Religion

हिन्दू धर्म में कई भगवान क्यों है? क्यों लोग इतने भगवानों को पूजते हैं??

हिन्दू धर्म या सनातन धर्म जो कि आदिकाल से चली आ रही जीवन जीने की पद्धति है, आखिर ऐसा क्यों है कि इस धर्म को मानने वाले लोग इतने सारे और कई भगवानों को मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं। दूसरे धर्मों में जहां उनका एकमात्र भगवान होता है हिन्दू धर्म में आपको कई भगवान क्यों बताये जाते हैं? इस सवाल के उत्तर के लिए हमने कई लोगों से पूछा और जो उत्तर उन्होंने दिये वे वास्तव में बहुत ही ज्ञानवर्धक और रोचक थे –

सनातन वैदिक संस्कृति

सनातन वैदिक संस्कृति ही एक मात्र संसार का सबसे प्राचीन संस्कृति हैं जिसे आज हिन्दू धर्म भी कहा जाता हैं. एक मात्र सनातन संस्कृति ही हैं जो रिलिजन नहीं बलिक जीवन जीने की कला हैं और इसमें जन्म से लेकर मृत्यु और फिर मृत्यु के पश्चात् की १६ संस्कार इत्यादि बताये गए हैं. यह इतना व्यापक हैं की सभी के समझ से यह बाहर हैं.

आज के नए रिलिजन तो किसी व्यक्ति बिशेष के नाम पर चले हैं और उनका अदि अंत भी हैं, पर सनातन संस्कृति /हिन्दू धर्म की न कोई तारीख हैं और न अंत हैं क्योंकि यह सीधे सीधे भगवान् विष्णु से चलायमान हैं क्योंकि व्यहि याग पुरुष और पुराण पुरुष कहे जाते हैं।

भगवान् श्री हरि

भगवान् श्री हरि ही इस पुरे ब्रह्माण्ड के अभिभावक और परम देवता या स्वयं भगवान् हैं जो हर युग में जब भी धर्म की हानि होती हैं तो वो बिभिन्न रूप लेकर धर्म की रक्षा करते हैं. परन्तु भगवान् से ब्रह्मा जी, शिव जी और अन्य सारे देवी देवता परगट हुए हैं जो किसी पद पर असिन हैं और यह इसलिए किया गया हैं ताकि सृष्टि सुचारु रूप से चल्या जा सके? सभी देवी देवता और यहॉ तक की सारे चार अचार वास्तु और जिव में एक श्री हरि की ही दिव्य शक्ति और उन्ही की अंश आत्मा से बिभूषित हैं. इसी कारन हम लोग सब को भगवान् का रूप समझकर भगवान् कह देते हैं. पर यह सब सारे भगवान नहीं हैं।

भगवान् कौन हैं?

भगवान् कौन हैं?- सनातन धर्म के बिभिन्न ग्रंथों , पुराण, श्री मद रामायण, गीता, महाभारत और श्री मद भगवद जी से यह पता चलता हैं की भगवान् की परिभाषा हैं और उस परिभाषा पर केवल एक और उनके अपने तीन स्वरूप ही स्वयं भगवान् हैं. यह हैं श्री राम, श्री कृष्ण, श्री विष्णु और श्री नरसिंह. यह चारो स्वयं पूर्ण भगवान् हैं क्योंकि यह ६ एस्वर्य गुणों से युक्त हैं. हाला की अन्य सारे रूप भी उन्ही भगवान् के हैं, पर वो सारे एस्वर्य गन से युक्त नहीं थे और कुछ छान के थे।

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इसलिए केवल, नरसिंह, भगवान् विष्णु, छीरसागर वासी, या उनके अन्य रूप जैसे गर्भाशयी विष्णु, कमलासन विष्णु. भगवान् श्री राम, श्री कृष्ण यह सारे रूप पूर्ण भगवान् हैं. हम जब हे राम या हे भगवान् कहते हैं तो इन्ही प्रभु का बोध होता हैं और उन्ही को सम्बोधन हैं जो हर हिन्दुओ को नहीं पता?

एक भगवान के अनेक रूप

इसीलिए सनातन संस्कृति में भी भगवान् एक हैं और उन्होंने अनेक रूप लिए हैं जो भगवान् हैं. बाकी सब देवी देवता हैं जो सृष्टि के कार्य में सहायक हैं. भगवान् अजन्मा अविनाशी और अनंत होते हैं और इनका कभी नाश नहीं है, जबकि सारे देवी देवता का एक दिन अंत होता हैं. भगवान् श्री राम- श्री कृष्ण का जन्म साधारण मानव का नहीं हैं बलिक वो परगट होकर छोटे अबोध शिशु का रूप ले लिए थे,

इसलिए बहुत से हिन्दू अज्ञानता बस भगवान् श्री राम- कृष्ण को भी जन्मने और मरने बाला समझ लेते हैं जो भारी भूल और घोर अपराध/ पाप हैं. भगवान् का जन्म नहीं होता, बलिक वो परगट होते हैं पर माता को यह अनुभव करा देते हैं की उनके कोंख में शिशु हैं. यह भगवान् की दिव्य लीला हैं जो साधरण लोगो को नहीं पता, बलिक भगवान् को तो देवी देवता, सिद्ध पुरुष, ऋषि मुनि भी करोडो जन्म यत्न कर भी नहीं समझ पाते, पर एक अनपढ़, गंवार भक्त उन्हें जान लेता हैं और उन्हें प्राप्त कर लेते हैं. तभी तो कहते हैं की राम ही केवल प्रेम पियारा-

परम पुरुष स्वयं भगवान् हैं

अत- यहॉं भी एक ही परम पुरुष स्वयं भगवान् हैं, पर देवी देवता अनेक हैं. दूसरा हिन्दू धर्म इतना व्यापक और अनंत हैं की कोई चाहे भी तो करोडो जन्म लेकर भी इसके आदि अंत का पता नहीं लगा सकता, पर यदि बो श्री राम- श्री कृष्ण या भगवान् विष्णु की भक्ति सच्चे ह्रदय से किया हैं तो वो इसी जन्म में सब कुछ जान सकता हैं?

आशा हैं, आप लोग समझ गए होंगे की भगवान् तत्व क्या हैं? =, मैं अपने तरफ से कुछ नहीं लिखता, धर्म ग्रंथो के अनुसार ही लिखना सही मैं मानता हूँ.

जय सिया राम, हरे राम हरे कृष्ण/

साभार – Ram Sharnam

Pallavi Sharma

पल्लवी शर्मा एक छोटी लेखक हैं जो अंतरिक्ष विज्ञान, सनातन संस्कृति, धर्म, भारत और भी हिन्दी के अनेक विषयों पर लिखतीं हैं। इन्हें अंतरिक्ष विज्ञान और वेदों से बहुत लगाव है।

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