Universe

परम शून्य तापमान पर क्या होता है? Absolute Zero In Hindi

क्या जीरो तापमान पर सबकुछ रूक जाता है, ब्रह्मांड खत्म होने लगता है?

“क्या आपने कभी सोचा है कि ब्रह्मांड में सबसे कम तापमान कितना हो सकता है? क्या ब्रह्मांड में ऐसी कोई जगह है जहां तापमान शून्य केल्विन तक पहुंच जाए? शून्य केल्विन वह सबसे कम तापमान है जिससे नीचे जाना असंभव है, इसे परम शून्य (Absolute Zero in Hindi) कहते हैं। लेकिन जब कोई चीज परम शून्य तापमान पर पहुंच जाती है, तो आखिर क्या होता है? क्या ब्रह्मांड रुक जाता है? या फिर भौतिकी के नियमों में कोई बदलाव आता है? आइए, आज हम इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं।”

बिग बैंग होने के मात्र एक सेकेंड बाद हमारे ब्रह्मांड का टेंपरेचर 1032 kelvin था, यानि सूर्य की कोर टंपरेचर से 650 खरब खरब गुना ज्यादा, अब यही टंपरेचर 3 मिनट बाद घटकर 109 यानि 1 अरब kelvin पर आ चुका था, और मात्र 3 लाख 80 हजार सालों बाद यह टेंपरेचर 2800 °C (Absolute Zero In Hindi) के अराउंड पहुंच चुका था। यह वो समय था जब हमारे ब्रह्मांड में एटम्स के बनने की शुरुआत हुई थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया वैसे-वैसे ब्रह्मांड का तापमान और घटता चला गया। फिर आज, यानी 13.75 अरब सालों बाद, ब्रह्मांड का एवरेज टेंपरेचर -270.4 °C है। 

जो दर्शाता है कि लगातार हमारे ब्रह्मांड का एवरेज तापमान घटता जा रहा है तो ऐसे में क्या आपके दिमाग में कभी यह सवाल आया है कि लगातार 14 अरब सालों से घट रहा ब्रह्मांड का टंपरेचर आखिर कहां जाकर के रूकेगा यानि ब्रह्मांड का लोएस्ट टेंपरेचर कितना होगा, इसकी फीजिकल लीमिट कितनी होगी?

तापमान(Temperature) क्या होता है? वस्तु ठंडी क्यों हो जाती है? 

1850 के दशक में पहली बार किसी ने तापमान(Temperature) को सही से परिभाषित किया था। Sir William Thomson 1st Baron Kelvin नाम के एक वैज्ञानिक ने अपनी थ्योरी को टेस्ट करके यह सिद्ध किया था कि किसी भी वस्तु (Object) की ऊष्मा (Heat) असल में उसमें वाइब्रेट कर रहे अणु (Molecules) होते हैं।

यह अणु जितना तेज वाइब्रेट करेंगे वह वस्तु उतनी ही ज्यादा गर्म होता चली जाएगी। अगर इस वाइब्रेशन को धीमा किया जाएगा तो वस्तु का तापमान (Absolute Zero In Hindi) घटने लगेगा। William Thomson पदार्थ (Matter) को जितना ठंडा हो सके उतना ठंडा करना चाहते थे।

अब किसी भी चीज को ठंडा करने के लिए हमें एक ऐसे ऑब्जेक्ट की जरूरत होती है जो उससे भी ठंडा हो। उदाहरण के लिए अगर हमें X object को ठंडा करना है तो हमें Y ऑब्जेक्ट की जरूरत पड़ेगी जिसका टेंपरेचर X से कम होना चाहिए।

हम खाने की चीजों को ठंडा करने के लिए Refrigerators का इस्तेमाल करते हैं। फ्रिज के अंदर मौजूद गैस के अणु खाने में मौजूद हीट एनर्जी को सोख लेते हैं। ऐसा इसलिए ही हो पता है क्योंकि उनके पास खाने के मुकाबले कम हीट एनर्जी होती है।

आपने अपनी छोटी क्लासेस में तो पढ़ा ही होगा कि कोई भी चीज उच्च सांद्रता (High Concentration) से निम्न सांद्रता (Low Concentration) की ओर चलती है।

कुछ ऐसा ही ऊष्मीय ऊर्जा (Heat Energy) के साथ भी होता है। अगर आप दो अलग तापमान वाले ऑब्जेक्ट्स को एक साथ रखेंगे तो कम तापमान वाला ऑब्जेक्ट ज्यादा तापमान वाले ऑब्जेक्ट से हीट एनर्जी को खींच लेगा। अगर यह दोनों ही ऑब्जेक्ट वैक्यूम (Vacuum) में रखे हुए हैं तो एक समय ऐसा आएगा जब इन दोनों का तापमान एक समान हो जाएगा जिससे हीट एनर्जी का आदान-प्रदान (Exchange) रुक जाएगा। 

ब्रह्मांड की अंतिम सीमा : Absolute Zero in Hindi 

Thomson का मानना था कि अगर हम एक ऑब्जेक्ट से हीट एनर्जी को लगातार खींचते रहते हैं, तो एक समय ऐसा जरूर आएगा जब वह ऑब्जेक्ट अपने सबसे कम तापमान पर पहुंच जाएगा।

क्वथनांक (Boiling) और गलनांक (Melting) मानक की तरह यह टेंपरेचर हर ऑब्जेक्ट के लिए अलग नहीं होता। इस तापमान को परम शून्य (Absolute zero) कहकर बुलाया जाता है और किसी भी चीज के लिए इससे ज्यादा ठंडा होना असंभव है।

Absolute zero यानी -273.15 °C पर जाने के बाद ऑब्जेक्ट के अंदर मौजूद मॉलेक्युलिस में बेहद ही धीमा वाइब्रेशन होता है। हालांकि इस कम वाइब्रेशन को प्राप्त करना और उसे देखना क्वांटम फिजिक्स के नियमों के खिलाफ है।

Boomerang Nebula, Credit: NASA/ESA Hubble
Boomerang Nebula, Credit: NASA/ESA Hubble

हमारे ब्रह्मांड में मौजूद कोल्डेस्ट नेचुरल प्लेस असल में एक नेबुला है जिसे बूमरैंग नेबुला के नाम से जाना जाता है। – 272 डिग्री तापमान को होल्ड करने वाला यह Nebula, यूनिवर्स की बैकग्राउंड रेडिएशन से भी ज्यादा ठंडा है।

अगर आपको नहीं पता तो बता दूं कि हमारे ब्रह्मांड में एक यूनिफॉर्म लेवल की बैकग्राउंड रेडिएशन मौजूद है जिसे Cosmic Microwave Background कहा जाता है।

Big Bang से निकलने वाली यह रेडिएशन आज 13.8 अरब साल पुरानी हो चुकी है जिस वजह से इसका तापमान भी ऑलमोस्ट एब्सलूट जीरो तक पहुंच चुका है। आपको जानकारी हैरानी होगी कि Boomerang Nebula इस रेडिएशन से भी दो डिग्री ठंडा है। वैज्ञानिक आज तक किसी भी ऐसी जगह को नहीं ढूंढ पाए हैं जिसका तापमान इस नेब्युला से कम हो।

वैज्ञानिक परम शून्य (Absolute Zero in Hindi) तापमान तक कैसे किसी को ठंड़ा करते हैं? 

हालांकि, वैज्ञानिकों ने पृथ्वी पर अपनी प्रयोगशालाओं में परम शून्य तापमान के बहुत करीब पहुंचने में सफलता पाई है। जैसा कि मैंने पहले बताया था, किसी भी वस्तु को परम शून्य तक ठंडा करने के लिए हमें उससे भी अधिक ठंडी वस्तु की आवश्यकता होती है, जो लगभग असंभव है।

परम शून्य के इतने करीब पहुंचने के लिए वैज्ञानिक एक खास तकनीक का इस्तेमाल करते हैं, जिसे ‘विस्तारण’ कहते हैं। आप जानते हैं कि गैस में बहुत छोटे-छोटे कण होते हैं जो लगातार तेजी से कंपन करते रहते हैं।

अगर हम इन कणों को एक-दूसरे से दूर कर दें, तो ये कम कंपन करने लगते हैं। वैज्ञानिक इसी सिद्धांत का उपयोग करके गैस को फैलाते हैं और इसके कणों के कंपन को कम करके परम शून्य तापमान के बहुत करीब पहुंच जाते हैं।

जब तापमान इतना कम हो जाता है, तो वस्तुएं बहुत अजीब तरीके से व्यवहार करने लगती हैं। वैज्ञानिक इन व्यवहारों का अध्ययन करके ब्रह्मांड के भविष्य के बारे में कई महत्वपूर्ण बातें जान सकते हैं।

अंतरिक्ष की खाली जगह और डार्क ऐनेर्जी –  Empty Spaces and Dark Energy

जैसा की हम सब जानते हैं कि यूनिवर्स बहुत तेज गति से एक्सपेंड (फैलाव) हो रहा है। इसमें मौजूद Empty spaces असल में पूरी तरह से Empty नहीं है। उनमें एक तरह की आंतरिक उर्जा (Intrinsic Energy) मौजूद है, यानी एक ऐसी एनर्जी जिसे स्पेस से अलग नहीं किया जा सकता।

इस एनर्जी को डार्क एनर्जी के नाम से बुलाया जाता है और यह ब्रह्मांड के 68% हिस्से को घेरे हुए हैं। Dark Energy स्पेस को मल्टीप्लाई होने में मदद करती है जिससे ब्रह्मांड का एक्सपेंशन होता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि हमारे लोकल ग्रुप के बाहर मौजूद हर गैलेक्सी, हमसे प्रकाश की रफ्तार से भी तेजी से दूर जा रही है। ऐसा सिर्फ और सिर्फ डार्क एनर्जी की वजह से हो रहा है।

ब्रह्मांड का अंत – बिग फ्रीज (Big Freeze)

स्पेस के एक्सपेंड होने की वजह से एक समय ऐसा भी आएगा जब हमारे आसमान से तारों का दिखाना एकदम बंद हो जाएगा। उनके और हमारे बीच इतनी दूरी हो चुकी होगी कि प्रकाश का हम तक पहुंचना असंभव हो जाएगा।

यह जानकर आपके होश उड़ जाएंगे कि ब्रह्मांड में मौजूद 94% आकाशगंगाएं आज हमारी पहुंच से हमेशा के लिए बाहर हैं। वह हमसे बहुत तेज रफ्तार से दूर जा रही है और अगर हम यूनिवर्स की स्पीड लिमिट पर भी ट्रैवल करेंगे तब भी हम उन तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे। (Absolute Zero In Hindi)

पृथ्वी के आसमान से तारों के गायब हो जाने के बाद भी डार्क एनर्जी का असर खत्म नहीं होगा। तारों को एक दूसरे से दूर करने के बाद अब डार्क एनर्जी हर सौर-मंडलों पर अपना असर दिखाएगी। धीरे-धीरे पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी बढ़ने लगेगी और पूरा का पूरा सूर्य मंडल बिखर जाएगा। प्रकाश और गर्मी न होने की वजह से पृथ्वी पर मौजूद 99% जीव जंतु विलुप्त हो जाएंगे जिनमें से एक हम इंसान भी होंगे। इतना सब कुछ करने के बाद भी डार्क एनर्जी का असर रुकेगा नहीं। तब तक वह इतनी ज्यादा पावरफुल हो चुकी होगी कि तारों और ग्रहों को भी बिखेरना शुरू कर देगी।

Freezing Earth - Big Freeze
Freezing Earth – Big Freeze (Image credit: NASA)

धीरे-धीरे ग्रहों और तारों के पार्टिकल्स एक दूसरे से दूर होने लगेंगे और इस यूनिवर्स में मौजूद सारी लाइट खत्म हो जाएगी। लाइट के साथ-साथ ब्रह्मांड में हीट का भी नामोनिशान नहीं बचेगा और ब्रह्मांड एब्सलूट जीरो के बहुत नजदीक पहुंच जाएगा।

यूनिवर्स में मौजूद आखिरी ब्लैक होल्स के मरने के बाद डार्क एनर्जी एक बहुत ही खतरनाक स्टेज पर पहुंच चुकी होगी। उस समय स्पेस का एक्सपेंशन रेट इतना ज्यादा होगा कि हर सेकंड एक नए ब्रह्मांड के बराबर का empty स्पेस क्रिएट हो रहा होगा।

Universe का तापमान घटते घटते एक समय ऐसा आएगा जब वह एब्सलूट जीरो तक पहुंच जाएगा और तभी ब्रह्मांड पूरी तरह से शांत पड़ जाएगा। यह ब्रह्मांड की मृत्यु होगी जिसे वैज्ञानिक Heat Death या‌ Big freeze कहकर बुलाते हैं। 

हमारे ब्रह्मांड का अंत होना तो निश्चित है परंतु ऐसा आने वाले कई अरबों खरबों सालों तक नहीं होने वाला। लेकिन क्या हो अगर 5 सेकंड के लिए हमारी पृथ्वी का तापमान एब्सलूट जीरो के बराबर हो जाए ? आईए जानते हैं। 

पृथ्वी पर सबसे कम तापमान –  Lowest temperature on Earth

पृथ्वी पर आज तक का सबसे कम प्राकृतिक तापमान साल 1983 में अंटार्कटिका महाद्वीप पर रिकॉर्ड किया गया था। 184 Kelvin यानी – 89.2 °C का यह ताप, एब्सलूट जीरो के नजदीक भी नहीं है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक रूम टेंपरेचर पर पार्टिकल्स के चलने की औसत स्पीड 1800 किलोमीटर प्रति घंटा होती है। जैसा कि मैंने आपको पहले ही बताया था कि टेंपरेचर का डायरेक्ट रिलेशन एक ऑब्जेक्ट में मौजूद पार्टिकल्स की काइनेटिक एनर्जी से होता है।

पार्टिकल्स जितना तेज मूव करेंगे, ऑब्जेक्ट का तापमान उतना ही ज्यादा होगा। जैसे-जैसे पार्टिकल्स की गति कम होती जाएगी वैसे-वैसे ऑब्जेक्ट का तापमान भी घटता चला जाएगा।

Antarctica's highest Point - Vinson Massif.
विनसन मसिफ़ की एक फोटो | Credit: pioneer mountaineer

पृथ्वी पर 0.00001 केल्विन तापमान (Absolute Zero In Hindi) पहुंचने पर पार्टिकल्स की एवरेज स्पीड 0.18 किलोमीटर प्रति घंटे जाएगी। कमरे के तापमान से हजार गुना कम स्पीड होने की वजह से पृथ्वी पर होने वाला लगभग हर केमिकल रिएक्शन रुकने की कगार पर होगा।

अब यह सुनने में भले ही भयानक ना लगे लेकिन मैं आपको याद दिला दूं कि हमारा शरीर भी केमिकल रिएक्शंस की वजह से ही काम कर पाता है। हमारे ब्रेन में अरबों न्यूरॉन्स मौजूद है जो एक दूसरे से कम्युनिकेट करने के लिए केमिकल रिएक्शंस का ही इस्तेमाल करते हैं। तापमान के घटने का मतलब होगा इन केमिकल रिएक्शंस का ऑलमोस्ट स्टॉप हो जाना और हमारे ब्रेन और बॉडी का फंक्शन ही ना कर पाना।

पदार्थ की पाँचवीं स्टेज –  Bose Einstein Condensate

लेकिन इतना लो टेंपरेचर होने के बावजूद भी केमिकल रिएक्शंस पूरी तरह से नहीं थमेंगे। वैज्ञानिकों के मुताबिक इतने लो टेंपरेचर पर मैटर बहुत अलग तरह से बिहेव करने लगता है।

आप सभी ने मैटर की तीन मेन स्टेटस के बारे में पढ़ा होगा लेकिन इस स्टेज पर आने के बाद मैटर एक नए स्टेट को फ़ोर्म करने लगता है जिसे Bose -Einstein Condensate कहा जाता है। भारतीय फिजिसिस्ट Satyendra Nath Bose और अल्बर्ट आइंस्टीन द्वारा डिस्कवर किया गया यह स्टेट, सिर्फ बेहद ठंडे तापमान पर ही देखने को मिलता है।

इसमें मैटर के पार्टिकल्स आपस में कंबाइन होकर गांठ (lumps) की फॉर्मेशन करने लगते हैं। यह lumps अलग-अलग पार्टिकल्स से बने होने के बावजूद एक सिंगल एटम की तरह ही बिहेव करते हैं जिस वजह से मैटर बहुत विचित्र तरह के बिहेवियर्स को शो करने लगता है।

रुबिडियम परमाणुओं की गैस के लिए वेग-वितरण डेटा (3 दृश्य), पदार्थ के एक नए चरण, बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट की खोज की पुष्टि करता है। बाएं: बोस-आइंस्टीन कंडेनसेट की उपस्थिति से ठीक पहले। केंद्र: संक्षेपण की उपस्थिति के तुरंत बाद। दाएं: आगे वाष्पीकरण के बाद, लगभग शुद्ध BECका एक नमूना छोड़ना। Image Credit – NIST/JILA/CU-Boulder 

परम शून्य (Absolute Zero In Hindi) के नजदीक पहुंचने के बाद आपके शरीर में भी BEC की फॉर्मेशन शुरू हो जाएगी। वैसे तो यह होना इंपॉसिबल है लेकिन अगर आप पूरी तरह से Bose-Einstein Condensate स्टेट में चले जाते हैं तो आप बिल्कुल पानी की तरह फ्लो करने के काबिल हो जाएंगे।

आपके लिए छोटी से छोटी जगह से भी निकालना बहुत आसान हो जाएगा और आपको ऐसा फील होगा जैसे आप एक सुपर ह्यूमन बन चुके हैं। 5 सेकंड तक एब्सलूट जीरो पर रहने की वजह से पृथ्वी पर होने वाली सारी एक्टिविटीज थम जाएंगी। इसके बाद जब दुनिया वापस से शुरू होगी तो कोई भी कंपलेक्स लाइफ जीवित नहीं बची होगी।

निष्कर्ष

“आज भी वैज्ञानिक परम शून्य के बारे में गहराई से जानने की कोशिश कर रहे हैं। हमने इस विषय पर काफी जानकारी हासिल कर ली है, लेकिन फिर भी कई सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब ढूंढने वैज्ञानिकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं।

अगर आपको मौका मिले तो क्या आप खुद परम शून्य का अनुभव करना चाहेंगे? हमें कमेंट करके जरूर बताएं।”

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