LIGO (Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory) एक बहुत बड़े स्तर का भौतिकी से जुड़ा वैज्ञानिक प्रयोग है। इसके लिए संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) में दो बहुत बड़ी वेधशालाएँ(Observatory) बनाई गयी हैं जो हनफोर्ड, वाशिंगटन और लिविंगस्टन, लुइसियाना में है । इन वेधशालाओं में लेजर इन्फेरोमीटर तकनीक की मदद से ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया जाता है ।
इसे सरल भाषा में समझने के लिए पहले हमे ये समझना होगा की गुरुत्वाकर्षण तरंग क्या है?
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गुरुत्वाकर्षण तरंग क्या है?- What are Gravitational Waves?
तरंगो के बारे में तो हम सब जानते हैं, ध्वनि तरंगे, चुम्बकीय तरंगे, रेडियो तरंगे यहाँ तक की प्रकाश की तरंगो के बारे में भी वैज्ञानिको ने पता लगा लिया है । पर गुरुत्वाकर्षण तरंगो (Gravitational Waves) के बारे में वैज्ञानिको को बहुत कम पता था ।
वर्ष 1916 में महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने अपने सापेक्षता के सामान्य सिद्धांत में गुरुत्वाकर्षण तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की | आइंस्टीन ने गणित के माध्यम से ये बताया की जब बहुत बड़े आकर की गतिशील वस्तुएं (जैसे न्यूट्रॉन तारे (Neutron Star) या एक दूसरे की परिक्रमा करने वाले ब्लैक होल (Black Hole)) अंतरिक्ष (What is Space ?) को विकृत करती हैं तो उनसे तरंगे उत्पन्न हों और ये तरंगे उन वस्तुओ से दूर प्रकाश (light) से भी तेज़ गति से आगे बढती हैं, जैसे जब हम किसी तालाब में पत्थर फेंकते हैं तो पानी में तरंगे पत्थर से दूर बढती हैं, इन्हें ही गुरुत्वाकर्षण तरंगे कहते हैं |
ये तरंगे हर उस जगह होती हैं तहां गुरुत्वाकर्षण फील्ड (Gravitational Field) होता है, परन्तु वहां इन तरंगो की शक्ति इतनी कम होती है की इन्हें मापा या अनुभव नहीं किया जा सकता | पर जब ये तरंगे किसी बहुत बड़े गुरुत्वाकर्षण फील्ड से निकलती हैं तो इन्हें मापना संभव है |
सबसे मजबूत गुरुत्वाकर्षण तरंगें विनाशकारी घटनाओं से उत्पन्न होती हैं जैसे कि ब्लैक होल का आपस में टकरा जाना, सुपरनोवा का टूटना, न्यूट्रॉन सितारों या सफ़ेद बौने तारों का सिकुड़ जाना और संभवतः ब्रह्मांड के जन्म से बना गुरुत्वाकर्षण विकिरण भी |
LIGO प्रोजेक्ट का प्रारंभ – Start of LIGO Project
1970 के दौरान अमेरिका के MIT विश्वविद्यालय में शोध के दौरान एक किलोमीटर लम्बे ऐसे वेधशाला के निर्माण की परिकल्पना की गयी जिससे गुरुत्वाकर्षण तरंगो को रिकॉर्ड किया जा सके | इस शोध को राष्ट्रीय विज्ञान महासंघ (NSF) द्वारा वित्तीय सहायता दी गयी और Caltech और MIT द्वारा संचालित, निर्मित और परिकल्पित किया गया |
अंततः 1999 में प्रथम LIGO वेधशाला का उद्घाटन किया गया | इस वेधशाला द्वारा 2002 से 2010 तक डेटा एकत्र किया गया लेकिन किसी गुरुत्वाकर्षण तरंग का पता नहीं चला | जिस कारण मूल LIGO डिटेक्टरों की क्षमता को बढ़ाने के लिए Advance LIGO (aLIGO) प्रोजेक्ट 2008 में फिर शुरू हुआ और 2014 में इसकी दोनों वेधशालाए तैयार हो गयी |
14 सितम्बर 2015 को LIGO ने पहली बार दो ब्लैक होल की टक्कर से उत्पन्न गुरुत्वाकर्षण तरंगों का पता लगाया था | इसके बाद दिसंबर 2018 तक, LIGO ने गुरुत्वीय तरंगों के ग्यारह सुचनाए दर्ज किए हैं, जिनमें से दस बाइनरी ब्लैक होल के विलय से हैं जबकि अन्य घटना 17 अगस्त 2017 को दो न्यूट्रॉन सितारों की टक्कर से उत्पन्न है |
ये कैसे काम करता है? – How LIGO works?
LIGO अपने आप में इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी का चमत्कार है | जैसा की हमने पहले बताया इसके दो वेधशाला हैं, जिसमे प्रत्येक में 4 किमी लंबे एल-आकार के डिटेक्टर वैक्यूम चैंबर्स हैं | ये दोनों वेधशालाए एक दुसरे से लगभग 3000 किलोमीटर की दूरी पर है और एक साथ मिल कर काम करती हैं |
ये इतना संवेदनशील है की परमाणु के नाभिक (Nucleus Of An Atom) की तुलना में 10,000 गुना छोटे आकर के हलचल को पहचान सकता है, जो की अबतक विज्ञान द्वारा आजमाया गया सबसे छोटा माप है | इसकी इसी संवेदनशीलता के कारण ये ब्रह्मांड में घटे प्रलयकारी घटनाओ जो दसियों लाख या अरबों प्रकाश वर्ष दूर हो रहे हैं, वहां से आने वाली सूचनाओ को भी रिकॉर्ड कर सकता है |
LIGO Interferometer
LIGO की वेधशालाएँ (LIGO Observatory) तकनीकी रूप से इंटरफेरोमीटर के रूप में जानी जाती हैं। ये कई वैज्ञानिक क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है | इंटरफेरोमीटर में इंटरफेरेंस पैटर्न बनाने के लिए प्रकाश के दो या अधिक स्रोतों को आपस में टकराया जाता है | इस तरह के पैटर्न प्रकाश की एक दुसरे से टकराती तरंगों से उत्पन्न होते हैं।
जब प्रकाश की दो तरंगों की चोटियाँ ओवरलैप होती हैं, तो वे एक बड़ी चोटी (Constructive Interference) बनती हैं | इसके विपरीत, जब एक प्रकाश तरंग की घाटी किसी अन्य प्रकाश तरंग के शिखर के साथ ओवरलैप होती है, तो दो तरंगें एक दूसरे को नष्ट कर देती हैं (Destructive Interference) | ये इंटरफेरेंस पैटर्न वैज्ञानिकों को प्रकाश उत्सर्जित करने वाले स्रोतों के गुणों के बारे में सुराग प्रदान करते हैं।
LIGO Technology
LIGO के भीतर, इसकी दोनों भुजाओ में विशुद्द आईने लगे होते हैं जो उनसे टकराने वाले लेज़र किरणों को पूरी तरह वापस भेज देते हैं | जिस कारण आईने के ओर जाती हुई लेज़र किरण और लौटती हुई लेजर किरण एक दूसरे को पूरी तरह से रद्द कर देती हैं | नतीजतन, कोई प्रकाश, LIGO के एक अन्य घटक जिसे फोटोडेटेक्टर कहा जाता है, तक नहीं पहुंचता है |
हालांकि, जब एक गुरुत्वाकर्षण तरंग LIGO की भुजाओ के बिच से गुजरती है, तो यह एक डिटेक्टर हाथ को फैलाएगी और दूसरे को संपीड़ित करेगी, जिससे यह सही विनाशकारी हस्तक्षेप होगा, जिससे कुछ प्रकाश फोटोडेटेक्टर तक पहुंच जाता है | इस तरह प्रकाश के पैटर्न के परिवर्तन के बारे में जानकारी प्राप्त होगी और गुरुत्वाकर्षण तरंगों और उनके स्रोत और गुणों के बारे में पता चलता है |
LIGO – India – भारतीय LIGO
INDIGO या IndIGO भारतीय गुरुत्वाकर्षण-तरंग भौतिकविदों का एक संघ है, जो महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के औंधा नागनाथ के पास गुरुत्वाकर्षण-तरंग को रिकॉर्ड करने के लिए एक बहु-संस्थागत वेधशाला स्थापित करने का प्रयास कर रहा है |
यह वेधशाला बिलकुल Advance LIGO की तकनीक के अनुसार बनायीं जाएगी | भारत में निर्मित होने वाला LIGO, वैज्ञानिकों की एक भारतीय टीम द्वारा संचालित किया जायेगा जो गुरुत्वाकर्षण तरंगो की खोज करेंगे | आशा है की भारतीय LIGO वेधशाला का निर्माण 2024 तक पूरा हो जायेगा |
गुरुत्वाकर्षण तरंगो की खोज क्यों जरूरी है – Why finding Gravitational Waves important?
ऐतिहासिक रूप से, वैज्ञानिक ब्रह्मांड (Universe) में सुदूर स्थित वस्तुओं और घटनाओं के अध्ययन के लिए विशेष रूप से विद्युत चुम्बकीय (EM) विकिरण (जैसे प्रकाश, एक्स-रे, रेडियो तरंगों, माइक्रोवेव, आदि) पर ही भरोसा किया है पर सूचना के ये स्रोत काफी सिमित हैं, जिनसे सिमित जानकारी ही मिल सकती हैं | जैसे ब्लैक होल के टकराने जैसी चीजें EM खगोलविदों के लिए पूरी तरह से अदृश्य होती हैं |
इस ब्रह्माण्ड में ऐसी बहुत से वस्तुये या घटनाये ऐसी होंगी जिनके बारे में हम प्राचीन EM तरंगो के माध्यम से कभी नहीं जान पाते | जबकि गुरुत्वाकर्षण तरंगें, EM विकिरण से पूरी तरह से असंबंधित हैं ।
गुरुत्वाकर्षण तरंगों (Gravitational Waves) द्वारा प्राप्त सूचनाओं का पता लगा कर और उनका विश्लेषण करके अब हम ब्रह्मांड को और अच्छी तरह से जान पाएंगे .
इन गुरुत्वाकर्षण तरंगो को मापना इसलिए भी जरूरी है क्यूंकि इनमे इन तरंगो की उत्पत्ति के बारे में जानकारी होती हैं, साथ ही साथ गुरुत्वाकर्षण (Gravity) की प्रकृति का भी सुराग मिलता है। जिससे अंततः हमें ये पता चलेगा की इस ब्रह्माण्ड की सृष्टी कैसे हुई | खैर वो दिन अभी बहुत दूर है पर इस दिशा में पहला कदम है LIGO .
गुरुत्वाकर्षण तरंगो का पता लगा कर LIGO ने अध्ययन की एक नई खिड़की खोली है और भौतिकी, खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी में रोमांचक नए शोध की शुरुआत की है, जो खगोलविदों और अन्य वैज्ञानिकों को ब्रह्माण्ड के अनदेखे या अप्राप्य आश्चर्यों की झलक दिखाने में सक्षम है ।