हमारा ये ब्रह्मांड काफी ज्यादा उलझा हुआ है। क्योंकि इसके अंदर कब-कहाँ-क्या निकल कर आ जाए, ये कोई भी नहीं कह सकता हैं। ऐसे में हमारे वैज्ञानिक लगातार इसी विषय के ऊपर काफी सारे शोध करते हुए नजर आ रहें हैं। क्योंकि जिज्ञासा ही हमें इन विषयों की और आकर्षित करती है। पृथ्वी (Aliens in Minimoons Near Earth) के पास कई चीज़ें ऐसी हैं, जिसके बारे में हम लोगों ने अभी तक कुछ नहीं जाना है। ये ही वजह हैं कि, बीतते समय के साथ हमें काफी सारे नए चीजों के बारे में जानने को मिल रहा है, ताकि हम इन्हें बेहतर ढंग से जान पाएँ।
मित्रों! आज के हमारे लेख का विषय “मिनीमूंस” (Aliens in Minimoons Near Earth) के ऊपर है। क्योंकि ये विषय एक और काफी दिलचस्प विषय के साथ जुड़ा हुआ है। इन मिनीमूंस के बारे में कहा जाता है कि, ये काफी ज्यादा रहस्यमयी होते हैं। क्योंकि इनके ऊपर एलियन्स भी हो सकते है। इसके अलावा काफी सारे मिनीमूंस के बारे में आज भी हमें कुछ नहीं पता है। इसलिए वाकई में ये विषय काफी ज्यादा रोचक है। तो, आज हम इस विषय से जुड़ी हर एक छोटी व बड़ी जानकारियों के बारे में जानेंगे; ताकि आपको इसके बारे में बेहतर समझ मिल सके।
तो, चलिये अब लेख में आगे बढ़ते हुए इसे शुरू करते हैं और देखते हैं कि, आखिर ये विषय क्या हैं और ये इतना खास क्यों हैं!
विषय - सूची
मिनीमूंस के ऊपर हो सकते हैं एलियन्स! – Aliens in Minimoons Near Earth! :-
पृथ्वी (Aliens in Minimoons Near Earth) के बेहद ही पास मौजूद होने के कारण ये मिनीमूंस अकसर वैज्ञानिकों के लिए काफी ज्यादा उत्सुक्ता का विषय बन जाते हैं। क्योंकि कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इनके ऊपर एलियन्स मौजूद हो सकते हैं, तो कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार, ये इन्सानों के लिए दूसरे घर का भी काम कर सकते हैं। इसलिए ये हमेशा से ही एक काफी ज्यादा रोचक विषय बन कर रहा है। हालांकि! इनके ऊपर अभी भी काफी सारे शोध व मिशन होने बाकी हैं। ताकि हमें इनके बारे में बेहतर जानकारी मिल सके।
पिछले दशकों में वैज्ञानिकों को स्पेस के अंदर ऐसे मिनीमूंस मिले हैं, जिन्हें देख कर वो काफी ज्यादा हैरान रह गए हैं। मित्रों! आप लोगों कि अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, आमतौर पर ये मिनीमूंस इन्सानों के द्वारा स्पेस में छोड़े गए कृत्रिम सैटेलाइट्स के गुच्छों के अंदर रहते हैं। इसलिए कई बार इन्हें डिटेक्ट कर पाना भी काफी ज्यादा कठिन हो जाता है। कई बार तो, वैज्ञानिक भी इन्हें ढूंढते वक़्त कंफ्यूज हो जाते हैं। क्योंकि स्पेस में भी काफी कूड़ा-कचड़ा फैल चुका है।
वैसे इन मिनीमूंस के बारे में खास बात ये भी है कि, ये अकसर कुछ समय के लिए पृथ्वी के पास आते हैं और फिर से उनसे दूर चले जाते हैं। इस बात को लेकर वैज्ञानिकों का ये मानना हैं कि, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण कुछ मिनीमूंस हमारे पास चले आते हैं, परंतु बाद में इस बल में बदलाव के कारण फिर से वो हमसे दूर हो कर चले जाते हैं।
आखिर क्यों ये मिनीमूंस इतने खास हैं? :-
वैज्ञानिकों के अनुसार मिनीमूंस (Aliens in Minimoons Near Earth) के बारे में सबसे खास बात ये है कि, ये पृथ्वी के काफी पास मौजूद रहते हैं। इसके अलावा काफी सारे वैज्ञानिकों को ये लगता हैं कि, इनके बारे में पता लगा कर हम आसानी से ब्रह्मांड के कई छुपे हुए रहस्यों के बारे में भी पता लगा सकते हैं। इसलिए कई वैज्ञानिक इसको काफी अहमियत दे रहें हैं। इसके अलावा एक खास बात ये भी हैं कि, इन मिनीमूंस के बारे में पता लगाकर हम इनसानों की स्पेस में ओपेरेशनल काबिलीयत के बारे में भी पता लगा सकते हैं।
मित्रों! कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार कई मिनीमूंस भविष्य में पृथ्वी के साथ टकरा सकते हैं, इसलिए इनके ऊपर काफी ज्यादा शोध करना जरूरी है। आप लोगों की अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, पृथ्वी के पास मौजूद उल्का पिंडों के बारे में भी शोध कर के हम काफी कुछ जान सकते हैं। वैसे यहाँ एक खास बात ये भी हैकि, कुछ उल्का पिंडों के ऊपर मिशनों को अंजाम देना काफी ज्यादा लंबा और महंगा होता है। परंतु अगर हम ठीक उसी एक-समान मिशनों को किसी भी मिनीमूंस के ऊपर करते हैं, तब कम समय व खर्चे में काफी अच्छे जानकारी मिल सकते हैं।
इसलिए कहा जाता है कि, हमें इनके ऊपर काफी ज्यादा फोकस करना जरूरी है। वैसे मित्रों! मैं आप लोगों को ये भी बता दूँ कि, मिनीमूंस के ऊपर किसी भी तरह के स्पेस-क्राफ्ट को भेजना काफी ज्यादा आसान होता है। क्योंकि इनके ऊपर एस्केप वेलोसिटी (Escape Velocity) काफी ज्यादा कम होती हैं। जिससे हमें मिशनों को अंजाम देना काफी सरल होता हैं। दोस्तों! इनके ऊपर हम काफी कम लागत में कई बड़े-बड़े मिशनों को अंजाम दे सकते हैं।
ब्रह्मांड का राज खोलेंगे ये मिनीमूंस! :-
एक रिपोर्ट के अनुसार मिनीमूंस (Aliens in Minimoons Near Earth) के ऊपर एक मिशन को अंजाम देने के लिए लगभग 100 दिनों का समय लगेगा, इसके अलावा इसमें लगभग 1.2 लाख लीटर ईंधन की भी जरूरत पड़ेगी। मित्रों! मेँ आप लोगों को बता दूँ कि, इस तरीके के मिशनों से हमें ब्रह्मांड के बारे में काफी बातों को जानने का मौका मिलेगा। हालांकि! यहाँ भी कुछ मुसीबतें हैं, जो की हमारे लिए शायद दिक्कत पैदा कर सकते हैं। दोस्तों! मिनीमूंस के बारे में आप ज्यादा देर तक कोई सटीक अनुमान नहीं लगा सकते हैं। क्योंकि ये कब-कहाँ-कैसे चले जाएँ, इसके बारे में आप कुछ नहीं कह सकते हैं।
वैसे इस तरह के चुनौतियों के कारण नासा जैसी बड़ी स्पेस एजन्सियाँ अपने उपकरणों की क्षमता को जांच सकते हैं। जिससे सुदूर इलाकों में होने वाले स्पेस मिशनों को हम बेहतर ढंग से अंजाम दे सकते हैं। मंगल तक जाना एक बहुत ही बड़ा मिशन हैं, इसलिए इससे पहले क्यों न हम इन छोटे-छोटे व पास में मौजूद मिनीमूंस के ऊपर चले जाते हैं। मित्रों! आप लोगों को इसके बारे में क्या लगता हैं, कमेन्ट कर के जरूर ही बताइएगा।
इसके अलावा, एक असल बात ये भी हैं की; स्पेस के अंदर किसी भी रॉकेट को भेजने के लिए काफी ज्यादा ईंधन की जरूरत पड़ती हैं। स्पेस में रीफ्यूलिंग की दिक्कत के कारण हम ज्यादा मात्रा में ईंधन को रॉकेट में नहीं ड़ाल सकते हैं। इसलिए अगर हम किसी तरह से स्पेस में रीफ्यूलिंग की व्यवस्था कर लेते हैं, तब हमारे पास बड़े मिशनों को अंजाम देना काफी ज्यादा आसान हो जाएगा और इसके ऊपर अभी काफी ज्यादा शोध भी चल रहें हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
मिनीमूंस (Aliens in Minimoons Near Earth) को ढूँढना जितना आसान लगता हैं, उठना आसान हैं नहीं। कहने का मतलब ये हैं कि, मिनीमूंस के आकार और उनके गतिशीलता को देख कर हम उनके बारे में ज्यादा कुछ नहीं जान सकते हैं। पृथ्वी पर लगे टेलिस्कोप इतने तेजी से ट्रैवल करने वाले मिनीमूंस को डिटेक्ट करने में सक्षम नहीं होते हैं। हालांकि! अभी काफी बड़े व उन्नत धरण के टेलिस्कोप बनने लगे हैं, जो की इन मिनीमूंस को डिटेक्ट कर सकते हैं। खैर आने वाले समय में ये विकसित टेलिस्कोप हर एक रात लगभग 700 फोटोस लगातार 10 सालों तक खींच सकते हैं।
मित्रों! आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, हर एक फोटो 6 टेरापिक्सल के कैमरे से खींची जाएगी। तो यहाँ आप खुद ही समझ सकते हैं कि, ये फोटोस कितनी ज्यादा बारीक और अच्छी होगी। वैसे यहाँ एक खास बात ये भी हैं कि, इन फोटोस के जरिये हम डार्क मैटर और डार्क एनर्जि के बारे में भी काफी कुछ जानकारी हासिल कर सकते हैं। इसके अलावा खोजे गए डैटा के जरिये वैज्ञानिक हर 3 महीने में हजारों मिनीमूंस को भी ढूंढ सकते हैं।
खैर आने वाला समय ही हमें इन मिनी मूंस के बारे में बेहतर जानकारी दे सकता है।