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70 हजार करोड़ का ये टेलीस्कोप देखेगा 14 अरब साल पीछे का ब्रह्मांड James Webb Space Telescope

ये टेलीस्कोप ब्रह्मांड के जन्म के रहस्यों को हमारे सामने रखेगा, हबल से भी ज्यादा शक्तिशाली है!

25 दिसंबर 2021 नासा ने अपना सबसे शक्तिशाली टेलीस्कोप जेम्स वेब (James Webb Telescope Mission Hindi) अंतरिक्ष में लाँच कर दिया, पिछले 25 सालों से लगातार इस पर काम करने के बाद अब ये टेलिस्कोप पृथ्वी से 15 लाख किमी दूर जाकर रहेगा और वहां से सीछा ब्र्हमांड की अनोखी इमेजेस को पृथ्वी पर सेंड करेगा। पर 25 वर्षों की ये यात्रा जितनी आसान हमें दिखाई देती है ये उतनी ही कठिन है।

इसरो (ISRO) के वार्षिक बजट से 5 गुना ज्यादा मुल्य में तैयार ये स्पेस टेलीस्कोप आखिर इतना खास क्य़ो है? जब स्पेस में पहले से ही हबल टेलिस्कोप मौजूद है तो आखिर हमें इस शक्तिशाली और विशाल टेलीस्कोप की जरूरत क्यों पड़ी, क्या ये हबल से भी दूर जाकर ब्रह्रमांड में देख सकेगा, क्या ये बिग बैंग के रहस्य को सुलझा सकेगा, इन सभी चीज़ों को जानने से पहले आइये जानते हैं कि एक टेलीस्कोप आखिर काम कैसे करता है? 

टेलीस्कोप कैसे काम करता है?

नासा, इसरो और यहां तक की अगर आप भी ब्रह्मांड में किसी ग्रह औऱ तारे को देखना चाहते हैं तो टेलीस्कोप (Space Telescope) की जरूरत पड़ती है, ये एक ऐसा यंत्र है जिसके अंदर लेंस (Lens) या फिर मिरर(Mirror) लगे होते हैं जो ओबजेक्ट से आ रहे प्रकाश को प्रतिबिंबित (Reflect) करके उसका सटीक चित्र (Image) लेते हैं।

जेम्स वेब टेलीस्कोप (James Webb Telescope Mission Hindi)  में दो मिरर हैं पहला प्राइमरी(Primary) और दूसरा सेकेंडरी (Secondary) जैसे ही लाइट प्राइमरी मिरर से प्रतिबिंबित होकर के सेकेंडरी मिरर पर जाती है तो फिर वहां से ये सीधे प्राइमरी मिरर पर बने एक होल(Hole) में पहुँचती है। इस होल में खास तरह के वैज्ञानिक यंत्र लगे होते हैं, प्रकाश यहां एक खासकेन्द्र बिंदु (Focal Point) पर जाती है और एक हाई रेजोल्यूशन इमेज बनती है।

जेम्स बेब के साथ-साथ हबल टेलिस्कोप भी इसी सिद्धांत पर काम करता है। पर टेलीस्कोप कितना ज्यादा शक्तिशाली और दूर तक देख सकता है वो उसके प्राइमरी मिरर पर निर्भर करता है। आप अगर एक सरल दूरदर्शी से आकाश में देखोगे तो आप ज्यादा से ज्यादा शनि ग्रह और उसके चंद्गमाओं को देख पाओगे पर अंतरिक्ष और पृथ्वी पर बने हुए टेलीस्कोप साधारण टेलिस्कोप से बहुत ज्यादा दूर से आने वाली लाइट से उस पिंड का सटीक चित्र बनाते हैं और उसकी पृथ्वी से दूरी भी निकाल लेते हैं।

साल 1990 में लाँच हुए हबल टेलीस्कोप में 2.4 मीटर डायेमीटर का मिरर लगा हुआ है जिसकी मदद से इसने हजारों आकाशगंगाओं की साफ छवियाँ ली हैं, पर जेम्स बेब टेलीस्कोप के मिरर की बात की जाये तो ये हबल से भी तीन गुना बड़ा है, इस वजह से ये हबल से भी ज्यादा दूर तक की कमजोर से कमजोर तंरगों को भी डिटेक्ट करके इमेज (छवि) ले सकता है।

Hubble Mirror Vs James Webb Telescope Mirror

कैसे पूरी करेगा जेम्स वेब अपनी यात्रा?

समय ये टेलिस्कोप पृथ्वी से 10 लाख किमी दूर तक जा चुका है, 6161 किलोग्राम भारी इस टेलिस्कोप (James Webb Telescope Mission Hindi) को लाँच करने के लिए यूरोपीयन राकेट एरियन 5 की मदद ली गई थी, लांच होने के 31 मिनट बाद ही जेम्स बेब स्पेसशिप से अलग हुआ और इसने अपने सोलर ऐरे(Solar Arrays) डिप्लोई किये, जिससे Telescope में पावर आई और ये काम करने लगा, इसके बाद ये तीन दिन लगातार इसी तरह आगे बढ़ता रहा और लाँच होने के तीन दिन बाद इसने अपनी सनसील्ड पैलेट (Sunshield Pallet) डिप्लोई की।

इस पैलेट की मदद से जेम्स बेब टेलीस्कोप में लगे सन सील्ड बाद में डिप्लोई होगें और सूर्य की रेडियेशन और हीट से इसे बचायेंगे, इसी तरह चौथे दिन में इस टेलिस्कोप में लगे टावर इसके मिरर को थोड़ा उँचा करते हैं जिससे ये अपनी परफेक्ट ओपरेशनल हाइट पर पहुँच जाता है।

इसके अगले दिन सन सील्ड पर लगे फ्लैप्स डिप्लोई हो जाते हैं, इनकी मदद से टेलिस्कोप अपनी सन सील्ड पर पड़ रहे सूर्य के दबाव को कंट्रोल कर पाता है और टेलिस्कोप स्टेवलाइज होकर आगे बढ़ता रहता है, इसी दिन फिर टेलिस्कोप की सील्ड भी डिप्लोई होने लगती है, छठे और सांतवे दिन तक लगातार ये सील्ड डिप्लोई होती रहती है। 

वीडियो में देखिए की ये टेलीस्कोप किस तरह मिशन पूरा करेगा।

आठवें दिन जेम्स वेब टेलिस्कोप अपनी सन सील्ड के साथ आगे बढ़ता रहता है और फिर मिशन के 10 वें दिन ये अपने सेकेंड्री मिरर को भी डिप्लोई कर लेता है। अबतक लगभग पूरा टेलिस्कोप स्पेस में खुल चुका है पर अभी भी इसके प्राइमरी मिरर जो कि स्पेस कम करने के लिए पीछे की ओर मुढ़े हुए हैं 13 वें दिन यानि स्क्रिप्ट लिखते समय तक डिप्लोई हो जाते हैं। यानि अब जेम्स बेब टेलिस्कोप पूरी तरह से खुल चुका है और बस अपनी ओरबिट की ओर जा रहा है, सूर्य की हीट और रेडियेशन से बचने के लिए ये पृथ्वी से करीब 15 लाख किमी दूर एल2 प्वाइंट यानि लगरांज प्वाइंट 2 पर ही ओरबिट करता रहेगा।

ओरबिट – परिक्रमा पथ (James Webb Space Telescope Mission)

हबल से एकदम अलग ये सूर्य की ओरबिट करेगा पर इसकी ये ओरबिट इस तरह से होगी की इसपर हमेशा पृथ्वी का भी गुरूत्वाकर्षण प्रभाव रहेगा, पृथ्वी और सूर्य की ग्रेविटी पूल के कारण ये टेलीस्कोप बुहत ही कम फ्युल और थ्रस्टर की मदद से अपनी औरबिट में बना रहेगा। पृथ्वी से उतनी दूर ये टेलिस्कोप अपने लिमिटड फ्युल से ही काम कर सकता है इसलिए वैज्ञानिकों ने इसे L2 प्वाइंट में रखा है। इससे आगे की ओरबिट में इस टेलिस्कोप को एस्ट्रायड और छोटे पिंडो से टकराने का भी खतरा है। इसलिए ये ओरबिट एकदम स्टेवल है इस ओरबिट में ये पृथ्वी के कारण सूर्य के खतरनाक पार्टिकल्स से भी बचा रहेगा।

Orbit Of James Webb Telescope In Hindi
यह वास्तव में पृथ्वी से 15 लाख किलोमीटर दूर सूर्य की परिक्रमा करेगा, जिसे दूसरा लैग्रेंज बिंदु या L2 कहा जाता है।

सूर्य की रेडियेशन और हीट से होगा सामना

25 जनवरी तक ये टेलीस्कोप L2 प्वाइंट पर पहुँचकर सूर्य की ओऱबिट करने लगेगा पर इसके बाद भी इसे कई महीनों तक का समय हमें इमेजेस देने में लगने वाला है, पहले महीने में ये अपने इंस्टमेंट को कूलडाउन करने के साथ-साथ इन्हें ओन करेगा, दोस्तों स्पेस एक वेक्युम है और ये काफी ठंडी जगह है, जेम्स बेव के बहुत सेंस्टिव इंस्टुमेंट को इस ठंड और सूर्य की गर्मी दोनों का सामना करने पड़ेगा, इसकी जो सतह सूर्य की ओर होगी वहां आप पानी तक गर्म कर सकते हैं।

पर जो सूर्य से दूर होगी वो इतनी ठंडी होगी की आप यहां पर नोइट्रोजन गैस तक को लीक्विड में बदल सकते हैं। जेम्स बेब को इस टंपरचेर से बचाने के लिए ही सन सील्ड दी गई है जिससे ये अपने मिरर को बड़ी आसानी से गर्म होने से बचा सकता है। चार लेयर में बनी ये सील्ड इस तरह से डिजाइन की गई है है कि ये हीट को डिफलेक्ट करके ही टेलिस्कोप को ठंडा बनाये रखती है जिससे इसके जरूरत के इंस्ट्रुमेंट सही काम कर पाते हैं।

मिशन (James Webb Space Telescope Mission) के पहले 6 महीने

पहले महीने में नासा टेलीस्कोप के इंस्ट्रमेंट को इलेक्ट्रीक स्ट्रिप के जरिए बहेद कंट्रोल करके कूलडाउन करेगा, -220 डिर्गी सेल्सयिस पर ही इसके मिरर और यंत्र स्पेस मे काम करते हैं तो इन्हें सूर्य की हीट से बचाने के लिए कूलडाउन करना बहुत जरूरी है, 

इसके बाद नासा इसके प्राइमरी मिरर और सेकेंडरी मिरर की मूवमेंट को बेरीफाई करेगा और इसके साथ साथ ये L2 Point पर अपनी ट्रैजेक्टरी को बदलेगा और फिर इसी प्वाइंट पर ओरबिट करना स्टार्ट कर देगा। मिशन के दूसरे, तीसरे और चौथे महीने में नासा टेलिस्कोप के सभी इंसट्रमेंट चेक करने के बाद इसे फाइन गाईडिड सेंसर की मदद से किसी ब्राइट तारे पर लाक कर देगा।

ब्लैक होल्स और आकाशगंगाओं के जन्म पर होगा ध्यान

टेलीस्कोप किसी ग्रह और सितारे का इसी तरह निरीक्षण करते हैं,  वेब टेलीस्कोप (James Webb Telescope Mission Hindi) इसी तारे की मदद से अपने सभी मिरर की जाँच करेगा उसके बाद ये सौर-मंडल में घूमते उल्कापिंड, धूमकेतू, चंद्रमाओं और ग्रहों को ट्रैक करेगा इन सभी को औबजर्ब (Observe) करने के बाद ये टेलिस्कोप अपने 6 वें महीनें में हमें ब्रह्मांड की इमेजेस देना शुरू कर देगा, मिशन के छठवें महीनें में आप इस टेलीस्कोप से आने वाली कई बेहद शानदार इमेजेस को देख सकेंगे।

क्या ब्लैक होल नष्ट होते हैं? - Can A Black Hole Be Destroyed?

ये हबल टेलिस्कोप से भी ज्यादा शार्प और बड़ी होगीं और ये टेलीस्कोप उन आकाशगंगाओं को भी ओबजर्ब करने में सफल रहेगा जिसमें से आ रही लाइट अब बेहद ही कमजोर हो चुकी है, इंफ्रारेड वेवलंथ (Infrared) पर काम करने वाला वेब टेलीस्कोप उन आकाशगंगाओं, ब्लैक होल्स और स्टार्स को देख सकता है जो कॉस्मिक डस्ट यानि विशाल गैस के बादलों से ढके हुए होते हैं, ब्रह्मांड में हजारों नेब्युलास है जो असीम आकार में फैले हुए हैं, ये नेब्युला अपने अंदर गैस के बादल लिये रहते हैं, इनकी वजह से हम इनके अंदर जन्म ले रहे तारों और ग्रहों को विजिवल लाइट में देख नहीं सकते हैं, इसलिए ये टेलिस्कोप इंफ्रारेड पर काम करने वाला है।

हबल और जेम्स बेव स्पेस टेलीस्कोप में अंतर

पर इंफ्रारेडड सेंसर तो हबल टेलिस्कोप में भी है और ये भी फेंट गैलेक्सीस को डिटेक्ट कर सकता है, हबल की मदद से हमने 13.8 अरब लाइट ईयर दूर से आ रही GN z11 गैलेक्सी की लाइट डिटेक्ट की है जो कि इस समय तक की सबसे दूर खोजी गई गैलेक्सी मानी जाती है, जब हबल 13.8 बीलियन लाइट ईय़र तक देख सकता है तो हमें जेम्स बेब टेलिस्कोप की जरूरत क्यों है, हम तो इससे भी काम चला सकते हैं?

ब्रह्मांड की सबसे प्राचीन आकाशगंगा - Farthest Galaxy Ever
केंद्र में लाल दिखाई देने वाली आकाशगंगा GN  z11 अबतक की खोजी गई सबसे पुरानी आकाशगंगा है। इसे हबल दुरदर्शी ने 13.8 अरब प्रकाश वर्ष की दूरी से चित्रित किया है।

तो दोस्तों इसका सीधा उत्तर ये है कि अगर आप जितना ज्यादा दूर और जितना बेहतर देखना चाहते हैं तो आपको उतना ही विशाल टेलिस्कोप (James Webb Telescope Mission Hindi) चाहिए और साथ में इंफ्रारेड सेंसर की भी दरूरत पड़ती है ताकि दूर स्थित गैलेक्सी से आ रही रेड सिफ्ट लाइट को डिटेक्ट किया जा सके।.

मिशन का उद्देश्य

Gold Cover होने के कारण जेम्स बेब के विशाल मिरर जो की 98 परसेंट तक लाइट के फोटोन को रिफलेक्ट कर सकते हैं, हबल से ज्यादा बेहतर रेसोल्युशन की इमेज एकत्र कर सकते हैं, इसके साथ-साथ जहां हबल अबतक 13.8 अरब प्रकाश वर्ष तक ही देख सका है या कहें तो इतने साल पास्ट में गया है तो बेब टेलिस्कोप इससे भी आगे देख सकता है।

ये हमें बिग बैंग के होने के 10 करोड़ साल बाद के ब्रह्मांड को बहुत ही बेहतर तरीके से दिखा पायेगा जिससे हम ब्रह्मांड को और अच्छे से समझ पायेंगे, यहां हम आकाशगंगाओं के जन्म को देखेंगे और समझेंगे कि क्या आकाशगंगा किसी ब्लैक होल के कारण अपनी शेप लेती हैं या फिर कोई और कारण है जिससे गैलेक्सी अलग-अलग शेप में हमें ब्रह्मांड में दिखाई देती हैं। 

Shivam Sharma

शिवम शर्मा विज्ञानम् के मुख्य लेखक हैं, इन्हें विज्ञान और शास्त्रो में बहुत रुचि है। इनका मुख्य योगदान अंतरिक्ष विज्ञान और भौतिक विज्ञान में है। साथ में यह तकनीक और गैजेट्स पर भी काम करते हैं।

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