इसरो (ISRO) एक ऐसी स्पेस ऐजेंसी है जो कम कीमत और लागत पर अंतरिक्ष के मिशन को अंजाम देती है, बात हो चंद्रयान, मंगलयान या एक साथ 100 से भी ज्यादा सेटलाइट एक ही रोकेट से स्पेस में लाँच करने की तो इसरो ही एक मात्र ऐसा नाम है जो सभी को पसंद आता है। अपनी कामयाबी के बल पर ही इसरो अब गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission In Hindi) को पूरा करेगा, ये मिशन पहली बार किसी भारतीय को स्वदेशी निर्मित रोकेट से अंतरिक्ष में ले जाने वाला मिशन है, आइये इसके बारे में अब विस्तार से जानते हैं।
15 अगस्त 1969 वो दिन जब भारत ने अंतरिक्ष में उड़ने का सपना देखा, महान वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई ने इस दिन भारत की स्पेस एजेंसी इसरो (ISRO) की स्थापना की थी। इसरो जिसे Indian Space Research Organization (ISRO) कहते हैं अपने 50 साल के सफर में इतना आगे बढ़ चुका है कि अब इसने पूरी दुनिया में स्पेस रेस में अपनी एक पहचान बना ली है। बात हो चाहें सबसे सस्ते मंगल मिशन( Mangalyaan Mission) की या चांद पर चंद्रयान मिशन (Chandrayaan Mission) के तहत पानी खोजने की इसरो ने वह सब कुछ कर दिखाया है जिसकी 50 साल पहले कल्पना करना भी हर भारतीय के लिए मुश्किल था।
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बैलगाड़ी से आजतक का सफ़र
इसरो(ISRO) का सफर बहुत ही मोटिवेशन भरा रहा है, 1970-80 के दशक में वैज्ञानिक बस और साईकिल से इसरो पहुँचकर काम किया करते थे, और कई बार रोकेट्स के पुर्जों को ट्रांसपोर्ट के अभाव के कारण साइकिल और बैलगाड़ी पर लाया जाता था।
इस दौर में जहां भारत में भयानक गरीबी था तो ऐसे में स्पेस (Space) जैसे प्रोग्राम और रोकेट लाँच के बारे में सोचना भी सरकारों के लिए मुश्किल भरा होता था, पर धीरे-धीरे वो दौर गुजरा और हमारी अंतरिक्ष ऐजेंसी विकसित होने लगी।
भारतीय सरकारों और लोगों की दिलचस्पी ने इसरो को वो ताकत दी जिससे हम दुनिया को 6 वें ऐसे देश बन गये जिनके पास खुद की अपनी स्वदेशी स्पेस ऐजेंसी थी और खुद के बनाये गये सैटलाईट लांच व्हीकिल थे।
Human Spaceflight Programme
आज हम स्पेस में जाने की जो सोच रहे हैं, उसकी शुरूआत 2004 में ही हो गई थी, उस समय इसरो ने मन बना लिया था कि वह भविष्य में मानव मिशन जरूर करेगा रहेगा।
इसके लिए इसरो ने Human Spaceflight Programme यानि एचएसपी की नींव रखी जिसमें इसरो ने वह जरूरी टैक्नोल्जी और रिसोर्स पर काम करना शुरू कर दिया। जिससे वह अपने पहले मानव मिशन को अंजाम दे सकें, इस प्रोग्राम के बनने से पहले इसरो कभी भी ह्युमन स्पेसफ्लाइट के लिए सीरीयस नहीं था, उस समय इसरो केवल अपने सैटलाइट और जरूरी लाँच विह्किल जैसी पीएसलवी और जीएसएलवी पर ध्यान दे रहा था।
2018 में मिली आधिकारिक मंजूरी
2008 में यह डिजाइन बन चुका था और अब बस सरकार से इसके बजट के पास होने की देर थी। फरवरी 2009 में बजट भी सैंक्सन कर दिया गया पर कुछ पोलिटिकल कारणों की वजह से ये प्रोजेक्ट 4 साल के लिए रुक सा गया।
उसके बाद फरवरी 2014 में सरकार द्वारा फिर से इसरो का बजट बढ़ाया गया और गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) को हरी छंडी मिल गई। चार साल बाद 2018 में आखिरकार मोदी सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए 10 हजार करोड़ का बजट तय किया और फिर आधाकारिक रूप से गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) के लिए मंजूरी दे दी।
गगनयमान मिशन की डिजाइन कैसी है?
एचएसपी के बनने के दो साल बाद ही इसरो ने गगनयान मिसन की नींव रखी, 2006 में इसरो ने गगनयान के लिए सभी तरह की शुरूआती Research और Technology पर काम करना चालू कर दिया। गगनयान को Orbital Vehicle का नाम दिया गया और इसका डिजाइन अमेरिका के पहले मानव मिशन में इस्तेमाल हुए Mercury Class spacecraft जैसा रखने की सहमति बनी।
गगनयान स्पेस्क्राफ्ट दो मोड्युल्स से मिलकर बना है जिसमें पहला मोड्युल क्रू मोड्यूल है तो दूसरा सर्बिस मोड्युल इन्हीं दोनों मोड्युल्स को जोड़कर एक कैप्सूल बनता है जो कि एक विशालकाय राकेट में फिट किया जाता है। बात की जाये क्रूू मोड्युल की तो इसमें सबी क्रू मेंबर्स यानि अंतरिक्ष यात्री रूकते हैं।
क्रूू मोड्युल (Crew Module)
5300 किलो का ये मोड्युल अपने अंदर लाइफ स्पोर्ट सिस्टम और इनवोरमेंट कंट्रोल सिस्टम को भी रखता है, इइसके अलाबा इसमें मिशन अवोर्ट सिस्टम और Crew Escape System (CES) है जिसे राकेट लाँच के दौरान पहले और सेकेंड स्टेज में ऐक्टिवेट किया जा सकता है, ये सिस्टम बहुत जरूरी है, हर राकेट लाँच में बहुत रिस्क होता है।
और हम साल 1986 में चैलेजंर डिजास्टर को देख ही चुके हैं तो ये दोनो सिस्टम आरभिंक स्टेज पर गढ़बढ़ी होने पर ऐस्ट्रोनोट्स के क्रू मोड्यूल को स्पेसक्राफ्ट से दूर एक सुरक्षित दूरी पर ले जाते हैं, जिससे वह वापिस पृथ्वी पर पैराशूट की मदद से आसानी से लैंड कर लेता है और हमारे अंतरिक्षयात्री सुरझित रहते हैं। गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) इसी सिस्टम से लैस है जो कि आटोमेटिक रोकेट फ्लेयर को डिटेक्ट कर लेते हैं और साथ में इस सिस्टम से क्रू का कमंडार भी इमरजेंसी के टाइम मैनयुली भी अपने आप को रोकेट से इजेक्ट कर सकता है।
सर्बिस मोड्युल (Service Module)
वहां 2900 किलो का गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) का सर्बिस मोड्युल कई तरह के लीक्विड प्रोपोलेंट फ्युल से लैस होता है, क्रू मोड्युल और सर्बिस मोड्युल को मिलकार के एक ओरबिटल मोड्युल तैयार होता है, जिसमें सर्बिस मोड्युिल स्पेसक्राफ्ट को ओरबिट में ले जाने के लिए और उसे वहां पर फिक्स करने के साथ-साथ वापिस पृथ्वी पर रिऐंट्री करते वक्त एक रिजर्व फ्युल की तरह काम करता है।
गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) के सर्विस मोड्युल प्रप्लशन सिस्टम में नाइट्रोजन के मिक्स औक्साइड्स और Monomethyl hydrazine औक्सिडाइजर और फ्यूल का काम करते हैं, एक लीक्डिव प्रोपलेंट सिस्टम में औक्सिडाइजर और लीक्विड प्युल कंबसचन चेंबर में जाकर के जलते हैं जिससे हमारा ओरबिटल मोड्युल आगे बढ़ता है।
इस स्रबिस मोड्युल में पाँच मेन इंजन हैं जो 440 न्युटन का थ्रस्ट पैदा करते हैं वहीं इसमें 16 ऐसे छोटे इंजन भी हैं जिनमें 100 न्युटन का थ्रस्ट होता है इन सभी 16 नोजल को रियेक्शन कंट्रोल सिस्टम भी कहा जाता है, ये सभी सिस्टम ओरबिटल मोड्युल को एक खास Altitude पर रखने के साथ-साथ उसे प्रप्लशन (Propulsion) भी देते हैं इसे किसी भी खास दिशा पर मोड़ सकते हैं और जरुरत पड़ने पर आगे भी बढ़ा सकते हैं। इसके साथ साथ ये किसी दूसरे स्पेसक्राफ्ट से खास दूरी भी रखने में मदद करते हैं और एक स्टेवल स्टेशनरी स्टेशनरी ऑर्बिट में मोड्युल को संभाल कर रखते है।
पृथ्वी से कितनी दूर परिक्रमा करेगा गगनयान?
गगनयान मिशन के दौरान अंतरिक्ष यान पृथ्वी के चारों ओर लगभग 400 किलोमीटर की ऊंचाई पर परिक्रमा करेगा। यह एक निम्न पृथ्वी कक्षा (Low Earth Orbit) है। इस कक्षा में रहकर व्योमनोट्स (अंतरिक्षयात्री) सात दिनों तक क्रू मोड्युल में रहकर कई तरह के ऐक्सपेरिमेंंट स्पेस में करेंगे जो इसरो के लिए बहुत फायदेमेंद होंगे। इस ऊंचाई पर विकिरण का स्तर कम होता है और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए खतरा कम रहता है।
Space Capsule Recovery (SRE-1) – गगनयान का पहला टेस्ट
2006 में गगनयान प्रोजेक्ट की शुरूआत होने के बाद 2007 में इसरो ने पहला छोटा सा स्पेस्क्राफ्ट डिजाइन किया जिसका बजन 550 किलो का था।
इस स्पेस्क्राफ्ट को Space Capsule Recovery या SRE-1 नाम दिया गया जिसका परीक्षण इसरो ने 10 जनवरी 2007 को श्रीहरिकोटा से किया। पीएसलबी C7 रोकेट से लाँच होने के बाद इस स्पेसक्राफ्ट ने पृथ्वी की लो औरबिट पर 12 दिन बिताये और इसके बाद यह यान पृथ्वी के ऐटमोशफेयर में आकर के स्पेलशडाउन होकर के बंगाल की खाड़ी में लैंड हुआ।
Crew module Atmospheric Re-entry Experiment (CARE – 2014)
2007 के Space Capsule Recovery ऐक्सपेरीमेंट के बाद 2014 में इसरो ने इसी कड़ी में Crew module Atmospheric Re-entry Experiment जिसे केयर भी कहते हैं उसको अंजाम दिया।
इस टेस्ट में इसरो के वैज्ञानिकों ने क्रू मोड्युल को GSLV Mark III X1 लॉन्च व्हीकल पर फिट किया इसके बाद क्रोयजेनिक फ्युल (Cryogenic Fuel) से लैस राकेट इसे स्पेस में ले जाता है और पृथ्वी की सतह से 126 किमी उपर जाते ही वह राकेट क्रू मोड्युल से अलग हो जाता है। लगभग 80 किमी की उँचाई तक मोड्युल में लगे सिस्टम उसकी स्पीड को कम करते रहते हैं।
फिर इसी उँचाई पर थ्रस्टर्स (Thrusters) बंद कर दिये जाते हैं, औऱ धीरे धीरे वातावरण का घर्षण यानि फ्रिक्शन मोड्युल की स्पीड को कम करता रहता है। मोड्युल की हीट सील्ड लगभग 1 हजार डिग्री सेल्सियस तक की हीट सहन करती है। उसके बाद जैसे ही मोड्युल की गिरने की स्पीड 233 मीटर प्रति सेकेंड होती है, उसमें लगे पैराशूट तैनात हो जाते हैं और उसकी स्पीड को 50 मीटर प्रति सेकेंड कर देते हैं।
31 मीटर चौड़े ये पैराशूट भारत के सबसे विशाल पैराशुट होते हैं जो 2014 में इस टेस्ट में इसरो के क्रू मोड़्युल को बंगाल की खाड़ी में आसानी से लैंड करा देते हैं। पूरे मिशन में 20 मिनट 43 सेकेंड तक का समय लगता है और उसके बाद वैज्ञानिकों को यकीन हो जाता है कि उनके द्वारा बनाया गया गगनयान का क्रू मोड्युल स्पैलेसडाउन (Splashdown) कर सकता है और सुरक्षित अंतरिक्ष यात्रियों को वापिस पृथ्वी पर ला सकता है।
2018 में पैड अवोर्ट टेस्ट (Crew Escape System) का सफल परीक्षण
इस टेस्ट के सफल होने के बाद साल 2018 में इसरो गगनयान का पैड अवोर्ट सिस्टम (Pad Abort Test) टेस्ट करता है ये लाँच अबोंर्ट सिस्टम ही है जिसमें इमरजेंसी या राकेट फैलियर के वक्त क्रू मोड्युल को तुरंत राकेट से डिटैच कर दिया जाता है।
ये ठीक वैसे ही होता है जैसे एक फाइटर पाइलट जैट से इजेक्ट होता है वस यहां पर पाइलट की जगह पूरा एक मोड्युल होता है जिसमें कई अंतरिक्षयात्री बैठे होते हैं। इसरो ने इस टेस्ट को पृथ्वी की सतह से 2.75 किमी उपर किया और इस्केप सिस्टम ने मोड्यिुल को लाँच साइट से लगभग 3 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में लैंड किया। (Gaganyaan Mission in Hindi)
इसरो का शक्तिशाली राकेट इंजन GSLV Mark III X1
2018 के बाद गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) के लिए एक शक्तिशाली राकेट इंजन की जरूरत महसूस होने लगी जो जीएसलवी मार्क 3 राकेट को और ज्यादा लोड उठाने में मदद कर सके, इसरो ने इस मिशन के लिए विकास इंजन को और ज्यादा अपग्रेड किया गया ये इंजन मार्क 3 राकेट के कोर स्टेज को पावर देता है।
इस राकेट में जो दो सबसे विशाल बूस्टर लगे हैं उन्हें S200 कहा जाता है, 25 मीटर लंबे और 3.2 मीटर चौड़े ये बूस्टर राकेट को काफी थ्रस्ट प्रदान करते हैं जिससे वह लिफ्टआफ करता हैं, S200 के ह्युमन रेटिड वेरियंट यानि एचएस200 का सफल टेस्ट 13 May 2022 को किया गया जहां ये बस्टर 135 सेकेंड तक नोमिनल परफोरमेंस देने में कामयाब रहा। गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) में इन बूस्टरा का इस्तेमाल किया जायेगा इसलिए इसरो इन पर कई सालों से फोकस कर रहा है।
विकास इंजन और नये बूस्टर
वहीं सेंटेर में लगा L110 लीक्विड स्जेट 21 मीटर लंबा फ्युल थर्सट्र है जो दो विकास इंजन द्वारा ओपरेट होता है करीब 110 टन लीक्विड फ्युल लिये ये मार्क 3 राकेट को और ज्यादा थर्सट प्रदान करता है, इसरो जल्द ही इसे बदल कर SCE-200 कोर स्जेट लगाने वाला है जो पिछली एल110 स्जेट से जायादा एडवांस है ये उससे ज्यादा पेलोड उठा सकता है और केरोसीन की मदद से भी थ्रस्ट पैदा करके राकेट को उठा सकता है।
गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) में ये शायज यूज नहीं होगा क्योंकि लगातार इस पर काम चल रहा है, हो सकता है कि गगनयान के बाद होने वाले सभी भारी मिशन इसकी मदद से स्पेस में जा सकें।
वहीं मार्क 3 राकेट के सबसे उपरी पार्ट में आप अपर स्टेज को देख सकते हैं, इसे C25 कहा जाता है इसमें लगा सिंगल क्रायोजेनिक इंजन CE-20 अपने अंदर करीब 28 हजार किलो राकेट फ्युल रखता है, जो 200 किलो न्युटन थ्रस्ट पैदा करता है, कुल मिलाकर के गगनयान के लिए बना जीएसलवी मार्क 3 राकेट भारत का पहला हैवी राकेट है जो कि हमारे अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जायेगी।
गगनयान कैसा Spacecraft है ? Gaganyaan Mission in Hindi
गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) एक 5300 किलो का फुली ओटोमेटिक स्पसेक्राफ्ट है जो तीन क्रू मेंबर्स को पृथ्वी की Low Orbit में ले जाने के लिए बनाया गया है, इसके तहत सात दिनों तक अंतरिक्षयात्री पृथ्वी की लो औरबिट जो सतह से कि 300-400 किलोमीटर उपर होती है वहां चक्कर लगायेंगे।
जैसा कि आपको पहले बताया है कि गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) दो माड्युल्स को मिलाकर बना है पहला माड्युल Service Module है तो दूसरा Crew Module इन दोंनो Modules को मिलाकर गगयान को Orbital Modules भी कह सकते हैं।
व्योमनोट्स – Vyomanauts
इसरो अंतरिक्ष में भेजे गये सभी यात्रियों के लिए व्योमनोट्स शब्द उपयोग करता है। ये शब्द संस्कृत का है, जहां व्योम का अर्थ “अंतरिक्ष” होता है।
हालांकि हमारे गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) के व्योमनोट्स का सफर इतना भी आसान नहीं है, कुछ खास तरह की ट्रेनिंग के लिए इसरो व्योमनोट्स को Russia भी भेजेगा जहां उन्हें बदलती हुई ग्रेविटी औऱ अलग-अलग ग्रेविटेशनल फील्ड में काम करने की ट्रेनिंग दी जायेगी। क्रू माड्युल को व्योमनोट्स के लिए इस तरह से बनाया जायेगा कि उन्हें किसी भी तरह की कोई दिक्कत ना हो, पूरी आक्सीजन की व्यवस्था हो और साथ में क्रू माड्युल में लगे उपकरणों और क्ट्रोल सिस्टम की भी ट्रेनिंग दी जायेगी।
हमारे व्योमनोट एक खास तरह के स्पेससूट से लैस होंगे जो उन्हें इंतरिक्ष की खतरनाक रेडियेशन और डारेक्ट सन की लाइट से बचायेगा, साथ में ये सूट उनकी हर तरह के वातावरण में भी मदद करेगा।
गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) में कौन जा रहा है?
इसरो ने गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission Hindi) के लिए चार लोगों को तैयार किया है। इन सभी लोगों ने अपनी ट्रेनिंग रूस में की है। इसरो का कहना है इन सभी लोगों को जिन्हें व्योमनोट भी कहा जायेगा। इसरो द्वारा इन चार अंतरिक्ष यात्रियों के ये नाम हैं – प्रशांत बालकृष्णन नायर, अजीत कृष्णन, अंगद प्रताप और शुभांशु शुक्ला।
फिलहाल इसरो ने गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) के लिए इन्हीं चार अंतरिक्ष यात्रियों का चयन किया है, ये सभी भारतीय वायुसेना के अधिकारी हैं। पर इसरो ने अभी तक यह घोषित नहीं किया गया है कि इनमें से कौन पहले मिशन पर जाएगा।
इसरो ने एस्ट्रोनोट की जगह अपने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए संस्कृत शब्द व्योमनोट प्रयोग किया है जिसमें व्योम का मतलब हिंदी में अंतरिक्ष होता है।
कब लाँच होगा गगनयान – Launching Of Gaganyaan
भारत सरकान ने पहले दिसंबर 2021 के लास्ट में जब गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) को लाँच करने की घोषणा की ती, पर कोरोना के कारण ये मशन धीमा होता गया। फिलहाल इस मिशन के लॉन्च को लेकर अभी तक कोई निश्चित तारीख घोषित नहीं की गई है। हालांकि, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने इस मिशन को लेकर कई महत्वपूर्ण परीक्षण और विकास कार्य पूरे कर लिए हैं।
हालांक जब गगनयान (Gaganyaan Mission in Hindi) को लाँच किया जायेगा तो ये भारत के लिए इतहासिक क्षण होगा, और भारत ये कारनामा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जायेगा। इस मिशन से स्पेस एक्सपोलेरेशन और इसरो के लिए एक नया दरवाजा खुल जायेगा, जहां कई विदेशी लोग भी इसरो में इनवेस्ट करना पसंद करेंगे, आने वाले समय में अंतरिक्ष बाजार में भारत भी सभी को कड़ी कंपीटशन देगा।
गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) से भारत को क्या फायदे हैं…
दोस्तों, गगनयान मिशन में भले ही 10 हजार करोड़ रूपये हमारे लग रहै हों, पर इस इंनवेस्टमेंट के भविष्य में हमारे लिए बहुत फायदे हैं। स्पेस साइंस पर इनवेस्टमेंट करने पर हमारे देश के बच्चों की साईंस में बहुत इंटरेस्ट बढ़ेगा, जिससे हम आगे आने वाले समय में और ज्यादा रिस्रच कर पायेंगे और नई तकनीक भी खोज सकेंगे।
इस मिशन से ये भी देखा जा रहा है कि जिस तरह NASA ने मानव मिशन करके अपने देश के लोगों में जो जगह बानाई है अगर गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) सफल रहता है तो इसरो की भी हमारे दिल में एक अलग पहचान बन जायेगा।
ऐसा होने के बाद कई लोग इस क्षेत्र में जाना चाहेंगे, इससे नौकरियों, स्टार्ट अप और तमाम तरह की नई Technologies बनेंगी जो भविष्य में हमें उस स्थान पर ला देंगी जहां आज रूस औऱ अमेरिका है।
भारत में अंतरिक्ष क्रांति का आरंभ
दोस्तों, कुल मिलाकर देखा जाये तो गगनयान मिशन (Gaganyaan Mission in Hindi) हम भारतीयों के लिए स्पेस साइंस और इसकी दुनिया में एक वरदान साबित हो सकता है, इससे भारत में एक नई क्रांति आयेगी जिससे विकास और तेज रफ्तार से आगे बढ़ पायेगा।
भले ही ये प्रोजेक्ट 10 हजार करोड़ का हो पर स्पेस में की गई कोई भी इंनवेस्टमेंट कभी भी बेकार नहीं जाती है, अगर हम कभी भी इसरो को ना बनाते और पैसे से केवल अपने विकास करते तो जो इंटरनेट, जीपीएस और टीवी की सुविधा हम ले रहे हैं वो शायद आज हमारे पास नहीं होती है और हम दुनिया के विकास के क्रम से कई सौ साल पीछे चल रहे होते।
निष्कर्ष
गगनयान मिशन के बाद, इसरो की पहली प्राथमिकता अंतरिक्ष में भारतीयों को सुरक्षित भेजने और लाने की क्षमता को मजबूत करना होगी। हालांकि, इसरो का लक्ष्य भविष्य में चांद और मंगल पर मानव भेजना भी है। लेकिन, मंगल मिशन के लिए कई बड़ी चुनौतियां हैं, जैसे – लंबी यात्रा, जीवन समर्थन प्रणाली, और अंतरिक्ष में विकिरण से सुरक्षा। गगनयान और दूसरे मिशनों से मिले अनुभव इसरो को आगे के मिशनों के लिए तैयारी करने में मदद करेंगे। मंगल पर मानव मिशन भेजने में समय लगेगा, लेकिन यह भारत के दीर्घकालिक लक्ष्यों में जरूर शामिल है।