जैसे हमारा ब्रह्मांड हमारे लिए एक पहेली है, उसी तरह हमारे दिमाग के लिए भी हमारा ये शरीर एक पहेली ही है। कहने का तात्पर्य ये है कि, हमारे शरीर के अंदर हर समय निरंतर इतनी प्रक्रिया एक-साथ चलती हैं कि, इनको समझने के लिए हमें और कई सौ साल लग जाएंगे। मित्रों! जितना सरल हमारा ये शरीर बाहर से लगता है, उतना ही जटिल ये अंदर से है। इसलिए जीव-विज्ञान में इसे एक “कॉम्प्लेक्स मशीन” भी कहा गया है। परंतु कुछ मौलिक चीज़ें जैसे प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi), फेट्स (Fats) और कार्ब्स (Carbs) हैं, जो की हमारे शरीर को बनाते हैं और इन्हें हम बेहद ही आसानी से समझ सकते हैं।
प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi) की जब भी बात आती है, तो आपके मन में शायद बॉडी-बिल्डिंग से जुड़ी तस्वीरें आ रहीं होंगी। परंतु एक स्वस्थ इंसान के जिंदा रहने के लिए, प्रोटीन की खपत शरीर के अंदर होना अनिवार्य है। बिना प्रोटीन के आपके शरीर का विकास सही तरीके से नहीं हो सकता है। प्रोटीन के अभाव से हड्डियाँ कमजोर और शरीर में कैल्सियम की कमी होने लगती है। इसलिए प्रोटीन का होना हमारे शरीर में बेहद ही जरूरी है।
खैर मित्रों! आज के इस लेख में मैं आप लोगों को, हमारे शरीर के अंदर प्रोटीन कैसे बनता है! उसके बारे में बहुत बारीकी से बताऊंगा। तो लेख के किसी भी भाग को बिना स्किप करते हुए अंत तक पढ़िएगा। आप लोगों को काफी कुछ जानने को मिलेगा।
विषय - सूची
प्रोटीन कैसे बनता है? – Formation of Protein in Hindi! :-
मित्रों! जीव विज्ञान में प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi) के बनने के प्रक्रिया को “Protein Synthesis” कहते हैं। आमतौर पर इस प्रक्रिया के 4 मुख्य चरण होते हैं। पहला है “Amino Acid Synthesis”, दूसरा है “Transcription”, तीसरा है “Translation” और आखिर में है “Post-Translational Events”। दोस्तों! मूलतः अमीनो एसिड्स “ग्लूकोज” से बनते हैं। हालांकि! शरीर के अंदर सारे अमीनो एसिड नहीं बनते हैं। कुछ को हम खाने के जरिये अपने शरीर के अंदर लेते हैं।
प्रोटीन बनने की प्रक्रिया हमारे शरीर के अंदर मौजूद कोशिकाओं (Cells) के अंदर शुरू होती है। एक कोशिय (Unicellular) और बहू कोशिय जीवों (Multicellular) के अंदर प्रोटीन के बनने की प्रक्रिया अलग-अलग होती है। वैसे हम मानवों के बहू-कोशिय जीव होने के कारण, हम हमारे शरीर के अंदर होने वाले प्रोटीन के बनने की प्रक्रिया के बारे में चर्चा करेंगे। खैर इस प्रक्रिया में DNA, RNA और कई सारे एंजाइम्स (Enzymes) इस्तेमाल होते हैं।
इसके अलावा आप लोगों के जानकारी के लिए बता दूँ कि, प्रोटीन के बनने कि प्रक्रिया में कई सारे फेर-बदलाव होते हैं और ये मूलतः कोशिका के “Cytoplasm” में होते हैं। मित्रों! प्रोटीन की फोल्डिंग, मोड़िफिकेशन और प्रोटियोलिसिस (Proteolysis) भी इस प्रक्रिया के हिस्से हैं। वैसे ये सभी की सभी प्रक्रिया आखिर में ही होती हैं। इन्सानों में प्रोटीन का बनना कोशिका के “Nucleus” से शुरू होता है और बाद में “Cytoplasm” के “Ribosome” में जा कर अंत होता है।
जैनेटिक कोड्स और RNA :-
हमारे शरीर के अंदर किसी भी प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi) के बनने के लिए, एक खास “जैनेटिक कोड” की जरूरत होती है। इसे हम जीव-विज्ञान में “Codon” कहते हैं। ये मूलतः “Trinucleotides” होते हैं, जो कि एक खास अमीनो एसिड को दर्शाते हैं। उदाहरण के लिए “Guanine-Cytosine-Cytosine” (GCC) नाम का कोड़ोन “Glycine” नाम के अमीनो एसिड को दर्शाता है। मित्रों! इस तरह के कई कोड़ोन हमारे प्रोटीन के बनने के प्रक्रिया में इस्तेमाल होते हैं।
इसके अलावा प्रोटीन के बनने में कई तरह के RNA; जैसे m-RNA, t-RNA और r-RNA भी इस्तेमाल होते हैं। मित्रों ये RNA प्रोटीन बनने के प्रक्रिया में बेहद ही महत्वपूर्ण किरदार अदा करते हैं। बिना इनके आपके शरीर में प्रोटीन बनना तो दूर, प्रोटीन के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता है। हालांकि! इन सभी के बारे में हम बाद में किसी दूसरे लेख में बेहद ही बारीकी से चर्चा करेंगे; पर अभी हम प्रोटीन बनने के प्रक्रिया के महत्वपूर्ण चरणों के बारे में एक-एक कर के बातें करेंगे।
1) Transcription :-
मित्रों! ये प्रोटीन सिंथेसिस का पहला चरण है। इस चरण में m-RNA टेम्पलेट किसी भी प्रोटीन के सिंथेसिस कोड को एनकोड कर के ट्राईन्यूक्लिओटाइड में परिवर्तित करता है जो कि DNA से बना हुआ आता है और इस चरण के आखिर में एक “Template” बनता है जो कि “Translation” में इस्तेमाल होता है। इस प्रक्रिया में “RNA Polymerase” एंजाइम का इस्तेमाल होता है। खैर ये चरण फिर से 4 उप-चरणों में बंटा हुआ है।
a) Initiation –
इसमें RNA Polymerase कई सारे ट्रांसस्क्रिप्शन फ़ैक्टर्स के मदद के जरिये DNA (Promoter रीज़न पर) में जुड़ता है और बाद में ये DNA को खोल कर एक “Transcription Bubble” को बनाता है। बता दूँ कि, इसी बबल से ही ट्रांसस्क्रिपशन की प्रक्रिया शुरू होती है।
b) Promoter Escape –
इस चरण में RNA Polymerase DNA से अलग हो कर हट जाता है, जिससे बाकी का हिस्सा लंबा करने की क्रिया (Elongation) के लिए तैयार हो जाता है।
c) Elongation –
यहाँ टेम्पलेट स्ट्रांड की कोडिंग डीएनए स्ट्रांड के कोडिंग के हिसाब से RNA Polymerase के द्वारा की जाती है। जिससे खास तरह के प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi) के बनने की प्रक्रिया शुरू हो जाती हैं। इसी दौरान स्ट्रांड की लंबाई भी बढ़ती है।
d) Termination –
ये ट्रांसस्क्रिपशन का आखिरी चरण है, जहां पर ट्रांसस्क्रिपशन खत्म होता है। इस चरण में DNA और RNA के अंदर जो भी बचे-खुचे बॉन्ड होते हैं; वो भी सारे के सारे नष्ट हो जाते हैं।
2) Translation :-
ट्रांसक्रिप्स्न खत्म होने के बाद अब बारी आती है “Translation” की! मित्रों, प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi) के बनने के प्रक्रिया में इस चरण का बेहद ही अहम किरदार है। आप लोगों को बता दूँ कि, इस चरण में अमीनो एसिड एक खास शृंखला में आपस में बंध कर जेनेटिक कोड के हिसाब से प्रोटीन को बनाते हैं। ये प्रक्रिया मूलतः कोशिका के साइटोप्लाज्म में होता है, क्योंकि वहाँ पर इसको अंजाम देने के लिए राइबोज़ोम होते हैं।
अधिक जानकारी के लिए बता दूँ कि, इस चरण के भी ट्रांसक्रिप्स्न के तरह ही 4 उप-चरण होते हैं और ये हूबहू एक ही ढंग से काम करते हैं। इसलिए हम उस विषय में ज्यादा चर्चा नहीं करेंगे। क्योंकि इसके बाद भी एक चरण बाकी है। जिसके बिना हमारे शरीर के अंदर प्रोटीन बन ही नहीं सकता है। तो, क्या आप भी मेरे तरह उस आखिरी चरण को जानने के लिए उत्सुक हैं?
3) Post-translation Events :-
मित्रों! ये चरण प्रोटीन (Formation of Protein in Hindi) के बनने की प्रक्रिया का आखिरी चरण है, जो कि ट्रांसलेशन के बाद ही होता है। वैसे इसमें मूलतः प्रोटियोलिसिस (Proteolysis) और फोल्डिंग की प्रक्रिया होती है। परंतु इसके अलावा भी प्रोटीन की कई तरह की मोड़ीफिकेशन हमें कोशिका के अंदर देखने को मिलती हैं, जिसके बारे में जानना थोड़ा जटिल जरूर है। खैर प्रोटियोलिसिस में “Proteases” एंजाइम के द्वारा नए-नवेले प्रोटीन के स्ट्रांड को उचित लंबाई में तोड़ा जाता है।
इसी दौरान नए बन हुए प्रोटीन के स्ट्रांड से एक्सट्रा अमीनो एसिड के शृंखला को भी निकाल दिया जाता है। ताकि प्रोटीन की जरूरत के जितना ही लंबाई रहें। इसके अलावा प्रोटीन के कई तरह के अलग-अलग रूपों में बदलाव भी होता है। ये ही कारण है कि, प्रकृति में हमें कई तरह के प्रोटिन्स देखने को मिलते हैं। प्राइमरी, सेकेन्डरी, टर्सीयरी जैसे प्रोटीन इसी प्रक्रिया के दौरान ही बनते हैं।
इसके अलावा पेपटाइड बॉन्ड का भी ईजाद इसी चरण में होता है। आप लोगों कि जानकारी के लिए बता दूँ कि, एक प्रोटीन के अंदर पेपटाइड बॉन्ड ही उसे अपने असली रूप में लाते हैं। या आप ये भी कह सकते हैं कि, पेपटाइड बॉन्ड ही प्रोटीन के अंदरूनी ढाँचे का मौलिक उपादान है। आसान भाषा में कहूँ तो, इस चरण में प्रोटीन हमारे शरीर के लिए इस्तेमाल होने वाले रूप में बन कर तैयार होता है।