अंतरिक्ष सदैव से ही मानवों का आकर्षित करता रहा है। इसके रहस्य जानने के लिए वैज्ञानिकों ने कई प्रयास किये हैं। शुरु में जब अंतरिक्ष की दौड़ प्रारंभ हुई तो दो देशों अमेरिका और रुस ने इसे काफी गंभीरता से लिया। तरह – तरह के यान और उपग्रह बनाकर उन्हें अंतरिक्ष में भेजा। (Laika Dog Story in Hindi)
शुरु के सारे मिशन मानवरहित ही थे। वैज्ञानिकों ने फिर सोचा कि इन्हें मानवों के लिए कैसे काम में लाया जाये। कैसे हम यान को मानवों के लिए सुगम बना पायें ताकि वे अंतरिक्ष में जाकर के धरती पर वापिस भी आ सकें। इसी चरण में कई प्रयोग हुए जिन्में सबसे ज्यादा ध्यान खींचा लाइका नामक एक कुत्तिया के प्रयोग पर।
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Laika की कहानी
साइबेरियन कुत्ते लाइका (Laika Dog Story in Hindi) को मास्को की सड़कों से उठा कर 3 नवंबर, 1957 को ‘स्पूतनिक’ नामक रौकेट में बैठा दिया गया था। वैज्ञानिकों ने Laika को बिठा तो दिया पर इसके वापिस आने और सुरक्षा पर कोई ध्यान नहीं दिया था।
लाइका के जिंदा रहने की उम्मीद वैज्ञानिकों को कम ही थी, और हुआ भी यही अंतरिक्ष यान में लाइका की म्रत्यु कुछ घंटो में ही हो गयी। लाइका की म्रत्यु का कारण ओवर हिटिंग से थी। आइए विस्तार से समझते हैं कि लाइका (Laika Dog Story in Hindi) को कैसे अंतरिक्ष में भेजा गया और इस मिशन का क्या महत्व और प्रभाव रहा।
प्रशिक्षण और तैयारी
लाइका को अंतरिक्ष यात्रा के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण का उद्देश्य था यह सुनिश्चित करना कि वह अंतरिक्ष यान के छोटे कैबिन में रहने और अत्यधिक तनावपूर्ण स्थितियों का सामना कर सके।
- सेंटरिफ्यूज परीक्षण: उसे अत्यधिक गुरुत्व बल (G-Force) का सामना करने के लिए ट्रेन किया गया।
- छोटे कैबिन में अभ्यास: लाइका को छोटे केबिनों में रहने की आदत डाली गई, ताकि वह अंतरिक्ष यान के सीमित स्थान में सहज रह सके।
- खाद्य प्रशिक्षण: उसे विशेष जेल के रूप में भोजन दिया गया, जिसे अंतरिक्ष में ले जाना आसान था।
स्पुतनिक-2 का प्रक्षेपण
- 3 नवंबर 1957 को, स्पुतनिक-2 को लॉन्च किया गया। यह सोवियत संघ का दूसरा उपग्रह था, जिसमें लाइका (Laika Dog Story in Hindi) को रखा गया था।
- स्पुतनिक-2 का वजन लगभग 508 किलोग्राम था और यह विशेष रूप से एक जीवित प्राणी को ले जाने के लिए डिजाइन किया गया था।
स्पेस कैप्सूल का डिजाइन:
- कैप्सूल में ऑक्सीजन की आपूर्ति और तापमान नियंत्रण प्रणाली थी ताकि लाइका (Laika Dog Story in Hindi) को जीवित रखा जा सके।
- लाइका (Laika Dog Story in Hindi) को एक सेफ्टी हार्नेस से बांध दिया गया था ताकि वह कैबिन के भीतर ज्यादा हिल न सके।
- हृदय गति और रक्तचाप जैसी शारीरिक गतिविधियों को मापने के उपकरण भी लगाए गए थे, ताकि वैज्ञानिक उसका स्वास्थ्य ट्रैक कर सकें।
लॉन्च के दौरान और उसके बाद की घटनाएँ
- प्रक्षेपण के समय लाइका (Laika Dog Story in Hindi) ने भय और तनाव के संकेत दिखाए, लेकिन जैसे ही रॉकेट पृथ्वी की कक्षा में पहुँचा, उसकी हृदय गति सामान्य हो गई।
- पृथ्वी की कक्षा में पहुँचने के बाद, स्पुतनिक-2 ने प्रत्येक 103 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा किया।
- तापमान नियंत्रण प्रणाली में खराबी के कारण, कक्षा में पहुंचने के कुछ ही घंटों बाद कैबिन का तापमान 40°C से अधिक हो गया।
- लाइका की मृत्यु अत्यधिक गर्मी और तनाव के कारण प्रक्षेपण के 5 से 7 घंटों के भीतर हो गई।
57 कुत्तों को अंतरिक्ष में भेजा
50 और 60 के दशक के बीच सोवियत के वैज्ञानिकों ने लगभग 57 कुत्तों को अंतरिक्ष में भेजा और वह भी 1 से ज्यादा बार। इस के लिए मादा कुत्तों को प्राथमिकता दी गई, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना था कि मेल कुत्तों की अपेक्षा मादा कुत्तों में रौकेट के भीतर का तनाव सहने की क्षमता ज्यादा है. इन मादा कुत्तों को ट्रेनिंग के दौरान 15-20 दिनों तक छोटे बौक्सों में बंद कर के रखा गया. उन्हें भी अंतरिक्ष के लिए ऐस्ट्रोनौट सूट्स में विशेषरूप से तैयार किया गया।
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60% कुत्तों को कब्ज और कई परेशानियां हो गईं
उन कुत्तों में से कई तो ट्रेनिंग के दौरान ही मर गए होंगे, पर सोवियत के वैज्ञानिकों ने इस खबर को बाहर नहीं आने दिया होगा, क्योंकि लाइका (Laika Dog Story in Hindi) की मौत ने पहले ही लोगों को हिला दिया था। उन में से कुछ रौकेट की तकनीकी खराबी के चलते मारे गए. जो बच गए उन को दोबारा इस्तेमाल किया गया। उन के खाने में प्रोटीन जैली भी शामिल थी, जिस के कारण उन में से 60% कुत्तों को कब्ज और पित्त की थैली में पथरी जैसी परेशानियों से गुजरना पड़ा।
इन बेचारे कुत्तों के और भी बलिदान हैं, स्पूतनिक 10 को 25 मार्च,1961 को मादा कुत्ते वेजडोचका के साथ लौंच किया गया. कहते हैं कि इस कुत्ते का नाम यूरी गैगरिन ने रखा था. इस कुत्ते की एक अंतरिक्ष यात्रा सफल रही थी. इस यात्रा के कुछ दिनों के बाद 12 अप्रैल को यूरी गैगरिन वेजडोचका के साथ अंतरिक्ष यात्रा कर के पहले मानव अंतरिक्ष यात्री बन गए।
अनमोल है लाइका और सभी कुत्तों का योगदान
अगले स्पूतनिक पर अन्य पौधों और जानवरों के साथ भेजे गए कुत्ते श्योलका और मुश्का का रौकेट हवा में फट गया और सभी सवार मारे गए। स्पूतनिक 10 को 25 मार्च,1961 को मादा कुत्ते वेजडोचका के साथ लौंच किया गया। कहते हैं कि इस कुत्ते का नाम यूरी गैगरिन ने रखा था. इस कुत्ते की एक अंतरिक्ष यात्रा सफल रही थी। इस यात्रा के कुछ दिनों के बाद 12 अप्रैल को यूरी गैगरिन वेजडोचका के साथ अंतरिक्ष यात्रा कर के पहले मानव अंतरिक्ष यात्री बन गए।
वेटेरौक और यूगोल्यौक 22 फरवरी, 1966 को कौसमोस 110 से अंतरिक्ष यात्रा पर गए थे और वहां 22 दिन बिता कर 16 मार्च को वापस अए थे. अंतरिक्ष यात्रा का यह रिकौर्ड 1971 में इंसानों द्वारा सोयज 11 की यात्रा से टूटा. मगर आज भी यह कुत्तों के द्वारा की गई सब से लंबी अंतरिक्ष यात्रा है।
लाइका, वेटेरौक और यूगोल्यौक को स्टांप पर छाप कर श्रद्धांजलि दी गई. बेलका और स्ट्रेलका के पार्थिव शरीरों को दूसरे देशों की यात्रा पर ले जाया गया। 2008 में, मॉस्को में लाइका (Laika Dog Story in Hindi) का एक स्मारक बनाया गया, जिसमें उसे एक रॉकेट के ऊपर खड़े कुत्ते के रूप में दर्शाया गया है।
निष्कर्ष
लाइका (Laika Dog Story in Hindi) का मिशन अंतरिक्ष अन्वेषण के इतिहास का एक महत्वपूर्ण लेकिन दुखद अध्याय है। यह मिशन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सफल रहा, लेकिन नैतिक रूप से इसकी आलोचना भी हुई। लाइका ने उन जोखिमों को उजागर किया, जिनका सामना अंतरिक्ष यात्रियों को करना पड़ सकता है, और इसने भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों के लिए महत्वपूर्ण सबक प्रदान किए। लाइका की यात्रा ने न केवल मानव अंतरिक्ष मिशन के द्वार खोले, बल्कि अंतरिक्ष विज्ञान के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। आज भी उसे अंतरिक्ष अन्वेषण के अग्रदूत के रूप में याद किया जाता है।
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