एक वैज्ञानिक ने कंप्यूटर की मदद से एक ऐसी एल्गोरिथ्म तैयार की है जो ये साबित करती है कि हमारी वास्तविकता वास्तवम में एक सिमुलेशन है, यानि जो कुछ भी हो रहा है और हम देख रहे हैं असल में किसी के द्वारा किया जा रहा है। इस एल्गोरिथ्म (AI simulation Algorithm in hindi) को भौतिक विज्ञानी हांग किन ने आधुनिक प्रिंसटन प्लाज्मा भौतिक प्रयोगशाला में बनाया था जो कि यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अंतर्गत आने वाली एक प्रयोगशाला है। इस एल्गोरिथ्म में एक AI भी जुड़ा हुआ है जो मशिन लर्निंग प्रक्रिया के जरिए अनुभवों को जोड़कर अपने आप को लगातार प्रशिक्षित करता रहता है।
किन ने ये एल्गोरिथ्म (AI simulation Algorithm in hindi) सौर मंडल के ग्रहों की कक्षाओं की भविष्यवाणी करने के लिए विकसित किया था, इसके लिए उन्होंने AI को बुध ग्रह, मंगल ग्रह, पृथ्वी, शुक्र और बृहस्पति ग्रह की कक्षाओं की जानकारी दी ताकि AI इस डेटा के जरिए ग्रहों की कक्षाओं को समझ सके। किन का कहना है कि उन्होंने जो डेटा इस प्रोग्राम को दिया है वो वही डेटा है जिसे 1601 में केप्लेर ने टाइको ब्राहे से हासिल किया था। केप्लेर एक महान वैज्ञानिक थे जिन्होंने पहली बार ग्रहों की कक्षाओं को लेकर कुछ नियम बनाये थे। किन ने अपना ये डेटा एक पेपर में भी प्रकाशित किया है जिसे आप पढ़ सकते हैं।
इस डेटा के जरिए, एक “एल्गोरिथ्म” सौर मंडल में अन्य ग्रहों की कक्षाओं की सही भविष्यवाणी कर सकता है, ये उन पिंड़ो की भी जानकारी सटीक से दे सकता है जिनका परिक्रमा पथ बहुत विचित्र है जिसे आप इस चित्र में देख सकते हैं।
ऐल्गोरिथ्म की खास बात ये है कि ये केवल फिट किये गये डेटा और लागातर निरीक्षिण के जरिए किसी भी ग्रह की कक्षा को एकदम सटीक बता सकता है, इसे इस काम को करने के लिए न्युटन के उन नियमों को भी नहीं जानना पड़ता है जो उन्होंने ग्रहों पर लगने वाले गुरूत्वाकर्षण बल (Gravitational Force) के ऊपर बनाये थे, ये प्रोग्राम केवल अपने डेटा से ही इन नियमों का पता लगा लेता है और उसी के आधार पर भविष्यवाणी करता है।
किन ग्रहों की कक्षाओं को जानने के अलावा भी इस एल्गोरिथ्म (AI simulation Algorithm in hindi) से अब परमाणु केंद्र की प्रयोगशाला में फ्यूजन ऐनेर्जी के द्वारा बनने वाले प्लाज्मा के पार्टिकल्स को भी जाचेंगे और उनके मोशन और गतिविधि को ट्रैक करेंगे। इसके साथ-साथ वे इस ऐल्गोरिथ्म के जरिए क्वांटक भौतिकी का भी अध्ययन करेंगे जो भौतिक वित्रान का सबसे रहस्यमयी और विचित्र विषय है।
भौतिक विज्ञानी हांग किन अपने इस कार्य को कुछ इन शब्दो में बताता हैं..
“आमतौर पर भौतिकी में, आप अवलोकन करते हैं, उनके आधार पर एक सिद्धांत बनाते हैं, और फिर उस सिद्धांत का उपयोग नई टिप्पणियों का अनुमान लगाने के लिए करते हैं, मैं जो कर रहा हूं वह एक ऐसे ब्लैक वोक्स की तरह है जो बिना किसी नियम, सिद्धांतो को जानने की जगह खुद ही अपने डेटा और ऑब्जर्वेशन के जरिए सही भविष्यवाणी कर सकता है। अनिवार्य रूप से, मैंने भौतिकी के सभी मूलभूत नियमों, सिद्धांतो को दरकिनार कर दिया है। मैं सीधे डेटा से डेटा (…) पर जाता हूं। बीच में भौतिकी का कोई नियम नहीं है। ”
साल 2003 में स्वीडिश दार्शिनक निक बॉस्ट्रोम (Nick Bostrom) का एक पेपर पूरी दुनिया में छपा जिसमें कहा गया था कि हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जो किसी के द्वारा बनाई गई है और एकदम किसी कंप्यूटर के सिमुलेशन की तरह ही काम कर रही है। जैसे एक वीडियो गेम में हर पात्र वास्तविक होकर भी हमारी दुनिया के लिए एक झूठ है ठीक उसी तरह हम किसी आधुनिक सभ्यता के एक वीडियो गेम के किरदार हो सकते हैं जो खुद को वास्तविक मानते हैं पर असल में वास्तविकता से बहूत दूर हैं। निक बोसट्रोम के इस पेपर ने किन को प्रेरित किया जिसे आधार बनाकर किम लगातार इस विषय पर काम करते रहे और अब उन्होंने इस नये ऐल्गोरिथ्म के जरिए सिमुलेशन को लेकर एक बार फिर लोगों का ध्यान खींचा है।
हालाकिं सिमुलेशन का सिद्दांत एकदम नया नहीं है, प्राचीन ग्रंथ योगवासिष्ठ में इसी पर गहरी चर्चा है जहां एक मनुष्य अपने ही रूप अलग-अलग ब्रह्मांड में देखता है और सोचता है कि जिस संसार से वह आया है वो वास्तिवक नहीं है बल्कि एक कल्पना है जो केवल उस कल्पना में रह रहे लोगों को सच दिखाई देती है। ठीक वैसे ही जैसे आप सपने में अपनी दुनिया बनाते हैं जिसमें आप भी होते हैं और आपके सपने में जी रहा हर किरदार एक वास्तिवक कार्य करता हुआ प्रतीत होता है। पर जैसे ही आपकी आँखे खुलती हैं तो आपका ये संसार तुरंत गायब हो जाता है।
Bigthink.com के साथ एक ईमेल में किन ये टिप्पणी करते हैं कि हो सकता है कि हमारा ब्रह्मांड एक ऐसा लैपटॉप हो जो इसी ऐल्गोरिथ्म पर चलता हो, अगर ये सच है तो वाकई हैरानी है, हो सकता है कि उस लेपटाप में चलने वाली ये ऐल्गोरिथ्म बहुत ही सरल हो या बहुत ही कठिन और कांप्लेक्स हो जिसे समझना बहुत मुश्किल हो, अगर ऐल्गो सरल है तो ये लैपटॉप तभी काम कर सकता है जब उसके पास इस ऐल्गोरिथ्म को चलाने के लिए असीमित मेमोरी और प्रोसेसिंग पावर हो।
निश्चित रूप से, एक ऐसी एल्गोरिथ्म (AI simulation Algorithm in hindi) जो डेटा से प्राकृतिक घटनाओं की सार्थक भविष्यवाणियां करता है तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम खुद अस्तित्व को अनुकरण करने की क्षमता रखते हैं। किन का मानना है कि हम इस तरह के कारनामों को करने में सक्षम होने से “कई पीढ़ियों” दूर हैं। हालांकि किन का काम ‘discrete field theory’ के आधार पर है जो मशिन लर्निंग के लिए एकमद सही है, किन का AI algorithm इसके जरिए काफी कुछ सीख सकता है। किन के अनुसार Discrete field theory को आप ऐल्गोरिथ्म के द्वारा बनाये एक फ्रेमवर्क जैसा समझ सकते हैं, जिसमें कुछ खास पैरामीटर तय किये गये हैं जो लगातार प्राप्त होते बेहतर डेटा से बदल सकते हैं। एक बार AI इस थ्योरी को एकदम सही से समझ ले तो इसी थ्योरी की मदद से हम प्रकृति का एक एल्गोरिथ्म बन सकते हैं जिसे कंप्यूटर नई भविष्यवाणियों के अनुमान लगाने के लिए चलता रहेगा।
किन के अनुसार, असतत क्षेत्र सिद्धांत (Discrete field theory) आज के भौतिकी ने नियम से एकदम अलग है, जो कि स्पेसटाइम को निरंतर (continuous) देखता है। पर अगर इन्हीं नियमों को सतत क्षेत्र सिद्धांत (Discrete field theory) के जरिए समझाया जाये तो कई समस्याओं का समाधान हो सकता है। किन का मानना है कि अगर हम इस सिद्धांत से आगे बढ़े तो हमें ये संसार मैट्रिक्स फिल्म की तरह प्रतीत होगा।
वे इन सिद्धांतो को आधुनिक विज्ञान में जोड़कर पढ़ाना चाहते हैं जिससे हम और बेहतर तरीके से पूराने सिद्धातों के मुकाबले ज्यादा सीख सकें।
Source – bigthink.com