ब्लैक होल (Stars Are Turning To Black Holes) के बारे में सबसे खास बात ये है कि, ये काफी ज्यादा दिलचस्प होते हैं। इनके बारे में हमें लगातार कुछ नए चीजों को जानने का मौका मिलता है। मैंने कुछ दिनों पहले ही, आप लोगों को ब्लैक होल के बारे में एक बहुत ही खास बात को बताया है। परंतु आज के इस लेख का विषय काफी ज्यादा अलग होने वाला है। क्योंकि इसके बारे में कोई ज्यादा बात ही नहीं करता है। मित्रों! ब्लैक होल और सितारों के बीच के एक अनोखे विषय के बारे में आज हम चर्चा करने जा रहें हैं।
जैसा कि मैंने ऊपर ही बताया, ब्लैक होल (Stars Are Turning To Black Holes) और सितारों के बीच एक बहुत ही खास रिश्ता होता है। क्योंकि सितारों से ही ब्लैक होल बनते हैं और ये एक बहुत ही जटिल प्रक्रिया के द्वारा होता है। वैज्ञानिकों के अनुसार सुपरनोवा के कारण ही ब्लैक होल्स ब्रह्मांड में जन्म लेते हैं और इनके बिना ब्लैक होल्स कभी अस्तित्व में आ ही नहीं सकते हैं! परंतु, शायद ये बात आज के हमारे लेख में गलत साबित हो सकती है।
इसलिए आप लोगों से अनुरोध है कि, लेख को आरंभ से ले कर अंत तक जरूर पढ़िएगा। ताकि आप लोगों को ये लेख विषय और भी ज्यादा दिलचस्प और समझ में आ जाए। वैसे हो सके तो, लेख को ज्यादा से ज्यादा शेयर भी करिएगा, ताकि इस तरह की ज्ञान वर्धक लेख काफी लोगों तक पहुँच सके।
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बिना “Supernova” के सितारे बदल रहें हैं ब्लैक होल में! – Stars Are Turning To Black Holes! :-
बिना सुपरनोवा के सितारों का यूं ब्लैक होल (Stars Are Turning To Black Holes) में बदल जाना कोई आम बात नहीं है। क्योंकि हम जिस ब्रह्मांड को जानते हैं, वहाँ इस तरह की घटनाएँ बिलकुल भी साधारण नहीं हैं। मेन स्ट्रीम सोच से विपरीत एक नए खोज से हमें ये पता चला है कि, सितारे के जरिये ब्लैक होल में परिवर्तित न हो कर, ये सीधे तौर से ब्लैक होल में बदले जा रहें हैं। ये बात सुनने में जितनी अजीब लगती है; हकीकत में ये उससे भी ज्यादा दिलचस्प है। आप लोगों को क्या लगता हैं, कमेंट कर के जरूर बताइएगा।
वैसे इस तरह के चीजों के बारे में हमें एक बाइनरी स्टार सिस्टम से पता चला है। इस नई खोज के कारण कुछ वैज्ञानिक ये मानते हैं कि, कुछ आकार में बहुत ही बड़े सितारे बिना सुपरनोवा के आसानी से ब्लैक होल में बदल जाते हैं। वैसे इसके पीछे के कारण को समझने के लिए हमें ब्रह्मांड के कुछ बुनियादी बातों को समझना होगा। इससे हमें न बल्कि ये विषय ज्यादा अच्छे से समझ में आ जाएगा, परंतु ब्रह्मांड के कई मूलभूत बातों के बारे में भी पता चलेगा।
सितारे न्यूक्लियर फ्यूशन प्रक्रिया के द्वारा अपने अंदर ऊर्जा को बनाते हैं। इस प्रक्रिया में सितारे के अंदर मौजूद हाइड्रोजन ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने लगता है। शोध के अनुसार जब सूरज से 8 गुना ज्यादा भारी सितारे फ्यूशन के लिए जरूरी हाइड्रोजन ईंधन को जुटाने में असमर्थ होते हैं, तब ब्लैक होल के बनने की स्थिति आती है।
सितारे और ब्लैक होल्स! :-
मित्रों! आप लोगों को एक खास बात ये बता दूँ कि, सितारे और ब्लैक होल (Stars Are Turning To Black Holes) के अंदर एक खास रिश्ता मौजूद है। क्योंकि एक के अंत से ही दूसरे का जन्म होता है। ऐसे में ये दोनों ही खगोलीय चीज़ें आपस में काफी ज्यादा निर्भर हैं। खैर जब सितारों के अंदर न्यूक्लियर फ्यूशन के लिए जरूरी हाइड्रोजन की मात्रा कम होने लगती हैं, तब बात थोड़ी दिलचस्प होने लगती हैं। ये वो वक़्त होता है, जब सितारा अपने अंदर मौजूद हर एक चीज़ को न्यूक्लियर फ्यूशन में लगा देता है।
वैसे मेरे कहने का ये मतलब है कि; इसी दौरान सितारे के अंदर मौजूद हीलियम, कार्बन और ऑक्सिजन जैसे मौलिक उपादान ब्लैक होल के बनने में मदद करते हैं। खैर इससे अंत में सितारे के केंद्र में एक ठोस लोहे का कोर (Iron Core) बच जाता है, जो की फ्यूशन के प्रक्रिया में चाह कर भी हिस्सा नहीं ले सकता है। क्योंकि आइरन के ऊपर फ्यूशन करने के लिए काफी ज्यादा दबाव की जरूरत होती है, जो की उस समय उपलब्ध ही नहीं होता है।
यहाँ एक खास बात ये भी है कि, जब सितारे के अंदर न्यूक्लियर फ्यूशन के लिए जरूरी ईंधन खत्म हो जाता है, तब सितारा अपने अंदर ही सिमटने (Collapse) लगता है। क्योंकि इसकी अंदरूनी संरचना ही काफी ज्यादा हिल चुकी होती है। वैसे इस समय में सितारे का आउटर लेयर री-बाउंड करता है। जिससे सुपरनोवा की प्रक्रिया शुरू होती है।
सुपरनोवा और सितारा! :-
जब भी किसी सितारे के अंदर सुपरनोवा घटित होता है, तब इसकी चमक पूरे गैलक्सी से भी ज्यादा होती है। वैसे जब ये चीज़ हो रहीं होती है, तब सितारे का लगभग कोलैप्स हो चुका सॉलिड सेंटर एक कॉम्पैक्ट ऑब्जेक्ट में परिवर्तित होने लगता है। मित्रों! आप लोगों को बता दूँ कि, इस कॉम्पैक्ट ऑब्जेक्ट को “Pulsar” कहते हैं। हालांकि! कुछ खास शर्तों पर ये स्टैलर-मास ब्लैक होल (Stars Are Turning To Black Holes) में भी बदल सकते हैं। वैज्ञानिकों को यहाँ एक बहुत ही अजीब चीज़ के बारे में पता चला है।
ब्रह्मांड में ऐसे कई सारे उदाहरण मौजूद हैं, जहां सुपरनोवा को असफल होते हुए देखा गया है। यानी इसका सीधा सा मतलब ये है कि, कई सितारे ऐसे भी हैं, जो की बिना सुपरनोवा के सीधे-सीधे ब्लैक होल में बदल गए हैं। वैसे यहाँ कुछ वैज्ञानिकों का ये भी मानना है कि, ब्रह्मांड के कुछ सितारे बिना सुपरनोवा के ही कहीं खो चुके हैं। यानी उन सितारों का कोई अता-पता ही नहीं है, जो की उनके अस्तित्व को जता सके।
यहाँ एक थ्योरी ये भी कहती है कि, अस्तित्व रहित सितारे ही, असफल होने वाले सुपरनोवा के काफी बड़े उदाहरण हैं। क्योंकि जब भी कोई सितारा सीधे तरीके से ब्लैक होल में तब्दील होता है, तब वो काफी तेजी से अपने द्वारा बनाए गए ब्लैक होल में ही फस जाता है। इससे उस सितारे का कोई वजूद ही नहीं रहता है। जो की शायद एक असफल सुपरनोवा का उदाहरण है।
ब्रह्मांड से अचानक गायब हो रहें हैं सितारे! :-
वर्तमान की बात करूँ तो, वैज्ञानिकों को कई सितारे ब्रह्मांड से यूं ही बिना किसी सबूत के गायब होते हुए नजर आए हैं। मित्रों! ये बात तब और भी ज्यादा दिलचस्प हो जाती है, जब वैज्ञानिकों को इन गायब हुए सितारों के बारे में कुछ नहीं पता चलता है। VFTS 243 नाम के एक बाईनरी सिस्टम में वैज्ञानिकों को कई खास चीजों के बारे में पता चला है। अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, इस बाईनरी सिस्टम को साल 2022 में ढूंढा गया था।
वैसे ये सिस्टम “Tarantula Nebula” का हिस्सा है। दोस्तों! आप लोगों को जानकर हैरानी होगी कि, VFTS 243 के अंदर एक ऑलरेडी कोलैप्स हो चुका सितारा मौजूद है, जो की अब एक ब्लैक होल के रूप में बदल चुका है! परंतु यहाँ एक चौंका देने वाली बात ये है कि, इस ब्लैक होल के फोरमेशन के बारे में अभी भी वैज्ञानिकों को कुछ नहीं पता है। क्योंकि यहाँ सुपरनोवा विस्फोट के कोई सबूत ही नहीं मिलते हैं।
आप लोगों की अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, सुपरनोवा के कारण ब्लैक होल (Stars Are Turning To Black Holes) और पहले से मौजूद सितारे की कक्षा में बदलाव होते हुए नजर आता है। आमतौर पर सुपरनोवा के कारण ए-सीमेट्रिक कक्षाओं को देखा जाता है। परंतु VFTS 243 के अंदर एक पर्फेक्ट सर्कल के आकार के कक्षाओं को देखा जा सकता है। जो कि, सुपरनोवा के होने के प्रक्रिया को ही नकार रहा है। ऐसे में यहाँ सुपरनोवा हुआ ही नहीं होगा।
Source:- www.livescience.com