आज पृथ्वी कुछ इस हद तक हम मानवों से रूठी है कि, हमें वर्तमान के हालातों को देखते हुए एक नए घर कि खोज अन्तरिक्ष में करनी पड़ रहीं है। ऐसे में हमारे लिए ये अनिवार्य हो जाता है कि, हम सबसे पहले हमारे सौर-मण्डल में मौजूद दूसरे ग्रहों को तलाशें, जहां जीवन के पनपने की कोई छोटी सी भी आश दिखे। ऐसे में! वैज्ञानिकों को हमेशा से ही लगता आ रहा है कि, मंगल (Nasa to Test Nuclear Rocket Engine in Hindi) ही शायद वो ग्रह हो सकता है, जहां इंसान अपना एक नया घर बना कर एक नए जीवन को आरंभ कर सके।
मंगल ग्रह (Nasa to Test Nuclear Rocket Engine in Hindi) की बात जब भी उठती है, तब मेरे मन में एक खास तरह की उत्सुकता भर जाती है।
खैर चलिये अब लेख को आरंभ करते हुए, मंगल से जुड़े एक और नए व दिलचस्प विषय के ऊपर प्रकाश डालते हैं।
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45 दिनों में अब इंसान पहुंचंगे मंगल के ऊपर! – Nasa to Test Nuclear Rocket Engine in Hindi!
दोस्तों! एक बात आप लोगों को मेँ पहले ही बता दूँ कि, इंसान आज इतना विकसित हो चुका हैं कि, पृथ्वी भी इसे आज सह नहीं पा रहीं हैं। परंतु इस बार वैज्ञानिकों ने कुछ बेहद ही खास कर के दिखा दिया है। जिस ताकत को हमने पिछले सदी में मानव जाती के नाश के लिए बनाया था, आज वो ही ताकत हमारे लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण प्रतीत हो सकती है। कहने का तात्पर्य ये है कि, लगभग 50 सालों बाद फिर से अन्तरिक्ष में परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट इंजन का परीक्षण होने वाला है।
सुनने में ये बात कितनी अजीब व अनोखी लग रही है न दोस्तों! परंतु आप लोगों मैं बता दूँ कि, ये बात पूरी तरीके से सत्य है। वैसे परमाणु ऊर्जा से चलने वाले इस रॉकेट इंजन कि ये खास बात होगी कि, इसमें बैठ कर इंसान सिर्फ 45 दिनों के अंदर ही मंगल पर लैंड कर सकता है। आज जहां मंगल पर लैंड करने का समय कम से कम एक साल तक लग जाता है, वहाँ ये इंजन अच्छे तरीके से काम कर के इन्सानों को अन्तरिक्ष में काफी आगे तक पहुंचा सकता है। शायद ये ही वजह है कि, इतने सालों बाद भी इसे फिर से एक बार एक्टिव कर दिया गया है।
नासा के साथ कई निजी कंपनियाँ मिल कर इस रॉकेट को काफी तेजी से डिवैलप करने के बारे में सोच रहीं हैं। कुछ सूत्रों के अनुसार ये रॉकेट साल 2027 तक पूरे तरीके से तैयार भी हो जाएगा। ऐसे में ये देखना बाकी है कि, आखिर कब इसे इस्तेमाल कर के मिशनों को अंजाम दिया जाएगा।
आज की तकनीक कैसी है? :-
मित्रों! आप लोगों को जान कर हैरानी होगी की, आज नासा जिस तकनीक के जरिये अपने उपकरणों को अन्तरिक्ष में लाँच कर रहा है, असल में वो तकनीक काफी ज्यादा सरल और पुरानी है। इसके अलावा एक बात ये भी है की, ये तकनीक काफी टिकाऊ और महंगी भी नहीं है। परंतु क्या आप जानते हैं, आने वाले समय में ये तकनीक सीमित भी हो सकती है। कहने का मतलब ये है कि, समय के चलते एक दिन ये तकनीक पुरानी हो जायेगी। इसलिए हमें नए तकनीकों कि जरूरत पड़ सकती है।
इसके अलावा अभी रॉकेट लौंच करने की तकनीक सरल रासायनिक प्रक्षेपण के ऊपर आधारित है। इस तकनीक में एक ओक्सिडाइजर अत्यंत ज्वलनशील रॉकेट ईंधन में आग लगा कर थ्रस्ट पैदा करवाता है और बाद में इसी थ्रस्ट के जरिये रॉकेट को अन्तरिक्ष में भेजा जाता हैं। ये तकनीक 100 सालों से ज्यादा पुरानी है। अगर हम भविष्य की ओर नजर दौड़ाते हैं, तब हमें दिखता हैं की, आने वाले समय में जीवाश्म (Fossil) से बने ईंधन काफी महंगे होने वाले हैं और इन्हें इस्तेमाल करना काफी महंगा होने वाला है।
इसलिए मंगल (Nasa to Test Nuclear Rocket Engine in Hindi) से जुड़े मिशनों पर अगर हम परमाणु से चलने वाले रॉकेट के इंजन को इस्तेमाल करें तो, शायद हम काफी कम समय और लागत में मंगल के ऊपर पहुँच सकते हैं। वैज्ञानिक भी काफी समय से इसी तकनीक के ऊपर काम कर रहें हैं और इसे और भी ज्यादा विकसित करने में लगे हुए हैं।
परमाणु से रॉकेट इंजन आखिर कैसे चलेंगे? :-
अब कुछ लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि, आखिर कैसे हम परमाणु ऊर्जा को इस्तेमाल करते हुए अन्तरिक्ष में रॉकेट इंजन्स को चला सकते हैं? मित्रों! आप लोग जानते ही होंगे कि, यहाँ पृथ्वी पर हम परमाणु ऊर्जा का काफी समय से इस्तेमाल करते आ रहें हैं और उसी तकनीक को हम रॉकेट इंजन्स में भी इस्तेमाल करने जा रहें हैं। कहने का मतलब ये है कि, परमाणु ऊर्जा से चलने वाले इंजन्स में परमाणु रिएक्टर लगा होगा, जहां पर हम कुछ खास रेडियो एक्टिव पदार्थों के परमाणुओं को तोड़ कर परमाणु ऊर्जा बनाएँगे।
विज्ञान की भाषा में किसी भी परमाणु के विखंडन की प्रक्रिया को “न्यूक्लियर फ़िशन” कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट इंजन्स पारंपारिक रॉकेट इंजनों के तुलना में लगभग 3 गुना ज्यादा काबिल होंगे। इससे अन्तरिक्ष में होने वाले मिशन आसानी से पूरा तो होंगे कि, साथ ही साथ हमें काफी कम खर्च में अन्तरिक्ष की सैर भी कराएंगे। एक रिपोर्ट के अनुसार आज मंगल (Nasa to Test Nuclear Rocket Engine in Hindi) पर लैंड करने कि औसतन अवधि सात महीने की होती है।
परंतु परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट इंजनों के जरिये हम मंगल पर डेढ़ महीने के अंदर ही अंदर पहुँच जाएंगे। मित्रों! अगर ऐसा होता है, तब अन्तरिक्ष विज्ञान में एक नई क्रांति आएगी। जहां पर इंसान बिना किसी देरी के अलग-अलग ग्रहों तक पहुँचने के बारे में सोचेगा। परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट इंजन्स के बारे में जानने के लिए नासा ने सन 1959 से ही काम शुरू कर दिया था। उस समय मंगल (Nasa to Test Nuclear Rocket Engine in Hindi) जैसे मिशन तो नहीं थे, परंतु हाँ! “Nuclear Engine for Rocket Vehicle Application (NERVA)” जैसे मिशन जरूर थे।
निष्कर्ष – Conclusion :-
मित्रों! आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, नेर्वा मिशन के चलते नासा ने एक सॉलिड कोर वाला न्यूक्लियर रिएक्टर बना भी लिया था। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार इसकी सफल परीक्षण भी पृथ्वी पर हो चुका था।
परंतु इस तकनीक का इस्तेमाल उस तरीके से नहीं हो पाया, जिस तरह नासा इसे इस्तेमाल करना चाहता था। क्योंकि उस समय अपोलो सीरीज के मिशनों के खत्म होने के बाद नासा के पास इतने फ़ंड्स नहीं थे कि, इसे वो जारी रख सके। परंतु अभी का दौर देखिये, ये दौर हैं नए-नए तकनीकों और बदलावों का। हम आखिर कब तक पुराने तकनीकों के ऊपर काम करते रहेंगे? परमाणु ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट इंजन्स रसायन ऊर्जा से चलने वाले रॉकेट इंजन्स के तुलना में काफी तेज और निपुण होते हैं।
अन्तरिक्ष में इनका इंजन काफी जल्दी फायर/ स्टार्ट हो कर, बहुत ही लंबे समय तक चलता हैं। मूलतः दो प्रकार के परमाणु रिएक्टर होते हैं, पहला हैं “Nuclear Electric Propulsion (NEP) रिएक्टर”; जिसके अंदर बिजली पैदा हो कर “जेनॉन, क्रिप्टन” जैसे नोबल गैसेस के परमाणु से से इलेक्ट्रॉन को बाहर कर एक “आयन बीम” का रूप दिया जाता हैं। ये आयन बीम बाद में रॉकेट इंजन को थ्रस्ट प्रदान करता हैं।
दूसरा हैं “Nuclear Thermal Propulsion (NTP) रिएक्टर” जो कि नासा को काफी आकर्षित कर रहा हैं। इस रिएक्टर में आमतौर पर हाइड्रोजन और अमोनिया जैसे गैसों को न्यूक्लियर प्रक्रियाओं के जरिए गरम कर के पहले फैलाया जाता हैं। बाद में एक बेहद ही बारीक छेद के जरिये गैस को छोड़ कर थ्रस्ट बनाया जाता है।