अन्तरिक्ष (effects on human body in space) और मानव इन दोनों के बीच का संबंध कुछ ऐसा है कि, जिसे समझने के लिए हम लोगों को शायद सैकड़ो वर्ष लग जाएँ। जब से इंसानी सभ्यता विकसित हो कर समृद्ध हुई हैं, तभी से ही अन्तरिक्ष और इसके अलग-अलग रूप हमें काफी ज्यादा अपनी और आकर्षित करते रहे हैं। हमारा घर पृथ्वी और खुद हम भी इस अन्तरिक्ष का हिस्सा हैं और संशय की बात ये हैं कि, हम बाहर अन्तरिक्ष में दूसरे ग्रहों के बारे में जानने को निकल पड़ते हैं और खुद अपने ग्रह के बारे में ही भूल जाते हैं।
खैर बाहर अन्तरिक्ष (effects on human body in space) में मिशनों पर जाने से इंसानी शरीर पर ऐसे-ऐसे प्रभाव पड़ते हैं कि, आप शायद उनके बारे में सिर्फ कल्पना ही कर सकते हैं। हमें टीवी पर अन्तरिक्ष यात्रिओं को देख कर लगता है कि, दूर अन्तरिक्ष में उनकी जिंदगी कितनी अच्छी और शानदार होगी! परंतु असल में उनकी जिंदगी कितनी कठिन है आप आज इस लेख के जरिए जानेंगे। आज के लेख में हम इंसानी शरीर के ऊपर अन्तरिक्ष का कैसा प्रभाव पड़ता है, उसके बारे में जानेंगे। और देखेंगे कि, हमारे वैज्ञानिक अन्तरिक्ष में रहकर विज्ञान के लिए कैसी तपस्या करते हैं।
तो चलिये अब लेख के मूल विषय को शुरू करते हैं और देखते हैं कि, अगर हम सब एक साल तक अन्तरिक्ष में रहने लगेंगे; तो हमारे शरीर के ऊपर क्या-क्या बदलाव/ प्रभाव देखने को मिलेंगे!
विषय - सूची
अन्तरिक्ष vs मानव शरीर! – 1 Year Effects On Human Body In Space! :-
पिछले 50 सालों से नासा के “Human Research Program” (HRP) के वह अपने अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा व काम करने की सहूलियत बढ़ाने के लिए लगातार कई शोध करता आ रहा है। अन्तरिक्ष (effects on human body in space) का मानव शरीर पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है, इसके बारे में नासा खुद काफी ज्यादा उत्सुक रहता है। आने वाले समय में होने वाले चाँद व मंगल के मिशनों के लिए नासा अपने वैज्ञानिकों को इसी प्रोग्राम के जरिये तैयार भी कर रहा है।
तो, आगे मैं आप लोगों को कुछ सरल व अहम विंदुओं के जरिये अन्तरिक्ष का मानव शरीर पर कैसा पड़ता है, उसके बारे में बताऊंगा। आशा है कि, आप भी इन विंदुओं के जरिये लेख के अंत तक मेरे साथ जुड़े रहेंगे।
1. स्पेस रेडिएशन :-
पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड और वायुमंडल के कारण हम काफी हद तक स्पेस रेडिएशन से बचे रहते हैं, हालांकि तब भी हमारे द्वारा खाये जाने वाले खाने व सांस के लिए ली जाने वाली हवा में भी काफी कम मात्रा में रेडिएशन रहता ही है। इसलिए कहीं न कहीं हम सब काफी कम मात्रा में ही सही, परंतु स्पेस रेडिएशन को झेलते ही हैं। परंतु अन्तरिक्ष (effects on human body in space) में अन्तरिक्ष यात्रिओं के ऊपर कोई भी सुरक्षा कवच (पृथ्वी का वायुमंडल और मैग्नेटिक फील्ड) नहीं होता। इसलिए इनके ऊपर काफी ज्यादा मात्रा में स्पेस रेडिएशन गिरता है।
अन्तरिक्ष में पृथ्वी के बाहरी मैग्नेटिक फील्ड, सूर्य से आने वाले चार्ज्ड़ पार्टिकल्स और कॉस्मिक रे से ही स्पेस रेडिएशन का खतरा इतना बढ़ जाता है। मित्रों! बता दूँ कि, सुदूर अन्तरिक्ष में स्पेस रेडिएशन से बचना काफी ज्यादा कठिन होता है और स्पेस रेडिएशन से होने वाले नुकसान दोनों ही कम और लंबी अवधि के लिए होते हैं। अन्तरिक्ष में बिताए जाने वाले हर एक सेकंड इंसानी शरीर के ऊपर स्पेस रेडिएशन के खतरे को कई गुना ज्यादा बढ़ा देता है।
सिर्फ कुछ महीनों के स्पेस रेडिएशन से ही, कैंसर, मोतियाविंद और दिल के दौरे जैसे कई जानलेवा बिमारियाँ हो सकती हैं। तो आप खुद सोचिए कि, एक साल तक स्पेस में रहने से हमारे शरीर के अंदर किस-किस प्रकार के बीमारियाँ देखने को मिल सकती हैं!
2. स्पेस डिप्रेशन! :-
अन्तरिक्ष (effects on human body in space) में भेजे जाने वाले हर एक अन्तरिक्ष यात्रिओं को काफी खास तरह के ट्रैनिंग और विशेष तरीके से चुना जाता हैं। ताकि आगे चलकर वे लोग अन्तरिक्ष में 6 से 12 महीने तक रह कर अच्छे से काम कर पाएँ। अगर आपको याद हो तो, पिछले सालों में हुए लॉकडाउन्स के कारण काफी सारे लोग अपने परिवार के साथ रह कर भी डिप्रेशन का शिकार हो गए थे। तो, जरा सोचिए सुदूर अन्तरिक्ष में इन अन्तरिक्ष यात्रीओं के ऊपर क्या-क्या बीतती होगी।
न ही परिवार और न ही कोई दोस्त, ऐसे में अकेले रह कर इनके ऊपर स्पेस डिप्रेशन का प्रभाव काफी पड़ता है। ऐसे में नासा के लिए ये जरूरी होता है कि, उसके द्वारा अन्तरिक्ष में भेजा गया हर एक अन्तरिक्ष यात्री दूसरों के साथ मिल जुल कर एक टिम कि तरह काम करें। क्योंकि आने वाले समय में इंसान मंगल तक भी जाने वाले हैं, जो कि पृथ्वी से 19 करोड़ किलोमीटर दूर हैं। ऐसे में मानसिक रूप से ज्यादा मजबूत इंसानों को ही भेजना सही होगा।
3. लंबी दूरी! :-
अन्तरिक्ष (effects on human body in space) में सुदूर मिशनों को अंजाम देना यानी, एक काफी जटिल और चुनौतियों से भरा हुआ काम है। हमारा शरीर बचपन से ही पृथ्वी के वायुमंडल में बढ़ा है और यहाँ के प्राकृतिक अवस्थाओं से वाकिफ़ हैं। परंतु मंगल के मिशन जैसे काफी जोखिमों से भरा हुआ स्पेस मिशन अन्तरिक्ष यात्रिओं के दोनों शारीरिक और मानसिक अवस्थाओं पर गंभीर असर डालते हैं।
“International Space Station” (ISS) पृथ्वी से 400 km ऊपर है, वहीं इस दूरी का 1000 गुना ज्यादा दूरी पृथ्वी और चाँद के बीच है। वहीं इससे लाख गुना ज्यादा दूरी पृथ्वी और मंगल के बीच है। ऐसे में जितनी दूरी बढ़ेगी, हम इंसानों के लिए अन्तरिक्ष में काम कर पाना उतना ही मुश्किल होता जाएगा। पृथ्वी के बाहर जिंदा रहना ही अपने आप में एक बहुत ही बड़ा काम है और जब ये अन्तरिक्ष यात्री पृथ्वी से मंगल तक इतनी लंबी दूरी तय करने लगेंगे, तब खाने-पीने से लेकर बाकी सारे सामान; हर एक बात का उनको ध्यान रखना होगा।
आपको क्या लगता है, लंबी दूरी के कारण अन्तरिक्ष यात्रीओं को किस प्रकार के कठिनाइओं का सामना करना पड़ रहा होगा? क्या आप कभी अगर अन्तरिक्ष में जाते है, तब आप भी इस कठिनाईओं का सामना करना पसंद करेंगे? कमेंट कर के हमें जरूर ही बताइएगा, हमें जान कर बेहद ही खुशी होगी।
4. गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र! :-
अन्तरिक्ष मिशनों के दौरान अन्तरिक्ष यात्रिओं को कई अलग-अलग प्रकार के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का सामना करना पड़ता है। मिशाल के तौर पर मंगल मिशन के समय अन्तरिक्ष यात्रीओं को तीन अलग-अलग गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों का सामना करना होगा। अन्तरिक्ष (effects on human body in space) में गुरुत्वाकर्षण क्षेत्रों में इस तरह का बदलाव अन्तरिक्ष यात्रिओं कि शरीर पर काफी ज्यादा गलत प्रभाव डालता है।
इस के कारण जोड़ों में दर्द से ले कर आपके स्नायु तंत्रों में असुविधा तक हो सकती है। चलने-फिरने में दिक्कत, आँखों में कमजोरी, संतुलन बनाने में परेशानी तथा स्पेस मोशन सिकनेस जैसी बीमारियाँ भी अन्तरिक्ष यात्रिओं के लिए एक बहुत ही बड़े चुनौतीयां हैं। ऐसे में नासा को इसके लिए कुछ न कुछ करना बेहद ही जरूरी है।
एक सर्वे से पता चलता है कि, स्पेस में औसतन हर महीने एक इंसान अपने हाड्डिओं से लगभग 1% से 1.5% काफी जरूरी खनिज/ मिनरल पदार्थों को खो देता है। तो स्पेस में अगर कोई व्यक्ति एक साल रहता है, तो उसके शरीर में लगभग 10.5% मिनरल्स पहले के मुक़ाबले कम हो जाएंगे, जिससे उसका शरीर काफी कमजोर भी हो जाएगा।
5. जालिम अन्तरिक्ष का जुल्म! :-
एक बात जान लेना बेहद ही जरूरी है कि, अन्तरिक्ष (effects on human body in space) इन्सानों का घर बिलकुल भी नहीं है। यहाँ अब तक जीवन जीने के लिए कोई भी बना-बनाया सपोर्ट सिस्टम मौजूद नहीं है। इसलिए अन्तरिक्ष में ISS जैसी अन्तरिक्ष यान/ बेस ही हम इन्सानों के लिए सब कुछ है।
खैर अन्तरिक्ष में स्पेस रेडिएशन जैसी कई भौतिक असुविधाओं के बाद भी कुछ चीज़ें ऐसी भी हैं, जिसको कि हम हल्के में बिलकुल भी नहीं ले सकते हैं। मित्रों! ISS के अंदर भी माइक्रो-ओरगानिज़्म पृथ्वी के मुक़ाबले काफी अलग तरीके से काम करते हैं। जिससे वहाँ एलर्जी और कई अनजान बीमारियों का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है।
Source:- www.nasa.gov