जब ईसा पूर्व 3,500 में इंसानों ने पहली बार पहिये का आविष्कार किया था, तब से लेकर आज तक हमने विज्ञान में कई सारे मुकाम हासिल कर लिये हैं। उस प्राचीन युग में किसी ने भी ये कभी नहीं सोचा होगा की, एक दिन हम पृथ्वी से बाहर अंतरिक्ष में अन्वेषण (deep space exploration in hindi) करने के लिए भी जाएंगे। खैर जो भी हो, पिछले सदी के 60 के दशक में हम लोगों ने जो इतिहास रचा है उसे देख कर लगता है कि, वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब हम दूसरे ग्रहों पर अपना घर बना रहें होंगे।
परंतु मित्रों! इसके लिए हमें कुछ खास करना पड़ेगा। केवल साधारण मिशनों से बात नहीं बनेगी। हमें डीप स्पेस में अन्वेषण (deep space exploration in hindi) करने के लिए आगे कदम बढ़ाना होगा। हमें अंतरिक्ष के नए पहलुओं को सुलझाना पड़ेगा। हमें ऐसी तकनीकों की जरूरत पड़ेगी जो की, आज के युग के हिसाब से भविष्यवादी सोच को प्रदर्शित करें। हमें इस अन्वेषण के लिए कई गज़ब की उपकरण भी चाहिए जो की हमें डीप स्पेस में छुपी बातों को और बेहतर तरीके से समझने में मदद करेगा।
इसलिए दोस्तों! आज के इस लेख में हम डीप स्पेस के अन्वेषण के लिए जरूरी 5 ऐसे तरीकों के बारे में जानेंगे, जिसके बारे में हर कोई नहीं जानता होगा। तो, चलिये रैडि हो जाइए डीप स्पेस से जुड़ी एक बहुत ही यादगार सफर के लिए।
विषय - सूची
डीप स्पेस के अन्वेषण के लिए जरूरी 5 बेहतरीन तकनीक – 5 Technique Of Spacecraft For Deep Space Exploration In Hindi :-
मित्रों! आगे मैंने 5 ऐसे डीप स्पेस (deep space exploration in hindi) तकनीकों के बारे में जिक्र किया हैं, जिसे पढ़ कर आप भी कहेंगे “वाह क्या तकनीक हैं”! तो, चलिये एक-एक करके क्रमानुसार उन तकनीकों को बेहतर तरीके से समझते हैं।
1. प्रोपर प्रोपलशन (Proper Propulsion) :-
सबसे पहले अगर हमें सुदूर डीप स्पेस (deep space exploration in hindi) में अन्वेषण करना हैं तो, हमें एक ऐसी अंतरिक्ष यान की जरूरत पड़ेगी जो की अत्याधुनिक तकनीकों से लैस हो। क्योंकि जब भी कोई इंसानी दस्ता इस सुदूर अंतरिक्ष में घूमने के लिए जाएगा, तब उन सब की जीवन की रेखा बस उसी यान के ऊपर ही टिकी हुई होगी।
इसलिए एक बेहतरीन प्रोपलशन (Propulsion) तकनीक की जरूरत पड़नी ही पडनी हैं। एक अच्छी प्रोपलशन की तकनीक न बल्कि हमें सुदूर अंतरिक्ष में छुपी हुई बातों को उजागर करने में मदद करेगा बल्कि हमें इस अनंत ब्रह्मांड का एक नया रूप भी देखने में भी कारगर होगा। नासा के द्वारा छोड़ा गया “ओरायन“ रॉकेट अब तक का सबसे शक्तिशाली रॉकेट हैं, जो की एक अत्याधुनिक प्रोपलशन तकनीक से लैस भी हैं।
ओरिओन का सर्विस मॉड्यूल हमें चाँद तक आसानी से पहुँचने में मदद करेगा तथा इसमें लगे अलग-अलग प्रकार के 33 इंजन आगे चलकर कई सारे अंतरिक्ष अन्वेषण मिसन को सफल बनाने में सक्षम हैं। वैसे अधिक जानकारी के लिए बता दूँ की, ओरिओन का मैन इंजन यान को अंतरिक्ष में कई असाधारण कलाबाजियाँ करने के लिए भी उपयोगी बनाता हैं। वैसे इसमें बाकी बचे 32 इंजन अंतरिक्ष में इसे काफी ज्यादा नियंत्रित करके रखने में भी कामयाब हैं।
2. भविष्यवादी सोच के आधार पर बनाई गई लाइफ सपोर्ट सिस्टम :-
अंतरिक्ष में सबसे मौलिक और पहली मुसीबत ये हैं की, अंतरिक्ष का वातावरण इंसानों के लिए बिलकुल भी अनुकूल नहीं हैं। इसलिए हमें एक ऐसी लाइफ सपोर्ट सिस्टम की जरूरत पड़ने वाली थी जो की, अंतरिक्ष में ले जाने के लिए हल्का भी हो और उसमें जिंदा रहने के लिए हर एक समान मौजूद हो।
वैसे बता दूँ की, ओरिओन के अंदर भी एक बहुत ही गज़ब का लाइफ सपोर्ट सिस्टम लगा हैं जो की यान के अंदर मौजूद अंतरिक्ष यात्रियों को जिंदा रखने के लिए काफी ज्यादा मददगार साबित होगा। दरअसल बात ये हैं की, इसके अंदर एक “Environmental and Life Support System” लगा हैं जो की यान के अंदर बढ़ती CO2 के मात्रा में रोकथाम लगा कर नमी को भी नियंत्रित करता हैं।
इसके साथ ही साथ ओरायन को कुछ इस तरीके से बनाया गया है की, इसके खराब होने की संभावना बहुत ही कम हैं। हालांकि पूरे तरीके से किसी भी यान को त्रुटि रहीं नहीं बनाया जा सकता, क्योंकि हम यहाँ पर अंतरिक्ष की बात कर रहें हैं जहां किसी भी वक़्त कुछ भी हो सकता हैं। इसके अंदर ऐसे स्पेस सूट भी मौजूद हैं जो की, अंतरिक्ष के भारी डी-प्रेसराइज़ेशन को भी 6 दिनों तक झेल सकते हैं।
3. ताप को बचाकर रखने की बेहतरीन तकनीक :-
जब भी कोई यान अंतरिक्ष के अन्वेषण (deep space exploration in hindi) में निकलता हैं, तो कई बार उसे फिर से पृथ्वी पर वापस आने में दिक्कत आता हैं। क्योंकि जब कोई अंतरिक्ष यान अंतरिक्ष में लंबे समय तक यात्रा करता हैं तब उसके इंजन से निकलने वाला ताप बहुत ही ज्यादा होता हैं। ये यान और उसके अंदर मौजूद यात्रीयों के लिए भी काफी गंभीर बात हैं। इसके अलावा जब कोई अंतरिक्ष यान पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश कर रहा होता हैं, तब उसका वेग ध्वनि के 30 गुना से भी ज्यादा होता हैं तथा यान के बाहरी सतह का तापमान लावा के तुलना में दो गुना गरम भी होता हैं। इतना ताप सूर्य के ताप का आधा होता हैं।
इसलिए ज़्यादातर अंतरिक्ष यानों के बाहरी सतह में हीट सिंकिंग प्लेट लगे हुए होते हैं, जो की एक नियंत्रित ढंग से अंतरिक्ष यान को ताप से होने वाली नुकसान से बचाता हैं। जब ओरिओन पृथ्वी के सतह में प्रवेश कर रहा होगा तब उसका वेग लगभग 40,200 किमी/घंटा होगा। इसलिए वायुमंडल के साथ होने वाली यान के घर्षण से बनने वाला ताप को सिर्फ और सिर्फ एक बेहतरीन हिट सिंकिंग प्लेट के तकनीक के जरिये ही नियंत्रित किया जा सकता हैं।
जानकारी के लिए बता दूँ की, ओरायन में लगे इस हिट सिंकिंग प्लेट को “Heat Shield” कहा जा रहा है और ये एक विशेष AVCOAT के पदार्थ से बना हुआ है। ये हिट शील्ड अब तक का बनने वाला सबसे बड़ा हिट शील्ड है जो की किसी अंतरिक्ष यान के लिए बना हो। इसके अलावा वैज्ञानिकों के अनुसार ये यान को लगभग 2760 डिग्री सेल्सियस के तापमान में भी सुरक्षित रख सकता हैं।
4. रेडिएशन के लिए भी होगी लाजवाब सुरक्षा प्रणाली :-
जब कोई भी अंतरिक्ष यान पृथ्वी के मैग्नेटिक फील्ड से बाहर अंतरिक्ष में अन्वेषण (deep space exploration in hindi) के लिए निकलता हैं तब, उसके ऊपर हमेशा रेडिएशन की खतरा मंडरा रहा होता हैं। अंतरिक्ष में चार्जड पार्टिकल से लेकर सोलर विंड में मौजूद हैवि आयन यान के जरूरी उपकरणों को पल भर में खराब कर सकते हैं। इसलिए इसके प्रति एक सटीक व शक्तिशाली सुरक्षा प्रणाली का होना अनिवार्य हैं।
रेडिएशन के ऊपर नजर रखने के लिए ओरायन में 4 अलग-अलग कम्प्यूटर लगे हुए हैं और आपातकालीन स्थिति के लिए अलग से एक स्वतंत्र बैक-अप कम्प्यूटर भी मौजूद हैं। ओरिओन में सोलर विंड स्टोर्म से बचने के लिए एक “मेकशिफ्ट स्टोर्म शेल्टर” भी हैं जो की प्रतिकूल परिस्थितिओं में यान के अंदर मौजूद यात्रीयों की जान भी बचा सकता हैं।
5. नेविगेशन और दूर-संचार सिस्टम :-
अगर कोई भी अंतरिक्ष का मिसन हो रहा है और उसमें नेविगेशन और दूर-संचार प्रणाली ही काम नहीं कर रहा हैं, तो वो मिसन कभी भी सफल नहीं हो सकता हैं। इसलिए डीप स्पेस के अन्वेषण में (deep space exploration in hindi) एक दृढ़ संचार प्रणाली का होना अनिवार्य हैं। ओरिओन में इसके लिए तीन खास तकनीक को इस्तेमाल किया जा रहा हैं।
अंतरिक्ष में निरंतर संचार व्यवस्था को बजाए रखने के लिए, “Near Earth Network”, “Space Network” और “Deep Space Network” का उपयोग होता हैं। संक्षिप्त में बता दूँ की, ये सारे के सारे नेटवर्क पृथ्वी के निचली कक्षा में मौजूद रिले सेटेलाइट के द्वारा चलता हैं जो की पृथ्वी के कमांडिंग सेंटर को अंतरिक्ष यान में मौजूद अंतरिक्ष यात्रीयों के साथ जोड़ता हैं। इसके साथ ही साथ आपातकालिन स्थिति में “ऑप्टिकल नेविगेशन” सिस्टम भी ओरिओन के अंदर मौजूद हैं, जो की प्रतिकूल परिस्थिति में फोटो के जरिये यान के सटीक लोकेशन को कमांडिंग सेंटर तक पहुंचा देगा।
Source :- www.nasa.gov.