हमारे ब्रह्मांड का कोई अंत ही नहीं है। वैज्ञानिकों के अनुसार इस अनंत ब्रह्मांड में इतने अलग-अलग चीज़ें हैं कि, इसकी कल्पना भी नहीं जा सकती है। मित्रों! मानवों को पृथ्वी पर रहते हुए काफी समय हो चुका है और इसी समय के दौरान हम लोग विज्ञान के क्षेत्र में काफी ज्यादा विकसित हो चुके हैं। यही वजह है कि, हम आज सुदूर स्थानों में परग्रहीओं (Two Extraterrestrial Minerals In Hindi) की सत्ता को खोजने में लगे हैं। परंतु क्या आप जानते हैं, पृथ्वी पर हाल ही में कुछ ऐसे मिनरल्स/ खनिज मिले हैं जिसका अस्तित्व पृथ्वी से कहीं दूर मौजूद है।
मित्रों! यहाँ “अस्तित्व बहुत दूर मौजूद है” का अर्थ है, ये दो परग्रही खनिज (Two Extraterrestrial Minerals In Hindi) हैं। जी हाँ, आप लोगों ने बिलकुल सही सुना, ये दो खनिज पृथ्वी के हैं ही नहीं और इस तरह के खनिजों का पृथ्वी पर मिलना कोई साधारण बात भी नहीं है। आप लोगों को बता दूँ कि, आज के लेख में हम इन्हीं दो खनिजों के बारे में चर्चा करेंगे। क्योंकि इसके बारे में ज्यादा आप लोगों को इंटरनेट पर शायद ही पढ़ने को मिलें, तो लेख को अंत तक ही पढ़िएगा।
दुनिया में वैसे तो कई खनिज पहले से ही मौजूद हैं, परंतु कुछ खनिज ऐसे भी हैं, जिनको हम पृथ्वी पर नहीं देख सकते हैं। तो, इसी तरह के खनिजों को हम परग्रही (alien) खनिज भी कह सकते हैं। आज के लेख में हम इसी प्रकार के खनिजों के बारे में ही बात करेंगे। खैर चलिये अब लेख को आगे बढ़ाते हुए इन दो खनिजों के बारे में जानते हैं।
पृथ्वी पर मिले दो परग्रही खनिज (मिनरल्स) – Two Extraterrestrial Minerals In Hindi! :-
साल 2020 में सोमालिया के अंदर एक ऐसे उल्प्कपिंड को खोजा गया, जिसको देख कर कई वैज्ञानिकों के होश ही उड़ गए। होश उड़ने कि वजह ये थी कि, इस उल्कापिंड के अंदर दो ऐसे खनिज (Two Extraterrestrial Minerals In Hindi) मौजूद थे, जिनको किसी इंसान ने शायद ही उस समय से पहले देखा होगा। आकार में काफी बड़ा होने के कारण इस उल्कापिंड को “El Ali” के नाम से भी जाना जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार ये दो नए खनिज उल्कापिंडों कि बनावट के बारे में भी काफी कुछ बता सकते हैं।
वैसे एक खास बात ये हैं कि, ये दोनों ही खनिज सिर्फ 70 ग्राम वजनी उल्कापिंड के एक टुकड़े के अंदर ही मौजूद हैं। इसके अलावा रोचक बात ये है कि, उल्कापिंड कि कुल वजन लगभग 16 मेट्रिक टन से भी ज्यादा है। कुछ वैज्ञानिकों का ये भी कहना है कि, जब भी उन्हें किसी प्रकार के परग्रही खनिज के बारे में पता चलता है, तब उन्हें बेहद ही उत्सुकता होती है। इस प्रकार के खनिजों के कारण ही उन्हें ब्रह्मांड के अलग-अलग जगहों पर मौजूद चीजों के बारे में एक प्रैक्टिकल जानकारी मिलती है।
इसके अलावा एक खास बात ये भी है कि, इस प्रकार के उल्कापिंडों के बारे में जानकारियाँ जुटा कर हम हमारे सौर-मंडल में मौजूद अलग-अलग ग्रहों के बारे में भी काफी कुछ जान सकते हैं। मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, इस उल्कापिंड के अंदर दो ऐसे खनिज मौजूद हैं जो कि विज्ञान के लिए भी काफी ज्यादा नए हैं।
उल्कापिंड से जुड़ी कुछ खास बातें! :-
दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने इस उल्कापिंड को एक खास श्रेणी में रखने का फैसला लिया है। इस खास श्रेणी का नाम है “Iron IAB Complex”। इस श्रेणी की सबसे खास बात ये है कि, इसके अंदर ज्यादा मात्रा में लोहा और काफी कम मात्रा में सिलिकेट्स मौजूद रहते हैं। इसके अलावा उल्कापिंड (Two Extraterrestrial Minerals In Hindi) के खंडों को अगर गहन ध्यान से देखा जाए, तब ये पता लगाया जा सकता है कि, दो परग्रही खनिजों कि मात्रा इस उल्कापिंड के अंदर काफी ज्यादा है।
इसके अलावा इन दोनों परग्रही खनिजों की जब प्रयोगशाला में बने समान खनिजों के साथ तुलना की गई, तब इनकी असल गुणवत्ताओं के बारे में पता चलता है। मित्रों! कुछ वैज्ञानिक ये भी कहते है कि, इन खनिजों की अच्छे से जांच कर के हम इनके असल उत्पत्ति वाली जगहों के बारे में भी पता लगा सकते हैं। पूरे ब्रह्मांड में कई जगहों से उल्कापिंड आकर हमारी पृथ्वी के ऊपर गिरते हैं और इनके बारे में जानने के लिए हमें इन खनिजों के बारे में जानना बेहद ही जरूरी है।
एक खास बात ये भी है कि, उल्कापिंडों की खगोलीय जानकारी भी इन खनिजों के जरिये पता लगाई जा सकती है। हालांकि! वैज्ञानिकों का एक दल नए खोजे गए इन खनिजों के इस्तेमाल के बारे में भी रिसर्च कर रहा है, तो आने वाले समय में हम इनके बहुत से एप्लिकेशन भी देख सकते हैं। आपको क्या लगता है, क्या हो सकते हैं इन खनिजों के एप्लिकेशन?
इसको ले कर क्या कह रहें हैं वैज्ञानिक! :-
मित्रों! उल्कापिंड (Two Extraterrestrial Minerals In Hindi) से खोजे गए इन दो नए मिनरल्स का नाम वैज्ञानिकों ने “Elaliite और
ELKINSTANTONITEA” रखा है। अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, पहले मिनरल का नाम खुद उल्कापिंड पिंड के नाम (El Ali) के अनुसार ही रखा गया है। खास बात ये है कि, El Ali सोमालिया के एक शहर का नाम है जहां पर ये उल्कापिंड गिरा था। खैर दूसरे खनिज का नाम इस उल्कापिंड के ऊपर काम कर रहें एक प्रमुख वैज्ञानिक के नाम के हिसाब से ही लिया गया है।
कुछ वैज्ञानिक ये भी कहते हैं कि, ये उल्कापिंड किसी एक ग्रह से भी आ सकता है। क्योंकि उल्कापिंड की अंदरूनी बनावट एक बड़े से ग्रह के केंद्र में मौजूद खनिजों के साथ काफी ज्यादा मेल खाती है। पृथ्वी के निकेल से बने केंद्र की तुलना अब वैज्ञानिक इस उल्कापिंड के साथ कर रहें हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक दोनों ही खनिजों को अलग-अलग यानी लगभग 350 से ज्यादा श्रेणीओं में बांट दिया है।
यहाँ एक खास बात ये है कि, दोनों ही नए खनिजों की खोज के दौरान इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का प्रयोग हुआ है। मित्रों, हाल ही में खोजे गए खनिज जैसे “Heamanite (Ce)” के आविष्कार के दौरान भी इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का इस्तेमाल हुआ था। इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप के मदद से वैज्ञानिकों ने न बल्कि इन दो खनिजों को ढूंढ कर निकाला है, परंतु इससे खनिजों के अलग-अलग गुणों के बारे में भी पता चला है।
दोनों खनिज हमें क्या बता रहें हैं? :-
जब भी किसी नए खनिज (Two Extraterrestrial Minerals In Hindi) का जब आविष्कार होता है, तब-तब वैज्ञानिक इसके अलग-अलग एप्लिकेशन्स के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। कुछ वैज्ञानिक ये भी कहते हैं कि, नए खनिजों के मिलने से हम कुछ ऐसे कामों को अंजाम दे सकते हैं, जिसके बारे में हमने शायद ही कभी सोचा होगा। कहने का मतलब ये है कि, नए-नए खनिज नए-नए क्षेत्रों में इनके उपयोगिताओं को ले कर आते हैं।
खैर ये जो उल्कापिंड है न, इसके भविष्य के बारे में वर्तमान कुछ भी कहा नहीं जा सकता है। क्योंकि सूत्रों के हिसाब से इस उल्प्कपिंड को चीन की और रवाना किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि, वहाँ इस उल्कापिंड को नीलामी के लिए रखा जाएगा और उचित मूल्य में इसे किसी खरीददार को आगे बेच दिया जाएगा। मित्रों! अब आप ही बताइए अगर इस उल्कापिंड को किसी खरीददार को बेच दिया जाता है, तब क्या इसके ऊपर और रिसर्च करना संभव हो पाएगा?
इसलिए हम ये आशा करते हैं कि, इस उल्कापिंड के ऊपर आने वाले समय में और भी ज्यादा रिसर्च हो और इसके बारे में हमें और भी कई बेहतर जानकारीयां जानने को मिलें। हालांकि! एक बात ये भी है कि, उल्कापिंड के कई छोटे-छोटे सैंपल शायद रिसर्च के लिए वैज्ञानिकों को दिये जाएँ।
Source – www.livescience.com