किसी भी चीज़ के बारे में अगर पहली बार जानना है तो, उसके बारे में कई शोध और आविष्कार करने पड़ते हैं। बिना असफल प्रयासों के कोई भी चीज़ आसानी से हासिल नहीं हो सकता है। अंतरिक्ष में आज जितने भी खोजें हो रहीं हैं उनको सफल बनाने के लिए हमें काफी उन्नत धरण के उपकरणों की जरूरत पड़ती है जो की काफी प्रयासों के बाद ही बनाए गए हैं। खैर इन्हीं उपकरणों में से एक सबसे जरूरी उपकरण है रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi)। दूर अंतरिक्ष में किसी ग्रह को देखना हो या किसी तारे के बारे में जानकारी इकट्ठा करना हो, हर किसी काम में इस रेडियो टेलिस्कोप का उपयोग होता है।
बिना रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) के अंतरिक्ष में इंसानों को कुछ भी ढूँढने के लिए काफी मसक्कत करना पड़ता। आज हम हमारे ब्रह्मांड के बारे में जितना भी जानते हैं वो रेडियो टेलीस्कोप के मदद से ही संभव हो पाया है। अब आप लोग यहाँ सोच रहें होंगे की, मैं तो सिर्फ रेडियो टेलिस्कोप के बारे में चर्चा और तारीफें किए जा रहा हूँ; तो क्या आज का विषय रेडियो टेलिस्कोप के बारे में होने वाला हैं!
तो, दोस्तों बता दूँ की; आप लोग सही सोच रहें है। आज हम इसी रेडियो टेलिस्कोप के बारे में हर एक बात को जानने का प्रयास करेंगे और आखिर में इसके द्वारा की गई सबसे अभूतपूर्व आविष्कारों के बारे में भी पता लगाएंगे।
विषय - सूची
आखिर ये रेडियो टेलिस्कोप क्या हैं? – What Is Radio Telescope In Hindi? :-
मित्रों! चलिये सबसे पहले रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) आखिर किसे कहते हैं? उसके बारे में जान लेते हैं। “रेडियो टेलिस्कोप विशेष एंटीना और रेडियो रिसीवर से बना एक खास उपकरण है जो की दूर अंतरिक्ष से आने वाली रेडियो तरंगों को ढूंढ कर उनके स्रोतों के बारे में पता लगाता है”। रेडियो टेलिस्कोप “Radio Astronomy” का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो की ब्रह्मांड में मौजूद खगोलीय पिंडों से निकलने वाली “Electromagnetic” तरंगों को पकड़ कर उन सभी चीजों के बारे में काफी बारीकी से तथ्य संगृहीत करता है।
वैसे बता दूँ की, रेडियो टेलिस्कोप साधारण “Optical Telescope” से काफी ज्यादा अलग है जो की “Optical Astronomy” में इस्तेमाल होता है। Optical Telescope से भिन्न रेडियो टेलिस्कोप को दिन के साथ-साथ रात को भी इस्तेमाल किया जाता है; परंतु Optical Telescope केवल दिन में ही इस्तेमाल किया जा सकता है। वैसे दूर ब्रह्मांड में मौजूद ग्रह, तारे, नेब्यूला और आकाशगंगाएँ काफी रेडियो तरंगें पूरे अन्तरिक्ष में छोड़ती है। परंतु उन सभी चीजों की दूरी हम से काफी ज्यादा होने के कारण वहाँ से हमारे तक रेडियो तरंगें आते-आते काफी ज्यादा दुर्बल हो जाती है। इसलिए रेडियो टेलिस्कोप को सही से काम करने के लिए काफी शक्तिशाली रिसीवर और एंटीना की जरूरत पड़ती है।
वैसे देखने में रेडियो टेलिस्कोप वृत्ताकार बड़े छतरी की तरह ही दिखता हैं। वैसे अगर आपके घर में डिश एंटीना आदि लगा हो तो, बता दूँ की रेडियो टेलिस्कोप देखने में कुछ उस तरह का ही है परंतु आकार में काफी बड़ा होता है जो इसे काफी शक्तिशाली बनाता है।
आखिर ये रेडियो टेलिस्कोप काम कैसे करता हैं? – How Does A Radio Telescope Work? :-
रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) जो हैं मित्रों! वो एक बहुत ही सरल सिद्धांत पर काम करता हैं जिसके बारे में आप लेख में आगे खुद व खुद जान ही जायेंगे। वैसे रेडियो टेलिस्कोप के अंदर आप को मुख्य रूप से 3 तरह के कोन्पोनेंट को देखने को मिलेगा जो की एंटीना, रिसीवर और रिकॉर्डर हैं। हर एक कोन्पोनेंट का अपना ही अलग एक काम होता है और खासियत भी। वैसे इनके बारे में हम आगे विस्तार से बातें करेंगे।
-
Component “Antenna” :-
ज़्यादातर लोगों को Antenna के बारे में अवश्य ही कुछ न कुछ पता होगा। परंतु मित्रों! रेडियो टेलिस्कोप के अंदर एंटीना का काम सिर्फ रेडियो तरंगों को इक्कठा करना नहीं होता हैं, इसे इक्कठा कर के रिसीवर के पास भेजना भी होता है। वैसे रेडियो टेलिस्कोप में एंटीना के तौर पर एक “Parabolic Dish” का उपयोग किया जाता है।
खैर इन Parabolic Dish के बारे में एक खास बात ये भी हैं की, जब कोई रेडियो तरंग इन के ऊपर टकराता हैं तो ये डिश हूबहू एक “Curved Mirror” की तरह काम करने लगता हैं। मतलब जैसे एक Curved Mirror प्रकाश के किरणों को मोड कर एक ही जगह पर केंद्रित (Focus) कर सकता हैं उसी तरह ये Parabolic Dish दूर से आने वाले रेडियो तरंगों को मोड कर एक ही जगह पर केंद्रित (Focus) कर सकते है।
मित्रों! रेडियो टेलिस्कोप में लगे एंटीना डिश के अंदर जीतने भी रेडियो तरंगें केंद्रित होते हैं वो सब “Focus Cabin” में लगे “Feedhorn” के ऊपर ही आ कर इक्कठे होती हैं। वैसे रेडियो टेलिस्कोप में लगे एंटीना डिश का व्यास लगभग 64 m के आसपास होता है और ये एल्युमिनियम से बने हुए होते है। औसतन एक रेडियो टेलिस्कोप 75 cm से लेकर 7 mm के रेडियो तरंगों को पकड़ सकता है।
-
Component “Receivers” :-
रेडियो टेलिस्कोप (radio teliscope in hindi) में एक रिसीवर का काम बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि बिना रिसीवर के हम रेडियो तरंगों को आगे इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। वैसे एक रिसीवर रेडियो तरंगों को “Amplify” कर के बहुत ही दुर्बल तरंगों को भी आसानी से पकड़ सकता है। इससे हम सुदूर अंतरिक्ष से आए रेडियो तरंगों को भी आसानी से डीटेक्ट कर सकते हैं। वैसे आज कल रेडियो टेलिस्कोप में लगे रिसीवर को काफी कम तापमान में रखा जाता हैं जिससे तरंगों को ढूंढते वक़्त कोई भी रुकाबट न आए।
मित्रों! बता दूँ की; रिसीवर रेडियो तरंगों को एंटीना से ही इक्कठा करता है और जैसा की आप जानते हैं की; एंटीना मुख्य रूप से एल्युमिनियम से बना होता है। एल्युमिनियम के अंदर जो अणु होते हैं वो रेडियो तरंगों को ट्रांसमीट करते वक़्त काफी ज्यादा ध्वनि का उत्पन्न करते हैं जिससे “Interference” भी पैदा होता है।
इसी Interference को कम करने के लिए रिसीवर को ठंडा कर के रखा जाता हैं। खैर आप लोगों ने अभी तक रेडियो टेलिस्कोप के बारे में काफी कुछ जान लिया हैं। तो आप लोगों से ये सवाल हैं की, रेडियो टेलीस्कोप में लगे रिसीवर को अगर ठंडा कर के रखा न जाए तो कैसे ये रेडियो तरंगों के ट्रांसमिशन में रुकाबट बनेगा।
-
Component “Recorders” :-
जैसा की आप नाम से ही पहचान रहें होंगे की, एक रिकॉर्डर का काम मुख्य काम रिकॉर्ड करना ही हैं। रिकॉर्डर असल में रेडियो तरंगों को अपने अंदर रिकॉर्ड कर के रखता है। वर्तमान के समय में रेडियो टेलीस्कोप तरंगों का डैटा कम्प्युटर के हार्ड डिस्क के अंदर स्टोर कर के रखता हैं; क्योंकि आज कल वैज्ञानिक रेडियो तरंगों को खोजने के लिए कई जटिल सॉफ्टवेर का उपयोग कर रहें है और इन्हीं सॉफ्टवेर के जरिये ही वो बाद में सेव किए गए डैटा को आसानी से विश्लेषण भी कर पा रहें है।
रिसीवर के द्वारा एंप्लिफाय किया गया सिग्नल फाइबर ओप्टिक केबल के जरिये फोकस केबिन से होते हुए नीचे टावर में लगे कम्प्युटर के पास पहुंचता है। बाद में सिग्नल का डैटा उसी कम्प्युटर में ही स्टोर हो जाता है। कई क्षेत्रों में सिग्नल का डैटा उसी समय ही उपयोग हो कर अंतरिक्ष में चीजों को ढूँढने में वैज्ञानिकों की मदद करता है।
वैसे यहाँ एक खास बात ये हैं की, अंतरिक्ष में जब कोई चीज़ हमसे बहुत दूर मौजूद रहता हैं तब उससे आने वाली रेडियो तरंगों का आवृत्ति बहुत ही ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए रेडियो टेलीस्कोप को उस वक़्त काफी तेजी से तरंगों का डैटा ट्रांसमीट करना पड़ता हैं जो की वाकई में काफी ज्यादा तेज होता हैं।
मित्रों! मैंने ऊपर आपको रेडियो टेलीस्कोप में लगे मुख्य कोन्पोनेंट्स के बारे में बताया, परंतु टेलीस्कोप के अंदर इनके अलावा भी कई सारे चीज़ें मौजूद रहती हैं जो की टेलीस्कोप को चलने के काम आता है।
रेडियो टेलीस्कोप के इस्तेमाल! – Uses Of Radio Telescope :-
लेख के इस भाग में हम रेडियो टेलीस्कोप (radio telescope in hindi) के कुछ इस्तेमाल के बारे में जानेंगे और देखेंगे की ये किन-किन क्षेत्रों में हमारी मदद कर रहा हैं। तो, चलिये तैयार हो जाते हैं और लेख में आगे बढ़ते हैं।
(i) स्कूल और कॉलेज में! :-
रेडियो टेलिस्कोप को स्कूल और कॉलेज में “Radio Astronomy” के लिए इस्तेमाल किया जा रहा हैं। विद्यार्थियों को रेडियो एस्ट्रॉनॉमी के बारे में इन दूरबीनों को दिन में तो आसानी से इस्तेमाल किया जा रहा हैं परंतु साथ ही साथ इन्हें खराब मौसम में भी इस्तेमाल किया जाने लग रहा हैं। मित्रों! आने वाले समय में आज के विद्यार्थी ही वैज्ञानिक बनेंगे और अंतरिक्ष में छुपे रहस्यों को उजागर करेंगे। ऐसे में इन सभी को रेडियो टेलिस्कोप के बारे में जानना बहुत ही जरूरी बन जाता है।
स्कूल और कॉलेज में विद्यार्थियों को रेडियो टेलिस्कोप को कैसे चलाया जाता हैं, कैसे डैटा को इक्कठा करके उपयोग में लिया जाता हैं आदि इन सभी बातों को सिखाया जा रहा हैं। ताकि हमारे अगले पीढ़ी को अंतरिक्ष विज्ञान में कई महारत हासिल हों। वैसे आप सभी का इसके बारे में क्या राय हैं जरूर कमेंट कर के बताइएगा।
(ii) स्पेस एजेंसिस! :-
आज के समय में रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) को व्यापक रूप से “Space Communication” के क्षेत्र में इस्तेमाल किया जा रहा हैं। नासा और ईएसए जैसे संस्थाएं दूर अंतरिक्ष में होने वाले अन्वेषण के प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए रेडियो टेलिस्कोप की ही मदद ले रहें है। इसके अलावा रेडियो टेलिस्कोप के जरिये अंतरिक्ष में हो रहें गतिविधियों का रियल टाइम फीड भी हम देख सकते हैं। वाकई में रेडियो टेलिस्कोप का कोई जवाब ही नहीं है।
(iii) म्युसीयम और प्लानेटेरियम्स! :-
लोगों के मन में अंतरिक्ष और अंतरिक्ष से जुड़ी तथ्यों को जानने का उत्साह बनाए रखने के लिए रेडियो टेलिस्कोप को म्युसीयम और प्लानेटेरियम में काफी ज्यादा उपयोग में लिया जा रहा हैं। इससे लोगों के मन में उत्साह तो बन रहा हैं, परंतु साथ ही साथ उन्हें एक गज़ब के अनुभूति का एहसास भी हो रहा हैं। क्योंकि अंतरिक्ष के बारे में जानना अपने आप में ही एक बहुत ही अभूतपूर्व बात हैं।
वैसे यहाँ लगे रेडियो टेलिस्कोप के जरिये लोग सूर्य और हमारे आकाशगंगा के बारे में आसानी से कई बातों को खुद अपने आँखों से देख कर जान सकते हैं। तो, क्या आप भी ऐसे ही रेडियो टेलिस्कोप को म्युसीयम या प्लानेटेरियम में देखना पसंद करेंगे?
रेडियो टेलिस्कोप के द्वारा किए गए कुछ अभूतपूर्ण आविष्कार! – Some Amazing Discoveries Made By Radio Telescope! :-
मित्रों! मैंने लेख को आरंभ करते वक़्त ही कहा था की, हम लेख के अंतिम हिस्सों में रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) के द्वारा किए गए कुछ बहुत ही गज़ब के आविष्कारों के बारे में बात करेंगे; तो लीजिये वो वक़्त आ गया जब हम इन्हीं आविष्कारों के बारे में बात करने जा रहें हैं। तो, लेख के इस भाग को जरा गौर से से पढ़िएगा क्योंकि इन बात को आपने शायद ही कहीं पढ़ा होगा।
-
पहला आविष्कार “Mercury’s Orbit” :-
रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) के द्वारा किए गए पहले आविष्कार के तौर पर आता है बुध की कक्षा यानी “Mercury’s Orbit”। “Arecibo” नाम के एक रेडियो टेलिस्कोप के जरिये Gordon Pettengill ने सबसे पहले बुध के कक्षा के बारे में एक सिद्धांत दिया था। साल 1964 में Pettengill ने Arecibo को इस्तेमाल कर के बुध के असल कक्षा को 59 दिनों का बताया था। इसके साथ उन्होंने ये भी बताया की, बुध आखिर कैसे सूर्य के चारों तरफ घूमता हैं।
वैसे Pettengill से पहले वैज्ञानिकों को ये लगता था की, बुध का रोटेशन 88 दिनों का हैं। खैर Pettengill के द्वारा किये गए खोज ने हमें ये भी बताया की, बुध सूर्य के चारों तरफ 2 बार परिक्रमा करने के वक़्त 3 बार खुद अपने चारों तरफ घूम लेता है। बिना रेडियो टेलिस्कोप के इस बात का पता लगा पाना बहुत ही ज्यादा कठिन है।
-
दूसरा आविष्कार “Asteroid Imaging” :-
साल 1989 में “Arecibo” टेलिस्कोप ने “4769 Castalia” नाम के एक उल्कापिंड को ढूंढ कर निकाला था। वैसे उल्कापिंडों को रेडियों टेलिस्कोप के आविष्कार से पहले ही खोजा जा रहा हैं और इनको खोजना कोई नई बता नहीं है। परंतु मित्रों! 4769 Castalia नाम के इस उल्कापिंड को रेडियो टेलिस्कोप ने न बल्कि सिर्फ खोजा परंतु इसकी बारीक तस्वीर भी पहली बार खींच कर वैज्ञानिकों को दिया।
इससे हम उल्कापिंड के संरचना को “3D” में आसानी से समझ भी पायेंगे और आने वाले समय में कई सारे खोजों को अंजाम भी दे पायेंगे जो की पहले संभव नहीं था।
-
तीसरा आविष्कार “Binary Pulsars” :-
किसी रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) के जरिये Binary Pulsars को सबसे पहले साल 1974 में खोजा गया था। वैसे बाइनरि पलसर्स वो यानी एक पलसर के साथ किसी एक न्यूट्रान स्टार का होना। खैर इन बाइनरि पलसर्स को कई सारे सिद्धांतों को समझने में इस्तेमाल किया जाता है। वैसे बाइनरि पलसर्स के अंदर (वैज्ञानिकों के लिए उपयोगी) काफी शक्तिशाली गुरुत्वाकर्षण बल काम करता हैं जो की शायद ही कहीं और दिखाई पड़े।
-
चौथा आविष्कार “Millisecond Pulsars” :-
अंतरिक्ष विज्ञान में मिलीसेकंड पलसर्स का काफी बोलबाला है। इन्हें अकसर “Recycled Pulsars” भी कहा जाता हैं, क्योंकि ये न्यूट्रान स्टार से बने होते है जिनका रोटेशन स्पीड काफी ज्यादा होता है। साल 1983 में रेडियो टेलिस्कोप के जरिये ही पहले मिलीसेकंड पलसर आविष्कार हुआ था। वैसे इस पलसर का नाम था PSR B1937+21। इस पलसर से जुड़ी एक खास बात ये हैं की, प्रति सेकंड ये 641 बार अपने चारों तरफ घूम लेता है। खैर पहले मिलीसेकंड पलसर की खोज के बाद से अब तक वैज्ञानिकों ने लगभग 200 से ज्यादा अन्य मिलीसेकंड पलसर्स को खोज लिया है। तो, आप अंदाजा लगाइए की रेडियो टेलिस्कोप हमारे अंतरिक्ष विज्ञान के लिए कितना ज्यादा जरूरी हैं।
-
पांचवा आविष्कार “Arp 220″ :-
मित्रों! वर्तमान के समय में रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) कई सारे अभूतपूर्व खोजें कर रहा हैं। उदाहरण के लिए आप साल 2008 में किए गए “Prebiotic Molecules” के खोज को ही देख लीजिए। इस खोज में “Arecibo” ने खोजा की, पृथ्वी से 25 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर मौजूद एक स्टारबर्ट्स में प्रीबायोटिक मॉलिक्यूल्स मौजूद है।
वैसे अधिक जानकारी के लिए बता दूँ की, “Serpens Constellation” के अंदर मौजूद Arp 220 नाम के टक्कर में “Methanimine” और “Hydrogen Cyanide” जैसे कणों को देखा गया है। दोस्तों! ये आविष्कार कोई आम खोज नहीं हैं; क्योंकि इसी खोज से ही हमें अंतरिक्ष में मौजूद ओर्गानीक मॉलिक्यूल्स के बारे में पता चलेगा।
अब कई लोग ये सोचेंगे की, ओर्गानीक कणों के खोज से हमें क्या फायदा हो सकता हैं। तो मित्रों बता दूँ की, इन कणों के माध्यम से हम ब्रह्मांड में जीवन की खोज कर सकते हैं। क्योंकि जीवन भी तो एक तरीके से ओर्गानीक कणों से ही बनी हुई हैं और हम सब इसके अलग-अलग रूप हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
हमने इस पूरे लेख में रेडियो टेलिस्कोप (radio telescope in hindi) से जुड़ी कई बातों को जाना। हमने देखा की ये कैसे काम करता हैं और इसके क्या-क्या इस्तेमाल हैं। फिर आखिर में इन दूरबीनों से किए गए कुछ बहुत ही खास आविष्कारों के बारे में भी जाना। तो, कुल मिला कर हमने एक तरीके से रेडियो टेलीस्कोप को जान लिया।
वैसे अभी भी इस दूरबीन से जुड़ी कई सारे बातें हैं, परंतु उन सभी बातों को जानने के लिए हमें और कई सारे विषयों के बारे में भी जानना पड़ेगा। तो अगर आप इसके बारे में और अधिक जानना चाहते हैं तो, मेँ आपको आने वाले समय में जरूर ही बताऊंगा। वैसे अभी के लिए बस इतना ही।
Sources :- books.google.co.in, www.atnf.csiro, www.radio2space.com, www.sciening.com.