ब्रह्मांड में कई प्रकार की चीज़ें होती हैं, कुछ काफी चमकदार होती हैं तो, कई चीज़ें ऐसे भी होती हैं जिन्हें खुली आँखों से देख पाना असंभव ही है। वैसे ब्रह्मांड के ज़्यादातर पिंड उन के अनंत आकार और आकृति के लिए काफी ज्यादा चर्चा में रहते हैं। क्योंकि जहां मानव की सोच का अंत होता है, वहीं से ही इन चीजों के आकार की शुरुआत होती है। खगोलीय पिंडों का अमूमन आकार इतना बड़ा होता है कि, जब भी किसी नए खगोलीय चीज़ की खोज होती है, तब पहले से खोजी गई चीज़ काफी छोटी ही नजर आती है। मित्रों! ठीक यही वजह है कि, आज कल धूमकेतु (largest comet ever observed) जैसी चीज़ें हमारे लिए एक अजूबा बन गई हैं।
धूमकेतु (largest comet ever observed) एक ऐसा खगोलीय पिंड है, जो कि इंसानों के लिए या यूं कहें कि, पृथ्वी के लिए भी काफी ज्यादा दुर्लभ है। अगर आपको याद हो तो, मैंने कुछ समय पहले आप लोगों को “हैली के धूमकेतु” के बारे में बताया था। ये धूमकेतु हर 75 सालों में सिर्फ एक बार पृथ्वी के पास से हो कर गुजरता है। तो अगर आप भाग्यशाली रहे तो, जीवन में शायद एक बार आपको इस धूमकेतु को देखने का मौका मिल सकता है। ये ही वजह है कि, पृथ्वी पर धूमकेतुओं को देखना काफी दुर्लभ माना जाता है।
खैर आज के इस लेख का मूल विषय एक धूमकेतु के बारे में ही हैं। क्योंकि ये धूमकेतु अपने-आप में ही एक बहुत ही खास खगोलीय पिंड हैं, जिसके बारे में जानना हर एक अंतरिक्ष प्रेमी के लिए काफी जरूरी है।
अब तक के सबसे बड़े धूमकेतु की हुई खोज! – Largest Comet Ever Observed! :-
साल 2021 में अब तक के सबसे विशाल धूमकेतु (largest comet ever observed) की खोज हुई है। बता दूँ कि, इस धूमकेतु का नाम “Bernardinelli-Bernstein” है। खैर ये धूमकेतु इतना बड़ा है कि, इसके आकार को देख कर वैज्ञानिक भी हैरान हो गए हैं। एक रोचक जानकारी ये है कि, इससे पहले “Hale-Bopp” को सबसे बड़े धूमकेतु का ख़िताब मिला था। हेल-बॉप को सबसे पहले साल 1995 में खोजा गया था और साल 1996 में ये पहली बार खुली आँखों के द्वारा देखा गया था। इस धूमकेतु कि लंबाई लगभग 74 किलोमीटर है। परंतु “Bernardinelli-Bernstein” की लंबाई सुनकर आप भी हैरान हो जाएंगे।
वैज्ञानिकों के हिसाब से इस धूमकेतु कि “लंबाई लगभग 137 किलोमीटर” है। इस धूमकेतु का नाम “2014 UN271” भी है। धूमकेतु का नामकरण इसके खोजकर्ता के ऊपर आधारित होता है। बता दूँ कि, इसके आविष्कारक “University of Pennsylvania “ के वैज्ञानिक “Gary Bernstein” और “University of Washington” के वैज्ञानिक “Pedro Bernardinelli” हैं। इन दोनों वैज्ञानिकों ने “Dark Energy Survey Database” के मदद से इस धूमकेतु को ढूंढा हैं। खैर एक खास जानकारी ये भी हैं कि, इस धूमकेतु को साल 2014 में सबसे पहले फोटो के जरिए डीटैक्ट किया गया था।
इसलिए इसके नाम में साल 2014 का जिक्र हैं। 2014 में लिए गए फोटो के आधार पर इन दोनों वैज्ञानिकों ने इस धूमकेतु के गतिविधि को काफी सालों तक विश्लेषित किया, जिससे पता चला कि ये नियमित रूप से गति कर रहा हैं। मित्रों! ब्रह्मांड में किसी भी चीज़ के बारे में खोज करने के लिए काफी धैर्य और समय कि जरूरत पड़ती हैं, जो कि आप इस खोज में भी देख सकते हैं।
धूमकेतु के बारे में कुछ खास जानकारी! :-
जब पहली बार इस धूमकेतु (largest comet ever observed) को देखा गया था, तब इसके बारे में वैज्ञानिकों को ज्यादा कुछ पता नहीं था। उनके हिसाब से धूमकेतु को सही तरीके से देखने के लिए पृथ्वी से इसकी दूरी काफी ज्यादा थी। हालांकि! काफी दूर होने के बाद भी इसके आकार को देख कर वैज्ञानिकों को इतना तो पता था कि, ये धूमकेतु आकार में काफी ज्यादा विशाल है। इसके बड़े से आकार को वैज्ञानिक, काफी धुंधले फोटो में भी देख सकते थे। मित्रों! यकीन मानिए ये बता पाना भी कोई छोटी बात नहीं हैं।
खैर अब ये धूमकेतु एक बहुत ही खास दौर से गुजर रहा है। क्योंकि इससे पहले किसी भी धूमकेतु को इस तरह से बर्ताव करते हुए नहीं देखा गया था। वर्तमान स्थिति में ये धूमकेतु हमारे सौर-मंडल कि ओर आ रहा है। यानी ये धूमकेतु सौर-मंडल के अंदरूनी भागों में धीरे-धीरे दाख़िल हो रहा है। वैज्ञानिकों के हिसाब से ये धूमकेतु साल 2031 में पृथ्वी के सबसे करीब होगा। परंतु ये उतनी खुशी कि बात भी नहीं है। उस समय ये पृथ्वी के सबसे करीब तो होगा परंतु इतने भी करीब नहीं होगा कि, हम उसे आसानी से देख पाएंगे। 2031 में ये “शनि” ग्रह की बाहरी कक्षा के पास मौजूद रहेगा। तो, आप ही सोचिए कि हमें इसे देखने का मौका कैसे मिल सकता है।
मिल सकती है कुछ नई जानकारी! :-
हालांकि! आज के मुक़ाबले तब भी ये परिस्थितियां इस धूमकेतु को विश्लेषण करने के लिए काफी ज्यादा बेहतर होगीं। एक रोचक जानकारी मैं आप लोगों को इस धूमकेतु के बारे में बता दूँ कि, पैरिस के कुछ वैज्ञानिकों ने इस धूमकेतु के बारे में ज्यादा जानकारी इक्कठा करने का इरादा किया है। जो कि हमें इस धूमकेतु के बारे में और भी कई सारे बातों को बता सकता है।
हर वक़्त तकनीक और विज्ञान चाहता है कि, कुछ नया किया जाए। ये ही कारण कि आज हम इतने उन्नत हो पाए हैं, वरना वहीं हम आदि युग में जी रहे होते होंगे। खैर पैरिस के जो वैज्ञानिक हैं, उन्होंने “Atacama Large Millimeter Array” के डेटा को आधार बनाकर के इस धूमकेतु को विश्लेषित किया था। साल 2021 में जब ये धूमकेतु पृथ्वी से लगभग 19.6 AU दूर था, तभी इस काम को अंजाम दिया गया था। बता दूँ कि, एक AU का मतलब होता है 15 करोड़ किलोमीटर। तो 19.6 AU का मतलब हुआ, पृथ्वी से लगभग 294 करोड़ किलोमीटर दूर।
अब वैज्ञानिक धूमकेतु से आने वाले माइक्रोवेब रेडियेशन को अच्छे से परख रहें है। बता दूँ कि, ये रेडियेशन (Radiation) धूमकेतु के मुख्य भाग से आ रहा हैं। मित्रों! इन्हीं माइक्रोवेब के तरंगों को सही तरीके से परख कर के हम धूमकेतु के आकार के बारे में अच्छे से अंदाजा लगा सकते हैं। हालांकि! पहले कभी ऐसा नहीं किया गया है। इतनी दूरी पर स्थित धूमकेतु को सिर्फ माइक्रोवेब तरंगों के आधार पर विश्लेषित करना, वाकई में एक बहुत ही बड़ी बात हैं।
निष्कर्ष – Conclusion :-
इतनी दूरी पर किसी भी धूमकेतु के आकार को परखना कई वैज्ञानिकों के लिए काफी ज्यादा उत्साहजनक वाली बात है। क्योंकि ये एक नया काम है और जब आप कोई कार्य पहली बार कर रहें होंगे, तो आपके मन में उत्साह तो आना स्वाभिवक ही है। इसके अलावा आप लोगों की जानकारी के लिए बता दूँ कि, जैसे-जैसे ये धूमकेतु पृथ्वी कि ओर आता जाएगा वैसे-वैसे इसके आकार में घटौती होती जाएगी। जब ये सूर्य के पास पहुँच जाएगा, तब इसकी पुंछ में मौजूद गैस और डस्ट के कण काफी ज्यादा फैल जाएंगे और इसका मुख्य भाग गर्मी से पिघल कर छोटा हो जाएगा।
कुल मिलाकर देखा जाए तो, ये धूमकेतु (largest comet ever observed) हमारी पृथ्वी से काफी दूर ही रहने वाला है। जब ये हम से सबसे नजदीक भी होगा, तब भी दूरी के कारण हम इसे अपनी खुले आँखों से नहीं देख सकते हैं। इसलिए आम जनता शायद ही इस धूमकेतु को देख पाए। खैर आटाकामा एरे जैसे कई विशाल टेलिस्कोप इस धूमकेतु के अंदरूनी कैमिकल कंपोजीसन को देख कर इसके बारे में काफी अहम जानकारी जुटा सकते हैं।
मित्रों! अगर हम इसके कैमिकल कंपोजीसन को सही से जान जाते हैं, तब हम इस धूमकेतु के तापमान, स्पिन और सटीक आकृति के बारे में जान सकते हैं।
Source :- www.livescience.com