हमारा ये ब्रह्मांड और आकाशगंगा मानव जाति के लिए एक रहस्यमयी पहेली बनकर रह गई है। (Milky way’s long-lost twin)। कब इनके अंदर क्या-क्या हो रहा है, अभी तक किसी को नहीं पता चल सका है। इसलिए लगातार वैज्ञानिक इसके ऊपर शोध करते आ रहें हैं। वैसे मिल्की-वे के बारे में तो कई खास बात हैं, परंतु जो अहम बात हैं वो ये हैं कि, ये कई दूसरी आकाशगंगाओं को खाकर अपना पालन-पोषण करती है। कहने का मतलब ये है कि, हमारी आकाशगंगा ने कई दूसरी आकाशगंगाओं को अपने अंदर समा लिया है। ऐसे में इस बात के ऊपर और ज्यादा चर्चा जरूर ही होनी चाहिए।
सुनने में काफी ज्यादा अजीब और अटपटा लगने वाली ये बात, शायद वाकई में सच है। ब्रह्मांड में आकाशगंगाओं (Milky way’s long-lost twin) को भी जिंदा रहने के लिए खाने कि जरूरत तो पड़ती है। हालांकि! आज के इस लेख में हम जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप से ली गई कुछ ऐसी तस्वीरों और उनसे जुड़े बातों के बारे में चर्चा करेंगे, जो कि शायद हमारी आकाशगंगा के एक नई गुण को हमारे सामने लाकर रख देगा। इसके अलावा शायद हम ब्रह्मांड में होने वाली कई दर्द से भरी घटनाओं को भी देखेंगे।
तो आप लोगों से अनुरोध है कि, इस लेख में मेरे साथ आप अंत तक बने रहिए और देखिये कि आखिर कैसे हमारी आकाशगंगा भी कई बार कितनी क्रूर हो सकती है!
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आकाशगंगा की जुड़वा बहन! – Milky way’s long-lost twin!
वैज्ञानिकों को हाल ही में एक बहुत ही अजीब और खास फोटो मिली है। ये फोटो जेम्स वेब से ली गई है और इसमें एक आकाशगंगा (Milky way’s long-lost twin) को देखा जा सकता हैं। वैसे इस आकाशगंगा के बारे में ये विशेष बात है कि, ये एक आकाशगंगा-भक्षी आकाशगंगा है। कहने का मतलब ये है कि, ये आकाशगंगा अपने अस्तित्व को बचाए रखने के लिए, दूसरी आकाशगंगाओं को बड़े ही स्वाद के साथ खाती है। इसलिए इसे कई बार “Galaxy Eater” के नाम से भी बुलाते हैं। वैज्ञानिकों को इस तरह की आकाशगंगा के बारे में पहली बार पता चल रहा है।
वैसे मैं आप लोगों को बता दूँ कि, ये आकाशगंगा देखने में काफी ज्यादा चमकीली और बारीक है। बहुत से वैज्ञानिकों को ये लगता है कि, ये फोटो शायद हमारे आकाशगंगा की प्रारंभिक अवस्था वाली फोटो है। इसलिए इस फोटो में मौजूद आकाशगंगा की आकृति, हमारी आकाशगंगा से इतनी मिलती-जुलती है। मित्रों! ये ही वजह है की, इसे हमारी आकाशगंगा की जुड़वा बहन के नाम से भी पुकारा जा रहा है। हालांकि! इसके बारे में और शोध होना बाकी है।
खैर बात जो भी हो, परंतु फोटो को देख कर ये बात तो तय है कि, इससे हम हमारी आकाशगंगा की आकृति और ये कैसे बनी है, इसके बारे में काफी कुछ जानकारी जुटा सकते हैं। मित्रों! आप लोगों को क्या लगता है, क्या ये आकाशगंगा हमारे आकाशगंगा से कुछ भी रिश्ता रखती होगी? क्या ये दोनों आकाशगंगाएँ जुड़वा बहन हैं? आप लोग चाहें तो अपना उत्तर कॉमेंट के जरिये हमें बता सकते हैं।
इमेज में मौजूद आकाशगंगा के बारे में कुछ खास बातें :-
इस आकाशगंगा (Milky way’s long-lost twin) से जुड़ी सबसे पहली बात तो ये है कि, ये आकाशगंगा हमसे लगभग 9 अरब प्रकाश-वर्ष की दूरी पर मौजूद है। इस आकाशगंगा को वेज्ञानिकों ने, “Sparkler” का नाम दिया है। अब कुछ लोगों के मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि, आखिर ये नाम वैज्ञानिकों ने इस आकाशगंगा को क्यों दिया है? तो मित्रों! मैं आप लोगों को बता दूँ कि, खास कर के इस आकाशगंगा के पास दो ड्वार्फ (Dwarf) आकाशगंगाएँ और कई अरबों चमकीले सितारों से बनी लाखों तारामंडल इसकी परिक्रमा कर रहें हैं। इसलिए इतनी दूर से भी ये आकाशगंगा देखने में इतनी सुंदर और चमकीली लग रहीं है।
हालांकि! एक रिपोर्ट ये भी बताती है कि, कई बार ये आकाशगंगा अपने आकार को बढ़ाने के लिए पास में उसकी परिक्रमा कर रहें दूसरे आकाशगंगाओं और सितारों को अपने अंदर समा लेती है। ये बात “फ़र्स्ट जेम्स वेब डीप फील्ड” तस्वीर से पता चला हैं। मित्रों! ये तस्वीर ब्रह्मांड की सबसे बारीक और सबसे अच्छी रंगीन फोटो है। इतनी डीटेल से ब्रह्मांड की कोई दूसरी तस्वीर इन्सानों के पास नहीं हैं। इसको दुनिया के सामने 2022, जुलाई के महीने में रखा गया था। वैसे आप इस तस्वीर में ही “स्पार्कलर गैलेक्सी” को देख सकते हैं।
आकाशगंगाओं की उत्पत्ति का खुल सकता है राज! :-
अब इन हालातों को देखते हुए ये कहा जा सकता है कि, शायद ये खोज आने वाले समय में आकाशगंगाओं (Milky way’s long-lost twin) की उत्पत्ति के राज का खुलासा कर सकती है। इससे वैज्ञानिक रियल टाइम पर किसी एक दूसरी आकाशगंगा को धीरे-धीरे आकार में बढ़ते हुए व अपने-आप को बनाते हुए देख रहें हैं। मित्रों! इससे अच्छी बात और वेज्ञानिकों के लिए क्या हो सकती है। मेरे हिसाब से तो, इससे उनको काफी ज्यादा मदद मिलने वाला हैं।
कुछ वैज्ञानिक तो अपने-आप को काफी ज्यादा भाग्यशाली भी मान रहें हैं कि, उनको ब्रह्मांड में घट रही इस अनोखी घटना को देखने का मौका मिला है। मित्रों! उन वेज्ञानिकों के हिसाब से, एक ही साथ एक छोटे नए मिल्की-वे को बनते हुए और कई बड़े-बड़े ग्लोबुलर क्लस्टर को उभरते हुए देखने कि मौके को पाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इसलिए हम लोगों को भी इसके बारे में और भी गहराई से जानने की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि इस तरह की घटनाएँ शायद सदियों में एक ही बार होती हैं।
वेज्ञानिक भी है हैरान :-
बात जो भी हो, परंतु ये आकाशगंगा वाकई में काफी ज्यादा दुर्लभ है। खैर दक्षिणी गोलार्ध के आसमान में “Volans” तारामंडल के अंदर चमकते हुए इस आकाशगंगा को ढूँढने के लिए वैज्ञानिकों ने कई बड़े-बड़े लेंसेस का इस्तेमाल किया है। मित्रों जब कोई चीज़ हमसे इतनी दूरी पर मौजूद हो, तब हम उस चीज़ पर फोकस करने के लिए काफी बड़े-बड़े लेंसेस की जरूरत पड़ती है। आप अब समझ ही सकते हैं कि, इतने बड़े-बड़े लेंसेस को एक साथ एक ही सीक्वेंस में रख कर काम करवाने में कितनी कठिनाई होती होगी।
आप लोगों को बता दूँ कि, फोटो में स्पार्कलर गैलक्सि “नारंगी वर्ण” की नजर आ रहीं है और जिसके चारों तरफ कई प्रकाश के बिंदुओं को देखा जा सकता है। वैसे अब वेज्ञानिकों को लग रहा है कि, हमारी आकाशगंगा और इस आकाशगंगा के बीच काफी ज्यादा समानताएँ हैं! अपने आकार को बढ़ाने के लिए ये आकाशगंगा भी अपने पड़ोसी आकाशगंगाओं को खा रहीं है। जिस तरह किसी जमाने में हमारी मिल्की वे ने भी दूसरी आकाशगंगाओं को खाया होगा। इस हिसाब से ये दोनों ही बहन तो हुए न!
निष्कर्ष – Conclusion :-
जिस समय इस आकाशगंगा कीन(Milky way’s long-lost twin) इमेज हमें मिली है, उस समय उसका द्रव्यमान (Mass) हमारी आकाशगंगा के कुल वजन की मात्र 3% ही था। परंतु अब वैज्ञानिक अनुमान लगा रहें हैं कि, आज के समय में इस आकाशगंगा का द्रव्यमान हमारी मिल्की वे के जितना ही होगा। वैज्ञानिक इस बात को इसलिए कह रहें हैं कि, उन लोगों ने स्पार्कलर और मिल्की वे के बीच कई समानताओं को देखा है। जिस तरीके से हमारी आकाशगंगा बड़ी हुई होगी, हूबहू ठीक उसी तरीके से ही ये आकाशगंगा भी बड़ी हुई होगी।
चूंकि इन दोनों के बीच इतना गहरा संबंध है, इसलिए ये आकाशगंगा हमारे लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण भी हो जाती है। आज के समय में हमारी आकाशगंगा के बाहरी छोर पर भी कई ग्लोबुलर क्लस्टर्स के अवशेष मिलते हैं, जैसे कि स्पार्कलर के पास उस फोटो में मौजूद थे। ऐसे में ये बात तो तय है कि, अतीत में हमारी आकाशगंगा भी काफी क्रूर थी। इससे हमारे अस्तित्व के बारे में भी पता चलेगा।
Source – www.livescience.com