
इसरो (ISRO) भारत की अंतरिक्ष ऐजेंसी है जो लगातार अंतरिक्ष में सैटलाइट लाँच करने के साथ-साथ अहम मिशन भी करती है। इसरो ने चंद्रयान -1 और मंगलयान मिशन को सफलतापूर्वक किया है और भारत को स्पेस रेस में बहुत आगे कर दिया है। पर सभी स्पेस मिशन को समय पर पूरा करने वाली इसरो को अपने सबसे महत्वपुर्ण मिशन में लगातार देरी हो रही है। पूरा भारत इस मिशन की एक आस देख रहा है पर लगातार देरी से लोगों को उम्मीद कम लगने लगी है। मैं बात कर रहा हूँ भारत के सबसे ज्यादा चर्चित मिशन गगनयान (Why Gaganyaan Mission is Delayed) की , जिसके तहत तीन या चार अंतरिक्ष यात्री अंतरिक्ष में पहली बार जायेंगे और सात दिन वहीं रहेंगे। ये मिशन संपूर्ण भारतीय इतिहास के लिए अहम है, अगर भारत इसे पूरा कर लेता है वो विश्व का चौथा ऐसा देश बन जायेगा जिसनें अपने ही राकेट से और अपनी ही जमीन से अपने नागरिकों को अंतरिक्ष में भेजा है। इससे पहले ये इतिहास अमेरिका, रूस और चीन लिख चुके हैं।
आइये अब जानते हैं कि साल 2006 में जब गगनयान मिशन की शूरूआत हुई तो आखिर 2022 तक भी इसे लाँच क्यों नहीं किया गया है, 16 सालों का विशाल गैप क्यों इस मिशन में लग रहा है और ये कब लाँच होगा?
गगनयमान मिशन की डिजाइन कैसी है?
गगनयान स्पेस्क्राफ्ट दो मोड्युल्स से मिलकर बना है जिसमें पहला मोड्युल क्रू मोड्यूल है तो दूसरा सर्बिस मोड्युल इन्हीं दोनों मोड्युल्स को जोड़कर एक कैप्सूल बनता है जो कि एक विशालकाय राकेट में फिट किया जाता है। बात की जाये क्रूू मोड्युल की तो इसमें सबी क्रू मेंबर्स यानि अंतरिक्ष यात्री रूकते हैं।
क्रूू मोड्युल (Crew Module)
5300 किलो का ये मोड्युल अपने अंदर लाइफ स्पोर्ट सिस्टम और इनवोरमेंट कंट्रोल सिस्टम को भी रखता है, इइसके अलाबा इसमें मिशन अवोर्ट सिस्टम और Crew Escape System (CES) है जिसे राकेट लाँच के दौरान पहले और सेकेंड स्टेज में ऐक्टिवेट किया जा सकता है, ये सिस्टम बहुत जरूरी है, हर राकेट लाँच में बहुत रिस्क होता है। और हम साल 1986 में चैलेजंर डिजास्टर को देख ही चुके हैं तो ये दोनो सिस्टम आरभिंक स्टेज पर गढ़बढ़ी होने पर ऐस्ट्रोनोट्स के क्रू मोड्यूल को स्पेसक्राफ्ट से दूर एक सुरक्षित दूरी पर ले जाते हैं, जिससे वह वापिस पृथ्वी पर पैराशूट की मदद से आसानी से लैंड कर लेता है और हमारे अंतरिक्षयात्री सुरझित रहते हैं। गगनयान इसी सिस्टम से लैस है जो कि आटोमेटिक रोकेट फ्लेयर को डिटेक्ट कर लेते हैं और साथ में इस सिस्टम से क्रू का कमंडार भी इमरजेंसी के टाइम मैनयुली भी अपने आप को रोकेट से इजेक्ट कर सकता है।
सर्बिस मोड्युल (Service Module)
वहां 2900 किलो का गगनयान का सर्बिस मोड्युल कई तरह के लीक्विड प्रोपोलेंट फ्युल से लैस होता है, क्रू मोड्युल और सर्बिस मोड्युल को मिलकार के एक ओरबिटल मोड्युल तैयार होता है, जिसमें सर्बिस मोड्युिल स्पेसक्राफ्ट को ओरबिट में ले जाने के लिए और उसे वहां पर फिक्स करने के साथ-साथ वापिस पृथ्वी पर रिऐंट्री करते वक्त एक रिजर्व फ्युल की तरह काम करता है।
गगनयान (Why Gaganyaan Mission is Delayed) के सर्विस मोड्युल प्रप्लशन सिस्टम में नाइट्रोजन के मिक्स औक्साइड्स और Monomethyl hydrazine औक्सिडाइजर और फ्यूल का काम करते हैं, एक लीक्डिव प्रोपलेंट सिस्टम में औक्सिडाइजर और लीक्विड प्युल कंबसचन चेंबर में जाकर के जलते हैं जिससे हमारा ओरबिटल मोड्युल आगे बढ़ता है।
इस स्रबिस मोड्युल में पाँच मेन इंजन हैं जो 440 न्युटन का थ्रस्ट पैदा करते हैं वहीं इसमें 16 ऐसे छोटे इंजन भी हैं जिनमें 100 न्युटन का थ्रस्ट होता है इन सभी 16 नोजल को रियेक्शन कंट्रोल सिस्टम भी कहा जाता है, ये सभी सिस्टम ओरबिटल मोड्युल को एक खास Altitude पर रखने के साथ-साथ उसे प्रप्लशन (Propulsion) भी देते हैं इसे किसी भी खास दिशा पर मोड़ सकते हैं और जरुरत पड़ने पर आगे भी बढ़ा सकते हैं। इसके साथ साथ ये किसी दूसरे स्पेसक्राफ्ट से खास दूरी भी रखने में मदद करते हैं और एक स्टेवल स्टेशनरी स्टेशनरी ऑर्बिट में मोड्युल को संभाल कर रखते है।
क्या है देरी का सबसे बड़ा कारण? Why Gaganyaan Mission is Delayed?
जब कोई स्पेस ऐजेंसी ह्यूमन स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम(Human Spaceflight Programme) डिजाइन करती है तो उसे बनाने में कई साल तो लगते ही हैं। गगनयान मिशन में क्रू और सर्बिस मोड्युल्स की डिजाइन और एक भारी प्रक्षेपण यान (Launch Vehicle) के बारे में सोचने में तीन साल का न्युनतम समय लगा। उसके बाद बजट और फंडिग में देरी हुई और साल 2013 में इसे फाइनल किया गया साल 2014 में सबसे पहले इसके क्रू मोड्य़ुल की ऐटोमस्फेरिक री ऐंटरी ऐक्सपिरेमेंट की टेस्टिंग की गई।
2014 में री ऐंटरी टेस्ट (CARE)
इस टेस्ट में इसरो के वैज्ञानिकों ने क्रू मोड्युल को GSLV Mark III X1 लॉन्च व्हीकल पर फिट किया इसके बाद क्रोयजेनिक फ्युल (Cryogenic Fuel) से लैस राकेट इसे स्पेस में ले जाता है और पृथ्वी की सतह से 126 किमी उपर जाते ही वह राकेट क्रू मोड्युल से अलग हो जाता है। लगभग 80 किमी की उँचाई तक मोड्युल में लगे सिस्टम उसकी स्पीड को कम करते रहते हैं। फिर इसी उँचाई पर थ्रस्टर्स (Thrusters) बंद कर दिये जाते हैं, औऱ धीरे धीरे वातावरण का घर्षण यानि फ्रिक्शन मोड्युल की स्पीड को कम करता रहता है। मोड्युल की हीट सील्ड लगभग 1 हजार डिग्री सेल्सियस तक की हीट सहन करती है। उसके बाद जैसे ही मोड्युल की गिरने की स्पीड 233 मीटर प्रति सेकेंड होती है, उसमें लगे पैराशूट तैनात हो जाते हैं और उसकी स्पीड को 50 मीटर प्रति सेकेंड कर देते हैं।
31 मीटर चौड़े ये पैराशूट भारत के सबसे विशाल पैराशुट होते हैं जो 2014 में इस टेस्ट में इसरो के क्रू मोड़्युल को बंगाल की खाड़ी में आसानी से लैंड करा देते हैं। पूरे मिशन में 20 मिनट 43 सेकेंड तक का समय लगता है और उसके बाद वैज्ञानिकों को यकीन हो जाता है कि उनके द्वारा बनाया गया गगनयान का क्रू मोड्युल स्पैलेसडाउन (Splashdown) कर सकता है और सुरक्षित अंतरिक्ष यात्रियों को वापिस पृथ्वी पर ला सकता है।
2018 में पैड अवोर्ट टेस्ट (Crew Escape System) का सफल परीक्षण
इस टेस्ट के सफल होने के बाद साल 2018 में इसरो गगनयान का पैड अवोर्ट सिस्टम (Pad Abort Test) टेस्ट करता है ये लाँच अबोंर्ट सिस्टम ही है जिसमें इमरजेंसी या राकेट फैलियर के वक्त क्रू मोड्युल को तुरंत राकेट से डिटैच कर दिया जाता है।
ये ठीक वैसे ही होता है जैसे एक फाइटर पाइलट जैट से इजेक्ट होता है वस यहां पर पाइलट की जगह पूरा एक मोड्युल होता है जिसमें कई अंतरिक्षयात्री बैठे होते हैं। इसरो ने इस टेस्ट को पृथ्वी की सतह से 2.75 किमी उपर किया और इस्केप सिस्टम ने मोड्यिुल को लाँच साइट से लगभग 3 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में लैंड किया। (Why Gaganyaan Mission is Delayed)
इसरो का शक्तिशाली राकेट इंजन GSLV Mark III X1
2018 के बाद गगनयान मिशन के लिए एक शक्तिशाली राकेट इंजन की जरूरत महसूस होने लगी जो जीएसलवी मार्क 3 राकेट को और ज्यादा लोड उठाने में मदद कर सके, इसरो ने इस मिशन के लिए विकास इंजन को और ज्यादा अपग्रेड किया गया ये इंजन मार्क 3 राकेट के कोर स्टेज को पावर देता है। इस राकेट में जो दो सबसे विशाल बूस्टर लगे हैं उन्हें S200 कहा जाता है, 25 मीटर लंबे और 3.2 मीटर चौड़े ये बूस्टर राकेट को काफी थ्रस्ट प्रदान करते हैं जिससे वह लिफ्टआफ करता हैं, S200 के ह्युमन रेटिड वेरियंट यानि एचएस200 का सफल टेस्ट 13 May 2022 को किया गया जहां ये बस्टर 135 सेकेंड तक नोमिनल परफोरमेंस देने में कामयाब रहा। गगनयान मिशन (Why Gaganyaan Mission is Delayed) में इन बूस्टरा का इस्तेमाल किया जायेगा इसलिए इसरो इन पर कई सालों से फोकस कर रहा है।
विकास इंजन और नये बूस्टर
वहीं सेंटेर में लगा L110 लीक्विड स्जेट 21 मीटर लंबा फ्युल थर्सट्र है जो दो विकास इंजन द्वारा ओपरेट होता है करीब 110 टन लीक्विड फ्युल लिये ये मार्क 3 राकेट को और ज्यादा थर्सट प्रदान करता है, इसरो जल्द ही इसे बदल कर SCE-200 कोर स्जेट लगाने वाला है जो पिछली एल110 स्जेट से जायादा एडवांस है ये उससे ज्यादा पेलोड उठा सकता है और केरोसीन की मदद से भी थ्रस्ट पैदा करके राकेट को उठा सकता है।

गगनयान मिशन (Why Gaganyaan Mission is Delayed) में ये शायज यूज नहीं होगा क्योंकि लगातार इस पर काम चल रहा है, हो सकता है कि गगनयान के बाद होने वाले सभी भारी मिशन इसकी मदद से स्पेस में जा सकें। वहीं मार्क 3 राकेट के सबसे उपरी पार्ट में आप अपर स्टेज को देख सकते हैं, इसे C25 कहा जाता है इसमें लगा सिंगल क्रायोजेनिक इंजन CE-20 अपने अंदर करीब 28 हजार किलो राकेट फ्युल रखता है, जो 200 किलो न्युटन थ्रस्ट पैदा करता है, कुल मिलाकर के गगनयान के लिए बना जीएसलवी मार्क 3 राकेट भारत का पहला हैवी राकेट है जो कि हमारे अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जायेगी।
गगनयान की ट्रेनिंग और कोरोना के कारण देरी!
राकेट, ओरबिटल मोड्युल और सभी तरह की टेस्टिंग के बाद अब गगनयान के लिए हमें ऐस्ट्रोनोट्स को भी ट्रेनिंग देनी थी, साल 2009 में ही सरकार ऐयरफोर्स के पाइलट को चुनने लगी थी। धीरे-धीरे कई फैसेलिटीस बनाई गई जहां ट्रेनिंग की शूरूआत हुई। माइक्रोग्रेविटी और जीरो ग्रेविटी में ओपरेट करना, लैंडिग और स्पेस में रेडियेशन के प्रभाव को समझना इस ट्रेनिंग में शामिल था।
2019 तक भारत में ट्रेनिंग करने के बाद चार अंतरिक्ष यात्री चुने गये और उन्हें फिर रसिया में 1 साल के लिए एडवांस ट्रेनिंग के लिए भेजा गया जहां उन्होंने अलग-अलग प्रैसर और वातावरण में लैंडिग के तरीकों को समझा। जंगल, नदी और समदु्रो में लैंडिग कैसे करनी है इसपर भी जोर दिया गया, ये सभी काम 2021 फरवरी तक पुरे हो गये और गगनयान फिर से अपनी उड़ान भरने के लिए तैयार हुआ पर इस बार कोरोना के कारण चिप सोर्जेट और लाकडाउन की वजह से ये मिशन और डिले हो गया।
साल 2022 में इसका पहला मानव मिशन करना था पर अब ये खिसककर साल 2024 के पहले तीन महीनों में शिफ्ट हो गया है, लगभग 2 सालों का ऐस्ट्रा समय हमें कई चीजों को और बहतर बनाने के लिए मदद भी कर रहा है, पर अगर ज्यादा डिले होने लगे तो ये आने वाले मिशन के लिए सही नहीं होता है तो उम्मीद है कि साल 2024 में हम इसे लाँच होता जरूर देख पायेंगे।
पृथ्वी की सतह से कितनी दूर परिक्रमा करेगा गगनयान?
भारतीय अंतरिक्ष याक्षी पृथ्वी की निचली ओरबिट में उसकी परिक्रमा करने लगेंगे, सतह से करीब 300 से 400 किमी उपर लो अर्थ ओऱबिट में यात्री सात दिनों तक क्रू मोड्युल में रहकर कई तरह के ऐक्सपेरिमेंंट स्पेस में करेंगे जो इसरो के लिए बहुत फायदेमेंद होंगे। सात दिन बिताने के बाद गगनयान (Why Gaganyaan Mission is Delayed) का ओरबिटल मोड्युल वापिस पृथ्वी की सतह पर लैंड करेगा, जैसे ही इसकी ऐटमोस्फेयर में री ऐंटी होगी इसका सर्बिस मोड्युल क्रू मोड्युल से दूर हो जायेगा और फिर क्रू मोड्युल जिसमें तीनों यात्री बैंठे है बहुत तेज गति से पृथ्वी की ओर आयेगा।
हीट सील्ड से लैस ये ऐटमोसफेयर के फ्रिक्शन को झेलता हूुआ अपनी स्पीड और अलाइनमेंट को थ्रस्टर की मदद से सही करेगा और फिर पैराशूट डिप्लोई कर देगा, धीरे-दीरे फिर मोड्युल या तो अरब सागर या फिर बंगाल की खाडी में लैंड कर जायेगा, उसके बाद मोड्युल के सेंसर भारतीय नौसेना को लोकेशन के कोर्डिनेट सेंड करेंगे और फिर उनकी मदद से नैवी या कोस्टगार्ड के लोग क्रू मोड्युल को खोजकर हमारें अंतरिक्ष यात्रियों को सही सलामत निकाल लेंगे, इस तरह की लैंडिग टेकनीक को स्प्लेशडाउन (Splashdown) तकनीक कहा जाता है।