मोबाइल फोन्स (Mobile Phones) या स्मार्टफोन्स (Smartphones ) ने तो आज, पूरी दुनिया ही बदल दी है। लगभग 3 अरब से भी ज्यादा लोग, आज दुनिया भर में Smartphones का इस्तेमाल करते हैं | आपको ये जानकर हैरानी जरूर होगी, कि आपके स्मार्टफोन को बनाने में इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक, लगभग 2,50,000 अलग अलग पेटेंट या लाइसेंस पर निर्भर करती है। यानी ये समझिए, कि आपका स्मार्टफोन, 2 लाख से भी ज्यादा अलग तरह की तकनीक (TECHNOLOGY) का इस्तेमाल करके बना हुआ है । पर आज हम एक विचित्र परिस्थिती का सामना करेंगे जिसमें हम जानेंगे कि वास्तव में तब क्या होगा जब हम स्मार्टफोन को अंतरिक्ष में ले जायेंगे (What Would Happen To Your Phone In Space?), क्या ये वहाँ चल पायेगा?
आप रोज न जाने, कितने ही तरह के अलग अलग कार्य अपने छोटे से स्मार्टफोन के जरिए करते रहते हैं । इसमें जरा सा भी संदेह नहीं है कि आज के दौर में ये मोबाइल हमारी बहुत बड़ी जरूरत बन चुका है | आपने जमीन पर तो अपने मोबाइल को काफी इस्तेमाल किया होगा । और हो सकता है कि किसी हवाई यात्रा के दौरान भी आपने इसे इस्तेमाल किया हो ! हालंकि जितना दूर हमारा सेलफोन किसी CELL TOWER से जाने लगता है , उतनी ही उसकी RADIO SIGNALS (रेडियो संदेश) की ताकत कम होने लगती है | इसलिए आपको ऊंचाई पर नेटवर्क की दिक्कत होना तो स्वाभाविक ही है !
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अंतरिक्ष में फोन को ले जाने पर क्या होगा? Phone In Space?
आज , हम अपने इस छोटे से DEVICE यानी स्मार्टफोन को अंतरिक्ष की सैर पर भेजने वाले हैं। विज्ञान के जरिए कहूं , तो आज हम ये देखने वाले हैं, कि क्या होगा जब हम अपने मोबाइल फोन को अंतरिक्ष (SPACE) में भेजेंगे ? आखिर कैसी रहेगी इसकी यात्रा और क्या ये SPACE VACUUM में काम करने लायक रहेगा ? चलिए पता लगाते हैं !
अगर आप लम्बे समय से, मोबाइल और उससे साथ हो रहीं research को फोलो कर रहे हैं, तो आपको शायद ये पता होगा कि साल 2010 में Google ने अपने स्मार्टफोन Nexus S के साथ कुछ इस तरह का ही प्रयोग किया था | उनकी टीम ने , weather balloon, parachute और polystyrene box के जरिए ,android doll और nexus S mobile phone को , 1 लाख फीट यानी लगभग 30 किमी ऊपर तक launch किया और transmitter, GPS के जरिए उसे ट्रैक किया |
इस दौरान उन्हें ये पता चला, कि लगभग 60,000 फीट की ऊंचाई के बाद , GPS ने काम करना बंद कर दिया, पर और ऊंचाई के बाद जब temperature -50 डिग्री Celsius तक चला गया था , तब भी phone सही सलामत था और इसकी अधिकतम रफ्तार 139 mph तक पहुँच गई थी | खैर , इस प्रयोग के जरिए उन्होंने अपने Nexus s से कई images record कीं और उन्हें अपने smartphone की सहनशक्ति का पता भी लग गया |
ISS (International Space Station) में गया था Google का फोन
यही नहीं , साल 2010 में खुद, NASA ने भी Nexus S और iPhone 4 smartphones को, अपने एक experiment के दौरान , ISS में भेजा था , जहां इन mobile phones को छोटी छोटी satellites के साथ attach करके Atlantis space shuttle में भेजा गया | इस experiment के जरिए उन्होंने , satellites में camera , sensors , WIFI connections और data transfer की सुविधा दी थी , जो space station से संपर्क रख सके !
यही नहीं , बल्कि साल 2013 में भी, Surrey Satellite Technology Limited द्वारा , एक nano-satellite के साथ google का nexus one smartphone, space में भेजा गया | इस दौरान , उस phone में कई applications के जरिए , data collect किया गया |
बहराल , ये सभी experiments , या तो space की height , यानी 100 km से नीचे किए या तो इनमें , smartphones को satellites के साथ space में भेजा गया , जहां पल पल पर computer के जरिए इन smartphones की हालत को जांचा जाता ताकि इनमें किसी भी तरह की खराबी न हो पाए ! पर हमारा यहाँ उद्धेश्य तो ये जानने का है, कि भला, इन सभी तरह की सावधानियों के बगैर, space में हमारे mobile phone पर किस तरह का प्रभाव पड़ेगा ? और आखिर ये वहाँ जिन्दा रह भी पाएगा या नहीं !
सबसे पहले तो , अगर आपको अपने mobile phone को अंतरिक्ष में भेजना है , तो आपके पास 2 रास्ते हैं –
पहला तो ये, कि आप किसी spacecraft के जरिए अपने phone को outer space में छोड़ दें , जैसा कि NASA अपने ISS में करता है | हालंकि यहाँ , हमारी earth की gravity का प्रभाव रहता ही है जिसकी वजह से एक सही तरह के vacuum की उम्मीद करना सही नहीं रहेगा |
ये तरीका practical जरूर है , पर अगर आपको किसी smartphone को outer space के vacuum में, यानी अनंत दूरी तक फेकना होगा , तो दुसरे तरीके के मुताबिक़ , आपको उसे लगभग 40,000 किलोमीटर प्रति घंटा की speed से पृथ्वी से बाहर फेकना पड़ेगा, जो हमारी पृथ्वी की escape velocity है | पृथ्वी की escape velocity से फेंकी गई कोई भी चीज , उसके gravitational field से बाहर चली जाती है, जिससे वो चीज ,अंतरिक्ष की काफी गहराई में पहुँच जाती है |
हालंकि दूसरे तरीके में , हमारा smartphone शुअरुआत में ही तहस नहस हो सकता है , पर फिलहाल तो हम उसकी, अंतरिक्ष में ही असली परीक्षा लेने वाले हैं |
Cosmic Microwave Background Radiation
Cosmic Microwave Background Radiation की वजह से हमारे पूरे outer space का तापमान कम से कम -270.4 degrees Celsius तक पहुँच जाता है , और वहीँ earth के orbit में, direct sunlight से maximum temperature, 120 degrees Celsius तक पहुँच सकता है | हमारे smartphones , ऐसे तापमान में, और उसमें हो रहे बदलाव में तो चलने लायक बिलकुल भी नहीं होते | आमतौर पर smartphones की working temperature condition , -30 degree Celsius से लेकर 60 degree Celsius तक ही होती है |
अगर तापमान बेहद कम है , तो आपके smartphone की स्क्रीन टूटने की पूरी संभावना होगी। ऐसी स्थिति में हमारे smartphone की सबसे बड़ी दिक्कत होती है , उसकी बैटरी | इतने खतरनाक तापमान में , battery में मौजूद electrolyte में आग लग सकती है , जो उसे नष्ट भी कर सकती है | पर अगर तापमान ज्यादा न भी रहा , तो आपका smartphone बड़ी जल्दी shut down हो जाएगा |
वैसे मैं यहाँ आपको एक बात बतादूँ, कि आप, अंतरिक्ष में भेज गए अपने फोन (Phone In Space) से संपर्क बिलकुल भी नहीं कर पाएंगे , क्योंकि वातावरण में मौजूद ionosphere लेयर , पृथ्वी से भेजी गईं radio waves को वापिस पृथ्वी की तरफ ही reflect कर देती है | आपके पास अलग से special communication system होना जरूरी है |
यहाँ आपको इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि smartphone को ऐसी condition में अपने extreme temperature तक पहुँचने में समय जरूर लग सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो , अगर स्मार्टफोन की emissivity यानी radiations छोड़ने की क्षमता , radiations को absorb करने से ज्यादा है , तो अंतरिक्ष में इधर उधर घूमने की वजह से , उसपर solar radiations ,एक तरफ नहीं पड़ेंगी।
ऐसे में संभावना है, कि smartphone का temperature उसके minimum working temperature से ऊपर ही हो | यानी अब अगर उसका temperature बढ़ेगा , तो उसके काम करने की संभावना बढ़ जाएगी | पर हमें ये नहीं भूलना चाहिए, कि space में radiations काफी random यानी आकस्मिक होती हैं , जो कभी भी smartphone की battery को आराम से damage कर सकती हैं |
क्या -क्या खराब हो सकता है एक फोन में?
Radiations के अलावा , space में मौजूद cosmic rays , किसी भी electronic integrated circuits में मौजूद elements को , आसानी से खराब कर सकती हैं | इसकी वजह से , data corrupt हो सकता है , CPU की performance भी गड़बड़ा सकती है और semiconductor devices भी खराब हो सकते हैं | यानी आपका फोन चलने लायक तो बिल्कुल भी नहीं रहेगा |
खुद पृथ्वी पर ये cosmic rays ,electronic devices के लिए एक समस्या बनी हुई हैं , जिसके लिए अभी भी कई तरह के उपाय ढूंढें जा रहे हैं । खैर , इन सभी तथ्यों से ये तो स्पष्ट होता है , कि अगर हम अपने smartphone को अकेला अंतरिक्ष में छोड़ दें , तो उसके जिन्दा बचने की संभावना बेहद ही कम है | अगर वो नष्ट न भी हुआ , तो उसका बंद हो जाना तो निश्चित ही है।
बहराल , satellites की मदद से तो space station में smartphones , बिना रुके आसानी से काम करते हैं | हालांकि , हमारे smartphones में CPU , memory और बाकी internal system , conventional satellites के मुकाबले काफी advance जरूर हैं , पर physically, space conditions में चलने के लिए, ये अभी इतने सक्षम नहीं हैं | देखते हैं, कि भविष्य में हम , कब अंतरिक्ष में भी अपने smartphones का इस्तेमाल कर पाएंगे !