पिछले कुछ सालों में सरकारी अंतरिक्ष ऐजेंसी जैसे की NASA, ESA, Roscosmos, ISRO और कनाडा की CNSA और प्राइवेट ऐजेंसी SpaceX और Lockheed Martin ने मंगल ग्रह पर मानव बस्ती को बनाने की बात की है । हालाँकि मंगल ग्रह पर कोलोनी में अभी भी कई भौतिक और आर्थिक चुनौतियां जरूर हैं। पर वैज्ञानिक इस पर रिसर्च करने से नहीं रुकते। यदि आने वाले समय में हम, इस लाल ग्रह पर जाने में सक्षम हो भी जाएँ, तो वहाँ लम्बे समय तक रहना और एक नई दुनिया बनाना भी आसान बात नहीं होगी । इसका मुख्य कारण है ऊर्जा (Energy From Mars Moon),जिसके कई सारे संसाधन हमारी पृथ्वी पर तो मौजूद हैं, पर मंगल पर शायद हमें, ये सही मात्रा में न मिलें!
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मंगल ग्रह पर उर्जा नहीं होती पैदा!
मंगल के वातावरण में हवा इतनी पतली है कि वहाँ पवन ऊर्जा काम नहीं कर सकती। पृथ्वी के मुकाबले मंगल ग्रह की सूर्य से दूरी लगभग 52% ज्यादा है, जिससे वहाँ गिरने वाली सौर रेडियेशन भी पृथ्वी की 42% रेडियेशन के बराबर हैं। हालाँकि वातावरणीय स्थितियां की वजह से वैज्ञानिकों की नजरें सौर उर्जा पर बनी हुई हैं। बात करें बचे हुए ऊर्जा स्रोतों जैसे कि जीवाश्म ईंधन (Fossil Fuel), भूतापीय उर्जा (Geothermal power) पनबिजली ऊर्जा (Hydropower), Nuclear power और Fusion की, तो ये सब अभी भी मंगल ग्रह पर ऊर्जा उत्पादन के लायक नहीं हैं ।
पर दोस्तों, इन सबसे हटकर एक ऐसी चीज मंगल ग्रह पर मौजूद है, जो शायद आपको लम्बे समय तक और भरपूर मात्रा में ऐनेर्जी दे सकती है । बस शर्त ये है कि आपको मंगल ग्रह के एक चंद्रमा (Energy From Mars Moon) को नष्ट करना पड़ेगा ! खैर, ये सुनने में तो बड़ा ही अजीब,अटपटा और असम्भव लग रहा होगा, पर अगर ऐसा किया जाए, तो शायद आपकी उर्जा की सारी समस्या ही खत्म हो जाए।
मंगल ग्रह के चंद्रमा
जैसा कि आपको पता ही होगा, कि मंगल ग्रह के 2 चंद्रमा हैं, जो हमारे सौर-मंडल में सबसे छोटे हैं। ये हैं – फोबोस (Phobos) और डीमोस (Deimos), जिसमें फोबोस आकार में डीमोस से थोड़ा बड़ा है, और मंगल की सतह से मात्र 6,000 Km की दूरी पर परिक्रमा करता है। ये चंद्रमा, किसी दूसरे चंद्रमा के मुकाबले, अपने ग्रह से सबसे ज्यादा करीब है।
फोबोस का परिक्रमा काल (orbital period) मंगल की रोटेशन से काफी कम है, जिसकी वजह से ये चंद्रमा, अपने ग्रह से करीब आता जा रहा है। हर 100 सालों में फोबोस, मंगल के लगभग 2 मीटर और करीब आता जा रहा है, और करीब 5 करोड़ सालों में ये या तो मंगल से टकरा जाएगा, या फिर नष्ट होकर उसके आसपास एक शनि ग्रह की तरह ही एक अंगूठी का आकार बना लेगा ।
इसके अलावा, फोबोस का द्रव्यमान (mass) हमारे चंद्रमा से 70 लाख गुना कम है, पर मानवीय आयाम में ये, काफी ज्यादा भारी भरकम पिंड (Object) है। अब सवाल ये आता है, कि क्या इस रफ्तार से घूमने वाले चंद्रमा से भला हम,मंगल ग्रह पर उर्जा कैसे हासिल कर सकते हैं?
मंगल के चंद्रमा से कैसे पैदा होगी उर्जा?
जैसा कि आपको पता ही होगा, कि किसी भी चलती वस्तु में उसकी गतिज ऊर्जा (kinetic energy) मौजूद रहती है, जिसे हम चाहें, तो अलग-अलग तरीकों से हासिल कर सकते हैं। फोबोस के साथ भी हम ठीक वैसा ही कर सकते हैं।
किसी रस्सी (tether) यानी न टूटने वाली और न मुड़ने वाली रस्सी को अगर फोबोस से जोड़ दिया जाए, तो शायद ऐसा किया जा सकता है। खैर,ये संकल्पना वैज्ञानिकों के लिए कोई नई नहीं है। मंगल की सतह से सामान को भेजने और वापिस लेने के लिए ऐसा पहले भी सोचा जा चुका है। करीब 5,820 Km की एक मजबूत cable या रस्सी को फोबोस की मंगल की साइड पर जोड़ दिया जाए, और उसका दूसरा छोर मंगल ग्रह के वातावरण में छोड़ दिया जाए, तो ये हिस्सा करीब 530 m/s की तेज गति से घूमने लगेगा।
इस हिस्से के आसपास से बहने वाली हवा, 1 वर्ग मीटर में 150 kilowatts की उर्जा पैदा कर सकती है। ऐसे में हर मंगल ग्रह पर, एक 20m व्यास वाली टर्बाइन लगा दी जै, तो ये बहने वाली से करीब 50 मेगावाट की उर्जा पैदा कर सकती है, जो एक शहर के लिए शायद काफी है। ये टर्बाइन किसी आम टर्बाइन जैसी ना होकर, एक सुपरसोनिक टर्बाइन ही होनी चाहिए ।
जाहिर सी बात है कि रस्सी या केवल से जुड़े होने के बाद और टर्बाइ के प्रभाव से, Phobos पर भी काफी बड़ा असर पड़ेगा। मंगल ग्रह से करीब आने की इसकी गति भी बढ़ने लगेगी और चक्कर लगाते हुए ये और करीब आने लगेगा। जितनी ज्यादा विशाल सुपरसोनिक टर्बाइन लगाईं जाएँगी, फोबोस (Energy From Mars Moon) के गिरने की गति भी उतनी ज्यादा बढ़ने लगेगी। इस दौरान हमें रस्सी को लगातार छोटा करना पड़ेगा, ताकि वो मंगल की सतह पर न गिरने लगे।
1000 साल तक 33 करोड़ लोगों को उर्जा
आकलन के मुताबिक़, जब तक फोबोस, मंगल ग्रह के वातावरण में प्रवेश करेगा, तब तक टर्बाइन के जरिए हम करीब 4 x 10^22 J जितनी उर्जा हासिल कर चुके होंगे । मंगल ग्रह पर इतनी उर्जा, करीब 1000 सालों तक, लगभग 33 करोड़ लोगों की पूर्ती आराम से कर सकती है।
यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है कि, जैसे-जैसे रस्सी की लंबाई छोटी होती जाएगी और turbines की संख्या भी बढ़ेगी, हमें रस्सी का वजन और ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा, जो एक चुनौती पैदा कर सकता है। इसके साथ ही, टर्बाइनों की क्षमता और पावर ट्रांस्मिशन के तरीकों के चलते, हमें उर्जा में गिरावट देखने को मिल सकती है ।
फोबोस (Energy From Mars Moon) को हमें मंगल से मिलने वाली ज्वारीय बल (tidal forces) से भी बचाना पड़ेगा, क्योंकि अगर ऐसा नहीं किया गया, तो एक निश्चित दूरी पर इन tidal forces की वजह से हमारा चंद्रमा पोबोस पूरी तरह से तबाह भी हो सकता है।
जब फोबोस मंगल से टकरायेगा!
अब अंत में बात करें उस समय की, जब फोबोस या उसके टुकड़े, हजारों सालों बाद, मंगल के वातावरण से सीधा उसकी सतह से टकराएँगे। इस दौरान, रस्सी या केवल, फोबोस की सारी गुरुत्वाकर्षण स्थितिज ऊर्जा (gravitational potential energy) ले चुकी होगी और इतनी ही उर्जा सीधा मगल ग्रह की सतह पर आ चुकी होगी।
फोबोस की टक्कर से मंगल की सतह पर एक गड्ढे (crater) बनने की संभावना हो सकती है और काफी मात्रा में सतह का मलवा भी अंतरिक्ष में जा सकता है, जो बाद में जलते हुए पत्थरों की बरसात कर सकते हैं। ये दृश्य शायद ही कोई देखना चाहेगा।