लाइट यानि कि प्रकाश या रोशनी जोकि इलेक्ट्रोमैग्नेटिक स्पेक्ट्रम का वो हिस्सा है जो इंसानी आखों को दिख सकता है या ये कहें कि वो radiations जो इंसानों की आंखें देख सकती हैं और सरल भाषा में इसे विज़िबल लाइट भी कहा जाता है।
दोस्तों इस लाइट की सबसे खास बात जो इसे हम लोगों को सोचने और जानने पर मजबूर कर देती है वो है इसकी गति या स्पीड। विज्ञान के अनुसार वैक्यूम या हवा में लाइट की स्पीड 29,97,92,458 मीटर प्रति सेकंड बताई गयी है और इसे measure या नापने के लिए सबसे आधुनिक तकनीक जिसका इस्तेमाल वैज्ञानिकों ने किया है वो है लेज़र टेक्नोलॉजी।
इस टेक्नोलॉजी की वजह से लाइट की स्पीड को सबसे सटीक तौर पर मापा जा सकता है और इसमें गलती की गुंजाइश भी बहुत कम होती है। 1973 के आसपास इस लेज़र तकनीक से वैज्ञानिकों ने लाइट की स्पीड को नापा और थोड़े समय के बाद इसमें थोड़ी सी सुधार करके इसे अपनाया।
पर इस लाइट की स्पीड को नापना कोई इतना आसान काम नहीं था और बात हो 17वी शताब्दी की तो लोग तो इस लाइट की स्पीड को infinite यानी कि असीमित तक मानते थे क्योंकि इसकी स्पीड ही इतनी तेज थी कि उस जमाने में मौजूद चीजें इसकी स्पीड को पता करने में जरा सी भी सफल नहीं थी।
इस दौरान सबसे पहले डच फिलॉस्फर और scientist इसाक बीकमेन ने इस स्पीड की लाइट को जानने और मापने की कोशिश की और ये पता लगाना चाहा कि वाकई में लाइट की स्पीड infinite है या हम इसे नापने के लिये कोई प्रयोग भी कर सकते हैं या नहीं। इसी बात को लेकर उन्होनें 1629 में सबसे पहले एक experiment किया जहां उन्होनें गनपाउडर इस्तेमाल किया और कुछ शीशों की मदद से ये पता लगाना चाहा कि gunpowder से होने वाले धमाकों की reflection में कोई अंतर आता है या नहीं और अलग अलग दूरी पर इस प्रयोग को उन्होनें कई बार दोहराया। पर ये प्रयोग असफल रहा और लाइट की स्पीड को मापने में वे कामयाब न हो सके।
थोड़े समय बाद italian astronomer galileo ने कहा कि लाइट की स्पीड बस बहुत ज्यादा है पर हम इसे नाप सकते हैं और इसी को लेकर उन्होनें एक simple सा एक्सपेरिमेंट किया। उन्होनें 2 लालटेन की मदद से ये पता लगाना chaha की अलग अलग दूरी पर इन लालटेन से निकलने वाली रोशनी में कोई टाइम lag यानि इनको एक जगह से दूसरी जगह पर जाने में कोई समय का अंतर लगता है या नहीं। इस एक्सपेरिमेंट को उन्होनें इतना ज्यादा बढ़ा दिया कि टेलिस्कोप की मदद से उन्होनें लालटेन से आने वाली रोशनी को analyse किया । पर दोस्तों equipmemts के अभाव में ये एक्सपेरिमेंट लाइट की स्पीड की कोई वैल्यू दे पाया । मगर इस एक्सपेरिमेंट के आधार पर गैलिलियो ने ये जरूर पता लगा लिया कि लाइट की स्पीड साउंड की स्पीड से 10 गुना ज्यादा तो जरूर है।
दोस्तों लाइट की स्पीड को नापने का सबसे पहला सफल एक्सपेरिमेंट 1676 में डेनिश astronomer Ole Romer द्वारा किया गया जहां उन्होनें jupiter के चंद्रमाओं की चाल और गति के आधार पर उसके ग्रहण को ऑब्सर्वे किया और चंद्रमाओं द्वारा निलने वाली लाइट में समय के अंतर को नापकर और जुपिटर और पृथ्वी की दूरी की नापकर लाइट की स्पीड को नापने के प्रयास किया। इस एक्सपेरिमेंट से उन्होनें लाइट की स्पीड जो नापी वो लगभग 2,14,000 km/s थी । इसमें गलती तो थी ही पर उस दौरान प्लैनेट्स के बीच के distance को नापना आसान नहीं था।
Romer द्वारा किये गए प्रयोग ने लाइट की स्पीड को नापने में अहम भूमिका निभाई और आगे चलकर कई वैज्ञानिकों ने अपने अपने तरीकों और प्रयोगों की मदद से इसमें सुधार किए और आज सबसे आधुनिक लेज़र तकनीक की मदद से ही हमें इसकी सबसे सटीक वैल्यू पता है।