इंसान भी कितना अजीब है, अपने स्वार्थ के लिए वो न तो किसी को इस पृथ्वी पर रहने देगा और न ही प्रकृति को बचाने का प्रयास करेगा! विज्ञान और तकनीक के कारण आज इन्सानों का पूरी दुनिया पर राज है और आने वाले समय में शायद ये ब्रह्मांड के दूसरे जगहों पर भी अपना वर्चस्व दिखाएगा। खैर विज्ञान ने जितना हम को दिया है, शायद उतना हम से लिया भी है। कहने का मतलब ये है कि, चेर्नोबिल (Chernobyl Black Frog Evolution) और फुकुशिमा जैसे खतरनाक हादसों कि वजह शायद कहीं न कहीं विज्ञान को सहीं तरीके से कंट्रोल न कर पाना या इसको लापरवाही से इस्तेमाल करने से ही हुआ है।
बार-बार चेर्नोबिल (Chernobyl Black Frog Evolution) जैसे परमाणु हादसे, इसलिए सुर्खियों में रहते हैं क्योंकि इन सभी हादसों के नतीजे आज भी हमें देखने को मिलते हैं। परमाणु हादसे इसलिए भी खतरनाक होते हैं, क्योंकि इनके नतीजे क्षण स्थायी न हो कर सदियों और कई बार हजारों वर्षों तक भी देखने को मिलते हैं। लगभग 7 दशकों पहले जापान में गिरे परमाणु बम के कारण आज भी वहाँ पर लोग विकलांग हो कर पैदा होते हैं और शायद आने वाले समय में होते भी रहेंगे। तो आप समझ सकते हैं कि, परमाणु हादसे कितने जानलेवा हो सकते हैं।
मित्रों! आज के लेख में, हम ऐसे ही एक परमाणु हादसे से पैदा हुए नतीजे के बारे में चर्चा करेंगे, जो कि आज भी वैज्ञानिकों को विस्मित और सोचने के लिए मजबूर कर देता है। तो, चलिये अब लेख के मूल विषय को आरंभ करते हैं।
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चेर्नोबिल में आज भी देखने को मिलते हैं हादसे के दर्दनाक नतीजे! – Chernobyl Black Frog Evolution! :-
26 अप्रैल, 1986 ये वो दिन था जब यूक्रेन में बसे चेर्नोबिल (Chernobyl Black Frog Evolution) न्यूक्लियर पावर प्लांट में उस समय का सबसे बड़ा न्यूक्लियर हादसा घटा था। उस समय में हादसे के कारण पूरी दुनिया का होश उड़ गया था, क्योंकि इस हादसे से पहले कभी भी-कहीं भी इतना बड़ा न्यूक्लियर हादसा नहीं हुआ था। खैर हादसे को लगभग 36 साल से ज्यादा हो चुके हैं, परंतु आज भी इसके दर्दनाक नतीजों को आप खुद अपने आँखों से भी देख सकते हैं।
हादसे के समय चेर्नोबिल पावर प्लांट के रिएक्टर नंबर 4 से निकलने वाले रेडियोएक्टिव मटिरियल की मात्रा इतनी थी कि, शायद ही कोई इसके बारे में अपने सपने में भी सोच पाए। रेडिएशन की इतनी प्रचंड मात्रा से वहाँ का पर्यावरण और मानव सभ्यता को काफी ज्यादा नुकसान हुआ था। हालांकि! आज ये जगह यूरोप की सबसे बड़ी प्राकृतिक आरक्षण क्षेत्र बन चुकी है और जहां भालू, भेड़िए और वनविलाव जैसे तरह-तरह के जंगली जानवर रह रहें हैं। वैसे भारी रेडिएशन के चलते जीवों का प्राकृतिक जेनैटिक मटिरियल म्यूटेशन के कारण काफी ज्यादा बदल चुका है और इससे कई अजीबो-गरीब चीजें भी देखने को मिल रहीं हैं।
खैर वैज्ञानिकों को एक बात काफी ज्यादा संशय में ड़ाल रही है और वो ये हैं कि, “क्या कोई जीव चेर्नोबिल के इतने हाई रेडिएशन वाले जगहों पर रह कर उस पर्यावरण से मेल बिठा पाया है”? सच में ये सवाल काफी बढ़िया और सोचने वाला है! क्योंकि, शायद ये एक ऐसा विषय है, जो कि आने वाले समय में हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण हो सकता है।
त्वचा का “मेलानिन” और रेडिएशन! :-
चेर्नोबिल (Chernobyl Black Frog Evolution) के इस हाई रेडिएशन इलाके में, अगर कोई फेक्टर ज्यादा सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है, तो वो शायद “मेलानिन” (Melanin) हो सकता है। वैज्ञानिकों का एक दल चेर्नोबिल में इसी मेलानिन को ले कर रिसर्च कर रहा है और उन लोगों ने कुछ बेहद ही रोचक चीजों को ढूंढ कर निकाला है। असल में बात ये है कि, वैज्ञानिकों का ये दल हादसे वाली जगह के पास जा कर जीवों के ऊपर शोध करना शुरू कर दिये। तभी उन्हें मेंढक कि एक प्रजाति दिखी, जो कि काफी ज्यादा अनोखी थी। वैज्ञानिकों का ध्यान “ईस्टर्न ट्री फ्रॉग” (Hyla orientalis) कि एक प्रजाति के ऊपर गया। ध्यान इसलिए कि, उस प्रजाति के मेंढक का रंग हरा होता है।
परंतु चेर्नोबिल जैसे हाई रेडीएशन वाले इलाके में, इस मेंढक का रंग पूरे तरीके से हरा न हो कर, थोड़ा काला हो चुका है। बता दूँ कि, हरे रंग वाले इस मेंढक के ऊपर रेडिएशन ने एक काला टिंट छोड़ दिया है, जिससे मेंढक की ये प्रजाती काफी ज्यादा अलग हो चुकी है। वैज्ञानिकों की माने तो, मेढंकों के ऊपर ये काला टिंट उनके त्वचा में मौजूद मेलानिन के कारण हुआ है। उनके अनुसार मेलानिन त्वचा में रह कर वहाँ मौजूद बाहरी रेडिएशन से लढ रहा है। ये कोशिकाओं के अंदर हो रहें जरूरी मेटाबोलिक प्रक्रियाओं को भी मदद करता है।
खैर 2016 में पहली बार इन मेंढकों को देखा गया था और इसके तुरंत बाद यानी 2017 से ले कर 2019 तक वैज्ञानिकों ने चेर्नोबिल के हाई रेडिएशन में रह रहें इन जीवों को बड़े ही अच्छे तरीके से मॉनिटर किया। इन तीन सालों के अंदर वैज्ञानिकों ने लगभग 200 से अधिक पुरुष मेंढकों को जांचा और पाया की, मेंढकों के निचले भागों में मेलानिन ज्यादा है।
शोध से क्या पता चला! :-
आम-तौर पर मेंढकों के इस प्रजाती में त्वचा का रंग गाढ़ा पाया जाता है, परंतु कंट्रोल ज़ोन (शोध किए जाने वाले क्षेत्र) के अंदर रह रहें मेंढकों के त्वचा का रंग उतना गाढ़ा नहीं था, जितना की होना चाहिए। ऊपर से इनकी त्वचा के ऊपर काला टिंट भी इन को दूसरे मेंढकों से अलग बना रहा था। वैसे चेर्नोबिल (Chernobyl Black Frog Evolution) के पास इस तरह की घटनाएँ और अजीबो-गरीब जीवों का मिलना कोई दुर्लभ ही बात है। क्योंकि इतनी हाई रेडिएशन में इतने सालों तक जिंदा रह पाना किसी भी जीवित प्राणी के लिए काफी मुश्किल है।
कुछ वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि, चेर्नोबिल के इन मेंढंकों के अंदर काफी तेजी से विकास यानी एवल्यूशन हुआ है, जिसने इनको रेडिएशन के खतरे से डट कर सामना करना सीखा दिया है। हादसे के दौरान ही इन मेंढकों के अंदर एवल्यूशन की प्रक्रिया शुरू हो गई थी और ये आज भी चल रही है। अब इनकी प्रजाती के ज़्यादातर मेंढक हरे रंग से काले रंग में बदल रहें हैं। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने ये भी पाया कि, काले रंग वाले मेंढक काफी बेहतर तरीके से प्रजनन कर पा रहें हैं।
मित्रों! किसी भी एक पर्टिकुलर प्रजाती का चेर्नोबिल जैसे काफी खतरनाक इलाके में जिंदा रहना, सीधे-सीधे “नैचुरल सिलैक्शन” को दर्शाता है। कहने का मतलब ये है कि, खुद प्रकृति ने ही मेंढकों की इस प्रजाती को चेर्नोबिल के बीहड़ इलाके में रहने के लिए चुन लिया है। इसलिए वैज्ञानिक भी इन के प्रति काफी आकर्षित हो रहें हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
आखिर में कुल मिला कर इतना कहा जा सकता है कि, चेर्नोबिल (Chernobyl Black Frog Evolution) में किए गए इस शोध ने एक अलग ही चीज़ को हमारे सामने रख दिया है। क्योंकि हम इन्सानों के अंदर भी मेलानिन भरा हुआ है और अगर मेंढक की एक प्रजाती चेर्नोबिल जैसे हाई रेडिएशन वाले इलाके में रह सकती है, तब इंसान भी शायद रेडिएशन से उतना प्रभावित न हो जितना कि हम आज सोच रहें हैं। बेहरहाल ये सब अभी थ्योरी ही हैं, प्रेक्टिकल में क्या होगा, ये शायद बाद में हमें पता चले।
परंतु एक बात तो तय है कि, वैज्ञानिक अगर मेलानिन और रेडिएशन के बीच मौजूद रिश्ते को अच्छे तरीके से समझ जाते हैं, तब हम इन्सानों का इससे बहुत ही बड़ा फायदा हो सकता है। क्योंकि इससे शायद हमें इन्सानों को रेडिएशन से हो रही बीमारियों के बारे में भी और जानने को मिल सकता है और शायद हम इन जानकारीओं से उन बीमारियों का और भी अच्छे तरीके से इलाज भी कर पाएँ। तो, जी हाँ! ये एक काफी महत्वपूर्ण और हमारे लिए अनोखा शोध हैं।
Source – www.iflscience.com