अगर मैं आप लोगों से पूछूँ कि, “आप में से कितने लोगों के बड़े-बड़े सपने हैं?” शायद सभी इस सवाल के जवाब में हाँ ही भरेंगे। फिर मेँ आप लोगों से ये पूछूँ कि, “आप में से कितने लोग महत्वाकांक्षी हैं?” तो, पहले से कुछ कम लोग इस सवाल के जवाब में हाँ, भरेंगे। परंतु, अगर मैं आखिरी सवाल ये पूछूँ कि, “आप लोगों में से कितनों ने अपने महत्वाकांक्षी सपनों को पूरा कर किया है?” तो, शायद इस सवाल के जवाब में केवल 1-2 लोग ही हाँ भर पाएंगे। मित्रों! कहने का तात्पर्य ये है कि, हम बड़े-बड़े सपने तो देखते हैं; परंतु उसको पूरा करने का जज्बा बहुत ही कम लोगों में होता हैं। वैसे एक ऐसा ही सूरज को छूने का (parker solar probe in hindi) सपना नासा ने बहुत ही सालों पहले देखा था।
देखें! बड़े सपनों को वो ही लोग सच कर पाते हैं, जो अपने सपनों के पीछे पागल होते हैं। यानी सपनों को पूरा करने कि चाहत उनके रग-रग में बसी होती है। सूरज को छूने (parker solar probe in hindi) का सपना कोई आम- साधारण सपना नहीं था। क्योंकि, इससे पहले अगर कोई आपको इस सपने को पूरा करने के बारे में कहता, तो शायद आप उसे कोई पागल ही समझते।
सूर्य के बाहरी वातावरण का तापमान लगभग “15 लाख डिग्री सेल्सियस” होता है। ऐसे में पृथ्वी में शायद ही ऐसी कोई चीज़ होगी, जो इतने उच्च तापमान को झेल पाए। इसलिए कई लोगों के लिए ये सपना कोई काल्पनिक घटना से ज्यादा नहीं हो सकता था। परंतु, आखिर कार ये सपना भी पूरा हो चुका है। जानना चाहते हैं, आखिर कैसे? तो लेख को आगे पढ़ते रहिए।
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आखिर कैसे हुआ ये सपना पूरा! – Parker Solar Probe In Hindi! :-
इतिहास में पहली बार किसी मानव निर्मित प्रोब (parker solar probe in hindi) ने सूर्य के “कोरोना” (Corona) को स्पर्श किया है। सूर्य के वातावरण में पहुँच कर, इस प्रोब ने इतिहास ही रच डाला है। बता दूँ कि, इस मिशन को सफल करने के लिए नासा का ये “पार्कर प्रोब” सूर्य के पास से हो कर 7 बार पहले भी गुजर चुका है। 2018 में Launch हुए इस प्रोब ने वैज्ञानिकों को पहले भी सूर्य के बारे में काफी कुछ जानकारी दे चुका था। परंतु, इस बार यानी इसके 8 वीं मिशन में ये खुद सूर्य के अंदर घुस गया।
28 अप्रैल, 2021 को इस प्रोब ने सूर्य के बाहरी वातावरण को स्पर्श करा था। खैर इस मिशन के दौरान प्रोब ने तीन बार छोटे-छोटे ट्रिप्स सूर्य के वातावरण में किये था। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ कि, प्रत्येक ट्रिप लगभग 5 घंटे तक चली थी। वैज्ञानिकों के हिसाब से ये प्रोब सूर्य के बहुत ही गर्म इलाकों में गया था, जहां तापमान लगभग 10 लाख डिग्री सेल्सियस तक था। बता दूँ कि, सूर्य की सतह के तापमान से इन इलाकों का तापमान काफी अधिक होता है। सूर्य की सतह का तापमान केवल 5,500 डिग्री सेल्सियस ही रहता है।
वैसे इतने उच्च तापमान में प्रोब ने एक बहुत ही खास काम किया। उसने सूर्य के वातावरण से कई पार्टिकल्स को इक्कठा किया। वैसे जिस उपकरण के जरिए प्रोब ने सोलर पार्टिकल्स को इक्कठा किया उसे “सोलर प्रोब कप” (Solar Probe Cup) कहा जाता है। ये एक बहुत ही खास उपकरण है।
सदी का सबसे बड़ा मिशन! :-
शीर्षक पढ़ कर शायद आप लोग ये सोच रहें होंगे कि, आखिर ये मिशन इतना बड़ा क्यों था? मित्रों! पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर आज तक हमनें सूर्य (parker solar probe in hindi) को सिर्फ दूर से देखा है। सूर्य का तेज ही इतना है कि, आप उसके निकट कभी जानें का सोच ही नहीं सकते हैं। पिछले कई दशकों से, पृथ्वी पर रह कर वैज्ञानिक सूर्य के अंदर क्या-क्या हो सकता है उसके बारे में सिर्फ अनुमान ही लगा पा रहें थे। ये बात कुछ ऐसी है कि, आप समंदर के किनारे बैठे-बैठे समंदर के अनंत गहराई में छुपी चीजों के बारे में अनुमान लगाएँ।
बहुत जरूरी था ये मिशन! :-
मानव सभ्यता कभी भी इस मिशन को दरकिनार नहीं कर सकता थी। चाहे जितना भी कठिन ये मिशन क्यों न हो! एक न एक दिन इस मिशन को सफल करने का सपना सभी वैज्ञानिकों ने देख रखा था। एक उम्मीद थी जब हम सूर्य के वातावरण में अपना प्रोब छोड़ कर वहाँ मौजूद सभी चीजों के बारे में सटीक तरीके से जान पाएंगे। वो मिशन आज पूरा हुआ है और नासा के वैज्ञानिकों को इस मिशन से मिलने वाली खुशी और प्रेरणा शायद आने वाले समय में कई असाधारण मिशनों को पूरा करने का मार्ग भी दिखाएगा। खैर जिस जगह पर प्रोब गया था, वो जगह वाकई में काफी ज्यादा प्रतिकूल थी।
शक्तिशाली सोलर विंड से लेकर प्लाज्मा से निकलने वाले काफी ज्यादा चार्ज़्ड पार्टिकल से लेकर हर एक चीज़ सूरज के कोरोना में ही मौजूद रहती है। तो, आप खुद सोचें कि एक प्रोब के लिए वहाँ जाना कितना ज्यादा खतरनाक होगा। हालांकि! इस मिशन के दौरान वैज्ञानिकों ने सूर्य के मैग्नेटिक फ़ील्ड को इस्तेमाल करते हुए बड़े ही सावधानी से प्रोब को सूर्य के कोरोना में दाखिल करवाया। सूर्य की सतह पर एक ऐसी जगह भी है जहां इसको अंजाम दिया जा सकता है।
मिशन के दौरान आने वाली चुनौतियां! :-
मित्रों! मैंने अभी-अभी सूर्य (parker solar probe in hindi) के ऊपर स्थित एक बहुत ही खास जगह के बारे में बात की है। परंतु खेद की बात ये है कि, इस मिशन से पहले वैज्ञानिकों को उस जगह के बारे में कुछ नहीं पता था। परंतु पार्कर प्रोब के कारण वैज्ञानिकों को आखिरकार उस जगह के बारे में पता चल गया, जिसको उन्होंने “Alfvén point” का नाम दिया था। बता दूँ कि, ये जगह सूर्य के सतह से लगभग 13 लाख किलोमीटर ऊपर वातावरण में मौजूद हैं। मित्रों! इस जगह को ढूँढना ही वैज्ञानिकों के लिए एक पहली और सबसे बड़ी चुनौती थी।
इसके अलावा मिशन के दौरान प्रोब को अन्य यांत्रिक चुनौतियों से भी जूझना पड़ रहा था। सोलर विंड और सोलर फ्लैयर्स के कारण प्रोब के अंदर लगा पावर ग्रिड काफी ज्यादा मुसीबत में था। पावर ग्रिड के जूझने के कारण, प्रोब का पृथ्वी से संपर्क सही तरीके से हो नहीं पा रहा था। सोलर रैडीएशन के कारण भी प्रोब में लगा इलैक्ट्रिक उपकरण सही तरीके से काम नहीं कर पा रहा था। मित्रों! इससे पृथ्वी पर बैठे वैज्ञानिक भी काफी ज्यादा चिंतित थे। क्योंकि, प्रोब को कोई नई कमांड देना तभी संभव हो पाता जब प्रोब का कम्युनिकैशन प्रणाली सही ढंग से काम करे।
खैर वैज्ञानिकों के हिसाब से मिशन के दौरान उन्हें कई सारे विचित्र चीजों के बारे में जानने को मिला। क्योंकि, प्रोब जिस-जिस जगह पर जा रहा था, उन जगहों पर पहले कभी इंसान निर्मित कोई यान या प्रोब नहीं गया था। इसलिए मिशन से मिलने वाले जानकारिओं से वैज्ञानिक सूर्य के वातावरण और उसके सोलर विंड के बारे में विश्लेषण करना अभी से शुरू कर दिये हैं।
आखिर कैसे ये प्रोब सूर्य के इतने भीषण गर्मी को झेल पाया? :-
अब लोगों के मन में ये चल रहा होगा कि, आखिर ये प्रोब (parker solar probe in hindi) सूर्य के इतने भीषण गर्मी को कैसे झेल सका? तो, चलिए इस सवाल के उत्तर को भी हम थोड़ा देखा लेते हैं।
वैज्ञानिकों ने प्रोब कि सुरक्षा के लिए एक हिट-शील्ड का निर्माण किया था, परंतु इतनी सुरक्षा प्रोब के लिए काफी नहीं थी। सोलर प्रोब कप को सही-सलामत रखने के लिए उन्होंने इसे सफायर, टंगस्टन, मोलिब्डीनम और निओबायम से बनाया था। बता दूँ कि, ये पदार्थ आसानी से पिघलते नहीं है और ये सूर्य के तापमान को भी झेल सकते हैं।