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क्या हमारे दिमाग के बाहर घटती घटनाएं सच होती हैं? Does something outside our mind Exists?

अगर हमारा दिमाग सोचना बंद करदे तो क्या वास्तविकता बदल जायेगी?

ब्रम्हांड और हमारे आसपास घटित होने वाली घटनाएं हमारे दिमाग की वजह से ही मौजूद है और हमारा दिमाग भी इन्हीं बाहर होने वाली घटनाओं की वजह से कुछ कर पा रहा है। अगर दोनों में से कोई भी एक चीज नष्ट होती है तो अपने आप ही दोनों चीजें नष्ट हो जाएंगे क्योंकि दिमाग के बिना किसी भी चीज अस्तित्व नहीं होगा और जब कोई चीज मौजूद नहीं होगी तो आखिर दिमाग देखेगा क्या। अगर आप थोड़ा गहराई में सोचें तो आपको पता चलेगा कि हमारी आसपास की दुनिया हमारे दिमाग की एक रचना हो सकती है। जिस लाइट को हम देखते हैं जिस आवाज को हम सुनते हैं वह ब्रह्मांड में मौजूद लाइट और साउंड का एक बहुत छोटा सा भाग है। आखिर वास्तविकता (Reality) क्या है? या फिर रियालिटी ही रियल नहीं है? या यह सब सिर्फ एक छलावा है और हमारे मन का धोखा (Solipsism Complex Hindi) है ? आज के इस आर्टिकल में हम आपको कुछ ऐसी ही बहुत गहरी दुनिया में ले जाने वाले हैं जहां पर जाने के बाद शायद आपका इस दुनिया को देखने का नजरिया पूरी तरह से बदल जाए।

Solipsism Complex नाम का एक दिमागी कॉम्प्लेक्स

ऐसे लोग जो यह मानते हैं कि उनके दिमाग के बाहर कुछ भी एग्जिस्ट नहीं करता और वह सिर्फ एक छलावा है उन्हें विज्ञान की भाषा में Solipsism Complex नाम का एक दिमागी कॉम्प्लेक्स (Solipsism Complex Hindi) होता है। ऐसे लोगों को लगता है कि जो भी इस ब्रह्मांड में हो रहा है वह उनके बिना कुछ भी एग्जिस्ट नहीं करेगा जो अगर एक अलग नजरिए से देखा जाए तो सही भी है क्योंकि जब हमारा मस्तिष्क ही नहीं रहेगा तो आखिर इस ब्रह्मांड को देखेगा और सुनेगा कौन और फिर इस ब्रह्मांड की अहमियत ही क्या रह जाएगी।

यह आइडिया सबसे पहले 17 वी सदी में Rene Descartes ने दिया था। उन्हें भी गहराई में सोचने पर यह लगता था कि क्या सच में इस दुनिया में कुछ एक्सिस्ट करता है या फिर यह सिर्फ हमारे दिमाग की ही रचना है जो हम एक वीडियो गेम की तरह एक्सपीरियंस कर रहे हैं। वह एक अटल सत्य जानना चाहते थे यानी एक ऐसी रियालिटी जो सबके लिए सच्चाई हो।

Cartesian Doubt

इसके लिए उन्होंने एक रास्ते को अपनाया जिसे कहा जाता है Cartesian Doubt। इस तरीके के मुताबिक आप जो भी चीजें आम दुनिया में देखते हैं उन सब चीजों पर क्वेश्चन लगाना शुरू करिए और तब तक क्वेश्चन पूछते रहिए जब तक अंत का एक उत्तर ना मिल जाए। जब उन्होंने यह रिसर्च खत्म की तो उन्होंने एक बात बोली जो आज भी बहुत ज्यादा फेमस है I THINK, THEREFORE I EXIST. इसका मतलब यह है कि मैं सोचता हूं कि मैं जिंदा हूं इसलिए मैं जिंदा हूं। इस बात से वह यही जानना चाहते थे कि हमारे दिमाग के बाहर सच में कुछ भी एक्सिस्ट नहीं करता और रियालिटी सबकी अलग होती है। हमारे लिए आसमान नीला है लेकिन अगर कोई इंसान कलरब्लाइंड होगा और उसे नीला रंग नहीं दिखाई देता होगा तो उसे आकाश नीला नहीं दिखेगा मतलब उसके लिए रियालिटी कुछ और ही है।

ऐसा माना जाता है कि solipsism (अहंवाद) फिलॉसफी के सबसे डीप और कंफ्यूज करने वाले टॉपिक्स में से एक है। यह एक ऐसी चीज है जिस पर रिसर्च भी नहीं की जा सकती और जब आप इसके बारे में डीप में सोचना शुरू करेंगे तो आप का भी दिमाग थोड़ा बहुत चकराने लगेगा। मान लीजिए इस ब्रह्मांड में हम इंसानों के अलावा कोई और नहीं है और हम लोग भी किसी बड़ी आपदा की वजह से मर जाते हैं। अब आप सोचिए कि आखिर यह ब्रह्मांड फिर बना किस लिए है क्योंकि इसमें हमारे जैसे जीव तो है ही नहीं जो इसे ऑब्जर्व करेंगे फिर उसका मतलब ही क्या रह गया। (Solipsism Complex Hindi)

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मंगल की तस्वीर | Credit : Science How Stuff.

अगर हम तारों पर रिसर्च ही नहीं करेंगे तो आखिर तारे किस काम के , अगर हम मंगल ग्रह पर जाने की कोशिश नहीं करेंगे तो आखिर मंगल ग्रह ही किस काम का? ऐसे ही कई सारे सवाल अपनी रियलिटी पर लगा कर solipsism के आईडिया को महसूस किया जाता है। यह आप अपने ऊपर भी अप्लाई कर सकते हैं। आप जो अभी वीडियो देख रहे हैं क्या यह सच में आप अपने मन से कर रहे हैं ? क्या सच में वह आप ही है जो इस वीडियो को देख रहा है ? आखिर आप है क्या ? यह ऐसे सवाल हैं जिनका उत्तर मिलना बहुत ही ज्यादा मुश्किल है और शायद नामुमकिन भी।

क्या हमारे मन को कोई कंट्रोल करता है? 

ऐसा कहा जाता है कि यह दिमागी कांपलेक्स इसलिए होता है क्योंकि हम इंसान अपने दम पर नहीं जी रहे हैं बल्कि कोई बहुत आधुनिक एलियन सिविलाइजेशन हमे कंट्रोल कर रही है। इसे सिमुलेशन हाइपोथेसिस कहा जाता है जिसके मुताबिक इस ब्रह्मांड में एक बहुत ही ज्यादा high-technology वाली सिविलाइजेशन मौजूद है और वह हमको कुछ उसी तरह से कंट्रोल कर रही है जिस तरह से हम वीडियो गेम में कैरेक्टर्स को कंट्रोल करते हैं।

अब आप ही सोचिए कि गेम में मौजूद कोई कैरेक्टर अगर अपनी रियालिटी पर सवाल उठाने लगे तो उसे क्या महसूस होगा ? उसे कभी यह समझ में नहीं आएगा कि वह तो पूरी तरह से कंट्रोल किया जा रहा है और वह जो सोच रहा है वह भी पूरी तरह से किसी के कंट्रोल में है और वह लोग हैं हम । ऐसे ही हम इंसानों के साथ भी हो सकता है शायद हम किसी के द्वारा कंट्रोल किए जा रहे हैं और आज हम जो भी चीजों पर सवाल उठा रहे हैं वह सवाल भी किसी और के ही हो। इस बात का कोई पुख्ता प्रमाण तो नहीं है लेकिन यही एकमात्र थ्योरी बचती है जो हम अप्लाई करके अपने आप को छोटी सी संतुष्टि दे सकते हैं। (Solipsism Complex Hindi)

निष्कर्ष

अगर इस सवाल की बात करें कि हमारे दिमाग के बाहर कुछ एग्जिस्ट करता है या नहीं तो इसका उत्तर देना काफी ज्यादा कठिन है क्योंकि आखिर हम अपने दिमाग से ही यह सवाल पूछ रहे हैं कि दिमाग के बाहर कुछ है या नहीं। हम वास्तविकता उसी को मानते हैं जो हमें दिखती और सुनाई देती है जबकि रियलिटी (वास्तविकता) सबके लिए पूरी तरह से अलग होती है। एक मेंढक को दिखने वाली दुनिया, उसके जीने का तरीका , उसके जीने का मकसद हम इंसानों के जीने के मकसद से काफी ज्यादा अलग है। उसे चीजें सुनाई भी हम से काफी ज्यादा अलग देती है और दिखाई भी इसलिए यह तो कभी नहीं कहा जा सकता कि कोई एक यूनिवर्सल रियालिटी भी है मतलब एक ऐसी रियलिटी जो सबके लिए समान हो।

अगर आप भी रात में तारों की तरफ देखते हुए इस ब्रह्मांड पर, अपने दिमाग पर और अपने आप पर सवाल उठाएंगे तो आपको भी solipsism के बेहतरीन आइडिया समझ में आने लगेगा। अपने सवालों की शुरुआत इस बात से करिएगा कि हमारे बिना यह ब्रह्मांड आखिर है ही क्या ?‌

खैर इस आर्टिकल के लिए बस इतना ही। धन्यवाद।

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