सनातन संस्कृति का अर्थ ही है वह संस्कृति जो संसार के हर मनुष्य पर लागू होती है। सनातन धर्म संसार का सबसे प्राचीन धर्म है जो वैज्ञानिक रीजि-रिवाजों से सुस्ज्जित है। कई मान्यताओं को देवी-देवताओं से जोड़ कर देखा जाता है. इतना ही नहीं, उनके श्रापों के बारे में कहा जाता है कि उनका प्रभाव अब तक इस धरती पर मौजूद है. ग़ौर करने पर आप पाएंगे कि ये वाकई में सच भी है।
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उर्वशी का अर्जुन को श्राप
महाभारत के समय में अर्जुन दिव्यास्त्र पाने के लिए स्वर्ग लोक गए, जहां उर्वशी नाम की एक अप्सरा को उनसे प्यार हो गया. जब यह बात उर्वशी ने अर्जुन को बतायी, तो उन्होंने उर्वशी को अपनी मां के समान बताया. इस बात पर उर्वशी क्रोधित हो गई और अर्जुन को सदैव नपुंसक रहने का श्राप दे दिया. अपने श्राप में उर्वशी ने कहा कि ‘तुम नपुंसक हो जाओ तथा स्त्रियों के बीच तुम्हें नर्तक बन कर रहना पड़ेगा।
घबराकर अर्जुन ने यह बात भगवान इंद्र को बताई. इस पर इंद्र ने अर्जुन को सांत्वना देते हुए कहा कि घबराने की ज़रुरत नहीं है. यह श्राप तुम्हारे वनवास के समय काम आएगा. हुआ भी कुछ इसी तरह से ही. अर्जुन को कौरवों से बचने के लिए नर्तकी का रूप धारण करना पड़ा. यह परंपरा आज भी कायम है।’
श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप
मृत्यु के पश्चात, जब पांडव स्वर्गलोक जा रहे थे, तो उन्होंने अपना सारा राज्य अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित के हाथों में सौंप दिया. राजा परीक्षित के शासन काल में सभी प्रजा सुखी थी. वे सभी प्रजा का ध्यान रखते थे. एक बार वे वन में शिकार करने गए, तभी उन्हें वहां शमीक नाम के ऋषि दिखाई दिए. वे अपनी तपस्या में लीन थे. ऐसे में राजा परीक्षित उनसे कई बार बात करना चाहा, मगर ऋषि मौन अवस्था में थे. क्रोध में आकर राजा ने एक सांप ऋषि के गले में डाल दिया।
जब इस बात की जानकारी ऋषि शमीक के पुत्र श्रृंगी को पता चली, तो उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि आज से सात दिन बाद राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के डसने से हो जायेगी. राजा परीक्षित के जीवित रहते कलयुग में इतना साहस नहीं था कि वह हावी हो सके परन्तु उनकी मृत्यु के पश्चात ही कलयुग पूरी पृथ्वी पर हावी हो गया।
युधिष्ठिर ने दिया था स्त्रियों को श्राप
वैसे तो ग्रंथों में युधिष्ठिर को एक बुद्धिमान और सशक्त पुरुष के रूप में वर्णित किया गया है। प्रसिद्ध ग्रंथ महाभारत के अनुसार, जब महाभारत समाप्त हुआ, तो माता कुंती ने पांडवों के पास जाकर बताया कि कर्ण उनका भाई था. इस बात से सभी पांडव आहत हुए. युधिष्ठिर ने कर्ण का अंतिम संस्कार भी किया। उसके बाद वो कुंती के पास गए और श्राप देते हुए कहा कि आज से कोई भी स्त्री कोई भी रहस्य नहीं छिपा पाएगी. आज ये श्राप एक हक़ीक़त भी है।
श्रीकृष्ण का अश्वत्थामा को श्राप
महाभारत युद्ध के अंत समय में पाण्डवों पर ब्रह्मास्त्र का वार किया. ये देख अर्जुन ने भी अपना ब्रह्मास्त्र छोड़ा. हालांकि, महर्षि व्यास ने दोनों को अपने अस्त्र वापस लेने को कहा. अर्जुन ने अपना ब्रह्मास्त्र वापस ले लिया, मगर अश्वत्थामा ये विद्या नहीं जानता था. इसलिए उसने अपने अस्त्र की दिशा बदलकर अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दी. यह देख भगवान श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया कि तुम तीन हज़ार वर्ष तक इस पृथ्वी पर भटकते रहोगे और किसी भी जगह, किसी पुरुष के साथ तुम्हारी बातचीत नहीं हो सकेगी. मान्यता के अनुसार, अश्वत्थामा अभी भी इस दुनिया में मौजूद है।
यह सभी श्राप आज भी देखा जाये तो हमारे सामने आते ही रहते हैं, कई रहस्य से भरे हुए हैं तो कई के बारे में हम लोग जानते भी है। यह एक ऐसा सच है, जिसे हम रोज़ महसूस करते हैं।
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