हमारा ग्रह लाखों तरह के सूक्ष्म जीवों और चीज़ों से भरा हुआ है, इन्हीं में से एक सबसे विचित्र और रहस्यमयी रोगाणु (Virus) की खोज वैज्ञानिकों ने एक कृत्रिम झील के पानी में की है, ये पहला ऐसा वायरस (yaravirus In Hindi) खोजा गया है जिसके अंदर मौदूद जीन इतने विचित्र है कि वे किसी भी तरह के प्राणी में पहले देखे नहीं गये हैं। कोरोना वायरस (Coronavirus Hindi) से भी ये कई गुना विचित्र और अजीब है पढ़िए इसके बारे में –
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ये से लिए वायरस के नमूने
कुछ साल पहले वैज्ञानिकों की टीम ने ब्राजील के बेलो होरिज़ोंटे शहर में पानी की एक कृत्रिम झील से कई नमूने इकट्ठे किये थे, उन्हें वहां विशालकाय वायरस के समुहों के खोजे जाने की आशंका थी, वैज्ञानिक मानते थे कि ये वायरस अमीबा जो कि एक सिंगल सैल जीव है उसे जाकर के संक्रमित कर देते हैं। पर जब उन्होंने पानी के सैंपल पर शोध किया तो पाया कि बड़े वायरस और बड़े जीनोम वाले वायरसों तो पानी में नहीं हैं बल्कि उनसे कई गुना छोटे और विचित्र वायरस उसमें मौजूद हैं जिनके जीन (डीएनए में मौजूद गुण-सूत्र) बहुत ही विचित्र हैं।
वरिष्ठ लेखक जोनाटस अब्राहो (Jônatas Abrahão) जो कि ब्राजील के विश्वविद्यालय मिनस वेरिस के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में एक एसोसिएट प्रोफेसर हैं कहते हैं “यह वास्तव में एक बड़ा आश्चर्य था क्योंकि अब तक हम केवल विशाल वायरस को अमीबाओं को संक्रमित करने के लिए जानते हैं, न कि छोटे वायरस को,”।
लाइवसाइंस (Livescience) में दिये गये अपने बयान में अब्राहो कहते हैं कि “ये नया वायरस केवल 80 नैनोमीटर व्यास का था, लेकिन सभी अमीबा-संक्रमित वायरस जिन्हें हम आज तक जानते हैं, 200 नैनोमीटर से अधिक बड़े हैं”।
“यारावयारस” (Yaravirus) है इस विचित्र वायरस का नाम
शोधकर्ताओं ने इस विचित्र वायरस को “यारावयारस” (Yaravirus In Hindi) नाम दिया है, यारा पानी की मां को कहा जाता है जो कि ट्युपी-गुआरानी (Tupi-Guarani) स्वदेशी जनजातियों की पौराणिक कहानियों में एक महत्वपूर्ण चरित्र है।
जब शोधकर्ताओं ने इस माइक्रोब के जीनोम का विश्लेषण किया, तो उन्होंने पाया कि उनमें से अधिकांश को किसी अन्य वायरस में कभी नहीं देखा गया था। अब्राहो ने कहा, “उन्होंने हजारों पर्यावरणीय जीनोमिक डेटा में यारावायरस (Yaravirus In Hindi) के जीन हस्ताक्षर की खोज की पर उन्हें कोई संकेत नहीं मिला,” जो ये दर्शाता है कि यह वायरस कितना दुर्लभ है।
वायरस में मिले 74 जीन्स में से केवल 6 जीन को ही वैज्ञानिक पहचान सके हैं जो कि पृत्वी पर किसी और वायरस और जीव से मिलते हैं बांकी जीन बहुत दुर्लभ हैं। अब्राहो कहते हैं खोजे गये कुछ ज्ञात जीनों को विशालकाय विषाणुओं में मौजूद माना जाता है , लेकिन क्योंकि यारावायरस (Yaravirus In Hindi) आकार और जीनोम दोनों में छोटा है, इसलिए यह एक विशाल विषाणु नहीं है। फिर भी, ये अमीबा को उसी तरह संक्रमित करता है जैसे विशालकाय वायरस करते हैं।
सबसे अलग है इसका डीएनए
वैज्ञानिक मानते हैं कि यारावायरस एक ऐसा वायरस है जो फिलहाल वायरस में पाये जाने वाले डीएनए को चुनौती देता है, ये हमें बताता है कि हमें डीएनए वायरस की परिभाषा पर दुबारा विचार करना चाहिए। डीएनए वायरस प्रोटीन के आधार पर वर्गीकृत किए जाते हैं जो उनके खोल या कैप्सिड बनाते हैं। यारावयरस (Yaravirus In Hindi) के कैप्सिड किसी भी पहले से ज्ञात प्रोटीन से मिलते-जुलते नहीं है। यह भी स्पष्ट नहीं है कि इस वायरस की उत्पत्ति कब और कहां हुई।
यारावायरस पर अभी और अध्ययन करना जरूरी है इसलिए इसे अभी सभी ज्ञात वायरसों की श्रेणी से दूर रखा जायेगा और अगर और भी इसके जैसे वायरस हमें मिलते हैं तो उन्हें एक अलग क्लास में रखा जाना उचित होगा। इसके साथ अब्राहो ये भी कहते हैं कि इस तहर के वायरस पृथ्वी पर लाखों सालों से जीवित हैं और सिंगल सैल जीवों को प्रभावित करते रहते हैं। फिलहाल ये वायरस हम इंसानो को किसी भी तरह से प्रभावित नहीं करता है, हमें इससे कोई खतरा नहीं है, ये केवल अमीबा जेसे छोटे जीवों को ही संक्रमित कर पाने में सक्षम है।
अब्राहो आगे कहते हैं, “अगर हम अब तक के सभी ज्ञात वायरस (Yaravirus In Hindi) पर विचार करते हैं, तो हम कह सकते हैं कि उनमें से अधिकांश हमारे स्वास्थ्य के लिए किसी भी तरह के खतरे का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।” लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि हमें उनकी परवाह नहीं करनी चाहिए। पोषक तत्वों के पुनर्चक्रण या कीटों को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए पर्यावरण में वायरस बेहद महत्वपूर्ण हैं।
अमीबा जैसे जीवों पर करता है यारावायरस प्रहार
यह वायरस कैसे अमीबा और अन्य संभावित जीवों के साथ संपर्क करता है और इसकी उत्पत्ति और यह कैसे विकसित हुआ, यह समझने के प्रयास में वायरस की विशेषताओं का और अधिक विश्लेषण करना जरूरी है। अभी हम केवल कुछ ही वायरसों के बारे में जान सके हैं पर लाखों वायरस ऐसे हैं जो इस पृथ्वी पर करोड़ो सालों से रह रहे हैं और पयार्वरण में योगदान दे रहे हैं।
करोड़ो सालों से वायरस और जीवों की जंग में हम इंसान भी इनसे अछुते नहीं है, हमारे डीएनए का 8 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं वायरसों ने बनाया हुआ है जो कि बहुत ही ज्यादा प्रभावित करता है, हो सकता है कि जो बुद्धिमता हमारे अंदर है वो इनकी देन हो, कहना मुश्किल है पर जैसे – जैसे शोध आगे बढ़ेगा हमें और भी विचित्र बातें पता चलती रहेंगी।
अब्राहो की ये रिसर्च फिलहाल पूरी तरह रिव्यू नहीं की गयी है, उन्होंने ये BioRxiv के डाटावेस में 28 जनवरी को पोस्ट की थी, वैज्ञानिक अभी इस पर काम कर रहे हैं देखते हैं कैसे ये शोध हमारे लिए आगे काम आती है।