व्यक्तिगत रूप से ब्रह्मांड में मुझे एक चीज़ बहुत ही ज्यादा अपनी और आकर्षित करती हैं और वो है हमारा सौर-मंडल। अंतरिक्ष से जुड़ी हर एक बात की शुरुआत हमारे इसी सौर-मंडल से ही होती है और न जाने ये कितना अनोखा हैं कि, इससे जुड़ी हर एक बात काफी ज्यादा अलग लगती है। मित्रों! जब भी हम अंतरिक्ष को सर उठा कर अपने खुली आँखों से देखते हैं, तब हमारे सामने सौर-मंडल में एक सतह पर मौजूद ग्रहों (planets orbit in the same plane) और सुदूर इलाकों में स्थित सितारे नजर आते हैं और यहीं दृश्य आज के हमारे इस लेख का विषय है।
किताबों से ले कर यूट्यूब के विडियोज तक, हर जगह हमारे सौर-मंडल (planets orbit in the same plane) कि तस्वीर में ग्रहों और सूर्य को दिखाया जाता है। मगर इन तस्वीरों या विडियोज पर गौर करने पर पता चलता है कि, सौर-मंडल में सूर्य से लेकर हर एक ग्रह लगभग एक समान सतह (Same Plane)पर स्थित हैं। परंतु सवाल उठता हैं कि, आखिर क्यों? आखिर क्या वजह है जो हर एक ग्रह को एक ही सतह पर सूर्य के चारों तरफ घूमने के लिए मजबूर कर देती है।
सवाल जितना सुनने में संशय भरा हैं, उतना ही इसका जवाब मजेदार हैं। तो, आज के इस लेख में मेरे साथ बने रहिए और इसी सवाल के बारे में तथ्य इकट्ठा करते रहिए।
विषय - सूची
सौर-मंडल में आखिर क्यों सूर्य और ग्रह एक ही सतह पर होते हैं? – Planets Orbit In The Same Plane In Solar System :-
शीर्षक में दिये गए सवाल का जवाब हमें अतीत में ले कर जाता है। मेरे कहने का मतलब ये हैं कि, शीर्षक में जो सवाल है उसके जवाब को जानने के लिए हमें सौर-मंडल (planets orbit in the same plane) के इतिहास को थोड़ा जानना पड़ेगा। वैसे इसके लिए हमें आज से 4.5 अरब साल पहले के सौर-मंडल के बारे में सोचना पड़ेगा। 4.5 अरब साल पहले हमारा सौर-मंडल आज के सौर-मंडल जैसा बिलकुल भी नहीं था। उस समय सौर-मंडल धूल और गैस से भरा मात्र एक विशाल घूमने वाला बादल था। तब हमारे सौर-मंडल का आकार लगभग 12,000 AU (1AU का अर्थ है सूर्य और पृथ्वी के बीच की दूरी करीब 15 करोड़ किमी) का था।
मित्रों! अब आप खुद अंदाजा लगा सकते हैं कि, उस समय का सौर-मंडल आकार में आज के मुक़ाबले कितना बड़ा होगा। वैसे सिर्फ गैस और धूल के कणों से बना ये बादल इतना वजनी था कि, ये बादल खुद अपने वजन के नीचे ढह जा रहा था। जब भारी वजन (Mass) के चलते ये धूल और गैस से भरा गैस ढहने लगा तब, ये आकार में धीरे-धीरे चपटा भी होने लगा। इतनी चपटा कि मानो एक सीडी-डिस्क हो। उस समय ये बादल घूम भी रहा था।
उदाहरण के लिए आप, एक कच्ची रोटी को हवा में ऊपर घूमा कर फेंक दे; तो नजर देखने को मिलेगा बिलकुल वही नजारा बड़े आकार में उस समय अंतरिक्ष में हो रहा था। मित्रों! हमारा सौर-मंडल अपने प्रारंभिक अवस्था में ठीक ऐसा ही था। वैसे ठीक इसी समय बादल के केंद्र में भी कुछ चीज़ घटित हो रहीं थीं। जिसके बारे में हम लेख के अगले हिस्सों में बातें करेंगे।
बादल के केंद्र में हो रहा था कुछ खास! :-
सौर-मंडल (planets orbit in the same plane) के चपटे आकार के कारण, इसका केंद्र काफी ज्यादा सक्रिय हो रहा था। बादल के अंदर मौजूद हर एक कण के ऊपर इतना दबाव पड़ रहा था कि, दबाव के चलते ये कण धीरे-धीरे गर्म होने लगे। वैसे इन गर्म होने वाले कणों के अंदर हाइड्रोजन और हीलियम के कण भी थे। ये दोनों ही कण जब गर्म होने लगे तब, दोनों ने मिलकर एक बहुत ही लंबी प्रक्रिया को शुरू कर दिया। वैसे इस प्रक्रिया को “न्यूक्लियर रिएक्शन” कहते हैं। इन्हीं प्रक्रियाओं के कारण बाद में सौर-मंडल में कई सारे चीज़ें होने लगीं।
हाइड्रोजन और हीलियम के अंदर होने वाले न्यूक्लियर रिएक्शन के चलते सितारे जन्म लेने लगे, जिनमें हमारा सूरज भी शामिल है। आने वाले 5 करोड़ सालों में सूर्य धीरे-धीरे आकार में बड़ा होने लगा। इसी बीच सूर्य के अंदर काफी मात्रा में डस्ट और गैस जुडने लगी और सूरज से काफी तेज गर्मी और रेडिएशन में निकलने लगा। जैसे ही सूर्य कि मौजूदगी सौर-मंडल में हो गया, तब धीरे-धीरे हमारा सौर-मंडल और तेजी से ढहने लगा। वैसे आकार में सौर-मंडल और भी चपटा हो गया, जिसके केंद्र में सूर्य मौजूद था। अब सब प्रक्रिया सूर्य के चारों तरफ ही होने लगी था।
वैसे प्रारंभिक सौर-मंडल के इस चपटे आकार को “Protoplanetary Disk” कहते हैं। इसी समय हमारा चपटा सौर-मंडल और भी कई सौ AU तक फैल गया, जहां पर इसका घनत्व (Density) काफी ज्यादा कम भी होने लगा। मित्रों! यहीं से ही हमारे लेख के मूल सवाल का जवाब शुरू होता है। कहने का मतलब ये है कि, इसी के बाद से ही सौर-मंडल में ग्रह एक ही सतह पर घूमने के लिए तैयार होने लगे। तो, चलिये आगे इसी के बारे में थोड़ा विस्तार से चर्चा कर लेते हैं।
यहीं से एक ही सतह पर घूमने लगे ग्रह! :-
सौर-मंडल (planets orbit in the same plane) जब प्रोटोप्लानेटरी डिस्क में तबदील हो गया, तभी से ही कुछ खास चीज़ होने लगी। डिस्क के अंदर मौजूद डस्ट के कण काफी तेजी से सूर्य के चारों तरफ घूमने लगे और साथी ही साथ आपस में टकराने भी लगे थे। ये चीज़ कई करोड़ो साल तक होने लगी। कुछ-कुछ समय धूल के कण आपस में होने वाली टक्कर कि वजह से एक-दूसरे से चिपके जा रहें थे। चिपकने कि ये प्रक्रिया करोड़ो साल तक चलती रहीं। जिससे कुछ नैनोमीटर (1 मीटरे का एक अरबां हिस्सा) बड़े धूल के कण धीरे-धीरे बड़े हो कर छोटे-छोटे पत्थर में बदलने लगे।
मित्रों! आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, इन्हीं छोटे-छोटे पत्थरों से ही बाद में सौर-मंडल के कई बड़ी-बड़ी चीज़ें बनी हुई है। वैसे इन बड़ी-बड़ी चीजों में ग्रह और उनके उप-ग्रह तथा उल्कापिंड भी शामिल है। खैर इस प्रक्रिया से हमें ये पता चलता हैं कि, हर एक बड़ी चीज़ कभी आकार में काफी छोटी हुआ करती हैं जो कि समय के साथ-साथ काफी बड़ी हो जाती हैं। जैसे “बूँद-बूँद से सागर बनता हैं”, वाकई में ये कहावत काफी ज्यादा सत्य से परिपूर्ण है।
वैसे डिस्क के छोटे-छोटे कण आपस में जुड़ कर एक बड़े आकार को धारण कर लेते हैं, परंतु यहाँ पर इन बड़े-बड़े आकार की चीजों को ग्रह में परिवर्तित कैसे किया जाएगा? मित्रों! ठीक इसी समय काम आता है गुरुत्वाकर्षण बल। गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ये विशाल आकार के चीज़ें गोलाकार ग्रहों में बदल जाती हैं। हालांकि! कुछ चीज़ें जैसे उल्का पिंड और धूमकेतु अलग-अलग आकारों में भी बदल गए।
निष्कर्ष – Conclusion :-
सौर-मंडल (planets orbit in the same plane) में अब सूर्य भी बन गया और ग्रह भी! परंतु आकार में ग्रह अलग-अलग होने के बाद भी, इन सभी के अंदर एक बात काफी ज्यादा समान हैं। ये सारे के सारे ग्रह एक ही सतह पर सूर्य का चक्कर काटते हैं। क्योंकि, इन सभी ग्रह के मूल उपादान या यूं कहें कि, जिन-जिन चीजों से ये ग्रह बने हैंं, वो सभी चीज़ें पहले से ही एक ही सतह पर थे। अब शायद, आप लोगों को इस लेख के मूल सवाल का जबाव मिल गया होगा।
मित्रों! हमारा सूर्य जिन-जिन चीजों से बना हुआ हैं, उन्हीं चीजों से हमारे ग्रह भी बने हुये हैं। इसलिए उनके अंदर मौजूद कण एक समान ही हैं जो कि सृष्टि के आरंभ से एक ही सतह पर मौजूद थे। यही कारण है कि, आज भी सूर्य के साथ-साथ ये ग्रह सौर-मंडल में अलग-अलग सतहों पर न हो कर एक ही सतह पर मौजूद हैं। आशा हैं कि, आपको इस लेख से कुछ जानने को अवश्य ही मिला होगा।
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