
हमारे ब्रह्मांड में दोनों ही सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा मौजूद है जो संतुलन बनाये रहती हैं। किसी भी चीज़ का हद से ज्यादा बढ़ जाना ब्रह्मांड में असंतुलन पैदा कर देता है। जब किसी भी खगोलीय चीज़ की अंतिम अवस्था आ जाती है तब वो चीज़ एक भयानक तरीके से इस अंतरिक्ष से लुप्त हो जाती है। ऐसे ही एक भयानक तरीके का नाम है “Hypernova” (hypernova in hindi), जिसे की अंतरिक्ष की सबसे भयानक खगोलीय घटना भी कहा जाता है।
तो, सवाल उठता है की ये “Hypernova” (hypernova in hindi) आखिर क्या हैं और ये कितना शक्तिशाली है? वैसे इसके बारे में हम आगे इस लेख में चर्चा करेंगे परंतु एक बात मैं यहां आप लोगों को बता दूँ की, मैंने पहले से ही सुपरनोवा के बारे में भी लिखा हुआ है और ये विषय सुपरनोवा से भी काफी हद तक जुड़ा हुआ है। इसीलिए आप लोगों से अनुरोध हैं की, अगर आप लोगों ने अभी तक वो लेख नहीं पढ़ा है तो एक बार उस लेख को अवश्य ही पढ़ें।
खैर अब इस लेख में आगे बढ़ते हैं और जानते हैं की, आखिर क्यों Hypernova को इतना खतरनाक माना जाता है? तो, क्या आप तैयार हैं अगर नहीं तो तैयार हो जाइए इस अनोखे लेख में आगे बढ्ने के लिए।
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“Hypernova” क्या हैं? – What Is Hypernova In Hindi? :-
किसी भी चीज़ को अगर उसके मूलभूत बातों से जाना जाए तो वो चीज़ हमें बेहतर तरीके से समझ में आती है। इसलिए सबसे पहले मेँ आप लोगों को बताऊंगा की, आखिर “Hypernova” (hypernova in hindi) किसे कहते है? तो, चलिये इसकी संज्ञा को जानते हैं।
सरल रूप से देखें तो एक “Hypernova” मूलतः एक “Supernova” ही है। परंतु गौर करने वाली बात ये हैं की, ये एक सुपरनोवा से कई हजार गुना ताकतवर हो सकता है। इसी वजह से हम ये भी कह सकते हैं की, “एक हाइपरनोवा एक बहुत ही ज्यादा शक्तिशाली सुपरनोवा होता है जो की चरम सीमा पर होने वाली “Core-collapse” घटना के कारण बनता है”। अब आप लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा होगा की, ये “Core-collapse” क्या होता है? मित्रों! बता दूँ की, Core-collapse जो होता हैं ये एक खगोलीय घटना हैं जो की किसी भी सितारे के अंतिम अवस्था में घट सकता है। इस घटना में सितारे का केंद्र ऊर्जा-रहित होने के कारण अपने ही अंदर बनने वाले अंदरूनी दबाव से ढह जाता है, जिसे की Core-collapse कहा जाता है।

वैसे और एक बात का ध्यान रहें की, अंतरिक्ष में जीतने भी बड़े आकार के सितारे हैं सिर्फ उन्हीं के “Core-collapse” के कारण ही “सुपरनोवा या हाइपरनोवा” जैसे घटनाओं की उत्पत्ति होती है। हाइपरनोवा से निकलने वाली ऊर्जा की मात्रा हमेशा से ही सुपरनोवा से निकलने वाली ऊर्जा की मात्रा से अधिक होता है। तो आप इससे अंदाजा लगा सकते हैं की, ये घटना (हाइपरनोवा) कितना आखिर कितना विध्वंसक होता है।
आखिर कैसे घटता हैं ये “Hypernova”? :-
मुख्य रूप से हाइपरनोवा (hypernova in hindi) सूर्य से 30 गुना ज्यादा बड़े (या इससे भी बड़े) सितारों में देखा जाता है। तो, हाइपरनोवा के प्रारंभिक अवस्थाओं में सितारे का केंद्र ढह जाता हैं और इससे एक घूमने वाले “ब्लैक होल” का निर्माण होता है। इसी घूमने वाले ब्लैक होल के चारों तरफ से दो ऊर्जा से भरी हुई “Jets” निकलती हैं और ब्लैक होल के चारों तरफ एक डिस्क का निर्माण करती हैं। वैज्ञानिकों ने इस डिस्क को “Accretion Disk” का नाम दिया है। वैसे ये घटना इतनी तेजी से होती हैं की, इससे सितारे के बाहर के हिस्से बिलकुल अनजान होते है।

डिस्क के बनने के बाद इसके चारों तरफ बहुत ही तेजी से हवा का एक स्रोत लिपट जाता है। इससे सितारे के केंद्र में दबाव और भी ज्यादा बढ़ जाता है। दबाव इतना ज्यादा होता हैं की, बाद में ये एक भयानक विस्फोट का भी रूप ले सकता है। इस प्रक्रिया में एक रेडियो एक्टिव पदार्थ का भी भारी मात्रा में इस्तेमाल होता हैं, जिसे की “56Ni” भी कहा जाता है। बता दूँ की, हाइपरनोवा प्रक्रिया के लिए लगने वाले ऊर्जा की पूर्ति ये पदार्थ ही करता है। इसलिए इस पदार्थ का होना बहुत ही जरूरी हैं, हाइपरनोवा के होने के लिए।
हाइपरनोवा से काफी ज्यादा मात्रा में प्रकाश भी निकलता हैं, जो की 56Ni के विघटन के कारण ही पैदा होता है। वैसे जब हाइपरनोवा के कारण प्रकाश निकलता हैं तब सितारा भी बहुत ही भयानक तरीके से फटता है। विस्फोट इतना तीव्र होता हैं की, कई हजारों प्रकाश वर्ष तक इसके प्रभावों को देखा जा सकता हैं। वैसे हम आगे इस लेख में हाइपरनोवा के प्रभावों के बारे में भी चर्चा करेंगे।
हाइपरनोवा के अंतरिक्ष में प्रभाव :-
लेख के इस भाग में हम हाइपरनोवा (hypernova in hindi) के प्रभावों के बारे में चर्चा करेंगे। तो, इस भाग को जरा गौर से पढ़िएगा क्योंकि इसी से ही आप लोगों को हाइपरनोवा के ताकत का एहसास होगा। खैर चलिये अब इसके ताकत के बारे में जानते है।
वैज्ञानिकों को पृथ्वी से लगभग 2.5 करोड़ प्रकाश वर्ष दूर एक हाइपरनोवा के होने का अनुमान है। कहा जा रहा है की, ये धमाका बिग-बैंग के बाद अंतरिक्ष में घटने वाला दूसरा सबसे बड़ा धमाका हैं जो की आकार और ऊर्जा के पैदावार में सुपरनोवा को काफी पीछे छोड़ देता है। वैसे वैज्ञानिकों को लगता हैं की, अभी तक हमारे आकाशगंगा के पास दो एक्टिव हाइपरनोवा मौजूद हैं जिनको की वो लोग “MF83 और NGC5471B” के नाम से जानते है। ये दोनों ही हाइपरहोवा हमारे आकाशगंगा के निकट मौजूद “स्पाइरल गैलक्सि M101″ में स्थित है।

हाइपरनोवा की अगर हम प्रभावों की बात करें तो, एक हाइपरनोवा से इतनी भारी मात्रा में प्रकाश निकलता हैं की वो अंतरिक्ष में कई सौ प्रकाश वर्ष के इलाके को उज्ज्वलित कर सकता है। हम आज पृथ्वी पर जीतने भी मात्रा में प्रकाश को देख रहें हैं उससे लगभग 1 करोड़ गुना प्रकाश एक हाइपरनोवा से निकलता है। वैसे एक हाइपरनोवा के कारण जो तरंग पैदा होती हैं उन्हें कई हजारों प्रकाश वर्ष के दूरी से भी महसूस किया जा सकता है।
गामा रे बर्ट्स और हाइपरनोवा के बीच का रिश्ता! :-
कुछ वैज्ञानिक हाइपरनोवा (hypernova in hindi) के बनने को गामा रे बर्ट्स के साथ भी जोड़ कर देख रहें है। हालांकि! इसके बारे में अभी भी वैज्ञानिकों के अंदर कई सारे विवाद लगे रहते हैं। परंतु फिर भी इसके बारे में जानना बहुत ही जरूरी है। गामा रे बर्ट्स जो हैं वो हूबहू हाइपरनोवा के तरह ही बनते है। सितारों के केंद्र का खुद के अंदर की ढहने से ही ये गामा रे बर्ट्स की प्रक्रिया शुरू होती है। इसलिए कहा जाता हैं की, इससे ही हाइपरनोवा बनते है। गामा रे बर्ट्स के दौरान बनने वाले जो जेट के स्ट्रीम है वो हाइपरनोवा के बनने में मदद करती है।

इसके अलावा और एक खास बात ये भी हैं की, गामा रे बर्ट्स और हाइपरनोवा के मध्य एक “Light Curve” भी मौजूद है। ये कर्व हाइपरनोवा के तीव्रता (अनुमानिक) को गामा रे बर्ट्स के तीव्रता के साथ जोड़ कर देखा जाता है जिससे हमें हाइपरनोवा के तीव्रता के बारे में सटीक रूप से पता चलता है। हाइपरनोवा SN1998bw के क्षेत्र में इसी लाइट कर्व के आधार पर ही इसके बारे में कई महत्वपूर्ण तथ्य वैज्ञानिकों को मिला है।
कुछ वैज्ञानिक ये भी कहते हैं की, सितारों के अंतिम अवस्था में इनके चारों तरफ उच्च चुंबकीय क्षेत्र का बनना होता है। इसी वजह से बाहर की और से इन सितारों के ऊपर काफी ज्यादा दबाव पड़ता है जिससे ये विघटित हो कर हाइपरनोवा को उत्पन्न करती है।
Sources :- www.astronomy.swin.edu, www.imagine.gsfc.nasa.gov