किल है।
इन्हें औबजर्रब करने के लिए हमें लागातर काइपर वेल्ट में लाइट के एक पैर्टन को देखना पड़ता है इसके लिए टेलीस्कोप में पड़ रही लाइट में एटोस्फेयर का कोई दखल ना हों, अगर ये सभी कंडीशन नहीं हो जाती हैं तो हम तभी इस प्लैनेट नाइन को खोज पाएंगे, हालांकि अभी इसे खोजना बहुत मुश्किल है पर वैज्ञानिक मानते हैं कि अगर ये सच में एक्जिस्ट करता है तो आने वाले 10 सालो में शायद हम इसें पूरी तरह से खोज सकें।
Planet 9 की पृथ्वी से दूरी
Planet 9 (Planet 9 In Hindi) की अंदाज़न दूरी सूर्य से लगभग 600 AU आँकी जाती है और माना जाता है कि इसका रेडियस पृथ्वी से 4 गुना बडा होगा और इसका मास कम से कम पृथ्वी से दस गुना ज़्यादा तो होगा ही होगा, लेकिन शायद वो बहुत ज़्यादा डिम हो, इतना ज़्यादा कि हमारे कैमेराज़ अभी उसे कैप्चर न कर पाते हो और इसीलिए अभी इसे केवल हाइपोथीसिस नाम से ही टाल दिया जाता हो।
पर वजह कुछ भी हो, वैज्ञानिक इसके बारे मे बहुत एश्योरिटी रखते है और उनका दृढ विश्वास है, कि प्लैनेट 9 (Planet 9 In Hindi) है तो पक्का। इसको खोजने के लिए आज भी हमारी टेक्नोलोजी दिन ब दिन एड्वांस होती जा रही और और पृडिक्टेड लोकेशन, जहाँ पर प्लैनेट 9 का एग्ज़िस्टेंस सोचा जा रहा है, वहाँ पर हर वक्त साइंटिस्ट टेलिस्कोप लेकर मानो तैनाद होते है, इस उम्मीद पर, कि शायद कोई लाइट सोर्स अचानक से उस पर पड जाये, और इसी लकी फिनोमिना की वजह से हम फाइनली लोवेल के सपने को ट्रेस कर ले।