हर एक के जीवन में कुछ न कुछ चीज़ें ऐसे होती है, जो की हम सभी के लिए किसी खजाने से कम नहीं हैं। मित्रों! अन्तरिक्ष में भी वैज्ञानिकों के लिए ऐसे ही कई तरह के खजाने छुपे हुए हैं, जो की उनके लिए काफी जरूरी है। नियमित रूप में अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर तरह-तरह के उल्कापिंड (fishing an interstellar meteorite) गिरते ही रहते हैं और इनके ऊपर हमारे वैज्ञानिक काफी कड़ी दृष्टि रखते भी हैं। परंतु एक विचित्र बात ये है कि, उल्कापिंडों के बारे में हमें उतनी जानकारी नहीं है, जितना की हमारे पास वास्तव में होनी चाहिए। ये ही कारण है कि, इनके बारे में जानना हमारे लिए बहुत आवश्यक हो जाता है।
उल्कापिंड (fishing an interstellar meteorite) ये जो शब्द हैं न, ये इतना प्रसिद्ध है कि, आम जनता भी इसके बारे में आपको बातें करते हुए नजर आएगी। कभी किसी उल्कापिंड से पृथ्वी का विनाश हो जाएगा या किसी उल्कापिंड ने भूत काल में डायनासोरों को विलुप्त किया था, दोस्तों इसी तरह के कई विषयों के बारे में आपको इंटरनेट पर पढ़ने को मिलेगा। परंतु आज का हमारा विषय उल्कापिंड से जुड़े होने के बाद भी काफी अलग हैं और में आपको कई खास बातें भी बताऊंगा।
तो, चलिये मेरे साथ इस लेख में अंत तक बने रहिए और अन्तरिक्ष से आए इस बेहद ही असाधारण व खास खजाने के बारे में जानिए।
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अन्तरिक्ष से मानवों के लिए आया एक भव्य खजाना! – Fishing An Interstellar Meteorite! :-
साल 2014 में एक बेहद ही खास घटना घटी, इसी साल एक बेहद ही भव्य उल्कापिंड (fishing an interstellar meteorite) हमारे पृथ्वी पर आ गिरा। अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, ये उल्कापिंड आकार में बेहद ही छोटा था और ये एक अलग ही तारा मण्डल का उल्कापिंड था। खास बात ये है कि, जब ये पृथ्वी के प्रशांत महासागर में गिरा, तब टक्कर इतना तेज हुए कि, लगभग 121 टन के TNT बन फटने के जितना शक्ति इससे बाहर निकला। अंदाजा लगाएँ कि, ये उल्कापिंड किस रफ्तार से पृथ्वी के टकराया होगा।
खैर “CNEOS 2014-01-08” नाम से प्रसिद्ध ये उल्कापिंड कई सारे वैज्ञानिकों को आकर्षित करता रहा है। क्योंकि ये एक परग्रही उल्कापिंड हैं और सदी में शायद एक या दो बार ही ऐसे उल्कापिंड पृथ्वी पर आ गिरते हैं। वैसे वैज्ञानिकों को इस उल्कापिंड के टक्कर के बाद बचे-खुचे मलवे से मतलब हैं। काफी तेजी से टक्कर के कारण उल्कापिंड के कई सारे छोटे-छोटे खंड प्रशांत महासागर में बिखरे पड़ें हैं और वैज्ञानिकों को ये ही खंड ही चाहिए। अगर इस उल्कापिंड के खंड हमको मिल जाते हैं, तब एक नया इतिहास बन जाएगा।
क्योंकि उल्कापिंड के ये खंड मानव जाति के लिए पहली ऐसी धूल के कणों से बड़ी परग्रही चीज़ होगी, जिसके कांटैक्ट में हम इंसान आएंगे। वैसे एक अजीब बात ये है कि, मई 2022 तक इस उल्कापिंड के उत्पत्ति को लेकर कोई औपचारिक पुष्टि नहीं कि गई थी। परंतु हाल ही में इसके परग्रही उत्पत्ति को लेकर काफी सूत्रों से पता चला है। हालांकि! बता दूँ कि, पृथ्वी से इसके टक्कर को किसी इंसान ने नहीं देखा है।
आखिर कहाँ गिरा था ये उल्कापिंड? :-
वैज्ञानिकों के हिसाब से ये उल्कापिंड (fishing an interstellar meteorite) “पापुआ न्यू गिनी” के तट से लगभग 160 km समंदर के अंदर गिरा था और गिरते समय इसके पास हिरोशिमा में फटे परमाणु बन के 1% जितना ऊर्जा मौजूद था। मात्र! 1.5 फीट चौड़ा ये उल्कापिंड हमारे सौर-मण्डल कि पहली ऐसी चीज़ है, जो कि किसी दूसरे तारा-मण्डल से आयी है। इससे पहले एक रहस्यमयी आकृति कि एक चीज़ “Oumuamua” वैज्ञानिकों को पहली परग्रही चीज़ लगती थी।
बता दूँ कि, ये चीज़ 2017 के “Pan-STARRS” स्काइ सर्वे से ढूंढा गया था। इस चीज़ के बारे में एक खास बात ये है कि, पृथ्वी से ये लगभग 92,0000 km/h के रफ्तार से टकराया था और कई वैज्ञानिक इसे एक “परग्रहीओं का स्पैसशिप” भी मानते थे। वैसे इस रहस्यमयी चीज़ के आविष्कार के सिर्फ दो साल बाद यानी साल 2019 में वैज्ञानिकों ने सौर-मण्डल कि पहली परग्रही धूमकेतु “2I/Borisov” को ढूंढ कर निकाला। खैर अगर हम यहाँ पर CNEOS 2014-01-08 कि बात करें तो, ये अन्तरिक्ष में लगभग 42 km/s के रफ्तार से आगे बढ़ रहा था।
मित्रों! बता दूँ कि, कोई भी सौर-मण्डल कि चीज़ सूर्य के महाकर्षण बल (Gravity) के चलते, अन्तरिक्ष में इतने तेजी से ट्रैवल नहीं कर सकता है। इसलिए वैज्ञानिकों को ये लगता है कि, हो न हो ये दूसरे तारा-मण्डल कि चीज़ ही है। वैसे गौर करने वाली बात ये है कि, पृथ्वी से टकराने से पहले ये उल्कापिंड अन्य किसी ग्रह के अक्ष-पथ में न आकार बड़े ही आसानी से उन सभी ग्रहों से बचते हुए पृथ्वी तक आ पहुंचा था।
आखिर इस उल्कापिंड के खंड को वैज्ञानिक कैसे ढूढ़ेंगे? :-
दोस्तों! किसी भी चीज़ को ढूंढना अपने-आप में ही एक बड़ी बात है, जब उस चीज़ को किसी ने पहली बार देखा ही न हो। इसके बाद इस उल्कापिंड (fishing an interstellar meteorite) का आकार इतना छोटा है कि, इसे पृथ्वी के सबसे बड़े महासागर में ढूँढना लगभग असंभव है। परंतु वो कहते हैं न, “उम्मीद पर दुनिया कायम है”! हमारे वैज्ञानिकों ने भी इसी उम्मीद के चलते इस उल्कापिंड के खंडो को खोजने का मन बना लिया है। इसी के कारण कई फंड इसे ढूँढने के लिए लगाया जा रहा है।
सूत्रों से पता चला है कि, उल्कापिंड के खंडों को ढूँढने के लिए लगभग 12,74, 08,000 रुपयों का खर्च होने वाला है, ऐसे में ये देखना होगा कि, वैज्ञानिक आखिर कब तक इन खंडों को ढूँढने में सक्षम हो पाते हैं। वैसे एक बेहद ही अद्भुत बात मैं आप लोगों को अभी यहाँ बताऊंगा ध्यान से सुनिएगा! वैज्ञानिक जिस तरीके से उल्कापिंड के खंडों को खोजने जा रहें हैं, वो काफी ज्यादा दिलचस्प हैं। क्योंकि आप इस तरीके को “मछली पकड़ने का तरीका” (Fishing) भी कह सकते हैं। जी हाँ मित्रों! फिशिंग के तरीके से ही वैज्ञानिक उल्कापिंडों के खंडों को ढूँढने वाले हैं।
दरअसल बात ये हैं कि, वैज्ञानिक एक बेहद ही बड़े चुंबक को उल्कापिंड के खंडों को ढूँढने के लिए इस्तेमाल करने जा रहें हैं। मतलब आप सोचें कि, ये जो चुंबक हैं ये एक फिशिंग हुक कि तरह समंदर में काम करेगा और उल्कापिंड के खंड किसी मछली की तरह। तो आप कह सकते हैं, ये जो तरीका है, ये काफी अद्भुत और अनोखा है।
निष्कर्ष – Conclusion! :-
इस उल्कापिंड (fishing an interstellar meteorite) के खंडों को पृथ्वी के प्रशांत महासागर में ढूँढने के लिए, एक बड़े बिस्तर के आकार के चुंबक का इस्तेमाल किया जा रहा है। अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, खोज करने की जगह का कोओर्डिनेट्स 1.3 डिग्री साउथ/ 147.6 डिग्री इस्ट की और है। वैसे एक खास बात ये भी है कि, इस उल्कापिंड का ज़्यादातर हिस्सा लोहे से बना हुआ है। यानी इसके अंदर काफी मात्रा में लोहा था, जो कि वैज्ञानिकों के द्वारा चुंबक के जरिए खींचा जाएगा।
इसलिए इस उल्कापिंड़ के खंडों को ढूँढना थोड़ा सहज हो जाता है। इसके अलावा लोहे से बनने के कारण, इन खंडों को टक्कर के बाद ज्यादा कुछ नहीं हुआ होगा। जो की वैज्ञानिकों के लिए एक बहुत बड़ी राहत की बात है। खैर उल्कापिंड के इन खंडों को अलग जगहों पर जहाज के जरिए भी खोजा जा रहा है। इन जहाजों पर लगे चुंबक इतने शक्तिशाली है की, 0.004 इंच जितने छोटे खंडों को भी ये खोज पाएंगे। वैसे अभी के समय पर इन्हें ढूँढने के लिए कई करड़ों रूपय खर्च हो चुके हैं और आने वाले समय में काफी रूपय खर्च होने वाले हैं।
मित्रों! किसी भी परग्रही चीज़ को काफी पास से विश्लेषण करने के लिए, हमें अन्तरिक्ष में कई महंगे मिशनों को अंजाम देना होगा। परंतु हमें यहाँ पर खुद पृथ्वी में ही किसी परग्रही चीज़ को विश्लेषण करने का मौका मिल रहा है, जिसको की वैज्ञानिक नहीं छोड़ना चाहते हैं।
Source – www.livescience.com