यह सोचने में ही बड़ा विचित्र लगता है कि कैसे कोई इंसान 40 लाख वर्ष तक सो सकता है, पर हिन्दू धर्म शास्त्रों की माने तो ऐसा एक इंसान था जो करीब 40 लाख वर्षों तक सोता रहा।
यह कोई और नहीं बल्कि भगवान राम जी के पूर्वज थे, इनका नाम राजा मुचुकुन्द था और भगवान इंद्र की वजह से इन्हें इतने वर्षों तक सोना पड़ा था। आखिर क्यों वे इतने वर्षों तक सोते रहे, आइये जानते हैं।
महाराज मुचुकुन्द राजा मान्धाता के पुत्र थे। ये पृथ्वी के एक छत्र सम्राट थे। बल और पराक्रम इतना कि देवराज इन्द्र भी इनकी सहायता के इच्छुक रहते थे।
एक बार असुरों ने देवताओं को परास्त कर दिया। दुखी होकर देवताओं ने महाराज मुचुकुन्द से सहायता की प्रार्थना की। देवराज की प्रार्थना स्वीकार करके वे बहुत समय तक असुरों से युद्ध करते रहे। बहुत समय पश्चात देवताओं को शिव जी की कृपा से स्वामी कार्तिकेय के रूप में योग्य सेनापति मिल गये।
तब देवराज इन्द्र ने महाराज से कहा –राजन् ! आपने हमारी बड़ी सेवा की। आप हजारों वर्षों से यहाँ हैं। अतः अब आपकी राजधानी का कहीं पता नहीं है। आपके परिवार वाले सब काल के गाल में चले गये। हम आप पर प्रसन्न हैं। मोक्ष को छोड़ आप कुछ भी वर माँग लें; क्योंकि मोक्ष देना हमारी शक्ति से बाहर है।
महाराज को मानवीय बुद्धि ने दबा लिया। उन्होंने कहा – देवराज ! मैं यह वरदान माँगता हूँ कि मैं जी भर सो लूँ, कोई विघ्न न डाले।जो मेरी निद्रा भंग करे, वह तुरंत भस्म हो जाय।
देवराज ने कहा –ऐसा ही होगा, आप पृथ्वी पर जाकर शयन कीजिए। जो आपको जगायेगा, वह तुरंत भस्म हो जायगा। महाराज मुचुकुन्द भारतवर्ष में आकर एक गुफा में सो गये। सोते सोते उन्हें कई युग बीत गये। अगर गणित के अनुसार इस अवधि को नापा जाये तो ये करीब 40 लाख वर्षों के बराबर मानते हैं।
फिर 28 वां द्वापर आ गया, भगवान विष्णु ने यदुवंश में कृष्ण अवतार लिया। उसी समय कालयवन ने मथुरा को घेर लिया। उसे मरवाने की नियत से और महाराज मुचुकुन्द पर कृपा करने की इच्छा से भगवान श्री कृष्ण कालयवन के सामने से छिपकर भागे। भागते भागते भगवान उस गुफा में घुसकर छिप गये, जहाँ महाराज मुचुकुन्द सो रहे थे। भगवान ने अपना पीताम्बर धीरे से उन्हें ओढ़ा दिया और आप छिपकर तमाशा देखने लगे।
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कालयवन गुफा में आया और महाराज को ही भगवान कृष्ण समझकर दुपट्टा खींच कर जगाने लगा। महाराज जल्दी से उठे। सामने कालयवन खड़ा था, दृष्टि पड़ते ही वह जलकर भस्म हो गया ।
अब तो महाराज इधर उधर देखने लगे। भगवान के तेज से गुफा जगमगा रही थी। उन्होंने भगवान श्री कृष्ण को मंद मंद मुस्कराते हुए देखा। देखते ही वे समझ गये कि ये साक्षात् परब्रह्म परमात्मा हैं, वे भगवान के चरणों में लोट पोट हो गये।
भगवान ने उन्हें उठाकर छाती से लगाया, भाँति भाँति के वरों का प्रलोभन दिया; परंतु उन्होंने यही कहा -प्रभो ! मुझे देना है तो अपनी भक्ति दीजिए। भगवान ने कहा –अब अगले जन्म में तुम सब जीवों में समान दृष्टि बाले ब्राह्मण होओगे, तब तुम मेरी जी खोलकर उपासना करना। वरदान देकर भगवान अन्तर्धान हो गये।
साभार – डा. अजय दीक्षित ( अजबगजब)
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